Saturday, September 17, 2005

संगति की गति


http://web.archive.org/web/20110101202609/http://hindini.com/fursatiya/archives/49

Akshargram Anugunj
चौपाल के ऊपर छाये छतनार वृक्ष की सबसे ऊपर की डाल पर बैठा कौवा,कौवी को बहुत देर तक निहारता रहा। कौवी प्रकट रूप में पल-प्रतिपल चौपाल पर बढ़ते सदस्यों की संख्या को निहार रही थी लेकिन कनखिंयों से कौवे की हरकतों पर निगाह रखे थी। कौवे ने उसकी नजर बचाकर उसे चूम लिया और चेहरे पर मजनूपना लपेट लिया। चुम्बनाहत कौवी ने कनखियों को तहा के रख लिया और आवाज को गहरा करते हुये बोली:-
यार,इस तरह के लिविंग रिलेशनशिप कब तक चलेंगे? कब तक हम-तुम डाल-डाल घूमते रहेंगे? तीन दिन हो गये हमें-तुम्हें चोंच लड़ाते हुये लेकिन तुमने मुझे अभी तक प्रपोज भी नहीं किया। लिविंग रिलेशनशिप न हुआ ‘हुक अप’ हो गया जहां संयोगवश हमारा-तुम्हारा जोड़ा लगातार बन रहा है। तीन दिन में कुछ भी तो नहीं बदला -सिवाय पेड़ की डालों के। तुम कुछ तय क्यों नहीं करते?
कौवे ने लंबी सांस ली । दुनिया में आक्सीजन के करोड़ों अणु कम हो गये। लंबी सांस छोड़ी । कैटरीना की लहरें ऊपर को उचकीं। आवाज को गहरा करके बोला-
यार,तुम्हें पता नहीं मैं कितना ‘पजल्ड’ हूं! मैंने आज तक सैंकड़ों को ‘प्रपोज’ किया है । मेरी जिंदगी में यह पहला मौका है जब मैं इतना किंकर्तव्यविमूढ़ हूं। कौवी ने आंखें कौवे की आंख में धंसा ली( कौवे ने अपनी मूंद लीं)
बोली:- तुमने जो ये किं.. (जो भी तुमने अभी बोला) वो क्यों हो? कहों न। व्हाई डोन्ट यू शेयर विथ मी?
कौवा उवाचा- मैं चाहता हूं कि दो-चार कोयलों के घोसले कब्जिया लूं। दस-बीस दिन का दाना-पानी जुगाड़ लूं । तब प्रपोज करूं। कौवे की गंभीरता के झांसे में आकर कौवी ने प्यार से उसे चोंचियाते हुये कहा-ओके डार्लिंग ,यू टेक योर ओन टाइम। लेकिन यह सारी देरी गड़बड़ियां हमारे साथ ही क्यों होती है? लव अफेयर हमारा तब शुरु हुआ जब मेरी सहेलियां अंडे दे चुकीं थीं। तीन दिन में लोग तलाक देकर नया साथ खोजते हैं और मैं लिविंग रिलेशनशिप में ही उलझी रही।एनी वे शायद यही जीवन है।
कौवा बोला-हां प्रिये, यहीं संगति की गति है।
संगति,गति जैसे स्त्रीलिंग शब्द सुन पूरी की पूरी कौवी सी.बी.आई. में तब्दील हो गई। मिसाइल दागी-ये संगति,गति कौन हैं? किस पेड़ पर रहती हैं? वर्चुअल हैं या रियल?इनकी यूजर आई.डी. क्या हैं? किस चैट रूम में मिले इन चुड़ैलों से? किस आई.डी. से चैट करते हो तुम इनसे? तुम्हारी सारी आई.डी. के डिटेल मेरी पास हैं। उनमें तो ये मुंहझौंसियां हैं नहीं!तुम्हारी हिम्मत कैसे हुई मुझे बिना बताये नया अकाउंट खोलने की?
