Friday, February 25, 2005

मेरा चमत्कारी अनुभव

'क्या देह ही है सब कुछ' से शुरु हुई 'अनुगूंज यात्रा'बरास्ते 'भारतीय संस्कृति','आतंकवाद','बिहार' तथा 'पहला प्यार'होते हुये 'चमत्कार 'तक आ पहुंची है.यह स्थूल से सूक्ष्म की यात्रा है.इस 'छायावादी'परिणति के लिये कहा गया है:-

विश्व के पलकों पर सुकुमार ,
विचरतें हैं जब स्वप्न अजान,
न जाने नक्षत्रों से कौन,
निमंन्त्रण देता मुझको मौन.


'छायावाद'गये जमाने की बात हो गयी.अब मामला प्रगतिवाद,प्रयोगवाद,यथार्थवाद(जनवाद)होते हुये उत्तर आधुनिकता तक आ पहुंचा है.पीछे जाना पडेगा छायावाद के लिये.भूत के पांव पीछे की तर्ज पर भूतकाल में जाना पडेगा चमत्कारी अनुभव के मोती बटोरने.

कुछ आधुनिक सर्वे रिपोर्टें बतातीं हैं कितने प्रतिशत लोगों का परायी स्त्री से प्यार का अनुभव अच्छा रहा कितनों का बुरा रहा.सिर्फ दो विकल्प--अच्छा रहा या खराब रहा.परायी स्त्री से प्यार हुआ नहीं,चाहा नहीं,जरूरत नहीं जैसे विकल्प नदारद .उसी तर्ज पर विषय यह मान के चलता है कि हम चमत्कार के फेरे में जरूर पडे होंगे.

हर असामन्यता या उस घटना को जो समझ में नहीं आती,चमत्कार मान लिया जाता है.चमत्कार समय सापेक्ष तथा व्यक्ति सापेक्ष होता है.आज जिस घटना को हम चमत्कार मानते हैं कल उसकी व्याख्या करने में समर्थ होने पर वही सामान्य घटना हो जाती है.जो हमारे लिये चमत्कार है हो सकता दूसरे के लिये साधारण बात हो.

कुछ चमत्कारों से मेरा भी पाला पडा है.एक बार मैं अपने मित्र पाठक जी से मिलने गया.घर से नदारद.कुछ देर बाद हांफते हुये आये.पता चला सबेरे से लाइन में लगे थे --गणेश जी को दूध पिलाने के लिये.गणेश जी को दूध पिलाने के आदेश की खबर मिनटों में दुनिया के कोने-कोने में फैल गयी थी.पता चला किसी को लंदन से फोन आया किसी को न्यूयार्क से --गणेश जी को दूध पिलाओ.चमत्कार होगा.यहां से फोन लंदन गये होंगे.गणेश जी का सिर हाथी का है.हाथी को गन्ना पसन्द है.रातों रात पसन्द बदल गयी उनकी.दूध पीने लगे.विघ्न विनाशक गणेश जी --बबुआ हो गये.भारत में एक बार फिर दूध-घी की नदियां तो नहीं पर नालियां बह चलीं. बाद में पता चला सब मन गढन्त था.पर तब तक टनो दूध नाली में बह चुका था.


तैतीस करोड देवता तो हमे विरासत में मिले.बाद में आबादी बढी तो ज्यादा देवताऒ की जरूरत पडी.तपस्या की लोगों ने आओ देव हमारा कल्याण करो.पर लगता है स्वर्ग में भी टी.ए.डी.ए.का पैसा खतम हो गया था.किसी देवता का डेपुटेशन मंजूर नहीं हुआ.मजबूरन हमें खुद ईजाद करने पडे देवता.एक देवता थे --स्टोव देवता.


