Monday, November 26, 2007

सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना

http://web.archive.org/web/20140419215723/http://hindini.com/fursatiya/archives/375

सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना

मां-बेटा
हमारी माताजी तो अक्सर कोई न कोई गीत गुनगुनाया करती हैं। बहुत दिन पहले उनके द्वारा गाई एक लोरी रिकार्ड की थी। आज उसे खोज रहा था लेकिन सोचा कि इसकी वीडिओ रिकार्डिंग क्यों न की जाये। बस फिर क्या, हमारे छोटे सुपुत्र के हाथ में मोबाइल था और धूप में बैठी कुछ काट रही अम्मा की रिकार्डिंग शुरू हो गयी। स्वामीजी को दिखाई तो बोले हिल रही है। लेकिन बच्चा रिकार्डिंग होने के नाते इत्ता तो चलेगा।
अम्मा ने अकसर अपने भैया के गीत गुननुनाती हैं। एक फ़ेफ़ड़ा काफ़ी समय पहले टी.बी. से खराब हो गया था। पिछले साल पैरालिसिस का हमला झेला। आजकल सांस के तकलीफ़ है। आंख का आपरेशन अभी पिछले महीन करवाया। हर दूसरे दिन कहती हैं -अनूप, अभै रोशनी सही नहीं है। हम कहते हैं -अइहै ,तुम तो परेशान हो बिना मतलब अम्मा! :)
हमारे घर में सबसे ज्यादा ‘अवधिंग्लिस’ अगर कोई बोलता है तो वो हमारा अम्मा हैं। टेंशन न लेव, प्रोग्रामै नहीं पता चलत आय, उई लेफ़्फ़्राइट कई के चले गये। :)
नयी चीजों को ग्रहण करने का उत्साह उनमें जबरदस्त है। हमारे घर में सबसे ज्यादा ‘अवधिंग्लिस’ अगर कोई बोलता है तो वो हमारा अम्मा हैं। टेंशन न लेव, प्रोग्रामै नहीं पता चलत आय, उई लेफ़्फ़्राइट कई के चले गये। :)
उन्होंने अपने बच्चों से एक-एक अक्षर मिलाकर पढ़ना सीखा। अब रोज अखबार और रामायण पढ़ती हैं और अनगिनत चौपाइयां उनको याद हैं। कहावतें, मुहावरे भी तमाम उनकी जवान पर रहते हैं।
कुछ दिन पहले उनकी एक तमन्ना पूरी हुयी कि उनका बैंक में अकाउन्ट हो। इसके लिये उन्होंने अपना दस्तखत करना सीखा। हम कहते हैं -अम्मा तुम बहुत चालू हॊ । हमसे पैसा लेके बैंक में डाल देती हो और कभी निकालती नहीं हो। कुछ दिन पहले तक नियमित हमसे बैंक में पैसा डलवाती रहीं। अब बैंक दूर हो जाने के कारण क्रम टूट सा गया है। गाहे-बगाहे हमें उलाहना भी देती हैं- तुमने बैंक में पैसा नहीं जमा करवाये। बहुत उधार चढ़ गया है जी हमारे ऊपर।
खासकर छोटा वाला उनका खासा दुलारा है। इस दुलार के चलते वह चटर-पटर खाता है, पटर-पटर बोलता है टुकुर-टुकुर टीवी देखता है और मौका मिलते ही सट्ट से खेलने निकल जाता है।
हमारे बच्चे , खासकर छोटा वाला उनका खासा दुलारा है। इस दुलार के चलते वह चटर-पटर खाता है, पटर-पटर बोलता है टुकुर-टुकुर टीवी देखता है और मौका मिलते ही सट्ट से खेलने निकल जाता है। हम अक्सर उलाहना भी देते हैं- अम्मा तुम्हारे लड़के तो जो बनने थे बन गये अच्छे खराब। अब हमारे लड़कों को काहे बरबाद करने पर तुली हो। हंसने और खींझने के अलावा उनके पास और कोई जबाब नहीं होता क्योंकि वे हमारे भी तो कुछ लगते हैं जबाब मान्य नहीं होता है। वो तो हैं ही। कभी-कभी ये जरूर चल जाता है -अच्छा, चलो तुम बहुत बकबास न करो। :)
कभी-कभी बहुत दिन हो जाते हैं कायदे से अम्मा से बतियाये हुए। चलते-चलते गुदगुदी कर देना, गाल नोच लेना और उठा के इधर-उधर बैठा देना चलता रहता है।
कभी-कभी बहुत दिन हो जाते हैं कायदे से अम्मा से बतियाये हुए। चलते-चलते गुदगुदी कर देना, गाल नोच लेना और उठा के इधर-उधर बैठा देना चलता रहता है। समय के साथ , तमाम बीमारियों के चलते, अपने अशक्त होने की बात उनको कष्ट कर लगती है। पहले वे हमारे यहां की सबसे एक्टिव सदस्य थीं। इधर उनको काम करने की सख्त मनाही है लेकिन जरा सा ठीक होते ही अपनी तानाशाही फिरंट में शुरू हो जाती हैं। आज ही बड़े धांसू लड्डू बनाये। सुबह से शाम तक लगी रहीं। धूप में बैठी वे बादाम छील रहीं थीं जब यह रिकार्डिंग की गयी।
एक दिन हम कोई सामान खोज रहे थे। मिला नहीं। अम्मा न जाने कहां से खोज लायीं। कहते हुये- हमका ऐसा-वैसा न समझो हम बड़े काम की चीज। :)
टीवी की शौकीन हैं। हर माह बच्चों की पढ़ाई के चलते यह तय होता है कि टीवी का ये आखिरी महीना है। इसके बाद टीवी बंद। लेकिन न जाने कितने आखिरी महीने आकर चले गये और टीवी दर्शन चालू आहे।
तमाम अभावों में पाल-पोस कर बड़ा किया हम भाइयों और एक अकेली बहन को अम्मा नें। वे रहती हमारे साथ हैं लेकिन ,सहज-स्वाभाविक मां के दिल की तरह ,चिन्ता के तार बाकी सबसे जुड़े रहते हैं। कन्हैयालाल बाजपेयी की कविता है न!

