Sunday, August 19, 2007

ये आजादी झूठी है…

http://web.archive.org/web/20140419213213/http://hindini.com/fursatiya/archives/267

ये आजादी झूठी है…

आजादी का दिन आया। चला गया। हम झण्डा फ़हराने और जन गण मन गाने में एतना मशगूल रहे कि एक्को पोस्ट तक न ठेल पाये -मादरेवतन की आजादी मे मुबारक मौके पर । जबकि हमारे तमाम दोस्त ढेर सारी आजाद पोस्टें चढ़ा गये। हम अफ़सोस में इत्ता डूबे रहे कि वाह-वाह भी न कर सके। लोग क्या कहेंगे! लोग तो यही समझेंगे न कि हम बिजी थे इसीलिये टाइम
न निकाल सके टिपियाने का। नाम फ़ुरसतिया है लेकिन रहते बिजी हैं। सारी इमेज चौपट। बड़ी बेइज्जती खराब होगी।
बड़ा विकसित कहलातें हैं
अमेरिका वाले। हैप्पी इंडियन इंडिपेंडेंस डे मनाने में पूरे चार दिन से पिछड़ गये हमसे शेम,शेम। इसीलिये हम भारत को अमेरिका बनाने के खिलाफ़ हैं।
बहरहाल, अब सोचा कि आजादी पर अपने उद्गार पेश कर ही दिये जायें। इस साल नहीं तो लोग अगले साल इसका महत्व समझेंगे ही। वैसे एक बात बता दें कि आज अमेरिका में इंडिया डे मनाया जा रहा है। बड़ा विकसित कहलातें हैं अमेरिका वाले। हैप्पी इंडियन इंडिपेंडेंस डे मनाने में पूरे चार दिन से पिछड़ गये हमसे शेम,शेम। इसीलिये हम भारत को अमेरिका बनाने के खिलाफ़ हैं।
हमने सोचा कि आजादी के बारे में अपने विचार लिखने से पहले जनता-जनार्दन का मूड जान लिया जाये कि वह क्या विचार रखती है इस आजादी के बारे में!
च्युंगम चबाते हुये उनकें होंठ ऐसे लग रहे थे जैसे नदी के दो पाट हैं जो आपस में कभी नहीं मिलते। नदी के सूख जाने पर भी नहीं। नदी के पाट से आपको एतराज हो तो चक्की के दो पाट मान लीजिये लेकिन फिर आपको एक बात हमारी भी माननी पड़ेगी। वह यह कि उनके होंठ ऐसी चक्की के दो पाट की तरह धीरे-धीरे चल रहे थे जिसकी बिजली का वोल्टेज गिरा हुआ हो।
हम घर से निकले । निकलते ही एक बुजुर्ग से टकरा गये। बुजुर्गवार प्राचीनता के आधुनिकतम संस्करण लग रहे थे। चेहरे-मोहरे से त्रस्त, हाव-भाव से मस्त। बाल सफ़ेद थे, होंठ लाल। च्युंगम चबाते हुये उनकें होंठ ऐसे लग रहे थे जैसे नदी के दो पाट हैं जो आपस में कभी नहीं मिलते। नदी के सूख जाने पर भी नहीं। नदी के पाट से आपको एतराज हो तो चक्की के दो पाट मान लीजिये लेकिन फिर आपको एक बात हमारी भी माननी पड़ेगी। वह यह कि उनके होंठ ऐसी चक्की के दो पाट की तरह धीरे-धीरे चल रहे थे जिसकी बिजली का वोल्टेज गिरा हुआ हो। इतना गिरा कि पाट चक्कर तक पूरा नहीं कर पा रहे थे। आधे-अधूरे चक्कर में घूमते हुये जहाज