कौवी के पिघले सीसे से अमृत वचन सुन कौवे का मनमयूर नृत्य कर उठा। तीन दिन तक लगातार भाड़ झोंकते रहने का उसका अहसास समाजवादी ब्लाग की तरह हवा हो गया। वह बल्ले-बल्ले करते हुये नाचने लगा। डाल से गिरते-गिरते बचा।उसे कौवी के रूप में आदर्श पत्नी मिल गयी थी। कौवी के, मुझे चोंच मत लगाना ,की उपेक्षा करते हुये जबरियन लड़ियाते हुये बोला- तुम ही मेरी सपनों की रानी बन सकती हो।
इसी गुट के तमाम उल्टे-सीधे डायलाग भांजने के बाद वह बेचारा होश खो बैठा और बेसुधी के आलम न जाने किन कमजोर क्षणों में कांपते हुये बोला-मैं तुमसे शादी करना चाहता हूं। तुम्हें अपनी बनाना चाहता हूं। अपने दिल की रानी बनाना चाहता हूं।मैं तुम्हारा पंजा मांगता हूं।
मादाओं की सहज बुद्धि बहुत तगड़ी होती है। इसका मुजाहरा करते हुये कौवी ने कौवे का पंजा थाम लिया ताकि वो उड़ न जाये। चेहरे पर सपाट प्यार का फेशपैक लगाकर बोली- तुम्हारे प्रपोजल पर मेरा निर्णय सुरक्षित है। लेकिन हां बोलने से पहले मैं ये ‘संगति’ और ‘गति’ के बारे में जानना चाहती हूं।
कौवी को घरेलू अदालत के रूप में तब्दील होते देख कौवे मन में तमाम लड्डू फोड़े और उचकते हुये बोला। ये संगति और गति कुछ नहीं हैं।मात्र दो शब्द हैं। जिनको ‘और’ के पुल से किसी सिरफिरे ठाकुर ने जोड़ दिया है। अब ये शब्द समूह सब लोगों को किसी वायरस की तरह डंस रहा है। लोग समझ ही नहीं पा रहे हैं क्या करें?
कौवी ने चेहरे पर आश्चर्य चिपकाते हुये पूछा-रियली? दिस इज समथिंग इंटरेस्टिंग! कहां है वो वीर पुरुष जिसने मच्छर की तरह दुनिया को हिला के रख दिया है ? मैं उसे देखना चाहती हूं।
कहां रहता है वो ? देखना चाहती हूं मैं उसे! कौवे ने चोंच के इशारे से बताया कि देखो जो सबसे तगादा सा कर रहा है लिखने का वही है ठाकुर राजेश कुमार सिंह। पठ्ठे ने आज तक कुल जमा एक लेख लिखा है वह भी विषय बदल के लेकिन लोगों से दो-दो लेख मांग रहा है। कौवी बोली तो लोग लिखते क्यों नहीं? वो बोला-लोगों की समझ में नहीं आ रहा है क्या लिखें? तो ये खुद लिख कर बताये कि कैसा लिखना है? कौवा बोला -अब तुम पूरी गृहस्थिन हो गई हो।तुम्हें इतना भी नहीं पता कि इसे पता होता तो यह विषय देकर तकादा काहे करता?किस्तों में काहे लिखता? कौवी बोली तो फिर कौन लिखेगा? कौवा बोला-देखो, फुरसतिया जुटे हैं लिखने में।
कौवी ने देखा कि एक शरीफ से लगने वाले व्यक्ति को घेरे हुये हैप्पी बर्थ डे जैसा कुछ गा रहे हैं। खुशी का इजहार करने की कोशिश में बेचारे को रोना आ रहा है। लोग तारीफों से उसे लगातार घायल कर रहे हैं। जो आता है चौपाल में वो तारीफ के दो बाण मारकर और घायल कर रहा है उसे। उससे न हंसते बन रहा है न रोते।
