Monday, August 08, 2005

हैरी का जादू बनाम हामिद का चिमटा



आज दुनिया में हैरी पाटर का हल्ला है। नित नये तथ्य सामने लाये जा रहे हैं। सारी हैरी पाटर की किताबें साथ-साथ रखी जायें तो दुनिया को इतनी बार घेर लेंगी। एक के ऊपर एक रखी जायें तो चांद तक इतनी बार आने-जाने लायक सीढ़ी बन जायेगी। सारी किताबें मिलाकर पढ़ी जायें तो एक आदमी को सारी किताबों के बराबर शब्द पढ़ने में इतने हजार साल लगेंगे ।आदि-इत्यादि। वगैरह-वगैरह।
हैरी पाटर की लेखिका जोएला कैथलिन रालिंग के बारे में भी दिन-प्रतिदिन नये-नये तथ्य या पुराने तथ्य नये रूप में सामने आते रहते हैं। हैरी पाटर लिखने के पहले की उनकी आर्थिक हालत ऐसी भी नहीं थी कि किताब लिखने के लिये कागज खरीद सकें। आज छह किताबें लिखने के बाद उनके पास इतना पैसा है कि ये खरीद सकतीं हैं वो खरीद सकती हैं।
हैरी पाटर एक चमत्कारी बालक है। जो अपने जादू के जोर से बुराई की प्रतीक शक्तियों पर कब्जा करता है । खतरे में पढ़ता है लेकिन विजयी होता है ,अपनी जादुई ताकतों से। यह फंतासी चरित्र दुनिया में इतना लोकप्रिय है कि बच्चे घंटों लाइन में लगकर किताब खरीद कर रातों-रात जगकर पढ़ रहे हैं।
हैरी पाटर एक चमत्कारी बालक है। जो अपने जादू के जोर से बुराई की प्रतीक शक्तियों पर कब्जा करता है ।
मुझे न हैरी पाटर से कोई चिढ़ है न कोई लगाव । लेकिन जब दुनिया में इतना हल्ला मचा देखता हूं तो उसकी खूबी जरा नजदीक से देखने का मन करता है। पाता हूं कि हैरी पाटर का पूरा कथानक शक्ति तथा गोपनीय ज्ञान प्राप्त करने के प्रयास से गुंथा हुआ है। बच्चे जादूगरी की तालीम पाते हुये सिर्फ अपना भला करना सीख रहे हैं। बच्चे सीख रहे हैं कि पर्यावरण को सुविधानुसार बदल डालो। लोगों को उनकी मर्जी के खिलाफ काम कराने के लिये दवायें पिलाने की मंशा पर जोर है।हर मुश्किल से
निजात पाने के लिये जादुई ताकतों पर कब्जा करने पर जोर है। ऐन-केन-प्रकारेण अपने लक्ष्य पाने की यानी कि साधनों की चिंता बिना काम को अंजाम देने का संदेश है।
हैरी पाटर के लक्ष्य प्राप्ति का अंदाज मुझे उस डायनासोर का अंदाज लगता है जो किसी मंजिल को पाने के लिये दौड़ रहा है तथा उसके रास्ते में जो कोई भी आ रहा है वह भू लुंठित होता जा रहा हैं। जाने -अनजाने मैं जब भी इस मासूम चेहरे वाले बच्चे को देखता हूं तो लगता है कि ऐन-केन-प्रकारेण अकेले दम मंजिल हासिल करने की सीख घुट्टी में पीने वाला यह बच्चा धीरे-धीरे उस मानसिकता में पहुंच जायेगा जब जो यह सोचेगा वही सच मानेगा। जिसे गलत देखेगा ,रौंद डालेगा।
हैरी पाटर के लक्ष्य प्राप्ति का अंदाज मुझे उस डायनासोर का अंदाज लगता है जो किसी मंजिल को पाने के लिये दौड़ रहा है तथा उसके रास्ते में जो कोई भी आ रहा है वह भू लुंठित होता जा रहा हैं।
हैरी पाटर को जब याद करता हूं तो अनायास होरी याद आता है।होरी प्रेमचंद के उपन्यास गोदान का नायक है जो कर्ज में डूब के मरा। हैरी और होरी दोनों के लेखक संयोग से ३१ जुलाई को पैदा हुये थे। हां दोनों की नियति में अंतर था। प्रेमचंद ने समाज की स्थितियों से प्रभावित होकर अपनी लगी-लगाई नौकरी छोड़ी तथा जब १९३६ में लखनऊ में प्रगतिशील आंदोलन की स्थापना करने आये तो उनके जूते फटे थे। उनका मानना था कि साहित्य, समाज तथा राजनीति के आगे चलने वाली मशाल है। जो समय की मांग थी उसे अपने साहित्य के माध्यम से दुनिया के सामने रखा । तमाम सवालों के हल सोचे। दबे-कुचलों की स्थितियां बयान की तथा उनके बदलाव के लिये जमीन बनाने का रास्ता सुझाया। साम्राज्यवादियों तथा प्रतिगामी राजनीति की पोल खोलने का प्रयास किया । सभी जगह समानता तथा सामूहिकताकी वकालत की।
