Friday, August 22, 2008

शिवजी की चिट्ठी का जबाब

http://web.archive.org/web/20140331060508/http://hindini.com/fursatiya/archives/506

25 responses to “शिवजी की चिट्ठी का जबाब”

  1. संजय बेंगाणी
    पहले तो प्रणाम स्वीकारें, एकदम झुक कर कर रहें है. :)
    और आपने जिस तरह “अ” लिखा है, गुजरा जमाना याद आ गया, पुरानी किताबों में ही अब देखने को मिलता है, जब हमने अक्षरों को घोटना शुरू किया था “अ” बदल चुका था. बादमें “झ” बदला था.
    चिट्ठी हाथ से लिखी फिर भी लम्बी लिखी :)
    डाक से भिजवाई होगी, मगर अंदर की बात बाहर आ गई, सार्वजनिक हो गई :)
  2. Dr .Anurag
    वाकई कानपुर वाले इतनी “फुरसत” में है जो बस एक दूसरे को चिट्ठी भिजवा रहे है ….भाई अब चिट्ठियों का जमाना नही है…..sms करो ………
  3. अजित वडनेरकर
    एकबारगी पढ़ गए हैं। प्रत्यक्षाजी के आभूषण का उल्लेख करने से
    मुमकिन है वे नाराज़ हो जाएं….:)
  4. प्रियंकर
    इस आदमी के, जिसे फुरसतिया कहते हैं, पैताने बैठ कर ‘टाइम मैनेजमेंट’ का फ़ंडा सीखना होगा . कितने मोर्चों पर सक्रिय रहता है . लोग व्यस्तता के बहाने फोन करने तक का समय नहीं निकालते यह आदमी लंबी-लंबी चिट्ठियां लिखने की फुरसत निकाल लेता है. वह भी हाथ से . जाहिर है इस इस नेट-सैवी टैक्नोलॉजिस्ट के भीतर एक पारम्परिक मन है जो हमेशा हरा रहता है . हरा वह रह सकता है जिसकी जड़ें हों . उत्तर भारत के ग्रामीण-कस्बाई इलाके का एक खिलंदड़ा बच्चा अभी भी इस आदमी के भीतर घुटन्ना या पटरे का पायजामा पहने भाग-दौड़ करता दिखता है जिसे बिना किसी को टोहनियाए,बिना मौज लिए खाना हजम नहीं होता . हालांकि इधर अदरक जैसे स्वभाव वाले स्वामी प्रमोदानंद राउरकेलवी के तीसरे नेत्र की रेडिएशन ने मौजिया सम्प्रदाय के इस गद्दी-गुरु को थोड़ा प्रभावित किया है, पर मौज-मस्ती इस आदमी के लिए उतनी ही जरूरी है जितना मछली के लिए पानी . सो अन्ततः पानी बना रहेगा जनता ऐसा जानती और मानती है . भद्रता के स्थायी आसन पर बैठे ब्लॉग में पिछली पीढी के प्रतिनिधि ज्ञान जी से पंगा तो कोई भी घुड़सवार-सहसवार ‘वादी’ ले सकता है पर उन जैसे गम्भीर आदमी से चुहलबाजी और मौज की कारस्तानी सिर्फ़ फ़ुरसतिया के बस की बात है .
    हां ! यह ज़रूर है कि आर्बिट्रेटर किस्म की भूमिका निभाने में सिद्धहस्त यह आदमी लफ़ड़ा-झगड़ा होने पर थोड़ा अन्योक्तिपरक और दार्शनिक किस्म के मोड में चला जाता है और डायरेक्ट कन्फ़्रंटेशन या हेड-ऑन कलिज़न से बचना चाहता है . पर हम सबका कोई न कोई डिफ़ेंस मैकेनिज़्म होता है . यह उनका है . इन्हें सिर्फ़ कुछ समय के लिए ही नारद के बैन-प्रकरण में भाई अफ़लातून जी से जिरह करते समय यह मुद्रा त्यागते देखा गया था .