वे यह दृश्य देखकर कौवी का हृदय द्रवित हो गया। उसने कौवे से कहा ये सब क्यों इसे इतना घायल कर रहे हैं तारीफास्त्र से? ये तो ऐसे ब्रम्हास्त्र हैं जिनकी काट ब्रम्हा के पास भी नहीं है।
कौवा बोला- जैसा करेंगे वैसा भरेंगे। ये कम थोड़ी हैं ।इन्होंने कम अनाचार थोड़ी ही किये हैं। मार तारीफ के लोगों का जीना मुहाल कर दिया । अब झेलें। शायद यही संगति की गति है।
लेकिन कौवी से रहा नहीं गया । उसने सोनपरी से जादू की छड़ी मांगी और रूप बदलकर महिला पत्रकार में तब्दील हो गयी। मटकते हुये चौपाल पर पहुंची। उसके वहां पहुंचते ही हल्ला मच गया।अफरा-तफरी के माहौल में लोग न जाने क्या-क्या कहने लगे। कोई एकदम सट के बोला आप बहुत अच्छा लिखती हैं कोई जरूरत हो तो बताना हम आपसे सिर्फ एक मेल की दूरी पर हैं। कोई बोला ये तो चिट्ठाजगत की शहजादी हैं। किसी ने यूजर आई.डी. तथा पासवर्ड थमा दिया कि आप इधरिच लिखें। बंदा आपको परेशान करने में तथा परेशानी दूर करने में कोई कसर नहीं छोड़ेगा। कोई आंखे फाड़के घूरते हुये बोला – जो नहीं दिखना चाहिये वो दिख रहा है और दिखना चाहिये वो नहीं दिख दिख रहा। आप अपना शर्ट खोंस लें और फीड ठीक कर लें।
कन्या एक साथ इतने जमूरों को देख कर इठलाने लगी। अचानक उसे लगा कि वह कन्या होने के साथ कुंवारी भी है। यह बोध होते ही वह अंगारा हो गयी। शर्म नहीं आती इस तरह की बात करते हुये।आपके घर में पत्नी महिलायें नहीं हैं क्या? अभी -अभी तो बड़ी मुश्किल से प्रपोज किया गया। ये फीड-वीड मैं क्या जानूं रे। दहाड़ सुनते ही सन्नाटा छा गया।
कुछ बोले -घर में पत्नी है तो लेकिन आपकी बात ही अलग है। कुछ बोले मैं इसी लिये तो कुंवारा हूं कि मुझे लग रहा था आप जरूर आयेंगी। चलिये नया घर लिया है,बसा भी लें।
कन्या मोहित हो ही गयी थी तबतक उसे याद आया कि वो तो फुरसतिया को बचाने आयी थी। वह इठलाती हुयी उधर बढ़ी जिधर लुटे-पिटे फुरसातिया बैठे थे।
वह लोगों को डांटते हुये बोली-ये क्या हाल बना दिया है आप लोगों ने इस भले आदमी का तारीफ कर-कर के? आप लोगों में कोई शरीफ आदमी नहीं है क्या? सब बोले -हम सब शरीफ हैं। वो बोली- अरे भाई जो शक्ल से भी शरीफ,जिम्मेदार दिखता हो ऐसा है कोई? लोग बोले है तो लेकिन लंदन गया है दो दिन बाद आयेगा। तब तक तो तुम लोग इसका कबाड़ा कर दोगे। ठीक है मैं ही देखती हूं इसका हाल।
फुरसतिया को अपने तरफ बढ़ती हर पदचाप घंटियां बजा रही थी। पास आने तक तमाम कल्पनाओं की खेती कर ली। लेकिन कन्या ने पास आते ही बिना कुछ कहे उनके मुंह में माइक ठूंस दिया। लगी दनादन सवाल पूछने :-
सवाल:- आपकी इस हालत के लिये आप खुद जिम्मेदार हैं। लेकिन अगर किसी एक आदमी को दोष देना चाहते हों तो किसका नाम लेंगे?
