Friday, November 23, 2007

ब्लाग नौटंकी उर्फ़ चिठेरी-चिठेरा संवाद

http://web.archive.org/web/20140419213925/http://hindini.com/fursatiya/archives/373

ब्लाग नौटंकी उर्फ़ चिठेरी-चिठेरा संवाद


टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा
हिंदी दैनिक हिन्दुस्तान के इतवार का एक आकर्षण होता है उर्मिल कुमार थपलियाल की लिखी हुयी सप्ताह की नौटंकी। पिछले इतवार के कुछ अंश देखे जायें-


नटी:आधा बीत गया नवंबर।
नट: मुआ मुकद्दर। मरा सिकन्दर।
नटी:सत्ता बन गई मोटा अजगर।
नट: क्या कहन। भई क्या कहने।
नटी: कपटी पहने संत का चोगा।
नट: सारे भोगी करते योगा।
नटी: थाने में है टुन्न दरोगा।
नट:क्या कहने। भई क्या कहने।
(नक्कारा बुश के आगे खड़े मुशर्रफ़ की तरह थरथरा के बजता है) -उर्मिल कुमार थपलियाल

इसी नट-नटी की तर्ज पर हमने सोचा कि एकाध बार ब्लाग-नौटंकी लिखी जाये तो कैसा रहे! :) नट-नटी की तर्ज पर ब्लागर-ब्लागराइन तो जमेगा नहीं। ज्ञानजी ने चिठेरा बताया था एक दिन ब्लागर को। सो चिठेरा-चिठेरी सम्वाद लिखे जायें। सम्वाद का मसौदा पेशे-खिदमत है:-

ब्लाग नौटंकी उर्फ़ चिठेरी-चिठेरा संवाद

चिठेरा: अरी चिठेरी, बड़ी कम उमर लग रही है आज तो! क्या ज्ञानजी के यहां से हर्र की गोली खा के आ रही है!
चिठेरी: तू भी तो नये नारद की टिपटाप लग रहा है। स्लिम-ट्रिम। धड़ाधड़ महाराज की तरह स्मार्टनेस बिखराये जा रही है।
चिठेरा: तू कौन ब्लागवाणी से कम इतरा रही है। न जाने कित्ते तेरे पे फ़िदा है। किसी नये-नवेले ब्लाग की तरह खूबसूरत लग रही है। :)
चिठेरी: मैं खूबसूरत लग रही हूं! सच!
चिठेरा:मुच!
चिठेरी: हाय चिठेरे, तू कित्ता रईस दिल है। मेरे लिये इत्ता बड़ा झूठ बोल गया। मैं तो तुझे एकदम निठल्ला समझती थी। लेकिन तू तो दिल का समीरलाल निकला। किसी को निराश नहीं करता! :)
चिठेरा: तू भी मेरी तारीफ़ कर न! कौन रोकता है! कौन टोकता है! कर न! :)
चिठेरी: नई यार, मुझसे झूठ नई बोला जाता। :)
चिठेरा: चल छोड़ अच्छा ला थोड़ा पुराणिक मसाला खिला।
चिठेरी:अरे पुराणिक मसाला वाला भग गया हरिद्वार। दुकान बन्द करके। तीन दिन बाद आयेगा।
चिठेरा: क्यों भला उसकी अभी तीर्थ करने की उमर है? अभी तो जवान है!
चिठेरी:अरे वो बड़ा लुच्चा है। स्मार्ट लुच्चा। जो अगड़म-बगड़म हरकतें करता है उनको टाइम-टाइम पे हरिद्वार में धो आता है। ताकी नयी हरकते कर सके।
चिठेरा: और वो समीर पुड़ियाधर गयी?
चिठेरी: वो जबलपुर में भेड़ाघाट के किनारे गयी है। रेलवे के फ़ाटक पर किसी गोरी-छोरी को कनखियों से निहार रहा होगा।
चिठेरा: तुझको नहीं निहारेगा। :)
चिठेरी:अरे टिप्पणीझौंसे! तेरी तो ऐसी-तैसी। न जाने कैसी-कैसी ! मैं तुझे क्या ऐसी-वैसी, जैसी-तैसी लगती हूं। :(
चिठेरा: अरे, स्माइली लगा तो दी फ़िर काहे अकड़ रही है। ज्यादा करेगी तो तेरा बहिष्कार कर दूंगा।
चिठेरी:तू मेरा बहिष्कार करेगा! करके तो देख। बड़ा प्रमेन्द भैया की तरह टीन-टप्पर बन रहा है। करके तो देख। इतने समझौता करवाने वाले आ जायेंगे कि ब्लाग-सड़क जाम हो जायेगी। पोस्ट वर्षा होने लगेगी। सब तरफ़ यू एन ऒ छाप टिप्पणियां दिखेंगी।
चिठेरा: अरे, तू तो सच में बुरा मान गयी। ये ले एक स्माइली और ले ले। खुश रह। नाराज मत हो खून जलता है। शकल ऐसे ही माशाअल्लाह है। और भी बेनजीर भुट्टो नुमा हो जायेगी। मान जा! :) :)
चिठेरी: चल मान गई। तू भी क्या याद करेगा किसी रईस चिठेरी से पाला पड़ा है। लेकिन तो एक बात गांठ बांध ले अकल के दुश्मन कि मुझे अपनी तारीफ़ के सिवाय और कोई मजाक नहीं पसन्द। अबकी मजाक किया तो कोसने लगूंगी कि कोई लड़की तुम्हें अचानक देखने आ जाये और तुझसे चाय बनवा के पी जाये। जैसा घुघुती दीदी ने मसिजीवी की तरह शरातत के कीड़े कुलबुलाते रहते हैं। हमेशा पंगेबाज बनने की कोशिश करता है। जबकि तू जानता है तू कब्भी उत्ता पंगा नहीं ले सकता। अब तो वो भी बेचारे नहीं लेते। हाऊ सैड! हाऊ बैड।
चिठेरा: तुम भी एकदम्मै सेन्सेक्स की तरह अनसर्टेन हो। कहीं का कहीं बतरस-पतंग उड़ाने लगती हो। कित्ती मनभावन अदा है। :)
चिठेरी: तुझे तो ठीक से तारीफ़ भी नहीं करनी आते निगोड़े। एक हफ़्ते का क्रैश कोर्स कर डाल जबलपुर जाके समीरलाल के यहां। कुछ सीख। जिन्दगी सुधर जायेगी। वर्ना बना फ़ुरसतिया बरबाद होता रहेगा।
चिठेरा:अब इस उमर क्या सीखेंगे?
चिठेरी:अरे अभी तेरी उमर ही क्या हुयी है। जब ज्ञानजी जैसे अनुभवी लोग अपने अनुभव-कोठार में नयी चीजे समा ।रहे हैं । पुलकोट के साथ फोटो लगा रहे हैं। तो तू क्यों नईं कर सकता जी! चल जा कर। टाइम मत खोटी कर।
चिठेरा: तुम कित्ती अच्छी हो। मेरा कित्ता भला सोचती हो। भगवान करे तेरे ब्लाग पर पाठकों की भीड़ ऐसे ही जमी रहे जैसे राहत-योजना का पैसा बांटने वाले केन्द्र में लगी रहती है। तेरे ब्लाग पर टिप्पणियों की ऐसे बौछार हो जैसे अमेरिका इराक में बम बरसाता है। तेरे दुश्मन सद्दाम की तरह मारे जायें। :)
चिठेरी: चल, चल। बहुत हो गयी मस्केबाजी। चिठेरी खुश हुई। जा आफिस भाग। दफ़्तर तेरा इंतजार कर रहा है।
चिठेरा: चला -चला लेकिन ऐसे हड़बड़ाते हुये मिलना भी कोई मिलना हुआ भला। :)
[ब्लाग नक्कारा आशीष की शादी पर बजने वाले पूर्वाभ्यास की तरह बजता है] :)