स्टोव देवता को बुलाने का तरीका मजेदार था.तीन लोग स्टोव पर अंगुली रखकर कहते--स्टोव देवता आ जाइये, स्टोव देवता आ जाइये.करीब आधा घंटा बाद आते देवता जी.केवल आब्जेक्टिव सवालों के जवाब देते .हां या न में.एक बार खटकी टांग तो 'न' दो बार तो 'हां'.मैनें भी कुछ सवाल पूंछे.जो उन्होंने कहा था आधे में वही हुआ,आधे में उल्टा.मुझे शंका हुयी पर मन को समझा दिया शायद देवता की बात मैं गलत समझा हूं.

स्टोव देवता बाद में गैस देवी को चार्ज सौंप कर पता नहीं कहां चले गये.इनके हमेशा भाव बढते रहते हैं--आम आदमी दे दूर.लिफ्ट ही नहीं देती.

पर एक देवी थीं हमेशा आम आदमी के लिये परेशान रहीं.वे थीं संतोषी माता.उन पर पिक्चर बनी और देखते -देखते संतोषी माता की महिमा इतनी बढी कि उनके लिये हफ्ते का एक दिन अलाट किया गया.शुक्रवार के दिन कुंवारी लडकियां मनपसंद वर के लिये,शादी शुदा सुचारु रूप से घर-चलन के लिये अपने से कम उमर की देवी का व्रत रख़ने लगी.शंकरजी की दुकान मंद हुयी थोडी.जिस देवी ने करोडों लोगों के घर बसा दिये वह खुद कुंवारी है.देवियों की हालत भी हीरोईनों की तरह होती है,घर बसाया नहीं कि मार्केट वैल्यू डाउन.

कहां तक गिनायें भगवानों के चमत्कार?भभूतिये तो गली-गली फिरते हैं.कुछ लोगों ने ऐसे लोगों को चुनौती दी के ये तो हम भी कर लेते हैं इसमे चमत्कार क्या है ?भगवान ऐसे संसारी पुरुषों ने नहीं उलझे.खाली हवा में हाथ हिलाकर भभूत ,घडी निकलना तो जादूगर भी कर लेता है.उसको भगवतगति तो भगवान ही प्रदान कर सकता है.

पर आजकल भगवानों की हालत भी पतली चल रही है.ड्राप्सी बीमारी के डर से शनिदेव आजकल सरसों के तेल का परहेज करके वनस्पति तेल का चढावा मांग रहे हैं.हनुमान जी भी अपनी ताकत के लिये बोर्नविटा का सेवन कर रहे हैं--ऐसा उन्होंने एक चैनल से इन्टरव्यू में बताया.क्या यह प्रतिचमत्कार है.

चमत्कार अज्ञानता और अवैज्ञानिकता की कोख से उपजते हैं.जहां तक हमारी नजर सोच जाती है,उससे परे की चीज हमारे लिये चमत्कार हो जाती है.

हम बहुत भरोसा करते हैं चमत्कारों में.हर साल पानी जहां कम बरसा औरतों के कपडे उतरवा के हल थमा देते हैं .शायद इन्द्र भगवान पसीज जायें और दो-तीन बादल पानी ईशू कर दें.पेड हम काट रहे हैं.पानी तो कपडे उतरने पर बरस ही जायेगा.

स्काईलैब जब गिरने वाली थी तो लगभग जगहें पता थीं जहां वह गिरनी थी.पर हमारे देश में कीर्तन -भजन , पूजा-पाठ चलता रहा.गुरुत्वाकर्षण के नियम,हवा की दिशा के प्रभाव को भले स्काईलैब नकार दे पर हल्ले-गुल्ले से डर गयी वह और यहां नहीं गिरी.मजाल है जो पूजा-पाठ को नकार दे वह सांसारिक वस्तु!यह है चमत्कार.