    हम जिस समय में रह रहे हैं वहां चिट्ठी लिखने वाला और चिट्ठी पाने वाला दोनों ‘रेयर’ किस्म के भाग्यशाली जीव हैं . सो भाग्यशालियों के भाग्य का सितारा ऐसे ही चमकता रहे . और क्या कहूं इसके सिवाय कि झाड़े रहो कलट्टरगंज .
    फ़ाइनली,इस आदमी के समय-प्रबंधन का राज क्या है ? इसकी जांच होनी चाहिए और परिणाम स्कूली स्तर पर पाठ्यक्रम का हिस्सा होने चाहिए . यह आदमी सहस्रबाहु है क्या ?
  5. कुश
    अब तो लगता आयी एक नया ब्लॉग बनाना पड़ेगा.. “चिट्ठी चर्चा” आजकल चिट्ठिया कुछ ज़्यादा ही हो रही है.. डाक घर वाले भी ओवर टाइम कर रहे है.
  6. डा.अमर कुमार ' पुनि पुनि फिरे, भाव और ही और '
    हम चिट्ठाचर्चा अगोरे बैठे थे..
    बार बार निहार कर आतमहत्या वाली हवन्नक शीर्षक देख देख लौट रहे थे ।
    पंडिताइन अलग चिल्लाय रहीं हैं, सो अलग ।
    कह रही हैं..कहाँ अटके पड़े हो ?
    अरे कुछ लिखो-ऊखो तो कोई बात है..
    जहाँ जाते हो.. बुरी संगत पकड़ लेते हो !

    अरे.. अरे देखो.. माउस ही उठा कर ले गयीं..
    ससुरा दुमकटा है, तभी तो !
    दुमकटे कब किस पाले में चले जायें, भरोसा नहीं यारों !
    आपलोग.. और समीर भाई खास तौर पर आप अब दुमकटे माउस से निज़ात पाओ,
    मन का लिखना पढ़ना नहीं हो पाता ,
    हुहः हा हा हा …… :-)
    ई.. ‘ हा हा हा ‘ स्वामी-संहिता की मज़बूरी है, दोस्त !
  7. सुदामा
    हमे भी अपने पास बुला ले जी , बस अब तो हमारी भी एक ही साध रह गई है कि आप जैसे गुरुओ के पास सरकारी नौकरी मिल जाये , कसम से दिन भर आपसे लंबी नही तो छोटी चिट्िया तो नही ना लिखेगे . वैसे भी सरकारी नौकरी मे दिन बिताने को कोई तो काम चाहिये जी. नही तो देश का स्त्यानाश और ज्यादा हो जायेगा ( अगर सरकारी काम करेगे तो ):)
  8. Shiv Kumar Mishra
    पोस्टमैन धमका कर गया है कि वह अब चिट्ठी की डिलीवरी नहीं करेगा. रास्ते में भी फेंक देगा. यही कारण है कि मैन अब चिट्ठी नहीं लिखूंगा…..केवल टिप्पणी से काम चलाईये…
    और ये रही हमारी टिप्पणी.
    आज पता चला कि हिन्दी और अंग्रेजी की डिक्शनरी में ऐसा कोई शब्द नहीं है, जिसकी कानपुरी व्याख्या न हुई हो. परम से लेकर प्रिय, भाई से लेकर जी और जेंटलमैन से लेकर गुडमैन, कौनौ शबद छोड़ा नाहीं है कानपुर वालों ने. हमारे ऊपर ऐसे-ऐसे शब्दों की कानपुरी मार पड़ी और हम बहुत कोशिश करके खाली प्रणाम नामक मिसाइल छोड़ पाये. ऊ भी कोई काम नहीं आया. एंटी मिसाइल वार ऐसा कि प्रणाम जमीन पर.
    वैसे ई प्रणाम शब्द का इस्तेमाल बड़ा स्ट्रेटजिक था. हमनें कानपुर में इस प्रणाम शब्द की व्याख्या सुनी थी. एक गुनी बच्चे ने बताया था कि; “हमारे कानपुर में जब भी कोई प्रणाम करता है या पाँव छूता है तो हाथ को केवल घुटने तक ले जाकर फट से छाती पर रख लेता है. इसका मतलब ये हुआ कि आपका घुटना टूटे तो हमारे कलेजे को ठंडक पंहुचेगी.”