आज का पाडकास्ट

होली का त्योहार देवर-भाभी के लिये खास तौर पर याद किया जाता है.देवर भाभी का एक लोगगीत मुझे बहुत पसंद है. प्रख्यात गीतकार लवकुश दीक्षित का लिखा/गाया अवधी भाषा का यह गीत भाभी द्वारा देवर की बदमासियों ,शरारतों के जिक्र से शुरु होकर खतम होता है जहां भाभी बताती है कि देवर पुत्र के समान होता है.अपनी शैतानियां समाप्त कर दो। मैं देवरानी को बुलवा लूंगी ताकि तुम्हारी विरह की आग समाप्त हो जायेगी| यह भी कहती है कि मैं होली खेलूंगी जैसे भाई के साथ सावन मनाया जाता है। जो साथी लोग अवधी नहीं जानते उनकी सुविधा के लिये भावानुवाद दिया है।

निहुरे-निहुरे कैसे बहारौं अंगनवा,
कैसे बहारौं अंगनवा,
टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा
टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा।

भारी अंगनवा न बइठे ते सपरै,
न बइठे ते सपरै,
निहुरौं तो बइरी अंचरवा न संभरै,
लहरि-लहरि लहरै -उभारै पवनवा,
टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा।
छैला देवरु आधी रतिया ते जागै,
आधी रतिया ते जागै,
चढ़ि बइठै देहरी शरम नहिं लागै,
गुजुरु-गुजुरु नठिया नचावै नयनवा,
टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा।
गंगा नहाय गयीं सासु ननदिया,
हो सासु ननदिया,
घर मा न कोई मोरे-सैंया विदेसवा,
धुकुरु-पुकुरु करेजवा मां कांपै परनवा,
टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा।
रतिया बितायउं बन्द कइ-कइ कोठरिया,
बन्द कइ-कइ कोठरिया,
उमस भरी कइसे बीतै दोपहरिया,
निचुरि-निचुरि निचुरै बदनवा पसीनवा,
टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा।
लहुरे देवरवा परऊं तोरि पइयां,
परऊं तोरि पइयां,
मोरे तनमन मां बसै तोरे भइया,
संवरि-संवरि टूटै न मोरे सपनवां,
टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा।
माना कि मइके मां मोरि देवरनिया,
मोरि देवरनिया,
बहुतै जड़ावै बिरह की अगिनिया,
आवैं तोरे भइया मंगइहौं गवनवां,
टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा।
तोरे संग देउरा मनइहौं फगुनवा,
मनइहौं फगुनवा,
जइसै वीरनवा मनावैं सवनवां,
भौजी तोरी मइया तू मोरो ललनवा,
टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा|