के पंछी की तरह फ़िर लौट आते। लग तो यह भी रहा था कि च्युंगम चबाते होठ भारत-पाकिस्तान के बीच होने वाली शिखर वार्तायें हैं जो निश्चित अंतराल में होती रहती हैं और हर बार जहां से शुरू होती हैं, वहीं पहुंच जाती हैं। अब आपको इनमें से जो अच्छा लगे मान लीजिये और आगे का विवरण बांचिये। ज्यादा अच्छा-खराब लग रहा हो तो यहीं ठहरकर अपने उद्गार उवाच दीजिये।
हमने अपना पुरनका मोबाइल एकदम उनके मुंह में ठूंस सा दिया ताकि वे इसे देख न सकें और यही समझें कि एकदम लेटेस्ट तकनीक वाला मोबाइल है जिसमें
रिकाडिंग की सुविधा भी है। ऐसा मैंने इसलिये किया क्योंकि चैनेल देख-देखकर मुझे यह लगने लगा है कि आजकल बिना माइक के कोई बोल नहीं पाता। बोलने के लिये मुंह में जबान की उतनी जरूरत नहीं होती जितनी मुंह के सामने कैमरे की।
चैनेल देख-देखकर मुझे यह लगने लगा है कि आजकल बिना माइक के कोई बोल नहीं पाता।बोलने के लिये मुंह में जबान की उतनी जरूरत नहीं होती जितनी मुंह के सामने कैमरे की।
अब यहीं मैं सोच रहा हूं कि बुजुर्ग को चिंहुकाते हुये डायलागिया दिया जाये- इसकी बैटरी नोकिया की है? चेक करा ली? कहीं यह बम तो नहीं ? लेकिन नोकिया पुराण जरा तकनीकी हो जायगा । विषय से ज्यादा भटकाव भी ठीक नहीं है न! सीधे मुद्दे की बात की जाये। और फ़िर हम तकनीक के बारे में लिखेंगे तो फ़िर श्रीश, अमित, रतलामीजी का लिखेंगे।
-आजादी की साठवीं सालगिरह पर आपको कैसा लगता है? हमने अचानक शुरुआत कर दी -बिना उनको मौका दिये।
-कैश पिक्चर तो अभी हमने देखी नहीं कैसे कह सकते हैं लेकिन सुना है बंडल है- बुजुर्गबार बहरे बाबा थे शायद! ऊंचा सुनते थे।
अरे, बाबा कैस पिक्चर नहीं मैं आपसे आजादी के बारे में पूछ रहा हूं। कैसा लगता है आपको आज के दिन। आज आजादी की साठवीं सालगिरह है न!-जरा सा भी मन पर पकड़ कमजोर होती तो हम अभय तिवारी की झुंझलाने लगते।:)
-ये आजादी तो झूठी है? फ़ाल्स फ़्रीडम है।-उनके चेहरे पर अनुप्रासित अंग्रेजी का नूर छा गया। उन्होंने इसबीच अपनी सनउवा सहायता (हीयरिंग एड) को मोर्चे (कान) पर तैनात कर दिया था।
आपको कैसे पता? आपने क्या सच्ची आजादी देखी है? वह कैसी होती है? -जिज्ञासा सहज थी।
हम पूरे विश्वास से सालों से कहते आये हैं कि ये आजादी झूठी है। आज तक किसी की हिम्मत नहीं हुयी कि हमारी बात काट सके। सर झुका के मान लेते हैं। सब लोग।
हमने देखी नहीं है लेकिन जब से पैदा हुये यही सुनते आये हैं। हर