संबध सभी ने तोड़ लिये,
चिंता ने कभी नहीं तोड़े,
सब हाथ जोड़े कर चले गये,
पीड़ा ने हाथ नहीं जोड़े।
जित्ता हमारी तरफ़दारी करके हमारा पक्ष वे लेती हैं उससे ज्यादा चूना वे हमारी तमाम बचपन की चुगलियां कर-करके लगा देती हैं। अनूप ये नहीं करते थे, वो करते थे। ऐसे करते थे, वैसे नहीं कर पाते थे। एक बात का फ़ैसला अभी तक होना बाकी है। उनकी बहूरिया अभी तक यह मानने को राजी नहीं थी कि हम बचपन में लकड़ी के चूल्हें में घर का खाना बनाया करते थे। जब अम्मा गांव में रहतीं थी। लेकिन पिछले कुछ दिन से जब से हम बच्चों के लिये सबेरे का नास्ता बनाने लगे हैं कभी-कभी तो कुछ-कुछ मानने का मन बन गया है उनका भी। जीत आखिर सत्य की होनी है। :)
बातें न जाने कित्ती हैं। लेकिन फिर कभी। फिलहाल तो अभी आप ये हिलता हुआ वीडियो देखिये और लोरी सुनिये- सपनों की डोर पड़ी पलकों का पालना।

सूचना:दो साल पहले इसे रिकार्ड किया था। इस बीच जिस सेवा से यह रिकार्ड किया था वह कामर्शियल हो गयी और यह वीडियो दिखना बंद हो गया। तब आज 22.11.09 को फ़िर इसे रिकार्ड किया और यू ट्यूब पर अपलोड किया।
 https://www.youtube.com/watch?v=2lN5qRNaOMU

सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना


सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना

सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना
सो जा मेरी रानी मेरा कहना न टालना।
पलको की ओट तोहे निंदिया पुकारे,
देख रहे राह तेरी चन्दा सितारे,
भोली-भाली बतियों का जादू न डालना,
सो जा मेरी रानी मेरी कहना न टालना।
जल्दी जो सोये और जल्दी जो जागे,
जीवन की तौड़ पर सत्य रहे आगे,
प्यारे है बच्चा मोहे कहना जो माने
जुग-जुग जीवे झूले सोने का पालना।
सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना,
सो जा मेरी रानी मेरा कहना न टालना।
रचनाकार -अज्ञात

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47 responses to “सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना”

  1. नितिन व्यास
    “हमका ऐसा-वैसा न समझो हम बड़े काम की चीज” हर माँ ऐसी ही होती है, लोरी बहुत पसंद आई। अम्मा जी और आपको बहुत बहुत धन्यवाद। एक बार सुनने के बाद ही लोरी मेरी मुन्नी की माँ की जुबान पर चढ गई है। अम्माजी दीर्घायु हों यही शुभकामनायें
  2. neeraj rajput
    every mother is as charming and loving as your. gud to c that there are still some people who write somtheing or the other about their caring parents sepcially ma. v should and must care them and give our love and affection as they used to give–and still continue– when v were young and grew among that love and affection.
    keep it up.
    thanks for writing such words for mother.
  3. Indra
    bahut zabardast item hai
    Mauj aa gayee
  4. लावण्या
    -अच्छा, चलो तुम बहुत बकबास न करो। :-)
    ” अम्मा जी का किस्सा ” पढकर हमेँ इतनी प्रसन्नता हुई है कि क्या बतायेँ !!
    - आदरणीय हमारी अम्मा जी को पा लागीँ कहना — हमेशा वे आपकी इसी तरहा अच्छी खबर लेती रहे यही श्री कृष्न से मेरी प्रार्थना है -
    - और लोरी सुनकर असीम आनँद आया – सो, धन्यवाद !
    अगर अम्मजी के हाथ से बने लड्डू खाने का सौभाग्य मिले तब तो जीवन धन्य हो जायेगा :-)
    अनूप जी , आप सच मेँ बढिया – ब्लोगिये हो — लिखते रहियेगा -
    स स्नेह,
    -लावण्या
  5. RC Mishra
    काहे जिया डोले हो.. कहा नही जाये..।
    हमने ये भी देख लिया, आजी की याद आ गयी हमे तो :)
  6. Gyan Dutt Pandey
    मै‍ तो सोचता था कि मेरे ही घर में अम्मा अपने नाती पोतों को बिगाड़ने का पुनीत काम करती है‍, अवधी का चलता फ़िरता शब्दकोष हैं और अन्ग्रेजी की टांग तोड़ कर इतना व्यन्जनात्मक प्रयोग करती हैं कि बड़े-बड़े व्यंगकार पानी भरें।
    और यह सवेरे सवा चार बजे लिख रहा हूं तो अम्मा मेरे कमरे में आकर चाय और उलाहना दे कर गयी हैं – रतिया के नींद आवथ कि इंही में मूड़ी गड़ाये रहथ्य।
    ये अम्मा लोग ईश्वर का नायाब क्रीयेशन हैं।
    आपने अपनी अम्माजी के बारेमें लिख कर मेरे कई तार झन्कृत कर दिये। उन्हे मेरी सादर पैलगी।
  7. Sanjeet Tripathi