उसके वरक्स ,अपनी हर किताब से दिन पर दिन संपन्न होती जा रही ,हैरी पाटर की लेखिका अपने पाठक वर्ग को तिलिस्मी संसार में ले जाती हैं। जहां -नहिं कोउ अबुध न लक्षन हीना।हैरी पाटर में प्रेम तथा साहस तो है लेकिन सही गलत में घालमेल है।बाल मन को भूलभुलैया में ले जाकर छोड़ दिया जाता है।जहां वह देखता कि नायक हैरी का जादू अलादीन का वह चिराग है जिसके बाद फिर कुछ करने को नहीं रह जाता। यह हैरी का हल्ला बिकाऊ तो है लेकिन टिकाऊ नहीं है।इसके पांव हवा में हैं। कुछ साल में इसकी हवा निकल जायेगी।
हैरी का हल्ला बिकाऊ तो है लेकिन टिकाऊ नहीं है।इसके पांव हवा में हैं। कुछ साल में इसकी हवा निकल जायेगी।
हैरी पाटर की तुलना प्रेमचंद के ही आसपास रहे देवकीनंदनखत्री की चंद्रकांता सीरीज की किताबों से की जा सकती है। अपने जमाने खत्री जी का लिखा पढ़ने के लिये लोगों ने हिंदी सीखी। आज वे ‘ऐयारी’ के किस्से इतिहास में दफन हैं।हालत यह है कि पचास रुपये में १००० से अधिक पन्नों की‘देवकीनंदनसमग्र’ की बिक्री ठप्प है। ऐयारी का नशा उतर गया, हर नशे का समय होता है।
होरी का नाम तो ऊपर लिया गया नाम साम्य के लिये। हैरी का मुकाबला करा लीजिये हामिद से। तीस के दशक का हामिद का चिमटा आज भी हैरी के सैकड़ों डिजाइनर जादुओं तथा ताम-झाम पर भारी पड़ेगा। ईदगाह में उस जमाने के मंहगे खिलौनों की हवा निकालते हुये हामिद अपने चिमटे के बारे में बताता है:-
उसके पास न्याय का बल है और नीति की शक्ति। एक ओर मिट्टी है, दूसरी ओर लोहा, जो इस वक्त अपने को फौलाद कह रहा है। वह अजेय है, घातक है। अगर कोई शेर आ जाए मियॉँ भिश्ती के छक्के छूट जाऍं, जो मियॉँ सिपाही मिट्टी की बंदूक छोड़कर भागे, वकील साहब की नानी मर जाए, चोगे में मुंह छिपाकर जमीन पर लेट जाऍं। मगर यह चिमटा, यह बहादुर, यह रूस्तमे-हिंद लपककर शेर की गरदन पर सवार हो जाएगा और उसकी ऑंखे निकाल लेगा।
हामिद के पास अभाव की पूंजी है । वह तमाम दुनियावी ताम-झाम में भी अपनी दादी को नहीं भूलता। बाजार की चीजों के प्रति ललक है लेकिन अंधा लालच नहीं कि ० डाउनपेमेंट की किस्तों पर लुभावनी चीजें खरीद ले।
हैरी पाटर की नकारात्मकता यह है कि खास लोगों की सोच का प्रतिनिधित्व करती है। गरीब अश्वेत बच्चे कहीं नहीं हैं यहां। अपने साधनों पर खुशी हासिल करने के बजाय ताकत ,किसी भी कीमत पर , हासिल करने की सीख साम्राज्यवादी अंदाज है। हैरी पाटर को हर हाल में जीतना है क्योंकि वह साम्राज्यवादी प्रभुता का प्रतीक है।
हैरी का मुकाबला करा लीजिये हामिद से। तीस के दशक का हामिद का चिमटा आज भी हैरी के सैकड़ों डिजाइनर जादुओं तथा ताम-झाम पर भारी पड़ेगा।
आज हैरी के दिन हैं । समय से बड़ा कोई नहीं होता । पर मुझे न जाने क्यों‘ईदगाह’ कहानी के कुछ पन्ने हैरी पाटर के हजारों पन्नों पर भारी लगते हैं तथा हामिद का चिमटा हैरी के किसी भी जादू से ज्यादा आत्मविश्वास से भरा लगता है। कारण शायद यह भी है कि हामिद का सच मुझे अपना सच लगता है जबकि हैरी पाटर का सच किसी का सच नहीं है सिवाय चंद लोगोंकी फंतासी के।
आपको क्या लगता है?