साल तीन-चार मौके आते हैं जब पूरा देश यही कहने लगता है -ये आजादी झूठी है, दिस इस फ़ाल्स फ़्रीडम। जिनकी स्पेलिंग-वर्जिश ज्यादा अच्छी होती वे फ़ाल्स की जगह फ़ार्श कह देते हैं। इसी से हम पूरे विश्वास से सालों से कहते आये हैं कि ये आजादी झूठी है। आज तक किसी की हिम्मत नहीं हुयी कि हमारी बात काट सके। सर झुका के मान लेते हैं। सब लोग। -आत्मविश्वास पूर्वक समझाइस दी उन्होंने।
ये कैसे हआ कि लोग साठ साल से इसे निभाते आ रहे हैं। हर कोई मानता है कि यह झूठी है लेकिन इसको ओढ़-बिछा रहे हैं। क्या यह कोई सरकारी कर्मचारी है जो एक बार नौकरी में आने के बाद निकाला नहीं जाता। लोग निभाते रहते हैं। आजकल तो उनको भी लोग निकालने लगे हैं। फिर ऐसी कौन सी मजबूरी है कि इसे बदल के नयी ,बढ़िया , धांसू च फ़ांसू टाइप आजादी नहीं ले आते लोग। ऐसी कि लोग कहें- वाऊ क्या आजादी है। दिल खुश हो गया।-हम थोड़ा सवालिया अंदाज में आ गये। पूरा का पूरा चेहरा ही हमने प्रश्नवाचक बना लिया था।
अरे भाई, जब आजादी मिली थी तब कन्ज्यूमर फोरम थे नहीं कि खराब माल बदल लाओ। अब तो गारण्टी पीरियड भी गुजर गया। गारण्टी कार्ड भी पता नहीं कहां है? कौन बदलेगा? अब तो इसी झूठी आजादी को ढोना बदा है हमारे भाग्य में- वे निराश से होने लगे। हमें जीवन से निराश क्यों? एक बार मिल तो लें। शर्तिया फ़ायदा, तुरन्त आराम के तमाम ‘जनता-विज्ञापन’ याद आने लगे। हम कयास लगाने लगे कि इनको इंटरव्यू के बाद किस हकीम के पास जाने की मुफ़्तिया सलाह टिकानी है।
अरे लेकिन जहां से आजादी लाये उससे शिकायत तो कर सकते हैं। न बदले तो उसकी दुकान के बारे में लोगों को बता तो सकते हैं कि इस दुकान से माल न खरींदें। मिलावट रहती है_ हम उनको जागरूक करते हुये सवाल पूछ रहे थे।
अब तुम तो समझ सकते हो रात की आजादी के कितने साइड इफ़ेक्ट होते हैं। आबादी बढ़ जाती है, आजादी झूठी ले आते हैं, खराब माल टिकाकर चले जाने वाले की हम पहचान तक नहीं कर पाते।
यार यही तो लफ़ड़ा है। रात में लाये थे आजादी। अंधेरे में देख भी नहीं पाये कि क्या असलियत है। न दुकानदार का असली चेहरा देख पाये न आजादी को परख पाये। बस लादे लिये चले आये और रात में ही आजाद हो गये। अब तुम तो समझ सकते हो रात की आजादी के कितने साइड इफ़ेक्ट होते हैं। आबादी बढ़ जाती है, आजादी झूठी ले आते हैं, खराब माल टिकाकर चले जाने वाले की हम पहचान तक नहीं कर पाते।- उनके चेहरे पर चोट खाये हुये आदमी के अंधेरा था।
लेकिन उस समय के लोग तो बड़े समझदार थे। कैसे गफ़लत हो गयी उनसे? खरे-खोटे की पहचान न कर सके। क्या कोई घोटाला हो गया? अगर हुआ तो उसे ही सबसे पहला घोटाला माना जाना चाहिये। हर एक घटना को उसका श्रेय मिलना चाहिये- हम अचानक न्यायप्रिय हो गये।
