Tuesday, November 01, 2005

दीपावली खुशियों का त्योहार है

http://web.archive.org/web/20110925232903/http://hindini.com/fursatiya/archives/62

[यह लेख मैंने अभिव्यक्ति के लिये लिखा था। छपने के लिये भेजा था। लेख तो छपा अभिव्यक्ति में लेकिन इसकी सारी चर्बी छांट दी पूर्णिमा जी ने। लेख को स्लिम-ट्रिम बना दिया। यह शायद अपनी कहानी से न्याय करते हुये भी किया पूर्णिमा जी ने जिसमें दर्जी की दुकान है,कैंची है तथा कारीगर भी हैं। आप लोग भी देखें कि एक बस यूं ही नुमा ब्लाग पोस्ट कैसे एक रचना में तब्दील होती है। पूर्णिमा जी का शब्दांजलि में छपा साक्षात्कार भी पढ़िये और अपनी राय बतायें। आप सभी को दीपावली की मंगलकामनायें]
दीपावली खुशियों का त्योहार है। सुनकर ऐसा लगता है कि दीपावली के बगैर किसी को खुश होता देख पुलिस पकड़ लेगी। गोया किसी बच्चे को खुशी देख उसे मां कोसे-भगवान तुझ जैसा लापरवाह,फिजूलखर्च बेटा किसी को न दे। अगर अभी सारी खुशी खर्च कर देगा तो दीपावली के दिन क्या करेगा?
ऐसा माना जाता है कि दीपावली के दिन रामचन्द्र अपनी पत्नी सीता के साथ १४ वर्ष के बाद वनवास से वापस लौटे थे। रावण-वध के कारण जनता में उसी तरह हीरो बन गये थे जिस तरह बाद में अप्रत्याशित रूप से विश्वकप जीतकर कपिलदेव नायक बन गये थे। अयोध्या वासियों ने उनके आगमन की खुशी में नगर को खूब सजाया और खुशियां मनायी। उसी की याद में न्यूटन के जड़त्व के नियम का पालन करते हुये लोग आज तक खुशी मनाने की परंपरा का निर्वाह कर रहे हैं।
वैसे कुछ खोजी लोगों ने इस कथा के कुछ क्षेपक खोजे हैं। जब भरत ने १४ वर्ष तक खड़ाऊं शासन कर लिया और राम के वापस लौटने का समय आया तो उनके मुंहलगे सलाहकारों ने समझाया- महाराज, आपने १४ साल तक अपना खून-पसीना एक कर दिया। अब राम को सत्ता सौपने का क्या मतलब? वैसे भी आपकी मां ने राजपाट तो आपके लिये मांगा था। राम के लिये वनवास मांगा था । ये थोड़ी के उनके लौटने के बाद आप सड़क पर आ जायें। सदाचारी,सूर्यवंशी भरत के मन में कोई लोभ नहीं था फिर भी सलाहकारों के अनुरोध पर इस दिशा मेंविचार मग्नावस्था को प्राप्त हुये। एक तरफ उनके रावण-वध के तेज से लबलबाते बड़के भइया थे दूसरी तरफ राजपाट। वे मतिभ्रम का शिकार हुये।
अंत में उन्होनें कौन बनेगा करोड़पति की तर्ज पर जनता की राय जानने के लिये सर्वे कराया। जनता के दो वर्ग उनसे नाराज थे। एक वह वर्ग था जिसके काम उन्होंने नहीं कराये थे तथा दूसरा वर्ग वह वर्ग था जिनके विरोधियों के काम भरत ने करा दिये थे। जाहिर है कि चौदह साल में ये दोनों वर्ग बहुमत में में आ गये थे। इसके अलावा तीसरा वर्ग भी था। ये वो लोग थे जो खुश रहते-रहते ऊब गये थे तथा शासन में बदलाव चाहते थे। १४ वर्ष के राज पाट की एकरसता को तोड़ने की जबरदस्त मांग थी। सब कुछ सोचते हुये भरत ने राम को राजपाटसौंप दिया। दुनिया में बंधु-प्रेम की मिसाल बने।
