Monday, December 12, 2005

गरियाये कहां हम तो मौज ले रहे हैं!

http://web.archive.org/web/20110101225559/http://hindini.com/fursatiya/archives/87


अपने देश में तमाम चैनेलों की बाढ़ आई है। हर चैनेल आये दिन चिल्लाता है कि उसकी खबर का असर हुआ कि ये हो गया,वो हो गया। चैनेल ने खबर दी तो भंडाफोड़ हुआ या ये सुधार हो गया आदि-इत्यादि।अपना चिट्ठाजगत भी इस मामले में गरीब नहीं है। हमारे पास भी जीतू जैसा बड़ा तेज चैनेल है जो हवा में खबरें पैदा करता है। जिसका प्रताप ऐसा है कि जो सलाह देता है लोग सब काम छोड़ के उसे पूरा करते हैं तथा जीतू भाई सब काम छोड़कर सबको यह खबर दौड़कर बताते हैं।बडा़ तेज चैनेल है भाई!
इसी जीतू चैनेल ने बताया कि उसने कुछ सुझाव दिये जिनको अमल में लाया गया देसी पण्डित में तथा जिसके लिये उनको अनूप भाई ने अकेले में गरियाया भी। जब अनूप भाई से फुरसतिया ने दरियाफ्त किया कि क्या मजाक है? छेड़छाड़ तक तो मामला ठीक था अब तुम गरियाने भी लगे जीतू को?जीतू को गरियाते काहे हो? गुंडागीरी करते हो! अनूप भाई ने बुदबुदाते हुये अफसोस जाहिर किया कि हमें इस बात का अफसोस है। हम खुश हो गये कि चलो अगले को गलती का अहसास हुआ। लेकिन कुछ लोग बता रहे कि बुदबुदाते हुये अनूप भाई यह भी कह रहे थे कि गरियाने से ज्यादा बड़ा अफसोस यह है कि हम दूरी के कारण गरियाने के बाद जो किया जाता है वह नहीं कर पा रहे हैं।
बात जब विस्तार से पूछी गई तो बताया गया कि अव्वल तो जीतू ने तमिल,जैसे तमिल, तेलगू,बंगाली वगैरहा को भी प्रोत्साहित करने के लिये कुछ नहीं कहा। वह बात वहां हुई ही नहीं। हुआ यह कि देसी पण्डित पर हिंदी की पोस्ट देखकर किसी तमिल ब्लागर ने अनुरोध किया कि वे भी तमिल ब्लागों के बारे में लिखना चाहते हैं।जिसे स्वीकार कर लिया गया। छठवीं टिप्पणी के रूप में जीतू का सुझाव आया कि अंग्रेजी के अलावा अन्य सभी भारतीय भाषाओं के लोग अपनी भाषाओं में लिखने के अलावा अंग्रेजी में अनुवाद दे दें या पहले कमेंट के रूप में अनुवाद या सार लिख दें।
अपनी समझ में जीतू ने बड़ी ऊंची बात कह दी तथा यह तब और ऊंची हो गई जब देखा कि तमिल ब्लागर ने तमिल पोस्ट लिखी तथा पहले कमेंट के रूप में अंग्रेजी में अनुवाद सार भी लिखा।
मेरी समझ में यह अनुवाद करने का सुझाव गैरजरूरी थी। अभी भी मेरा मत यही है। मुझे समझ में नहीं आता कि हिंदी में लिखे ब्लाग के बारे में सार अंग्रेजी में देने में किसका भला होगा अगर लोग हिंदी में ब्लाग पोस्ट पढ़ने में सक्षम नहीं है। आप तीन पेज लंबी पोस्ट का सार तीन लाइन में कितना ही अच्छा करें ,वह मूल पोस्ट का पूरा भाव कभी नहीं दे सकती। हिंदी पढ़ सकने में जो अक्षम है उसके लिये वह पोस्ट बेकार है। और सिर्फ यह सूचना देने का कोई मतलब नहीं बनता कि फलानी पोस्ट में ढिमाकी बात लिखी है।
फिर जब मुझसे बात हुयी तो जीतू भाई से मैंने पूछा कि मियां ये क्या ऊट-पटांग सुझाव देते रहते हो? कौन करेगा अनुवाद? तुम किया करो। पहला कमेंट कर दिया करो हर हिंदी पोस्ट का अंग्रेजी में। तो जीतू बोले-देबाशीष,रमन,रविरतलामी से करवाओ। मैंने पूछा कि क्या ये भाई लोग अनुवादक कुली हैं? जीतू बोले -हे,हे,हे।