अरे थे काहे नहीं! लेकिन समझदार लोग हमेशा की तरह अल्पमत में थे। गांधीजी कहते थे आजादी लेना तो पूरी लेना। वे बनिया आदमी थे। उस समय भी जानते थे कि दो लीटर की एक बोतल लेने में एक-एक लीटर की दो बोतलों से ज्यादा फ़ायदा होगा। लेकिन दूसरे लोग एक के साथ एक फ़्री के चक्कर में फ़ंस गये। हमने एक आजादी मांगी , दुकानदार हमको दो टिका के चला गया। उसमें भी एक जो फ़्री मिली थी उसके दो टुकड़े हो गये। अब हम कहते हैं ये आजादी
झूठी है। बताओ भला अब क्या हो सकता है। अब तो फ़ैशन का दौर भी आ गया। लोग कह भी देते हैं- फ़ैशन के दौर में गारण्टी की अपेक्षा न करें।-बुजुर्गवार हमको समझा रहे थे।
लोग आजादी को सोनपरी की छड़ी समझते हैं कि छड़ी घुमाते ही सब कुछ मिल जायेगा। धन दौलत, समृद्धि, खुशहाली, ताकत, हुनर, आधुनिकता। गरज यह कि दुनिया की हर चीज लोग चाहते हैं कि आजादी के बहाने मिल जाये।
आजादी के रूप में हम अलादीन का चिराग चाहते हैं जिसको घिसते ही हमें दुनिया की सारी नियामतें मिल जायें। आजादी लोगों के लिये एक ऐसा पैकेज हो गया है जिसमें हम बिना कुछ किये धरे सब कुछ पाना चाहते हैं। नहीं मिलता तो रोने लगते हैं- ये आजादी झूठी है।
लेकिन ये कैसे पता चलता है कि ये वाली आजादी झूठी है? क्या कोई टेस्टिंग लैब है जो टेस्ट करके सच्ची-झूठी आजादी की परख करती है?-हमने पूछा।
अभी तक इसका कोई टेस्ट नहीं है। ये तो अनुभव से जाना जाता है। जिसको जरा सा आजादी मिल जाती है वो उसका हचकउपयोग च उपभोग करता है और साथ ही सम्पुट गाता है- ये आजादी झूठी है। जैसे शादी-व्याह में लोग पानी पीकर प्लास्टिक का ग्लास जहां-तहां फ़ेंक देते हैं ऐसे ही लोग आजादी का उपयोग करके नारा उछालते रहते हैं- ये आजादी झूठी है। लोग आजादी को सोनपरी की छड़ी समझते हैं कि छड़ी घुमाते ही सब कुछ मिल जायेगा। धन दौलत, समृद्धि, खुशहाली, ताकत, हुनर, आधुनिकता। गरज यह कि दुनिया की हर चीज लोग चाहते हैं कि आजादी के बहाने मिल जाये। आजादी की कल्पना हमारे लिये ऐसे बटन के रूप में हो गयी है जिसको दबाते ही हमें सब कुछ हासिल हो जाये। आजादी के रूप में हम अलादीन का चिराग चाहते हैं जिसको घिसते ही हमें दुनिया की सारी नियामतें मिल जायें। आजादी लोगों के लिये एक ऐसा पैकेज हो गया है जिसमें हम बिना कुछ किये धरे सब कुछ पाना चाहते हैं। नहीं मिलता तो रोने लगते हैं- ये आजादी झूठी है। -बुजुर्गवार लोगों पर फिरण्ट हो गये। देखते-देखते आजादी को झूठा मानने वालों को कोसने लगे।