13 responses to “हैरी का जादू बनाम हामिद का चिमटा”

  1. eswami
    विडियो गेम खेलने से कबड्डी खेलना मन और स्वास्थ्य के लिये ज्यादा सही है.गालिब की गज़लें “कांटा लगा” छाप रीमिक्स से ज्यादा स्तरीय हैं. पिज्जा से दलिया ज्यादा उचित है. ऐसी तमाम तुलनाएं साहित्य के अलावा भी हर जगह कर सकता हूं. दुनिया मे हर चीज की एक जगह,एक बाजार और एक भूमिका है और कोई भी काम करने का तरीका अलग-अलग समाजों मे अलग-अलग हो सकता है.
    अगर आपने बचपन मे कामिक्स कथाएं नही पढीं तो आप स्पाईडर मेन किल-बिल १ और २, सिन सिटी जैसी फ़िल्मों मे दिखाई कलात्मक हिंसा – जी हां, कलात्मक हिंसा बहुत ही सुंदर, कलात्मक हिंसा सराहने के काबिल नही – बाकायदा बाउंसर निकल जाएगी – “इस मे क्या है” टाईप! भले ही सत्यजित राय वाली शतरंज के खिलाडी को समीक्षित कर सको और उपन्यास से कितना न्याय हुआ इस पर पेल मचा सको!पर आप किल-बिल मे क्विंटन टेरेन्टिनो ने क्या कमाल किया है समझ नही सकोगे संदेश कैसे दिया है समझ नही सकोगे!
    साहित्य का उद्देश्य हमेशा शिक्षित करना ही क्यों हो? मनोरंजित करना भी तो हो – मनोरंजन के बाद, पढने की लत के बाद धीरे से स्वाद बदलो ना आप!आज हिंदी पढने वाले इस लिये कम है की या तो साहित्य मेलोड्रामा, कविता-शविता परोसता है या प्रवचन और उनको पढने वाले अपने आप को ज्यादा एलीट समझते हैं.
    हामिद का चिमटा उन तमाम बच्चों को गिल्ट देता है जिन्होंने मध्यमवर्गिय परिवारों मे भी पैदा हो कर बाल हठ किये होंगे – सारे हामिद जैसे स्याने नही होते इस का ये मतलब नही की बाकी बच्चे अपने माता-पिता की आर्थिक सीमितता नही समझे होंगे, बाल-मन है खिलौना चाहेगा. और उन तमाम मा-बाप को ये शिक्षा देता है की तुम्हारा बच्चा हामिद है या नही इस की लिटमस टेस्ट लो और ना हो तो पडोसी की औलाद हामिद है वो नही है ये तुलना करने से मत चूको!क्या ये नही होता? क्या ये नही हुआ?? भाड मे गया हामिद और उसका चिमटा – मेरी चले तो ये कहानी कालिज के लेवल पर कोर्स मे होना चाहिए स्कूल के लेवल पर नही! गिल्ट-मांगरीग देसी मेन्टेलिटी को प्रमोट करती है ये कहानी!!
  2. Anaam
    सही लिखा है बन्धु! शीर्षक बहुत ही बढिया है! शुक्ला जी आपकी बातें मन को छू लेती हैं| लगता है..किसी ने हमारे दिमाग़ से विचार निकाल कर यहान र्रख दिये हों| आप तो गुरु हैं हमारे!
  3. आशीष
    सही कहे हो शुक्ला जी। दम है। लेकिन क्या हमारे चन्दामामा, मधुमुस्कान, लोटपोट और पंचतन्त्र की कहानियां हैरी पॉटर से कम हैं? कम से कम मुझे तो नहीं लगता है। सवाल है बाजारीकरण और भारतीय मानसिकता का। हमारे भारतीय प्रकाशक और भारतीय पाठक विदेशी घटियापन को पढ़ने के लिये काफ़ी रकम खर्च कर सकते हैं लेकिन जब वही रकम अच्छे देसी सामान पर खर्च करने को कहा जाये तो मोलभाव होता है और आलोचनायें होती हैं और ये है गुलाम मानसिकता और हीनता के भाव के कारण।
  4. अनुनाद
    हामिद और हैरी अपनी-आपनी पसन्द और अपनी-अपनी सोच का विषय है |
    ये इससे निर्धारित होता है कि आप साहित्य ( स + हित्य ; या, हित सहित ) का उद्देश्य क्या मानते हैं | जैसे तुलसीदास जी का मानना है कि -
    कीरति भनिति भूति भलि सोई |
    सुरसरि सम सबकर हित होई ||
    ( वही कीर्ति , कविता और धन अच्छा है जो गंगा के समान सबके लिये हितकर हो )
    शुक्ला जी को साधुवाद जो धारा के विपरीत चलने का साहस करते हैं | धारा की दिशा में तो प्राणहीन तिनका भी बह लेता है |
    अनुनाद्
  5. फ़ुरसतिया » ईदगाह अपराधबोध की नहीं जीवनबोध की कहानी है
    [...] नहीं जीवनबोध की कहानी है मेरे लेखहैरी पाटर का जादू तथा हामिद का चिमटा पर [...]