अगले को यह अहसास ही नहीं है कि अगला जो कह रहा है उस पर अमल की क्या प्रासंगिकता है। अगर सुझाव है तथा अमल में लाने की मंशा है तो कुछ करो भी बंधुवर। खाली हेहेहे से कुछ थोड़ी होगा। हमें इसीलिये अब जीतू के सुझावों से बड़ा डर लगता है। पता नहीं किस सुझाव पर सहयोग का बयाना करवा लें फिर ये तो यह जा वह जा हम भुगतें खामियाजा हामी भरने की।
जानकारी के लिये बता दूं कि देशी पण्डित में इस बारे में जो भी विचार विमर्श हो रहे हैं उनमें सभी भारतीय भाषाओं को प्रतिनिधित्व देने का विचार ज्यादा है। जीतू के सुझाव के बारे में कि भारतीय भाषाओं की पोस्ट के अंग्रेजी अनुवाद हों इस बारे में कोई बात नहीं हो रही है।
समझने की बात है यार कि देशीपण्डित एक सूचना पट की तरह है। जहां हर भाषा के बेहतरीन पोस्ट के बारे में सूचना होती हैं। किसे इतना समय है कि पहले वह सूचना हिंदी में लिखे। फिर उसका अनुवाद अंग्रेजी में लिखे ताकि हिंदी न जानने वाला समझ सके कि किस बारे में लिखा है। पोस्ट तो वह फिर भी नहीं पढ़ पायेगा क्योंकि वह हिंदी में है।
यही कुछ बाते हुयीं हमारी जीतू से । हम मौज ले रहे थे ये समझे हम नाराज हैं। ये हमें समझाने में लगे रहे कि टेंशन न करो। लोकतंत्र है। सबको राय रखने का हक है। आदि-इत्यादि। हमें हंसी भी आ रही थी कि बालक समझ रहा हैकि हम खफा हो गये।चैटिंग की यह सुविधा है कि आप हंसते हुये गुस्सा कर सकते हैं तथा रोते हुये कह सकते हैं -बड़ी हंसी आ रही है।
हमें यह भी लगा कि शायद यह बालक देबाशीष को खुश करने के लिये यह लिख रहा हो ताकि देबाशीष की नाराजगी दूर हो जाये । (देबू ने पूछा था जीतू के सवाल पर” सबको बांटो और हमको डांटो” —“सबको बांटो और हमको डांटो” वाली क्या बात है, क्या किसी और भारतीय भाषा का लेख आपको इंडीब्लॉगीज़ पर नज़र आया?)
पहले हमने सोचा कि इस पर मौज लेते हुये लंबी पोस्ट लिखी जाये। लेकिन फिर सोचा कि क्या छेड़ना अपने कनपुरिये को बार-बार। वैसे भी दोस्त लोग कहते हैं कि हम जीतू को बहुत छेड़ते हैं।यह सोचकर हमने लिखना स्थगित किया। लेकिन आज जब जीतू ने बताया कि हमने उनको अकेले में गरियाया तब हमको हंसी भी आई तथा यह भी सोचा कि बालक किस भुलावे में खुद को तथा दूसरों को डालता है कि उसके सुझाव पर अमल में लाया जा रहा है।
हमारा छोटा लड़का बड़ा फितरती है। बड़े लड़के को वह पढ़ने में डिस्टर्ब करता है। जब परेशान होकर वह छोटे को एकाध कंटाप मार देता है तो वह पूरा एक्टिंग के साथ रोते हुये बताता है-दादा ने मारा। अपनी गलती नहीं बतायेगा। स्वाभाविक है कि आंसुओं के चलते माहौल बड़े वाले के खिलाफ बन जाता है तथा वह अक्सर डांट-मार खा जाता है। जब जीतू की पोस्ट पढ़ी कि अनूप भाई ने उनको गरिया दिये तो लगा जैसे मेरा छोटा लड़का शिकायत लेकर नेट पर आ गया-दादा ने मारा।
जहांतक मसला बनने की बात है वह मसला नहीं चोचला है। यार किसी भाषा की पोस्ट से दूसरी भाषा के लोगों की तबितत काहे खराब होती है। निहायत बचकानी बाते हैं जब हम पढ़ते थे तो ऐसा हुआ। हिंदी से ये हो जायेगा। तमिल से यह बदलाव हो जायेगा। बेतुकी बातें लगती हैं।
बहरहाल,आशा है कि मेरी बात सही रूप में समझी जा सकेगी। आप लोग बतायें अपने विचार। जीतू चलो पहली टिप्पणी करो उधर देशी पण्डित में अंग्रेजी अनुवाद करके। मन हो तो लिखा भी करो हिंदी पोस्ट के बारे में -अंग्रेजी में अनुवाद के साथ।
जीतू, अब फिर मत रोना कि अनूप भाई ने गरियाया। कोई सच नहीं मानेगा। सब जानते हैं कि हम मौज लेते हैं तुमसे।
तुम्हें भी मजा आता है छिड़ने में यह सब जगह मशहूर है।

