Monday, September 13, 2004

गालियों का सांस्कृतिक महत्व

"आयाहै मुझे फिर याद वो जालिम गुजरा जमाना बचपन का"हास्टल के दिन.पढाई की ऊब को निजात पाने के लिये लडके अपने-अपने कमरों से बाहर निकल कर कुछ पुरानी और कुछ नयी ईजाद की गयी मल्लाही /बहुआयामी गालियों का आदान-प्रदान करते थे.कुछ और हास्टलिये भी इस यज्ञ में अपनी आहुति देते. जब गालियां,ऊब और फेफडे की हवा चुक जाती तो दोनो गले में हाथ डाल कर ---"ये दोस्ती हम नहीं छोडेंगे" गाते हुये चाय की दुकान का रुख करते(यह अलग बात है कि उनके गाने से ज्यादा कर्णप्रिय उनकी गालियां होती थीं)

यह भूमिका इसलिये कि हमारे प्रवासीठलुहा . मित्र पीछे पडे हैं कि लालूजी-अमरसिंह वार्ता का विवरण उनको विस्तार से बताया जाये.अब इसमें बात सिर्फ इतनी है कि लालूजी बोले---अमरसिंह दलाल और लौंडियाबाज हैं. अमरसिंह जी ने सोचा कि रिटर्नगिफ्ट जरूरी है सो वो बोले--लालू यादव लौंडेबाज हैं.
अब मुझे समझ नहीं आ रहा है इतनी सी बात को कितना विस्तार दिया जाये?

बहरहाल हम एक मित्र को भेजे विस्तृत समाचार के लिये.वो एक ऐसे जीव से बतियाये जो सभी राजनीतिज्ञों का प्रतिनिधित्व करते हैं.बातचीत सवाल-जवाब के रूप में प्रस्तुत है:-

सवाल:-आजकल नेता लोग गाली-गलौज की भाषा में बातचीत करते हैं.क्या विचार है आपका इस बारे में?
जवाब:-विचार क्या है जी.यह तो जनता से जुडने की कोशिश है.जब हम जनता के नुमाइन्दे हैं तो आम जनता की भाषा नहीं बोलेंगे तो जनता हमारा बायकाट नहीं कर देगी?

सवाल:-पर गाली-गलौज की भाषा जनता की भाषा कैसे हो सकती है?
जवाब:-काहे नहीं हो सकती ?अरे भाई जो चीज जनता तुरन्त समझ ले वो उसकी भाषा.अब देखो " लौंडियाबाजी-लौंडेबाजी "किसी को समझाना पडा?आराम रहती है थोडा बात समझने-समझाने में .इसीलिये आजकल इस जनभाषा का पैकेज थोडा ज्यादा पापुलर है.

सवाल:-पर एक बात समझ में नहीं आती कि लोग नकारात्मक चरित्रों से तुलना क्यों करते हैं लोगों की?जैसे किसी को धृतराष्ट्र कह दिया,किसी को शिखंडी.ऐसा क्यो है?
जवाब:-देखिये इसके पीछे दो उद्देश्य रहते है.पहला तो कि इस बहाने हम अपनी संस्कृति से जुडे रहते हैं.अपने पौराणिक चरित्रों की याद ताजा करते हैं.दूसरी बात जो ज्यादा जरूरी है कि हम आज के महापुरुषों की तुलना पुराने नकारात्मक चरित्रों से इसलिये करते है क्योंकि हमें लगता है कि वो उतने बुरे थे नहीं जितनी बुरी उनकी छवि है.क्या आपको लगता है कि धृतराष्ट्र इतने बुरे थे जितना उनको बताया गया है?देखा जाये तो एक बाप की हैसियत से जो उन्होंने किया वो आज का हर बाप करता.तो यह एक तरह का प्रयास है पौराणिक महापरुषों को नये बेहतर नजरिये से देखने का.

सवाल:-पर आरोपों की कोई संगति तो होनी चाहिये.कुंवारे बाजपेयी जी की तुलना १०० बच्चों के बाप से करना कहां तक उचित है?मनमोहनजी जैसे व्यक्ति की तुलना शिखंडी से कैसे उचित है?
जवाब:-देखिये अब जो काम करेगा उससे कुछ गलतियां स्वाभाविक हैं.इसमें यही हो सकता हैकि जितनी जल्दी हो सके हम भूलसुधार कर लें और सही आरोप लगा कर बात आगे बढायें.जैसे देखिये मनमोहनजी के लिये हमने बेहतर उपाधि चुन
ली.उनको विदुर बता दिया.उनकी विद्धता की तारीफ भी कर दी और आरोप भी लगा दिया.उनकी भी इज्जत रह गयी,अपना भी काम हो गया.


सवाल और भी थे पर नेताजी को कहीं जाना था किसी प्रेसकान्फ्रेन्स में कुछ आरोप लगाने लिहाजा वो बिना विदा लिये चले गये.

अपने इस ब्लाग में इतना ही लिखकर कुछ अपने पसंदीदा दोहे दे रहा हूं.

मेरी पसंद

कुरुक्षेत्र में चले थे, दिव्यवाण ब्रम्हास्त्र
अब संसद से सड.क तक चलते हैं जूतास्त्र.

सभी जयद्रथ बन गये ,आज माफिया डान
चक्रव्यूह में फंस गया , पूरा हिन्दुस्तान.

जरासंध जरखोर बन ,रहे आज ललकार,
शिखण्डियों का हो गया,सत्ता पर अधिकार.

पहले शकुनी एक था , जुआबाज सरताज,
पर अब मामा हर गली , हुये लाटरीबाज.

--- डा.अरुणप्रकाश अवस्थी

2 comments:

  1. अनूप: कटु सत्यों को हास्य का चोंगा पहना कर बहुत बखूबी प्रस्तुत करते हो. लेख का प्रस्ताव्ना पढ़ कर मुझे अपने छात्रावास (hostel) के दिनों की याद आ गयी - याँत्रिकी (engineering) कहाँ से करी है? सम्पर्क: shriatku@hotmail.com

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  2. सही सम्पर्क: shriatku@yahoo.com

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