राम के राजा बनने पर अयोध्या वासियों ने जमकर खुशी मनाई।खूब दावतें उड़ाईं। सोमरस पान किया। नृत्यानंद लिया। जुआ खेला।अपना बना खाना छोड़कर होटलों में ऐश की। यहां तक तो ठीक था।राम भी बड़े खुश कि अयोध्या वासी उनके राजा बनने से खुश हैं।
लेकिन राम की खुशी काफूर हो गयी जब उन्होंने पाया कि सारे अयोध्यावासियों के खर्चे के बिल उनके नाम आने लगे। रोज बोरे-बोरे भर के बिल भुगतान के लिये आते तथा तकादगीर भी तकादा करने लगे। उन दिनों माहौल आज की तरहलोकतांत्रिक नहीं था कि नेता की रैली का बिल जनता चुकाये। सो सारे रामनामलूट के बिल रामधाम में आ गये।भरत के १४ वर्ष के राज्य के चलते खजाना खाली था फिर भी राजा रामचंद्र जी ने सारे बिल वीरतापूर्वक चुकाने का निश्चय किया तथा खर्चे कम करने की गरज से धीरतापूर्वक अपनी पत्नी सीता को जंगल भेज दिया। इससे सारे स्वयं राम,अयोध्यावासी तथा सीताजी परम दुखी हुई। दुख में लोग खर्च करना भूल गये तथा राज्य की हालत में सुधारहुये।
बाद में बाजारवादी ताकतों ने यह अफवाह फैलाई की रामचन्द्रजी ने खर्चे बचाने की गरज से नहीं वरन्‌ सीता पर लगे आरोपों के चलते उन्हें जंगल भेजा था। अफवाह के धुआंधार प्रचार की वजह से यह बात उसी तरह सच मान ली गई जिस तरह से यह मान लिया गया है कि लाइफब्वाय साबुन से नहाने मात्र से आदमी स्वस्थ हो जाता है या फिर लक्स कोजी बनियान पहनने से ही आदमी लोहे की तरह मजबूतबन जाता है।
दीवाली पर लोग जमकर खुशियां मनाते हैं। कुछ लोग तो इतना खुशी होते हैं कि दूसरे की खुशी भी मना लेते हैं। इससे दोनों को दुखमिलता है।
दीपावली पर घर-घर रोशनी होती है। दिये जलाये जाते हैं। लक्ष्मी-गणेश की पूजा होती है। खिलौने खरीदे जाते हैं।पहले सब कुछ मिट्टी से बनते थे। दीवाली में कुम्हार वैसे ही व्यस्त हो जाते है चुनाव में नेता,वर्षान्त में चार्टेड एकाउन्टेन्ट या परीक्षा में विद्यार्थी। उनके भाव बढ़ जाते ,वे बेभाव कमाते। वक्त का तकाजा, आज वे बेभाव हो गये। दिये को मोमबत्तियों ,बिजली की झालरों ने तथा मिट्टी के खिलौनों की एक क्षत्र सरकार को प्लास्टिक,प्लास्टर आफ पेरिस और तमाम अगड़म-बगड़म की गठबंधन सरकार ने अपदस्थ कर दिया। कुम्हारों की हालत स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की तरह हो गयी। शरीर और आत्मा के गठबंधन को बनाये रखने के लिये उन्होंने चाट-पकौड़े,छोले-भटूरे आदि की दुकानें लगा लीं। अपनी जगहें कैफे, पीसीओ, एटीएम,पिज्जा-बर्गर आदि-इत्यादि की दुकानों को किराये पर उठा दिया।
हम यह सब सोच ही रहे थे कि हमारे दोस्त मिर्जा कमरे में किसी वायरस की तरह घुसे। राकेट की तरह लहराते हुये कमरे की कक्षा में स्थापित हुये और चटाई बम की तरह तड़कने लगे। घर में रोशनी के अनार फूटने लगे। मिर्जा चकरघिन्नी की तरह नाचकर सबसे मिले। बच्चों को पुचकारा, चाय का फरमाइसी आर्डर उछाला और हमारी पीठ पर धौल जमाते हुये बोले-मियां क्या चेहरे पर मुहर्रम सजाये बैठे हो? कौन तुम्हारी कप्तानी छिन गई है जो गांगुली बने बैठे हो? काहे प्रवासियों की तरह देश से दूरहोने की बात का रोना रोने वाले अंदाज में दिये की जगह दिलजलाने के मूड में बैठे हो?