  6. फुरसतिया » अपनी फोटो भेजिये न!
    [...] जोशीजे बताया कि उन्होंने मेरे लेख हैरी का जादू बनाम हामिद का चिमटा और जहां का रावण कभी नहीं मरता पढ़ रखे हैं। इन दोनों लेखों से ही उन्होंने अन्दाजा लगा लिया कि हम कोई लेखक टाइप के आइटम होंगे। और उन्होंने हमारी फोटो मांगी संग्रह के लिये। [...]
  7. फुरसतिया » पत्रकार ब्लागिंग काहे न करें, जम के करें!
    [...] बहसें पहले भी होती रहीं हैं। हैरी पाटर बनाम हामिद और अमेरिकी जीवन पर तमाम ब्लागर्स ने इसके पहले तमाम गर्मागर्म बहसें कीं लेकिन इतनी श्रद्धापूर्वक नहीं। हिंदी ब्लागिंग के कुछ बेहतरीन लेख अनुगूंज में मिल सकते हैं। [...]
  8. ईमानदारी - खरीद न सको तो मैनेज कर लो
    [...] भी पढिये न: 1. हैरी का जादू बनाम हामिद का चिमटा 2. ईदगाह अपराधबोध की नहीं जीवनबोध की [...]
  9. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] दिये जायें ? 2.अधूरे कामों का बादशाह 3.हैरी का जादू बनाम हामिद का चिमटा 4.अंधकार की पंचायत में सूरज की पेशी [...]
  10. संतोष त्रिवेदी
    आज की पीढ़ी जिस तरह अपने नए आदर्श गढ़ रही है,हैरी उसी का मोहरा है !इसे हमारा दुर्भाग्य कहिये या सौभाग्य ,हम जिस ज़माने में पैदा हुए और जहाँ लिखाई-पढ़ाई की, वहां हैरी कहीं दूर तक नहीं दिखा! ‘होरी और ‘हामिद’ भले ही हमारे प्रेरणास्रोत रहे हों आज के युवा उनके बारे में सोचना भी पसंद नहीं करेंगे !
    मुंशी प्रेमचंद का लेखन शौकिया और समाजसेवा के लिए था,जबकि रोलिंग साहिबा का विशुद्ध व्यावसायिक.मुंशीजी ने यथार्थ को कागज़ पर उतारा जबकि इनने फंतासी को हवा में!आर्थिक लिहाज़ से रोलिंग की सफलता-दर बहुत अधिक है पर साहित्य का वास्तविक मूल्य उसके पाठक और उसका उद्देश्य होता है,जिसमें कथा-सम्राट प्रेमचंद जी के आगे कोई नहीं टिकता !
    संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..‘स्लटवाक’ के पैरोकार !
  11. Anonymous
    हर्री पोट्टर एक काल्पनिक कथा है… इसकी तुलना वास्तविक सामाजिक परिस्थितियों पर आधारित कथाओं से नहीं करनी चाहिए.
  12. चंदन कुमार मिश्र
    हम इतने उदार नहीं क्योंकि हम बुद्ध नहीं जो स्वामी जी की तरह सोच सकें। वे एक साम्राज्यवादी और पूँजीवादी विचारधारा के मानने वाले लगते हैं, हालांकि वे सम्माननीय हैं, आदरणीय हैं, बेहतर लिखते हैं, अन्दाज भी बढ़िया और अनोखा है उनका। लेकिन हैरी और रोलिंग पर आपका लिखा एक नये पक्ष को सामने लाता है। ये सब लूट पाट का नमूना है…जिससे जनता को लगाना चूना है…
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..एक बार फ़िर आ जाओ (गाँधी जी पर एक गीत)
  13. देवेन्द्र बेचैन आत्मा
    ग़ज़ब का आलेख है। बहुत बढ़िया।

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