    मां किसी की भी हो भावों की छवि एक सी दिखती है!! बढ़िया लगी यह मां पर आधारित पोस्ट!! मां की छाया बनी रहे आप के सर पर!!
    फ़िलहाल रात भर से सोया नही!! और “सुबह-सुबह डिब्बे में सर लगा दिया” ( जैसा कि मेरी मां अभी मुझे कहकर गई)
    सो ये मस्त लोरी सुनकर शायद मुझे नींद आ जाए! अपन चले सोने!!
  8. उन्मुक्त
    अम्मा जी से कविता सुन कर अच्छा लगा। उनसे कुछ और भी सुनवाइये।
  9. आलोक पुराणिक
    अम्माजी को सादर चरण स्पर्श। अम्माओं की छांव सबके सिर पर बनी रहे, नहीं तो ये दुनिया झेलना भौत दुष्कर कार्य है।
  10. रवि
    सुंदर.
    अगली दफा रेकॉर्डिंग के समय फोन को (या कैमरे को)किसी स्थिर वस्तु जैसे कि कुर्सी की पुश्त पर टिका कर रखेंगे तो फिल्म हिलेगी नहीं.
  11. प्रियंकर
    मां से मिलना एक पुलक से भर गया . और उनकी गाई भावभरी लोरी के तो क्या कहने . अद्भुत .
    पर ऐसा क्यों होता है कि सभी मांएं मूल को खेंचकर रखती हैं और ब्याज को बड़ी ढील देकर रखती हैं .
    उनकी ‘अवधींग्लिश’ को सुनने और विवेचित करने का मन है . बच्चों को लगा दीजिए उनके मुंह से सुने ऐसे मुहावरे नोट करने के लिए जो सामान्यतः सुनने में नहीं आते,पुस्तकों में नहीं ही मिलते हैं . यह बड़ा काम होगा .
    ज्ञान जी ने बहुत सही लिखा है कि “ये अम्मा लोग ईश्वर का नायाब क्रीयेशन हैं।” कहते हैं ईश्वर हर जगह नहीं हो सकता इसलिए उसने मां को सिरजा .
    बेहतरीन पोस्ट . आभार !
  12. सागर  नाहर
    फोटो देख्नए मात्र से ही श्रद्धा उत्पन्न होती है… ज्ञान जी सही कहते हैं “ये अम्मा लोग ईश्वर का नायाब क्रिएशन हैं।”
    आपने तो नहीं बताया फिर भी हमने काहे जिया सुन लिया। बड़ा आश्चर्य हुआ। एक तो अम्माजी की सुरीली आवाज और दूसरे पूरा गाना बिना अटके गाना ( याद रखना)
    हमारी तरफ से भी चरण स्पर्श कहियेगा..
    बहुत ही बढ़िया लगी आज की पोस्ट. धन्यवाद
  13. kanchan
    माँ…..! एक ऐसा शब्द, एख ऐसा रिश्ता जो बरबस ही अपनी ओर खींच लेता है, माँ की लोरी सबको ही भाती है, और सबने ही ये रसास्वादन किया होता है, माँ जो वर्मन जी के गाये गीत..
    सुख की छाया तू दुःख के जंगल में… सी। तो देखिये ना बरबस ही हम जैसे नाकारा लोग भी आपके चिट्ठे की तरफ खिंचे चले आये माँ की लोरी की चाह में…..! इस उमर में भी कितनी मधुरता है माता जी की आवाज़ में और लयबद्धता भी! मेरा प्रणाम!
  14. balkishan
    माताजी कि बातें पढ़ कर अच्छा लगा. बहुत कुछ मेरी माँ से मिलती है. लोरी सुनी इतने अच्छे राग मे अम्मा ने गाया, बहुत अच्छा लगा. माताजी को सादर चरण स्पर्श।
  15. अभय तिवारी
    बहुत ही प्यारी लोरी.. सुन कर बदन शिथिल हो गया.. अम्मा जी को चरण स्पर्श पहुँचे..
  16. rajni bhargava
    इस उम्र में इतनी सधी और इतनी मधुर आवाज़,बहुत प्यारी लगी अम्मा की लोरी.हमारा सादर प्रणाम.
  17. सृजन शिल्पी
    अहा, आनंद आ गया। अम्मा जी को प्रणाम! कभी सुयोग बना तो उनके दर्शन करने आऊंगा।
  18. जीतू
    माताजी को हमारी तरफ़ से सादर चरण स्पर्श।

    सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना
    सो जा मेरी रानी मेरा कहना न टालना।