हमने अपने दीवाली चिंतन से उन्हें अवगत कराया। मिर्जा महताब की तरह रोशन हो गये। अचानक चाय का आखिरी घूंट लेकर बोले- बरखुरदार,अपने को पायजामें के अंदर कर लो।चलो आज किसी दिये का इन्टरव्यू लेते हैं।देखें जो रोशनी देता है, वो कैसा महसूस करता है।
हमारी सहमति-असहमति को तवज्जो दिये बगैर मिर्जा हमको टांग के वैसे ही चल दिये जैसे अमेरिका ब्रिटेन के साथ करता है। रास्ते में एक पेशेवर साक्षात्कार सेवा कंपनी से एक इंटरव्यू लेने वाली सुंदरी को साथ ले लिया। वह तुरंत अपने नाज, नखरे, लिपिस्टक, पाउडर, अल्हड़ता, चश्मा, अदायें और माइक समेट कर साथ चल दी।
हम इंटरव्यू लेने लायक दिये की खोज में भटकने लगे। जिस मुस्तैदी से विकसित देश आतंकवादी खोजते हैं या बेरोजगार रोजगार टटोलते हैं या फिर जवान लड़की का बाप अपनी कन्या हेतु वर खोजता है उसी तन्मयता से हम नये-पुराने,समूचे-टूटे, छोटे-बड़े दिये की खोज में थे। हर भूरी,गोल दिखती चीज पर साथ की महिला माइक अड़ा देती- क्या आप दीपकजी हैं?
सारे रास्ते पालीथीन,प्लास्टिक,पाउच और पार्थेनियम(गाजर घास)से पटे पड़े थे। उत्साही पालीथीन के टुकड़े उड़न तस्तरियों से कूड़े के ढ़ेरों की परिक्रमा कर रहे थे। कूड़े के ढेर के ये उपग्रह आपस में टकरा भी रहे थे,गिरकर फिर उड़ रहे थे। गाजरघास विदेशी पूंजी सी चहक रही थी। जितना उखाड़ो-उतना फैल रही थी। सांस लेना मुश्किल।लेकिन हम इन आकर्षणों के चक्कर में पड़े बिना दीपक की खोज में लगे थे। हमें नयी दुनिया की खोज में कोलम्बस के कष्ट का अहसास हो रहा था। सब कुछ दिख रहा था। गोबर के ढेर,पान की पीक,सड़क पर गायों की संसद,कीचड़ में सुअरों की सभा केवल दिया नदारद था- नौकरशाही में ईमानदारी की तरह।
अचानक मिर्जा के चेहरे पर यूरेका छा गया। वे एक नाली के किनारे कुड़े के ढेर में दिये को खोजने में कामयाब हो गये। इन्टरव्यू-कन्या को इशारा किया । कन्या मुस्कराई। अपना तथा माइक का टेप आन किया ।बोली-
दीपकजी आप कैसे हैं? आई मीन हाऊ आर यू मिस्टर लैम्प?
उधर से कोई आवाज नहीं आई। सुंदरी मुस्कराई , कसमसाई, सकुचाई, किंचित झल्लाई फिर सवाल दोहराई-
आप कैसे हैं? क्या आप मेरी आवाज सुन पा रहे हैं दीपकजी?
जवाब नदारद। कन्या आदतन बोली- लगता है कुछ संपर्क टूट गया है।
इस बीच मिर्जा पास के पंचर बनाने वाले को पकड़ लाये जो कि पहले बर्तन बनाता था। और दीपक तथा कन्या के बीच वार्ता अनुवाद का काम पंचर बनाने वालेको सौंप दिया। इस आउटसोर्सिंग के बाद इंटरव्यू का व्यापार धड़ल्ले से चलने लगा।कन्या दीपक को कालर माइक पहले ही पहना चुकी थी।
सवाल:-दीपकजी आप कैसे हैं? कैसा महसूस कर रहे हैं?