    हम प्रणाम की कानपुरी व्याख्या को ध्यान में रखकर शब्द का इस्तेमाल किए थे. हमें क्या मालूम था कि नेता और पार्टीवाले तक आपको प्रणाम करते हैं. अब जो अनूप भइया नेता, पार्टी, माफिया टाइप लोगों का परनाम झेलते हों, उनके ऊपर एक ब्लॉगर द्बारा फेंके गए ‘प्रणामिक मिसाइल’ का कैसा असर? क्या करें, जब चिट्ठी लिख रहे थे उसी दिन कलकत्ते में बंद था. अब यहाँ तो ऐसा है कि बंद मतलब सबकुछ बंद. आदमी का दिमाग बंद. खुला रहता है केवल कामरेडों का दिमाग और मुंह. अब अगर आदमी का दिमाग बंद हो जाए तो ब्लॉगर की क्या बिसात? लिहाजा इस प्रणाम नामक मिसाइल से होनेवाले परिणामों से अनजान, हम शब्द दाग बैठे.
    खैर, आपको जिनका इंतजार था, वो प्रियंकर भइया टिपिया चुके हैं. ये अलग बात है कि उन्होंने पोएटिक जस्टिस पर कम और आपके टाइम मैनेजमेंट पर ज्यादा ध्यान दिया है. ऊपर से इस बात आश्चर्य कर रहे है कि आप ज्ञान भइया तक से चुहलबाजी और मौज ले लेते हैं? इसे कहते हैं अचीवमेंट. क्या आनी-जानी है जेंटलमैन-फेंटलमैन कहला कर? वैसे भी एक दिन में ही नशा उतर गया. अचीवमेंट तो ये है कि मौज और चुहलबाजी के जरिये लोगों को चित कर दें. और चित भी ऐसा कि पोएटिक जस्टिस की तलवार चले तो चलने वाला ये सोचकर दंग रह जाए कि मौज में इतनी ताकत! मौज का कवच ऐसा कि तलवार की धार घायल दिखाई दे रही है. मौजत्व का ये रूप देखकर बड़े-बड़े धरासायी हो जायेंगे.
    प्रियंकर भइया आगे लिखते हैं;
    “हां ! यह ज़रूर है कि आर्बिट्रेटर किस्म की भूमिका निभाने में सिद्धहस्त यह आदमी लफ़ड़ा-झगड़ा होने पर थोड़ा अन्योक्तिपरक और दार्शनिक किस्म के मोड में चला जाता है और डायरेक्ट कन्फ़्रंटेशन या हेड-ऑन कलिज़न से बचना चाहता है . पर हम सबका कोई न कोई डिफ़ेंस मैकेनिज़्म होता है.”
    मेरा उनसे यही कहना है कि वे यह बात कैसे भूल गए कि अनूप भइया विज्ञान के छात्र थे. अब विज्ञान के छात्र रह चुके अनूप भइया को इतना तो मालूम ही है कि डायरेक्ट कन्फ्रंटेशन और हेड-ऑन कलिज़न के क्या-क्या खतरे हैं. आप उनके इस गुण को डिफेन्स मैकेनिज्म न कहें. असल में जिसे आप डिफेन्स समझ रहे हैं, वो निहायत ही अफेंस मैकेनिज्म है. सबसे बड़ी बात ये कि केवल विज्ञान की विज्ञानी ही नहीं, आर्बिट्रेटर की भूमिका कई बार निभाने के बाद हमारे अनूप भइया विज्ञान की कलाबाजी भी बखूबी सीख गए हैं.
    हमें प्रियंकर भइया से एक ही बात की शिकायत है. और वो ये है कि अभी हम अपनी जेंटलमैनी जाने के सदमे से उबर भी नहीं पाये थे कि उन्होंने हमें एक और उपाधि थमा दी. कहते हैं हम ‘रेयर किस्म के भाग्यशाली जीव’ हैं. हाँ, हमें एक बात की खुशी है कि ये उपाधि केवल हमें नहीं मिली है. हमदोनो को मिली है. लिहाजा हम अकेले ही चित नहीं हैं, आप भी हमारे साथ चित हुए.