    माताजी की लोरी सुनकर ना जाने क्यों, मुझे अपनी माँ की याद आ गयी। बहुत सौभाग्यशाली होते है वो लोग जिन पर माँ का साया रहता है।
    एक सुन्दर लोरी के लिए हमारी तरफ़ से माताजी को बहुत बहुत धन्यवाद।
  19. हिंदी ब्लॉगर
    मन को छू गया आपका लेखन. अम्मा को हमारा सादर प्रणाम!
  20. अनूप भार्गव
    माता जी को प्रणाम
    बहुत मीठी और प्यारी सी लगी उन की लोरी ।
  21. अजित वडनेरकर
    अद्भुत पोस्ट है भाई। माताजी की अवधिंग्लिस तो यकीनन भाषा को समृद्ध ही कर रही है। और भी बहुत सी बातें दिल को छूने वाली हैं । इसे नहीं लिखते तो हम पता नहीं ऐसी रचना से वंचित ही रहते ।
  22. anita kumar
    अनूप जी मां जी से मिलवा कर आपने बड़े पुन्य का काम किया है, सच्ची मां चाहे कोई भी भाषा बोले वो भाषा होती है प्यार की, सारी दुनिया से लड़ मर कर जब शाम को थके हारे लौटते है और अम्मा अपने स्नेह के आंचल में छुपा लेती है तो कित्ती ठंडक मिलती है। मां के पास हर सवाल का जवाब होता है, हर समस्या का हल, सिर्फ़ अपने समझने की बात होती है। आप की माता जी की बातें जितनी मीठी लगीं उतनी ही उनकी आवाज, इतना सौम्य चेहरा है, एकदम ममता की मूरत्।
    आलोक जी सच कहते है मां का साया सर पर बना रहे तो जिन्दगी आसान हो जाती है। माता जी को मेरा सादर प्रणाम्।
  23. जगदीश भाटिया
    आज अगर ऑनलाइन न आया होता तो इस खूबसूरत पोस्ट को पढ़ने से रह जाता ।
    पढ़ कर अपनी भी बहुत सी यादें ताजा हो गयीं।
    शायद सारी मांये ऐसी ही होती हैं। इनका होना ही हमें शक्तिशाली बनाता है, जीना सिखाता है।
    माता जी को प्रणाम।
  24. Isht Deo Sankrityaayan
    भाई अम्मा के हमरो पैलागी कह्यौ.
  25. बोधिसत्व
    हमने कई बार सुना और गदगद होते रहे……माँ को प्रणाम कहें। आप बड़ भागी हैं….मां का आशीष हमें भी मिले…..।ऐसी प्यारी पोस्ट के लिए बहुत सारी बधाई। धन्यवाद
  26. आभा
    बहुत ही प्यारा लिखा है आपने……अपनी बेटी भानी को सुना रही हूँ……टेक की पंक्ति को थोड़ा बदल कर बस रानी को भानी करके…..।माँ को प्रणाम कहें……
  27. Mrigank
    Hi Dear nice photo asusual very good n literary post, keep it up
  28. मीनाक्षी
    आपकी माता जी को देख कर ..उनकी मधुर आवाज़ सुनकर माँ पर बने सभी गीत याद आने लगे….. और साथ ही साथ अपनी माँ भी याद आने लगी…
  29. सुदीप्
    अनुप भाई आपकी पोस्टिंग दसियों बार पढ्ने के बाद भी जब जी नहीं भरा तो श्रीमती जी को पढ़ाया । तब भी मन नहीं भरा तो फिर यार दोस्तों को लिंक भेजी। फिर लगा कि इतना भी क्या असकतियाना । इतना मार्मिक और रोचक चिठ्ठा लिखनेवाले के लिये एक टिप्प्णी तो छोड़ ही सकता हूँ । चोरी छुपे आपके चिठ्ठे पढता रहा हूँ और पढ़ने के बाद बिना टिप्प्णी छोड़े चोरों की तरह दबे पाँव निकलता भी रहा हूँ ।
    लेकिन जिक्र जब माँ को हो तो चोरों की तरह निकलना मुश्किल होता है । नतीजा आपके सामने है ।