जवाब:- हमारी हालत उस सरकार की तरह है जिसका तख्ता पलट गया हो। मैं पहले पूजा गया। फिर महीनों रोशनी देता रहा। आज घूरे पर पड़ा हूं। कैसा महसूस कर सकता है कोई ऐसे में। मेरी हालत ओल्ड होम में अपने दिन गिनते बुजुर्गों सी हो गयी है।
सवाल:- आप यहां कब से पड़े हैं? मेरा मतलब कब से यहां रह रहे हैं?जवाब:- अब हमारे पास कोई घड़ी या कैलेंडर तो है नहीं जो बता सकें कि कब से पड़े हैं यहां। लेकिन यहां आने से पहले मैं सामने की नाली में पड़ा था। हमारे ऊपर पड़े तमाम कूड़े-कचरे के कारण नाली जाम हो गई तो लोगों ने चंदा करके उसको साफ कराया तथा मुझे कूड़े समेत यहां पटक दिया गया। तब से यहीं पड़ा हूं।
सवाल:-आप पालीथीन,पार्थेनियम वगैरह के साथ कैसा महसूस करते हैं?डर नहीं लगता आपको अकेले यहां इनके बीच?
जवाब:- यहां तो सब कुछ कूड़ा है। यहां कूड़े में जातिवाद,सम्प्रदायवाद तो है नहीं जो किसी से डर लगे। लेकिन हमारा पालीथीन का क्या मेल? हमें कोई ठोकर मारेगा हम खतम हो जायेंगे। वे बहुतों कि खतम करके तब जायेंगी। ये जो बगल की पालीथीन देख रहीं हैं ये तीन गायों की ,उनके पेट में घुस कर,निपटा चुकी है ।
सवाल:- आपकी इस दुर्दशा के लिये कौन जिम्मेदार है?
जवाब:- माफ करें,इस बारे में हमारी और मिट्टी के दूसरे उत्पादों की दुर्दशा के संबंध में एक जनहित याचिका पांच साल से विचाराधीन है इसलिये इस बारे में मैं कुछ नहीं बता पाऊंगा।
सवाल:-आपमें और उद्‌घाटन के दिये में क्या अंतर होता है?
जवाब:- वही जो एक नेता और आम आदमी में होता है। जैसे आम जनता का प्रतिनिधि होते हुये भी नेता आम जनता के कष्टों से ऊपर होता है वैसे ही उद्‌घाटन का दिया दिया होते हुये भी हमेशा चमकता रहता है। उसे तेल की कोई कमी नहीं होती। उसके कंधों पर अंधेरे को भगाने का दायित्व नहीं होता। वह रोशनी में रोशनी का झंडा फहराता है। हमारी तरह अंधेरे से नहीं लड़ता। हम अगर आम हैं तो वह खास ।
सवाल:- दीपावली पर आप दिये लोग कैसा महसूस करते हैं?जवाब:- इस दिन हमारी पूछ चुनाव के समय में स्वयंसेवकों की तरह बढ़ जाती है। हमें भी लगता है कि हम अंधेरे को खदेड़कर दुनिया को रोशन कर रहे हैं। यह खुशनुमा अहसास मन में गुदगुदी पैदा करता है। वैसे हम सदियों से रोशनी बांटते रहे यह कहते हुये:-
जो सुमन बीहड़ों में,वन में खिलते हैं
वे माली के मोहताज नहीं होते ,
जो दीप उम्र भर जलते है
वे दीवाली के मोहताज नहीं होते।

सवाल:- आजकल आप लोगों की संख्या इतनी कम कैसे हो गई?क्या आप लोग भी परिवार नियोजन अपना रहे हैं?
जवाब:- तमाम कारण हैं। कटिया की बिजली की सहज उपलब्धता ने तथा तेल की कीमतों में लगातार बढोत्तरी ने हमें उसी तरह बाहर कर दिया है जिस तरह विकसित देश की कंपनियां अपने कर्मचारियों को ‘ले-आफ’ कर देती हैं। लेकिन आप लोगों ने जो भी किया हो अंधेरे के डर से हमें जब भी याद किया गया हम कभी अपने काम से नहीं चूके।
सवाल -जवाब शायद और चलते लेकिन तेज हवा के कारण दिया कूड़े से सरककर गहरी नाली में जा गिरा। वहां तक माइक का तार नहीं पहुंच पा रहा था।
सुंदरी का समय भी हो चुका था। थैंक्यू कहकर अपनी मुस्कराहट व माइक समेट लिया।
हम वापस लौट पड़े। मिर्जा कुछ उदासी के पाले में पहुंचकर मेराज फैजाबादी का शेर दोहरा रहे थे:-
चांद से कह दो अभी मत निकल,
ईद के लिये तैयार नहीं हैं हम लोग।

लेकिन घर पहुंचते ही पटाखे छुड़ाते बच्चों को देखते ही मिर्जा उदासी को धूल की तरह झटककर कब फुलझड़ी की तरह चमकने लगे पता ही न चला।
मेरी पसंद
मेरे पंख कट गये हैं
वरना मैं गगन को गाता।
कोई मुझे सुनावो
फिर से वही कहानी,
कैसे हुई थी मीरा
घनश्याम की दीवानी।
मीरा के गीत को भी
कोई विष रहा सताता
कभी दुनिया के दिखावे
कभी खुद में डूबता हूं,
थोड़ी देर खुश हुआ तो
बड़ी देर ऊबता हूं।
मेरा दिल ही मेरा दुश्मन
कैसे दोस्ती निभाता!