जवाब:- ये पोस्ट देख लीजिये। आपको खुद समझ में आ जायेगा।
सवाल:- ये अतुल कौन हैं।
जवाब:- ब्लागर हैं। पिछली बार सबसे बढ़िया ब्लागर चुने गये हिंदी के।बहुत तेज गाड़ी में चलते हैं।
सवाल:- ये भाई साहब में बड़े काहे जोड़ा है ? क्या इनको पता नहीं भाई साहब का मतलब ही बड़े भाई साहब होता है?
जवाब:- पता है तभी तो जोड़ा है। काहे से कि इनके छोटे भाई का नाम भी अनूप है। दो अनूप के बीच में अतुल फंसे हैं सो गलतफहमी से बचने के लिये लिखा।
सवाल:- ये जीतू ने खुद क्यों नहीं लिखा इसे?
जवाब:- क्योंकि ये सोच रहा था लिखने के लिये। ये लिखने का काम कर पाते हैं या सोचने का । दोनो एक साथ नहीं कर पाते इसलिये नहीं लिखा।
सवाल:-ई स्वामी कौन है?
जवाब: बताया तो है आलसी/नालायक/उत्पाती/शगूफ़ेबाज ।तमाम ब्लागर को पकड़ की तरह रखे है। फिरौती में लेख मांगता है। जोंक है चिपक जाता है तो पीछा नहीं छोड़ता। सारी हरामखोरी चूस लेता है।
सवाल:- ये माला वाला कौन है?
जवाब:- एक सेठ है है। मिर्ची बेंचने वाले खानदान से है। पता नहीं क्या हुआ आजकल चौपाल पर खुशबू फैलाता है।
सवाल:- और ये प्रत्यक्षा,सारिका,शशि सिंह, अनुनाद,तरुण ,रमण और राजेश सिंह?
जवाब:- सब उसी प्रशंशा ब्रिगेड के हल्ला बोल ब्लागर हैं। देख रहीं हैं गरदन विनम्रता से झुकी है सबेरे से। लग रहा है कट गई। इसीलिये कहा गया है कि किसी शेर की गरदन पकड़नी हो तो माला पहना दो।फिर चाहे काट लो सिवा धन्यवाद के कुछ बोल नहीं पायेगा।
सवाल:- लेकिन ये जीतू, स्वामी,आशीष तो कहते हैं कि आपका आशीर्वाद ,स्नेह,कृपा इनके ऊपर है।
जवाब:- अरे ये सब गुंडई करते हैं। जबरियन सब गरदन पकड़ के ले जाते हैं। बताते हैं देखो फुरसतिया जी ने प्रेम से दिया है। इनसे तो प्रेम रखना मजबूरी है नहीं तो ये मारे तारीफ के जिंदा नहीं छोड़ते। आप खुद देख रही हैं हालत मेरी।
सवाल:- आपका जन्मदिन तो १६ सितम्बर को पड़ता है। बधाई १५ को क्यों दी गयी?