    आप अपनी तारीफ से घबराते हैं लेकिन अब जब लिख ही रहा हूँ तो ये भी कह दूँ कि हिन्दी ब्लाग लेखन मे आपका वही स्थान है जो कि हिन्दी के शुरूआती दौर मे हिन्दी को एक मान्य रुप मे लाने मे भारतेन्दु जी का या उसके बाद हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का रहा है।
    चार साल कानपुर मे रहा। 12 सालों बाद आज जब कनपुरिया पुट लिये जो आपकी हिन्दी पढता हूँ तो कल्याण्पुर से परेड / बड़ा चौराहा तक कि बस और विक्रम मे किये ठेलम-ठाल दिन याद आते हैं । हम तो कहिते हैं कि अनुप भाई बस अईसे ही लिखते रहो ।
    आपके उपर एक छोटा सा पीस लिखने की इच्छा बहुत दिनो से है अपने सिंगापुर मे बसे बिहारी -झारखण्डी हिन्दी प्रेमियों के लिये । आप इजाजत दें तो कुछ बात बने ।
  30. Sanjeev Roy @ Singapore
    Anoop Bhai,
    Aapki likhawat to dil to chhooo gayi..Sudeep ne hamein yeh link bheja aur kaha ki ise zaroor padhna.
    Padha to gala bilkul bhar aaya… Aise hee likhte rahiye aur haemin apne watan (aur usse zaroori apni bhasha) ki yaad dilate rahiye
    Bye
    Sanjeev
  31. फुरसतिया » मुन्नी पोस्ट के बहाने फ़ुरसतिया पोस्ट
    [...] गिरिराज जी का मैंने एक लम्बा इंटरव्यू लिया था। उनसे बातचीत करना भी एक मजेदार अनुभव है। कुछ दिन पहले की एक टिप्पणी जो सुदीप ने सिंगापुर से की थी उसे पढ़कर जित्ता अच्छा लगा उससे ज्यादा शर्माजी होते रहे हम। सुदीप कानपुर आई.आई.टी. में पढ़े हैं शायद। उन्होंने लिखा- अनुप भाई आपकी पोस्टिंग दसियों बार पढ्ने के बाद भी जब जी नहीं भरा तो श्रीमती जी को पढ़ाया । तब भी मन नहीं भरा तो फिर यार दोस्तों को लिंक भेजी। फिर लगा कि इतना भी क्या असकतियाना । इतना मार्मिक और रोचक चिठ्ठा लिखनेवाले के लिये एक टिप्प्णी तो छोड़ ही सकता हूँ । चोरी छुपे आपके चिठ्ठे पढता रहा हूँ और पढ़ने के बाद बिना टिप्प्णी छोड़े चोरों की तरह दबे पाँव निकलता भी रहा हूँ । लेकिन जिक्र जब माँ को हो तो चोरों की तरह निकलना मुश्किल होता है । नतीजा आपके सामने है । आप अपनी तारीफ से घबराते हैं लेकिन अब जब लिख ही रहा हूँ तो ये भी कह दूँ कि हिन्दी ब्लाग लेखन मे आपका वही स्थान है जो कि हिन्दी के शुरूआती दौर मे हिन्दी को एक मान्य रुप मे लाने मे भारतेन्दु जी का या उसके बाद हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का रहा है। चार साल कानपुर मे रहा। 12 सालों बाद आज जब कनपुरिया पुट लिये जो आपकी हिन्दी पढता हूँ तो कल्याण्पुर से परेड / बड़ा चौराहा तक कि बस और विक्रम मे किये ठेलम-ठाल दिन याद आते हैं । हम तो कहिते हैं कि अनुप भाई बस अईसे ही लिखते रहो । आपके उपर एक छोटा सा पीस लिखने की इच्छा बहुत दिनो से है अपने सिंगापुर मे बसे बिहारी -झारखण्डी हिन्दी प्रेमियों के लिये । आप इजाजत दें तो कुछ बात बने । [...]
  32. abha
    यह तो नित नूतन पोस्ट है….मां को प्रणाम
  33. वन्दना अवस्थी दुबे