समस्यायें हर कहीं हैं।
उनको कोसनें से वे दूर नहीं होंगी। उनका सामना करो। अपनी नियति खुद बनो। अगर किसी को लगता है आजादी झूठी है तो आज ही के दिन इसे रिटायर कर दो। ले आओ नयी आजादी। गारण्टी कार्ड सहित। इससे शानदार, जानदार।
उनके इस रूप परिवर्तन पर आश्चर्यचकित से हुये। हमारे चेहरे पर आये हक्के-बक्के को स्निगधियाते हुये उन्होंने मुंह की सुपाड़ी ,जिसे वे च्युंगम की तरह चबा रहे थे, बाहर थूक दी। खंखारकर प्रवचनमोड में आये और कहते भये- ये रोने-धोने से कुछ नहीं होगा। जैसी आजादी मिली है उसी में निभाओ। जहां कमियां हैं दूर करो। अब जिसके साथ साठ साल निबाह लिये उसको झूठा कहने से क्या होगा। जैसा अभी तक निबाहे आगे भी निबाहो। जो कमियां हैं उनको दूर करो। आजादी को झूठा कहना तो बहाना है। सच तो यह है कि ऐसा कहने वाले सच में आगे नहीं बढ़ना चाहते। समस्यायें हर कहीं हैं। उनको कोसनें से वे दूर नहीं होंगी। उनका सामना करो। अपनी नियति खुद बनो। अगर किसी को लगता है आजादी झूठी है तो आज ही के दिन इसे रिटायर कर दो। ले आओ नयी आजादी। गारण्टी कार्ड सहित। इससे शानदार, जानदार। जिसे पी सको सर उठाकर। लेकिन मुझे पता है कि कोई कुछ करेगा , करना भी नहीं चाहता, नहीं सिवाय यह रोने के कि – ये आजादी झूठी है।
और न जाने क्या-क्या कहते रहे वे। हम तो वहां से चले आये। लेकिन पता चला बाद में वे यह मत पूछो कि देश तुम्हारे लिये क्या कर सकता है बल्कि यह देखो तुम देश के लिये क्या कर सकते हो जैसी बातें बार-बार कह रहे थे। बीच-बीच में वे कलाम साहब वाला सवाल दोहरा रहे थे-क्या आपके पास देश के लिये पन्द्रह मिनट हैं?
मुझे कुछ समझ में नहीं आया लेकिन मैंने यही सोचा कि आगे से जो भी ये कहेगा कि देश की आजादी झूठा है उसको उनके सामने खड़ा कर देंगे। सारा झूठ निकल जायेगा। क्या अभी भी आप कहोगे -ये आजादी झूठी है। :)
मेरी पसंद
आधे रोते हैं ,आधे हंसते हैं
दोनों अवन्ती में बसते हैं
कृपा है ,महाकाल की
आधे मानते हैं,आधा
होना उतना ही
सार्थक है,जितना पूरा होना,
आधों का दावा है,उतना ही
निरर्थक है पूरा
होना,जितना आधा होना
आधे निरुत्तर हैं,आधे बहसते हैं
दोनों अवन्ती में बसते हैं
कृपा है ,महाकाल की
आधे कहते हैं अवन्ती
उसी तरह आधी है
जिस तरह काशी,
आधे का कहना है
दोनों में रहते हैं
केवल प्रवासी
दोनों तर्कजाल में फंसते हैं
दोनों अवन्ती में बसते हैं
हंसते हैं
काशी के पण्डित अवन्ती के ज्ञान पर
अवन्ती के लोग काशी के अनुमान पर
कृपा है ,महाकाल की.
