Tuesday, August 30, 2005

इस तरह जिया यारों…


http://web.archive.org/web/20110925220423/http://hindini.com/fursatiya/archives/38

सूखे अधरों पर राग मल्हार लिये ,घूमे
टूटे मन में ,मादक संसार लिये घूमे
हमने तो यह जीवन इस तरह जिया यारो
हम खाली जेबों में बाजार लिये घूमे ।
हम शब्द,रूप ,रस,गन्ध, परस के आराधक
जिसकी हर सिद्धि कलंकित है ऐसे साधक
ऊपर वाले ने इतनी मस्ती दी हमको
हो गये स्वयं हम ही अपनी गति में बाधक।
भीगी पलकों पर बाग -बहार लिये घूमे
हम बिना बही-खाता व्यापार लिये घूमे
हमने तो यह जीवन इस तरह जिया यारों
बकवासों में वेदों का सार लिये घूमे।
बचपन से ही हम जिये विरोधाभासों में
भूखे भी सोये, तो -शाही अहसासों में
फुटपाथों पर चलने की अनुमति थी हम पर
पर ध्यान हमारा फिरा सात आकाशों में ।
गाली के बूते पर व्यवहार लिये घूमे
अपमानित हो-होकर आभार लिये घूमे
हमने तो यह जीवन इस तरह जिया यारों
जीवन भर हम-जीवन का भार लिये घूमें।
-कन्हैयालाल बाजपेयी
कानपुर।


फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

6 responses to “इस तरह जिया यारों…”

  1. प्रत्यक्षा
    वाह ! क्या बात है……
    आँखों में सपने चार लिये घूमे
    सपनों में सोने सा संसार लिये घूमे
    हमने तो जीवन इसतरह जिया यारों
    दिल में ही घर बार लिये घूमे..
    प्रत्यक्षा
    .
  2. Laxmi N. Gupta
    बहुत सुन्दर. बाजपेयी जी को बधाई.
    लक्ष्मीनारायण
  3. kali
    wah wah ! yeh kavita to main 4 baar padh chuka hun aur 4 baar aur padhunga. infact is per to main aapne blog se link bhi karunga. saabas fursatiya ekdum fursat main dhoondi hai yeh kavita.
  4. indra awasthi
    बहुत बढिया कविता. लाजवाब
  5. manoj jha
    ईस क
  6. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] 1.संस्कार कैसे छोड़ दिये जायें ? 2.अधूरे कामों का बादशाह 3.हैरी का जादू बनाम हामिद का चिमटा 4.अंधकार की पंचायत में सूरज की पेशी 5.ईदगाह अपराधबोध की नहीं जीवनबोध की कहानी है 6.ऐ मेरे वतन के लोगों 7.उनका डर 8.फुरसतिया:कुछ बेतरतीब यादें 9.आशा का गीत-गोरख पांडेय की कवितायें 10.सुभाषित वचन-ब्लाग,ब्लागर,ब्लागिंग 11.इस तरह जिया यारों… [...]

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