लवकुश दीक्षित
भावार्थ:
आंगन में झुके-झुके कैसे झाड़ू लगाऊं?बदमास देवर (पति का छोटा भाई )टकटकी लगाकर मुझे देख रहा है। आंगन बड़ा है। बैठकर सफाई करना मुश्किल है। अगर झुकती हूं तो मुआ आंचल सरकता है। हवा आंचल को बार-बार लहरा कर उभार देती है। शरारती देवर आधी रात से ही जाग जाता है। बेशर्म होकर देहरी पर बैठकर आंखें नचाता ताकता रहता है। सास-नंद गंगा स्नान के लिये गये हैं। पति विदेश गये है। घर में कोई नहीं है मेरे कलेजे में धुक-पुक मची है। डर लग रहा है। रात तो मैने कोठरी बंद करके बिता ली। अब दोपहर में बहुत उमस है। आंचल से पसीना छूट रहा है।
मेरे प्यारे देवर,मैं तेरे पांव पकड़ती हूं। मेरे तन-मन में तुम्हारे भइया बसे हैं। मैं केवल उन्हींके सपने देखती हूं। मैं जानती हूं मेरी देवरानी(देवर की पत्नी)मायके में है। विरह की आग तुमको जला रही होगी। पर जब तुम्हारे भइया आयेंगे तो मैं उसका गौना करवा कर उसको बुलवा लूंगी। मैं तुम्हारे साथ होली खेलूंगी जैसे भाइयों के साथ सावन का त्योहार मनाया जाता है। भाभी मां के समान होती है इसलिये तुम मेरे पुत्र के समान हो। :)

8 responses to “ब्लाग नौटंकी उर्फ़ चिठेरी-चिठेरा संवाद”

  1. anita kumar
    अनूप जी बहुत ही बड़िया आइडिया लाए आप, वैसे दूसरे ब्लोग भाइयों की शिकायत जायज है जी लपेटे तो सब को लपेटें , अब एक सीरीयल ही बना डालिए, हर इतवार का प्रोग्राम्… गाना भी बड़िया है जी
  2. प्रभात टन्डन
    खूब लपेटा आपने सब को ! अब जल्दी से उर्मिल थपिलियाल जी को ब्लागर समुदाय का हिस्सा बनवाने मे अपनी पहल कीजिये । :)
  3. प्रमेन्‍द्र
    अच्‍छा संवाद था, पढ़कर मजा आया, :)
    मैने भी आज ही देखा है।
  4. फुरसतिया » काहे जिया डोले हो कहा नहीं जाये
    [...] ऐसे ही देखा कि मैंने अपने ब्लाग पर जो लवकुश दीक्षित का गीत निहुरे-निहुरे कैसे बहारौं अंगनवा पोस्ट किया वह न जाने किन-किन हस्तियों ने गाया है। लवकुश जी को पता भी न होगा और न जाने किन-किन लोगों ने इसे गाकर मंच लूट लिया होगा। [...]
  5. shambhu nath
    दोहाः मेरे पति की मात हे सदा करव कल्याण..
    तुम्हरी सेवा में न कमी रहू हरदम रखूं ध्यान//
    जय जय जय सासू महरानी हरदम बोलो मीठी वाणी.
    तुम्हरी हरदम करवय सेवा फल पकवान खिलाउब मेवा//
    हम पर ज्यादा करो न रोष हम तुमका देवय न दोष.
    तुम्हरी बेटी जैसी लागी तुम्हारी सेवा म हम जागी//
    रूखा-सूखा मिल के खाबय करय सिकायत कहू न जावय
    पति देव खुश रहे हमेशा उनके तन न रहे क्लेशा.
    इतना वादा कय लिया माई फिर केथऊ कय चिंता नाही//
    जीवन अपना चम-चम चमके फूल हमरे आंगन म गमके.
    जैसी करनी वैसी भरनी तुम जानत हो मेरी जननी//
    संस्कार कय रूप अनोखा कभौ न होय हमसे धोखा.
    हसी खुशी जिनगी बीत जाये सुख दुख तो हरदम आये//
    दोहाः रोग दोष न लगे ई तन मा.जाता रहे कलेश
    सासू मॉ की सेवा जो करे खुशी रहे महेश..
  6. काहे जिया डोले हो कहा नहीं जाये
    [...] अपने ब्लाग पर जो लवकुश दीक्षित का गीत निहुरे-निहुरे कैसे बहारौं अंगनवा पोस्ट किया वह न जाने किन-किन [...]
  7. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] [...]

No comments:

Post a Comment