    लेकिन उनकी जांच वाली मांग का क्या करेंगे भइया? कमीशन बैठने देंगे या फिर कुछ करके इस मांग को ही खारिज कर देंगे?
    एक चिट्ठी इस बात की जानकारी देने के लिए हो जाए!
  9. अशोक पाण्‍डेय
    लोग कहते हैं कि दूसरे की चिट्ठी नहीं पढ़नी चाहिए, इसलिए प्रियंकर जी की व्‍यक्तित्‍व-समीक्षा पढ़ कर ही काम चला लिया। (वैसे अंदर की बात तो यह है कि चिट्ठी की लंबाई देख ही मैं डर गया :) समीक्षा से सहमत, सुझाव से भी सहमत- जांच होनी ही चाहिए और परिणाम को सिलेबस में शामिल किया जाना चाहिए :)
  10. manvinder
    aapne bahut achcha chiter uker ker rakh diya hai is chitthi mai….
    wahi n….. baat fursat ki hai
  11. Sanjeet Tripathi
    निखालिस फुरसतिया शैली की फुरसतिया चिट्ठी।
    मजा आ गया पढ़कर, आपकी हर पोस्ट लेखन शैली मे सुधार के लिए माल-मत्ता दे जाती है कि देखो आवारा बंजारा, लिखा तो ऐसे जाता है।
    प्रियंकर जी की ऐसी टिप्पणी बड़े दिन बाद पढ़ा, भाई साहब इतना संतुलित काव्य सा गद्य कैसे लिख लेते हैं आप, राज हमें भी बताएं।
  12. सागर नाहर
    परम आदरणीय फुरसतियाजी, प्रियंकरजी और शिवजी को घुटनों तक पाँव छू कर अपनी छाती तक हाथ रख कर प्रणाम कर रहा हूँ, आशीरबाद दीजियेगा….
    फुरसतियाजी आजकल पाठकों के बेहद मांग पर कुछ छोटे लेख लिखने लगे है.. सभी मांगकर्ताओं का बहुत बहुत धन्यवाद।
    :)
  13. समीर लाल 'उड़न तश्तरी वाले'
    भाई फुरसतिया को घुटने तक का प्रणाम, जिसे वो दंडवत ही मानें. अन्यों को दंडवत होने में जितनी मेहनत लगती है, उससे कहीं अधिक,सेल्फ डेवेलप्ड काया की वजह से(ईश्वरीय देन नहीं), हमें घुटने तक झुकने में लगी. :)
    हस्त लिखित पत्र का अपना अलग ही आनन्द होता है, भले ही वो अपने नाम से ना आकर सिर्फ अपना जिक्र लेकर आया हो. अतः आनन्द से सारोबार हूँ.
    ‘अदना सा ब्लॉगर’ तो मानो चुनावी स्लोगन हो लिया है और विनम्रता के आतंकवाद से आप जिस तरह आतंकित दिख रहे हैं, हमें तो अंदर की बाद यही लगती है कि आप भी उसी चुनाव की तैयारी में हैं, ठाकुर!! :) यह तो किसी भी चुनाव लड़ने वाला का गहना है. आप भी सज लें और फोटू जो लास्ट में चेंपी है, वो स्मार्ट है, उसे इस गहने से और स्मार्ट बना डालें. फिर तो हमारी जमानत जब्त ही समझो.
    आपको ‘टाइम मैनेजमेंट गुरु’ के सम्मान से नवाजे जाने पर मेरी हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
    समधियाने में अपने ब्लॉग का जिक्र तक नहीं किये हैं, अतः कोई टेन्शन नहीं वरना तो मित्रों की बदनामी तय ही थी. लेकिन बाद में तो मित्रों से मिल कर पढ़ने की जरुरत भी न रहेगी उन लोगों को-खुदे जान जायेंगे. :)
  14. abha
    बढ़िया पत्राचार …… जी के बदले प्रणाम की व्याख्या भी गजब है ..