लोग कहते हैं इतनी विसंगतियों के बावजूद देश चल रहा है यह अपने आप में चमत्कार है.क्या ऐसा मान लिया जाये?चमत्कार व्यक्तिगत जीवन की कुछ घटनायें होती होंगी जिनका विष्लेषण हम नहीं कर पाते हैं.पर चमत्कार तभी तक हावी रहता है जब तक हम अंधविश्वाश की शरण में दुबके रहेंगे.आस्थावान होना अलग है अंधविश्वासी होना अलग.मुझे नहीं लगता कि चमत्कार जैसी किसी चीज के भरोसे समाज का कल्याण होगा.सुनामी तूफान में हजारों लोग तथा अभी जम्मू में वर्फ मेदब के सैकडों लोग मारे गये.दो चार बच गये होंगे किसी संयोगवस.पर सैकडों हजारों की मौत का सच कुछ चमत्कारिक बचाव से ज्यादा भयावह है.सही समय पर सूचना सैकडों-हजारों को भी बचा सकती थी.पर उसके लिये कम तब तक तैयार नहीं होंगे जब तक हम चमत्कार को नमस्कार करते रहेंगे.


इतना लिख चुकने के बाद हमें अतुल की याद आ रही है.वे कहते हैं जब हम लिखते हैं पूरे मूड में तो उनके सर के ऊपर से गुजर जाता है.तो अतुल के लिये अब अपना मूड उखाडता हूं और आगे एक सच्ची घटना बयान करता हूं.

करीब छह साल पहले मेरा बडा बालक चार मंजिल ऊपर छत से नीचे गिरा.छत से नीचे फर्श तक की दूरी उसने पीठ के बल तय की.जमीन से करीब तीन मीटर ऊंची रस्सी पर पीठ के बल गिरा.रस्सी टूट गयी और वह उछलकर मुंह के बल गिरा जमीन में.उसके होंठ पर सिर्फ इतनी चोट आयी थी जैसे कि दौडते हुये गिर गया हो मुंह के बल.हम भाग के गये घटनास्थल पर.पहला सवाल उसने पूंछा ---पापा मैं बच जाऊंगा. हम मियां-बीबी बोले--- हां बेटा तुम्हे हुआ क्या है?बस सोना नहीं.पता नहीं कितना धैर्य हमारे अन्दर आ गया.हम उससे बाते करते रहे.डाक्टर के पास गये.डाक्टर ने सी.टी.स्कैन वगैरह किया.सब ठीक था.तीन दिन के बाद वह घर आ गया.रस्सी देवी ने उसकी जान बचाई.खुद टूट गयी---बालक की जीवन डोर टूटने से बचाने के लिये.

मेरा बच्चा सामान्य भौतिकी के नियमूं का पालन करते हुये गिरा.गुरुत्वाकर्षण के नियम का पालन करते हुये धरती की तरफ गिरा.स्थतिज ऊर्जा गतिज ऊर्जा में बदली.वेग बढा.रस्सी अवरोध के रूप में आयी.न्यूटन के नियमों का पालन करती हुयी रस्सी टूटी.क्रिया-प्रतिक्रिया हुई.बच्चा अंतत: मुंह के बल नीचे गिरा.किसी भी वस्तु के साथ होने वाली यह बहुत सामान्य घटना है .

पर जब बच्चा अपना हो तब यह सामान्य भौतिकी के नियम इतने सरल लगते हैं क्या घटना के समय?

क्या यही चमत्कार है?

मेरी पसंद:

एक सपना उगा जो नयन में कभी,
आंसुऒ से धुला और बादल हुआ!

धूप में छांव बनकर अचानक मिला,
था अकेला मगर बन गया काफिला.
चाहते हैं कि हम भूल जायें मगर,
स्वप्न से है जुडा स्वप्न का सिलसिला.

एक पल दीप की भूमिका में जिया,
आंज लो आंख में नेह काजल हुआ.


---शतदल,कानपुर

Wednesday, February 23, 2005

हरिशंकर परसाई के लेखन के उद्धरण

हरिशंकर परसाई मेरे प्रिय लेखक हैं.व्यंग्य लेखन को साहित्य में प्रतिष्ठा दिलाने में परसाई जी का योगदान अमूल्य है.आजादी के बाद के भारतीय समाज की स्थिति का आईना है उनका लेखन.उनकी पक्षधरता आम आदमी की तरफ है.