जवाब:- अरे आप नहीं समझोगी लंबा चक्कर है।
सवाल:- बतायें तो सही ।
जवाब:- असल में ये जो अतुल हैं न उनकी डा.झटका से कुछ सांठ-गांठ है। उनकी दुकान आजकल ठप्प चल रही है। काहे से कि दूसरे काबिल डाक्टर आ गये जो कि पढ़े-लिखे भी हैं। एक दिन के लिये जहां वो डाक्टर बाहर गये इन्होंने फुरसतिया की नार्मल डिलीवरी की जगह एक दिन पहले सीजेरियन करवा दिया। कुछ हाथ जीतू का भी है। उनका केक सड़ रहा था। सिंधी आदमी अपना माल बरबाद होते देख नहीं सका । इधर अतुल से कहकर प्रिमैच्योर डिलीवरी करा दी। उधर बचा केक सबको बांट दिया यह कहकर कि भारत से अनूप भाई साहब ने भेजा है। दूरी के कारण कुछ महक आ रही है लेकिन मैंने तो आधा खा लिया। बाकी आप लोग खाओ। दिमाग बढ़ेगा। दिमाग के लालच में लोग दिमाग ताक पर रख कर खा रहे हैं।
सवाल:- और ये संगति की गति।
जवाब:- यही है संगति की गति। जैसी संगति वैसी गति।अच्छी संगति,अच्छी गति। शुकुल जी बोले भी हैं-कुसंग का ज्वर भयानक होता है। साधुओं की संगति से तमाम पाप नष्ट हो जाते हैं।
सवाल:-लेकिन गति से तो नकारात्मक बोध होता है। संगति की गति से लगता संगति का यही हश्र होता है।गति ,दुर्गति का बोध कराती है।
जवाब:- अब यह ठाकुर की मति। उसकी यही निष्पत्ति।
सवाल:- लेकिन अनुगूंज की यह गति कैसे? कोई लिख ही नहीं रहा है।
जवाब:- यह भी संगति की गति है। लिखाने वाला खुद कभी लिखेगा नहीं।लोगों को उकसायेगा नहीं। उसके ब्लाग पर टिप्पणी नहीं करेगा। दूसरे के मूड की परख नहीं करेगा तो कैसे लोग लिखेंगे? ब्लागरों के भी नखरे होते हैं। अपने मन से चाहें जो कूड़ा फैलाते रहें लेकिन अनुरोध करने पर कालजयी लिखने का बोध पाल लेते हैं। तमाम झांसे देने पड़ते हैं लोगों को । झूठ बोलना पड़ता है -आपके लेख के बिना सब कुछ सूना है। पचास छल-छंद करने पर लिखते हैं लोग लेख। इसे हर वह जानता है जिसने आयोजन किया है अनुगूंज का। संगति की गति पर लेख लिखना अलग बात है।उसका गणित बहुत जटिल है। संगति को ,अच्छी या बुरी, बनाना आसान होता है। निभाना कठिन होता है।
सवाल:-आपके लिखे को लोग बहुत पसंद करते हैं। ऐसी क्या खास बात है आपके लिखने में?
जवाब:- बात हमारे लिखने में नहीं लोगों के पढ़ने में है। कुछ लोग तो समझ के हंसते हैं। ज्यादातर लोग देखा-देखी हंसते हैं। जो देखा-देखी हंसते हैं वे समझ में आने पर दुबारा हंसते हैं। समझदार लोग यह देखकर हंसते हैं। इसी गफलत में लोग हंसते रहते हैं । दुनिया समझती है कि हमारा लिखा पढ़के लोग हंस रहे हैं। मैं यही सब सोच के हंसता हूं । समझदार और कम समझदार के बीच की हंसा-हसौव्वल ही शायद संगति की गति है।
सवाल:- क्या आप अपने समझदार और कम समझदार पाठकों में भेद कर पाते हैं।
जवाब:- इसको पहचानने का कोई साफ्टवेयर अभी नहीं बना।समझदार और कम समझदार पाठक को अलग करना कूडे़ में से काम का कूड़ा तलासना होता है। मैं तो मानता हूं कि मेरे सारे पाठक कम से कम मेरे से तो ज्यादा समझदार हैं जो कि मेरे उस लिखे को पढ़कर भी हंसने का बहाना तलाश लेते हैं जिसको पढ़कर अक्सर मूझे रोना आता है।
सवाल:- आप ये लेखकीय लटके-झटके क्यों फेकने लगे? सारा माहौल भारी कर रहे हैं।क्यारोने का मनकर रहा है।
जवाब:- देवी ,शायद यही (आपकी )संगति की गति है।
सवाल:- तुम बड़े ‘नाटी’ हो। फिलहाल मैं चलती हूं। मैं भी लिखूंगी चिट्ठा । कैसे लिखते हैं? पूछूंगी बाद में।टिल देन ,बाय!टेक केयर।
कन्या अपने सारे लटके-झटके अपने जुगराफिये में समेट कर विदेशी मुद्रा की तरह मटकती हुयी चली जा रही थी। जन्मदिन की सारी कीर्तन मंडली कन्या के पीछे हिंदी में चिट्ठा लिखने की तरकीबों के लिंक दिखाते हुये साथ-साथ सटते हुये चलने की कोशिश करते हुये अपने-अपने पन्ने पर लिखने का अनुरोध कर रहे थी।
कल तक चहल-पहल में घिरे में फुरसतिया अपने लैपटाप पर अकेले बैठे खुटुर-खुटुर कर रहे थे।
शायद संगति की यही गति है।

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

10 responses to “संगति की गति”

  1. Vinay
    आप अगले महीने फिर जन्मदिन मनाने और एक ऐसा ही इंटर्व्यू देने का वादा करें तो कौवी माने कन्या को फिर बुला लेते हैं. क्या कहते हैं?