    अनूप जी बहुत अच्छा किया जो मां के बारे में लिखा. मां होती ही ऐसी है, सबकी चिन्ता, सबके काम करने की चाह से भरी-पूरी. चेहरा देख के ही बता देने वाली कि कब भूख लगी है या कब बच्चे को तकलीफ़ है. मैं अपनी मां से हमेशा कहा करती थी कि तुम्हें कैसे पता चल जाता है बिना कहे? आज जब मां की पदवी पर हूं तो मैं भी बिटिया के मन की बात जान जाती हूं. हर मां एक जैसी होती है…..मां ने मेवे के लड्डू बनाये हैं, ज़्यादा न खा जाइयेगा…….और लोरी?? क्या कहूं? बेहतर है केवल सुनूं.
  34. anitakumar
    इतनी मधुरता और लय है आवाज में …।मां जी की आवाज सुन कर आत्मविभोर हो गये। भगवान करे उनकी सेहद अच्छी रहे और आने वाले कई सालों तक वो आप पर यूँ ही स्नेह लुटाती रहें।
  35. विवेक सिंह
    अम्मा जी की आवाज की कोमलता से लव हो गया मुझे ।
  36. jyotisingh
    अम्मा का गीत बहुत मीठा है ,मैं क्या कहूं आपके बारे में जितना पढ़ती हूँ और आपके विचारो को देखती हूँ उतना ही नतमस्तक हो जाती हूँ ,सम्मान के सिवा और देने को कुछ नहीं सूझता . आज मेरी माँ की कही बात याद आ रही है जो अक्सर दोहराया करती रही -आदमी अपनी आदत से ही आदर पाता है ,और कितनी सार्थक है ये बात .
  37. मेरी अम्मा बुनती थी सपने : चिट्ठा चर्चा
    [...] पहले लिखी अपनी मां के बारे में लिखी यह पोस्ट याद आई: कभी-कभी बहुत दिन हो जाते हैं [...]
  38. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] सपनो की डोर पड़ी पलकों का पालना [...]
  39. dhirendra pandey
    अम्मा जी को शत शत प्रणाम जो उन्होने हम सभी को आप जैसा मित्र प्रदान किया ,ईश्वर से कामना है कि हर जन्म में वो ही आप की माता बने और आप उनके सुयोग्य पुत्र | सुंदर सरल मन को छू लेने वाली पोस्ट |
  40. G C Agnihotri
    जू अघाय गा, बहुतै बढ़िया.
  41. neeraj tripathi
    बहुत बढ़िया… मजा आ गया .
    कन्हैया लाल जी की कविता के तो क्या कहने ..
    संबध सभी ने तोड़ लिये,
    चिंता ने कभी नहीं तोड़े,
    सब हाथ जोड़े कर चले गये,
    पीड़ा ने हाथ नहीं जोड़े।
  42. राजकिशोर
    अम्मा को प्रणाम…जितने प्यारे शब्द, उतनी ही प्रांजल आवाज…नमन…
  43. Anonymous
    कितना अपनापन जैसे अपनी और अपनी अम्मा की चुहलबाजी हो … सच है कि सब माएं एक सी होती है ..नायाब ….नमन गुरुवर और माँ दोनों को ….
  44. राजेंद्र अवस्थी
    कितना अपनापन जैसे अपनी और अपनी अम्मा की चुहलबाजी हो … सच है कि सब माएं एक सी होती है ..नायाब ….नमन गुरुवर और माँ दोनों को ….
  45. Rekha Srivastava
    भाई वाह ! मदर्स दे में अम्मा की लोरी सुना कर धन्य कर दिया . ये सौभाग्य सभी को नहीं मिलता है.
    Rekha Srivastava की हालिया प्रविष्टी..मुलाकात – सुधा भार्गव जी से!
  46. Dharni
    अम्माजी को चरण स्पर्श! बहुत बढ़िया पोस्ट!
  47. दिनेशराय द्विवेदी
    माता जी ने बहुत सुंदर गाया है। अब समझ आया कि आप में इतना रस कैसे है?
    दिनेशराय द्विवेदी की हालिया प्रविष्टी..राज्य सेवक के लिए एक पत्नी के रहते दूसरा विवाह करना दुराचरण है जिस के लिए सेवाच्युति का दंड दिया जा सकता है