मैं परसाईजी के लेखन के नमूने लिखता रहूंगा.मेरा मन तो उनका सारा लिखा नेट पर लाने का है.पर फिलहाल यह मुश्किल दिखता है.यहां मैं उनके लेखन के उद्धरण देता रहूंगा.यह पोस्ट मैं लगातार अपडेट करता रहूंगा. उनके इन्टरव्यू तथा आत्मकथ्य भी लिखूंगा.अगर उनका लिखा पसंद आये तो बार-बार यह पोस्ट देखते रहें. परसाईजी का लेखन कसौटी भी है उन लोगों के लिये जो अपने को व्यंग्य लेखक मानते हैं.

1.इस देश के बुद्धिजीवी शेर हैं,पर वे सियारों की बरात में बैंड बजाते हैं.

2.जो कौम भूखी मारे जाने पर सिनेमा में जाकर बैठ जाये ,वह अपने दिन कैसे बदलेगी!

3.अच्छी आत्मा फोल्डिंग कुर्सी की तरह होनी चाहिये.जरूरत पडी तब फैलाकर बैठ गये,नहीं तो मोडकर कोने से टिका दिया.

4.अद्भुत सहनशीलता और भयावह तटस्थता है इस देश के आदमी में.कोई उसे पीटकर पैसे छीन ले तो वह दान का मंत्र पढने लगता है.
5.अमरीकी शासक हमले को सभ्यता का प्रसार कहते हैं.बम बरसते हैं तो मरने वाले सोचते है,सभ्यता बरस रही है.

6.चीनी नेता लडकों के हुल्लड को सांस्कृतिक क्रान्ति कहते हैं,तो पिटने वाला नागरिक सोचता है मैं सुसंस्कृत हो रहा हूं.

7.इस कौम की आधी ताकत लडकियों की शादी करने में जा रही है.

8.अर्थशास्त्र जब धर्मशास्त्र के ऊपर चढ बैठता है तब गोरक्षा आन्दोलन के नेता जूतों की दुकान खोल लेते हैं.

9.जो पानी छानकर पीते हैं, वे आदमी का खून बिना छना पी जाते हैं .

10.नशे के मामले में हम बहुत ऊंचे हैं.दो नशे खास हैं--हीनता का नशा और उच्चता का नशा,जो बारी-बारी से चढते रहते हैं.

11.शासन का घूंसा किसी बडी और पुष्ट पीठ पर उठता तो है पर न जाने किस चमत्कार से बडी पीठ खिसक जाती है और किसी दुर्बल पीठ पर घूंसा पड जाता है.

12.मैदान से भागकर शिविर में आ बैठने की सुखद मजबूरी का नाम इज्जत है.इज्जतदार आदमी ऊंचे झाड की ऊंची टहनी पर दूसरे के बनाये घोसले में अंडे देता है.

13.बेइज्जती में अगर दूसरे को भी शामिल कर लो तो आधी इज्जत बच जाती है.

14.मानवीयता उन पर रम के किक की तरह चढती - उतरती है,उन्हें मानवीयता के फिट आते हैं.

15.कैसी अद्भुत एकता है.पंजाब का गेहूं गुजरात के कालाबाजार में बिकता है और मध्यप्रदेश का चावल कलकत्ता के मुनाफाखोर के गोदाम में भरा है.देश एक है.कानपुर का ठग मदुरई में ठगी करता है,हिन्दी भाषी जेबकतरा तमिलभाषी की जेब काटता है और रामेश्वरम का भक्त बद्रीनाथ का सोना चुराने चल पडा है.सब सीमायें टूट गयीं.