मेरे पास वह नहीं है
जो होना चाहिये था,
मैं मुस्कराया तब भी
जब रोना चाहिये था।
मुझे सबने शक से देखा
मैं किसको क्या बताता?
वह जो नाव डूबनी है
मैं उसी को खे रहा हूं,
तुम्हें डूबने से पहले
एक भेद दे रहा हूं।
मेरे पास कुछ नहीं है
जो तुमसे मैं छिपाता।
मेरे पंख कट गये हैं
वरना मैं गगन को गाता।
-स्व.रमानाथ अवस्थी

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

15 responses to “दीपावली खुशियों का त्योहार है”

  1. Manoshi
    लेख बहुत बढिया है मगर पुर्णिमा जी की समझदारी व एक अच्छे सँपादक होने की दाद दिये बिना भी नही रहा जा रहा| आपका लेख बहुत सुगठित तरीके से लिखा गया है पर पूर्णिमा जी ने उसमे ब्से उतना ही लिया जितना सचमुच व्यँग्य और बिना किसी को ठेस पहुँचाये प्रकाशित किया जा सकता है| as a writer आपने और as an editor उन्होने बहुत अच्छा काम किया है| लेख प्रकाशित होने की बधाई आपको|
  2. eswami
    गुरुदेव, एक और शानदार लेख लिखने के लिए बधाई!
    कविता बहुत सुँदर है.
  3. जीतू
    बहुत शानदार लेख है, हास्य के साथ, व्यंग की चोट भी बहुत गहरी है। और हाँ, हमारे मिर्जा साहब को वापस कुवैत की फ़्लाइट मे हिफ़ाजत से बिठा देना। यहाँ भी उनका इन्तज़ार हो रहा है, उनके बिना जी नही लगता।
  4. sarika
    बहुत अच्छा लिखा है अनूप जी! जीतू जी सही कह रहे हैं -आपके व्यंग्य की चोट भी बहुत गहरी होती है।
    दीपावली की शुभकामनायें!!
  5. प्रत्यक्षा
    बहुत अच्छे !बडा चुटीला व्यंग. छुट्टी का अच्छा सदुपयोग.
    अब समझ में आया इन्टरवियू लेने की विद्या में आप कैसे पारंगत हो रहे हैं
    :-)
    प्रत्यक्षा
  6. बॄजेश
    पूर्णिमा जी ने सम्पाद्कीय धर्म का निर्वहन किया है जो काबिले तारीफ़ है.
    आप द्वारा प्रस्तुत दोनो साक्षात्कार लाजवाब है, जहां एक ओर व्यंग की अद्भुत छ्टा है तो दूसरी तरफ़ व्यक्तित्व की अनूठी झलक.
  7. रवि
    अभिव्यक्ति पर दीपक का साक्षात्कार पढ़कर महसूस हुआ कि अरसे बाद कोई ढंग का व्यंग पढ़ने में आया. भारतीय व्यंग्य तो लगता है कि परसाईँ के साथ ही चला गया…
    बधाइयाँ !
  8. फ़ुरसतिया » तुम मेरे होकर कहीं रहो…
    [...] िवस के अवसर पर उन्होंने लालकिले से कविता पढ़ी:- मेरे पंख कट गये हैं वरना मैं ग� [...]
  9. ब्लॉग में क्या लिखें?