–श्रीकान्त वर्मा

10 responses to “ये आजादी झूठी है…”

  1. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    अवन्तिका वाले चिपळूणकर जी आते ही होंगे ई-मेल ले कर! :)
    आजादी नहीं मनाई तो क्या? मुंह पे स्माइलिन्ग फ़ेस रखिये और मस्त रहिये. :)
    हम तो सोचते थे आप हमार साथ दे कर आस्था चैनल छाप पोस्ट ठेलेन्गे. पर जो ठेला, वह बहूत (बहुत का सुपरलेटिव) ठेला. ये दो बोतल – एक बोतल का जुमला आपका कापीराइट तो नहीं है; हम इसे कहीं और इस्तेमेलियायेंगे अपना ओरेजिनल बता कर. :)
  2. अभय तिवारी
    धूमिल की सलाह है कि लोहे के स्वाद पर के मसले पर आधिकारिक राय लुहार की नहीं घोड़े की होनी चाहिये.. आप दुकानदार हो के ग्राहक की संतुष्टि पर सही वक्तव्य कैसे दे पाएंगे.. उसे तो ग्राहक ही बतायेगा.. न्याय की निष्पक्षता बारे में उच्च न्यायाधीश से अधिक आम जनता की राय पैमाना मानी जाय..इस बात का फ़ैसला तो मुसलमान ही करेंगे कि हमारा देश कितना धर्म निरपेक्ष है..हिन्दू गला फाड़ के कहते रहें कि वे सबसे धर्मनिरपेक्ष है.. उस से क्या होता है.. आप सुन्दर हैं या नहीं.. ये तो देखने वाला ही बताएगा.. आप के सोचने से क्या होता है.. जो लोग जंतर मंतर पर सालों से सुनवाई के लिए धरना दिए बैठे हैं.. वे कह सकते हैं कि हाँ.. आप इस देश में धरना देने कि लिए आज़ाद हैं अभी.. वे आप की भूख हड़ताल पर लाठी चार्ज करने के लिए आज़ाद हैं.. किसान आत्म हत्या करने के लिए आज़ाद है.. उद्योगपति बैंक का कर्ज़ा डकार कर दीवालिया हो जाने के लिए आज़ाद हैं.. मगर आप इतना हँस-हँस कर कह रहे हैं तो मान लेता हूँ कि आज़ादी सच्ची है..
  3. arun
    मान लिया जी नही लिख पये थे कोनो प्रोबलम नही ना आप तो अब चार ठौ लंबे लंबे लिख मारोगे तो मामला बराबर हो जायेगा..पर जो टिपियाये नही हो वो कोटा तो पूरा करदो पोस्ट के चार महीने बाद भी हम तो आपसे टिपियाने की आस लगाये ही रहते है..
  4. alok puranik
    आजादी ही आजादी मिल तो लें, टाइप मामला हो रहा है। अपनी आजादी चुन लें। शानधारम्।
  5. जीतू
    बहुत सही गुरु। जम के लिखे हो, लगता है पूरी छुट्टी निकाल दिए इसको लिखने मे। खैर लिखे सही हो। कुछ चीजे तो बहुत सही जुगाड़ लागे हो, एक के साथ एक फ्री, अंधेरे मे आजादी, गज़ब लिखे हो।
    रही बात झूठी/सच्ची आजादी की, तो भैया आजादी क्या होती है लोगो ने समझने मे ही ६० साल लगा दिया, इत्ते साल मे ना समझ सके तो आगे का समझेंगे। बस आजादी पर्व मना लेते है, झंडा उठा के।
  6. समीर लाल
    बहुत सुन्दर. यह सामायिक पोस्ट ही कहलाई.
    आपके द्वारा कहा गया:यह मत पूछो कि देश तुम्हारे लिये क्या कर सकता है बल्कि यह देखो तुम देश के लिये क्या कर सकते हो और हमारे पूर्व मित्र (पूर्व इसलिये कि अब वो राष्ट्रपति नहीं हैं) कलाम साहब के द्वारा कहा गया:क्या आपके पास देश के लिये पन्द्रह मिनट हैं? दिमाग में मथ रहा है.
    शाम तक कुछ आते हैं इस विषय पर-विचार उबलने लगे हैं. :)
    आज जरा फुरसतिया टाईप बात करने की फुरसत निकाली आपने-आभार एवं साधुवाद.
  7. Sanjeet Tripathi
    बहुत खूब! सही!!
    आपने मेरी 15अगस्त वाली पोस्ट नही पढ़ी शायद!!
  8. anamdasblogger
    अनूप जी
    बहुत दिनों से ढूँढ रहा था, श्रीकांत वर्मा की इस कविता को. धन्यवाद पढ़वा दिया आपने.
  9. Isht Deo Sankrityaayan
    लिखे तो बहुत बढिया, लेकिन एके बात है बहुत बड़ा हो गया. बधाई, खास तौर से श्रीकांत वर्मा वाली कविता के लिए.
  10. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] ये आजादी झूठी है… [...]

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