  15. समीर लाल 'उड़न तश्तरी वाले'
    गजब मेहनती हो भाई!! पूरा लेख फिर टाईप भी किये. साधुवाद!!!!
  16. Abhishek Ojha
    चिट्ठी अगर दिल से लिखी जाय तो लम्बाई तो बढ़ ही जाती है… और ये फोटू लगाने वाले आईडिया मस्त लगा.
    समीरजी की विनम्रता का हिसाब लगाने में भी २-४ आदमी लगाने पड़ जायेंगे… :-)
  17. लावण्या
    अब कमी रह गई है तो सिरफ प्रत्यक्षा की ..
    एकसे एक उस्ताद लिक्खाड हैँ यहाँ पर :)
    - लावण्या
  18. anitakumar
    बत्ती गुल होने के कारण आप की हस्त लिपी भी देखने को मिल गयी,अच्छी हस्तलिपी है। बाकी आप ने सिद्ध कर दिया कि फ़ुरसतिया को फ़ुरसत ही फ़ुरसत है। लगता है हमें भी आप के ही दफ़्तर में नौकरी मिल जाए तो ऐसी फ़ुरसत का मजा हम भी उठा सकें। है कोई वेकेंसी? परम आदरणीय सुकुल जी को प्रणाम इस लंबी सी चिठ्ठी लिखने के लिए। हमें तो अपनी स्कूल की कापियां याद आ गयी, परिक्षा में भी कभी इत्ता लंबा निबंध नहीं लिखा चिठ्ठी की तो बात ही जाने दो।
  19. अनूप भार्गव
    विनती में दोहरे हुए कनाडा के श्री लाल
    अदना ब्लौगर कौन है दूजा माई का लाल
  20. garima
    मै कुछ नही बोल रही हूँ, क्योंकि मेरी मम्मी कहती हैं “किसी की चिट्ठी नही पढनी चाहिये” वैसे आजकल चिट्ठीयाँ लिखी नही जाती थी.. पर अब तो श्रृंखलायें शुरू हो गयी हैं, शायद इसलिये कहा गया है कि इतिहास खूद को जरूर दुहराता है :)
    दुसरी बात की मम्मी कहती हैं कि जब बडे बात कर रहे हों तो बच्चो को नही बोलना चाहिये… इसलिये मै सिर्फ़ दूर से प्रणाम करके चलती हूँ :P
    एक बार फिर से साष्टांग प्रणाम
    :)
    और टिप्पणी के जवाबी चिट्ठी का इंतजार रहेगा, वैसे मै पढूँगी नहीं जैसा कि पहले ही बताया है.. वो बस स्क्रीन पर दिख जायेगा तो पढना ही पडेगा.. वैसे मै पढने कि बिल्कुल कोशिश नही करूँगी। :)
  21. दिनेशराय द्विवेदी
    पहले पोस्ट देख कर ही घबड़ा गए। यह चिठिया का उत्तर है कि पुराण। फिर उस पर टिपियाने वालों की फेहरिस्त! सच कहूँ, गश आ गया इंटरनेट को। सुबह के बाद अब होश में आया है।
    अब भी कुछ बचा है कहने को?
  22. Gyan Dutt Pandey
    पोस्ट और टिप्पणियों में कलक्टरगंज बिखरा पड़ा है। यह समझ में आया कि कलक्टरगंज झाड़ने पर जो गर्दा उड़ता है, उसे मौज कहा जाता है! झड़ते रहो! :-)
    (इससे लम्बी टिप्पणी चट्रे से सम्भव नही!)
  23. डा. अमर कुमार
    एक बार पुनः पढ़ने का मन किया,
    आज हृदयंगम करके लिये जा रहा हूँ ।
    यदि गंभीर ड्रुष्टिकोन से पढ़ें तो हिन्दी ब्लागिंग को दिशा निर्देश देता है,
    आपका यह चिट्ठीनुमा आलेख !
    स्वस्तियाय भवेत !

  24. ये बिखरे बिखरे चिट्ठे खत्म ही नही होते : चिट्ठा चर्चा
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