    [...] ४. साक्षात्कार: आपके गाँव, कस्बे,शहर मे कोई महान हस्ती पधारी हो। आपको उनसे मिलने की बहुत इच्छा हो, और पुलिस वाला आपको उनके आसपास फ़टकने नही दे रहा हो, बस उस हस्ती के कान तक बात पहुँचा दो कि अमरीका की ब्लागस्पाट कम्पनी की तरफ़ से इन्टरव्यू लेने आये है। फ़िर देखना चाय के साथ समौसे ना मिले तो कहना। बड़े लोगों मे इन्टरव्यू देने की एक खास बीमारी होती है जो पत्रकारों को देखकर और बढती है। बस आप कुर्ता पजामा डालकर, झोला बगल मे लटका कर, अगर कोई कैमरा हो तो उसे साफ़ सूफ़ करके निकल लीजिये साक्षात्कार लेने। बस फ़िर उसे चाँप दीजिये अपने ब्लॉग पर। कोई पढे ना पढे, आपको चाय समौसा तो मिला। है कि नही? उदाहरण के लिये यहाँ का इन्टरव्यू झेला जाय। [...]
  10. Ram dutt Dadhich
    Mr.Anoop Shukla,
    You may think your self a great writer , very great Vyangkar but you are not a true Indian.
    The readers may consider your thinking some what correct for the second part of the article you have written on the Deepak ( Diya ), although in this part also it is not clear realy what you want to convye to the readers.
    The first part on Bhagwam RAM , Maa Sita & BHARAT you were able to write because of a simple fact that you are living in INDIA and any Aera Gera Nathu Gera can write any thing on the Ideals of Hindu samaj , on the feelings of Indians without any fear like a Vidharmi or …. my culture is not allowing me to use many worst words of abusees…
    Please dare to write any such thing on the Ideals of other cultures and Dharma and you will get the reply in better way.You may become more famous.
    I opened the site to get some thing NOVEL on this festival but I got this kachara.
    Your article is very old but some thing related to Hindi Sahitya attracted me and now I am feeling ashamed of reading this part of article and so could not resist to write this .
    It may hurt you but I am trying to save my faith from such things ,which person like you are doing for Paisa and sasti fame.. Can you do any thing for these things ..???? Can you go to any limit????
    Sorry to convey in english as I do not know prently to convey my slf in hindi on computer as I donot know the hindi typing on this computer.
    With Best Regards
    RD Dadhich
  11. Ram dutt Dadhich
    Mr.Anoop Shukla,
    You may think your self a great writer , very great Vyangkar but you are not a true Indian.
    The readers may consider your thinking some what correct for the second part of the article you have written on the Deepak ( Diya ), although in this part also it is not clear realy what you want to convye to the readers.
    The first part on Bhagwam RAM , Maa SITA & BHARAT you were able to write because of a simple fact that you are living in INDIA and any Aera Gera Nathu Gera can write any thing on the Ideals of Hindu samaj , on the feelings of Indians without any fear like a Vidharmi or …. my culture is not allowing me to use many worst words of abusees…
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    It may hurt you but I am trying to save my faith from such things ,which person like you are doing for Paisa and sasti fame.. Can you do any thing for these things ..???? Can you go to any limit????
    Sorry to convey in english as I do not know presently to convey my self in Hindi on computer as I donot know the Hindi typing on this computer.
    With Best Regards
    RD Dadhich
  12. Ram dutt Dadhich
    Dear Mr Anoop Ji,
    May I have a right for a simple clarification on my above obsevation please like you have a right to comment any thiong on RAM, SITA & BHARAT.
    With Best Regards
    RD Dadhich
  13. sindhu
    hai,
    it is good but in a very typical language
  14. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] 1.दीपावली खुशियों का त्योहार है 2.ढोल,गंवार,शूद्र,पशु,नारी… 3.तुम मेरे होकर रहो कहीं… 4.शरमायें नहीं टिप्पणी करें 5.बड़े तेज चैनेल हैं… 6.गुम्मा हेयर कटिंग सैलून 7.एक गणितीय कवि सम्मेलन 8.हेलो हायकू टेस्टिंग [...]
  15. Anonymous
    PLEASE NEXT TIME IF U WRITE ANY ESSAY WRITE IT IN A PROPER WAY !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

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