16.रेडियो टिप्पणीकार कहता है--'घोर करतल ध्वनि हो रही है.'मैं देख रहा हूं,नहीं हो रही है.हम सब लोग तो कोट में हाथ डाले बैठे हैं.बाहर निकालने का जी नहीं होत.हाथ अकड जायेंगे.लेकिन हम नहीं बजा रहे हैं फिर भी तालियां बज रही हैं.मैदान में जमीन पर बैठे वे लोग बजा रहे हैं ,जिनके पास हाथ गरमाने को कोट नहीं हैं.लगता है गणतन्त्र ठिठुरते हुये हाथों की तालियों पर टिका है.गणतन्त्र को उन्हीं हाथों की तालियां मिलती हैं,जिनके मालिक के पास हाथ छिपाने के लिये गर्म कपडा नहीं है.

17.मौसम की मेहरवानी का इन्तजार करेंगे,तो शीत से निपटते-निपटते लू तंग करने लगेगी.मौसम के इन्तजार से कुछ नहीं होता.वसंत अपने आप नहीं आता,उसे लाना पडता है.सहज आने वाला तो पतझड होता है,वसंत नहीं.अपने आप तो पत्ते झडते हैं.नये पत्ते तो वृक्ष का प्राण-रस पीकर पैदा होते हैं.वसंत यों नहीं आता.शीत और गरमी के बीच जो जितना वसंत निकाल सके,निकाल ले.दो पाटों के बीच में फंसा है देश वसंत.पाट और आगे खिसक रहे हैं.वसंत को बचाना है तो जोर लगाकर इन दो पाटों को पीचे ढकेलो--इधर शीत को उधर गरमी को .तब बीच में से निकलेगा हमारा घायल वसंत.

18.सरकार कहती है कि हमने चूहे पकडने के लिये चूहेदानियां रखी हैं.एकाध चूहेदानी की हमने भी जांच की.उसमे घुसने के छेद से बडा छेद पीछे से निकलने के लिये है.चूहा इधर फंसता है और उधर से निकल जाता है.पिंजडे बनाने वाले और चूहे पकडने वाले चूहों से मिले हैं.वे इधर हमें पिंजडा दिखाते हैं और चूहे को छेद दिखा देते हैं.हमारे माथे पर सिर्फ चूहेदानी का खर्च चढ रहा है.

19.एक और बडे लोगों के क्लब में भाषण दे रहा था.मैं देश की गिरती हालत,मंहगाई ,गरीबी,बेकारी,भ्रष्टाचारपर बोल रहा था और खूब बोल रहा था.मैं पूरी पीडा से,गहरे आक्रोश से बोल रहा था .पर जब मैं ज्यादा मर्मिक हो जाता ,वे लोग तालियां पीटने लगते थे.मैंने कहा हम बहुत पतित हैं,तो वे लोग तालियां पीटने लगे.और मैं समारोहों के बाद रात को घर लौटता हूं तो सोचता रहता हूं कि जिस समाज के लोग शर्म की बात पर हंसे,उसमे क्या कभी कोई क्रन्तिकारी हो सकता है?होगा शायद पर तभी होगा जब शर्म की बात पर ताली पीटने वाले हाथ कटेंगे और हंसने वाले जबडे टूटेंगे .

20.निन्दा में विटामिन और प्रोटीन होते हैं.निन्दा खून साफ करती है,पाचन क्रिया ठीक करती है,बल और स्फूर्ति देती है.निन्दा से मांसपेशियां पुष्ट होती हैं.निन्दा पयरिया का तो सफल इलाज है.सन्तों को परनिन्दा की मनाही है,इसलिये वे स्वनिन्दा करके स्वास्थ्य अच्छा रखते हैं.

21.मैं बैठा-बैठा सोच रहा हूं कि इस सडक में से किसका बंगला बन जायेगा?...बडी इमारतों के पेट से बंगले पैदा होते मैंने देखे हैं.दशरथ की रानियों को यज्ञ की खीर खाने से पुत्र हो गये थे.पुण्य का प्रताप अपार है.अनाथालय से हवेली पैदा हो जाती है.