फ़ुरसतिया

अनूप शुक्ला: पैदाइश तथा शुरुआती पढ़ाई-लिखाई, कभी भारत का मैनचेस्टर कहलाने वाले शहर कानपुर में। यह ताज्जुब की बात लगती है कि मैनचेस्टर कुली, कबाड़ियों,धूल-धक्कड़ के शहर में कैसे बदल गया। अभियांत्रिकी(मेकेनिकल) इलाहाबाद से करने के बाद उच्च शिक्षा बनारस से। इलाहाबाद में पढ़ते हुये सन १९८३में ‘जिज्ञासु यायावर ‘ के रूप में साइकिल से भारत भ्रमण। संप्रति भारत सरकार के रक्षा मंत्रालय के अंतर्गत लघु शस्त्र निर्माणी ,कानपुर में अधिकारी। लिखने का कारण यह भ्रम कि लोगों के पास हमारा लिखा पढ़ने की फुरसत है। जिंदगी में ‘झाड़े रहो कलट्टरगंज’ का कनपुरिया मोटो लेखन में ‘हम तो जबरिया लिखबे यार हमार कोई का करिहै‘ कैसे धंस गया, हर पोस्ट में इसकी जांच चल रही है।

5 responses to “गरियाये कहां हम तो मौज ले रहे हैं!”

  1. eswami
    (जीतू भाई की टिप्पणी सँलग्न कर रहा हूँ)
    ये तो वही बात हुई, “जबरी मारे और रोने भी ना दे”, अब जब गरियाया तो गरियाया, इसमे एक्प्लेनेशन देने की का जरुरत है, भाई लोगों पूरी पोस्ट पढ लो, और उसके बाद फ़ैसला करो, कि किसने कब और कितना गरियाया।अब हम कोई फ़रियाद नही कर रहे, ना ही कोई जाँच आयोग बिठा रहे है, लेकिन बच्चे को डाँटा तो डाँटा अब धमकिया भी रहे हो, ये कहाँ का इन्साफ़ है? क्या बच्चे की जान लोगे?
    रही बात कमेन्ट करने की, तो भैया, ईस्वामी जी, जल्दी से समस्या सुलझाओ, नही तो कंही कमेन्ट के लिये भी फ़ुरसतिया जी गरियाने ना लगें।
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    [...] इसके बाद तो तमाम खिंचाई-लेख लिखे गये जो सिर्फ़ और सिर्फ़ जीतू पर केंद्रित थे। ये हैं- १. जन्मदिन के बहाने जीतेन्दर की याद २. गरियाये कहां हम तो मौज ले रहे हैं! ३. आइडिया जीतू का लेख हमारा ४. अथ कम्पू ब्लागर भेंटवार्ता [...]
  3. जीतेंन्द्र चौधरी के जन्मदिन पर एक बातचीत
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