  2. आशीष
    अनुप भैया
    वो कन्या हमारी ओर आ रही थी, पूरी चिठ्ठाकार बिरादरी मै इकलौता काबिल क्वांरा हुं. , नया नया घर भी लिया है, आपने हमसे वो मौका क्यों छीन लिया ? :-(
    अगली बार वो कन्या नजर आ जाये, आप URL हमारी ओर redirect कर दिजिए.
    आशीष
  3. भोला नाथ उपाध्याय
    भाई साहब,
    जन्म दिन की शुभकामनाएं (क्षमा चाहता हूं ट्यूब लाइट की तरह मेरा दिमाग देर में चलता है)| लेख पढ कर बस मज़ा आ गया इतना ही कहूँगा कि “ये दिल माँगें मोर”|
  4. k.p.gairola
    फुरसतिया जी लेकिन यह तो बताओ कि १७ ता. को विश्वकर्मा जयन्ती के अवसर पर तुम्हारे साथ कौन सी कौवी थी?
  5. जीतू
    फ़ुरसतिया के लेख तो सुपर रिन की जमकार होते है, सबको धो डालते है.
    लगे रहो मियाँ……….
    लेकिन ये तो बताओ, इस लेख मे संगति तो थी नही, और गति का क्या हुआ? हम तो अभी भी कन्फ़्यूजिया रहा हूँ, का लिखूँ, कैसे लिखूँ. कही बेलगाम लिख डाला तो शायद आर्गेनाइजर की समझ मे ही ना आये.
  6. फ़ुरसतिया
    गैरोलाजी,आप लेख फिर से पढेँ.’हुकअप’ का जमाना है आज.आपका चलन पुराना हो गया जब आपने चंद नामों की यादें सहेजकर जीवन बिता दिया. कौन था साथ मेँ यह जानने का जमाना बीत गया.यहां तो रात गई बात गई.लेख पढने की अच्छी आदत शुरु करने के लिये बधाई.जीतू,लेख तो लिख ही दिये बढिया.बधाई.
  7. anitakumar
    हम हंस रहे हैं देखा देखी अब आप ही सोच लो समझदार हैं कि कम समझदार्…ही ही ही
  8. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] 9.आवारा पन्ने,जिंदगी से(भाग तीन) 10.संगति की गति 11.आओ बैठें ,कुछ देर साथ में 12.राजेश [...]
  9. वन्दना अवस्थी दुबे
    “…………………….. तुम्हारा पंजा मांगता हूं।”
    कमाल का कल्पना लोक है आपका! और अनूठी वाक्य-सृजन क्षमता. आपको पढते हुए मुझे हमेशा लगता है कि यदि आप कहानियां लिखें, तो वे बेजो़ड़ साबित हो सकती हैं.
    वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..नंदन जी के नहीं होने का अर्थMy ComLuv Profile

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