Saturday, August 23, 2008

हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे

http://web.archive.org/web/20140419213333/http://hindini.com/fursatiya/archives/482

17 responses to “हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे”

  1. दिनेशराय द्विवेदी
    भ्रष्टाचार ही दुनियाँ को चला रहा है। अगर आदम भ्रष्ट न होता, हव्वा के कहने से गेहूँ न खाता तो इस दुनियाँ में आदम की औलादें न होती।
  2. alok puranik
    जमाये रहियेजी।
  3. संजय बेंगाणी
    भ्रष्टाजार को बढ़ाने का एक ही सरल उपाय है, हर चीज का सरकारीकरण कर दो. बाकी का काम कार्यशाला आयोजक कर ही देंगे :)
  4. abha
    हेड लाईन सही है…
  5. जीतू
    ह्म्म! हम तो सोचे थे कि लिखने से सन्यास लिए बैठे हो, लेकिन चिट्ठाजगत के पुरस्कारों की घोषणा होते ही तुम्हरा लेख आ गया। सच बात है, बिना चढावे जब भगवान भी….. । रोज लिखा करो प्रभु। भक्तों मे बेचैनी रहती है।
  6. Sameer Lal 'Udantashtari wale'
    आपसे ऐसे ही आलेखों की उम्मीद रहती है हरदम..गजब!! बेहतरीन कल्पनाशीलता. बधाई.
  7. anitakumar
    बेहतरीन लेख और कविता तो हमारी मन पसंद है ही
  8. हिंदी ब्लॉगर
    सामयिक और सटीक लेख. लेनदेन चाहे जिनके माध्यम से हुआ हो, भारतीय लोकतंत्र का मज़ाक तो बन ही गया. साथ ही, मनमोहन जी की स्वच्छ छवि भी अतीत की बात हो गई.
  9. डा० अमर कुमार
    ” भ्रष्टाचार ही दुनियाँ को चला रहा है। “
    आज की पुरस्कृत टिप्पणी होनी चाहिये,
    भई वाह,
    दिल खुस कित्ता कोटा वाले ने ।
    धंधे से लौट के आता हूँ, तो जो बन सकेगा..वह चढ़ाऊँगा यहाँ !
    अभी तो अवलोकन मात्र करके भाग रहा हूँ, यहाँ से !
    हबड़ तबड़ में स्वाद नहीं आयेगा, पंडित जी !
  10. eswami
    कविता धांसू है!
  11. Gyan Dutt Pandey
    अरे, यह पोस्ट तो गूगल रीडर ने पकड़ी ही नहीं। ई-स्वामी तकनीकी पक्ष देखें – कृपया। हमने अभी फिर चेक किया और अभी तक यह उसमें नहीं है।
    छपते ही नहीं पढ़ी तो मजा किरकिरा हो गया जी। :-(
  12. डा० अमर कुमार
    अनूप भाई,
    लगता है, कल आपकी कुछ लाइनें मेरे यहाँ शायद भूलवश छूट गयीं थीं ..
    अभी टेबल साफ करते समय बरामद हुईं । अमानत आपकी है, सो आपको
    सादर लौटा रहा हूँ । इसको दाब लूँ, अभी इतना भी भ्रष्ट नहीं हुआ हूँ, मैं !

    ” आख़िर हमारी ईमानदारी को जनता व चंद हाफ़ टोन्ड सिरफिरे सेपेरेटा
    ब्यूरोक्रेट, बाबू वगैरह क्यों नहीं देखते ? हमारे बीच कुछ जयचंद घुस आये
    हैं, जो पैसा लेकर भी काम नहीं करते, मिल बाँट कर नहीं खाते । बस,इनकी
    वज़ह से ही भ्रष्टाचार को अनाचार का दर्ज़ा मिल रहा है ।
    वक़्त का तक़ाज़ा है, कि अगले अधिवेशन में एक राष्ट्रीय भ्रष्टता संहिता पारित
    किया जाय, इस कार्य के लिये ‘ भाई गि्रगिट ठस्स पैंतरा ‘ ने अपनी सेवायें देने
    का सहर्ष प्रस्ताव रखा है ।
    ( करतल ध्वनि ) शांत शांत..शांत रहिये,
    तो कुछ नये उत्साही भ्रष्टजन पैसा हज़म कर जाते हैं, अपनी सेवाओं से कन्नी
    काट लेते हैं । मिल-बाँटने कर खाने के सुनहरे नियम का पालन नहीं करते, जिससे
    हम मुफ़्त बदनाम होते हैं ।
    आज भ्रष्टाचार के चलते ही टेढ़े मे्ढ़े सरकारी नियमों से जनता को कितनी
    राहत है, यह पूरे विश्व से छिपा नहीं है । मीडिया को भी साथ लेकर चलने में हम
    पूरी तरह सफल नहीं हुये हैं । हमारा इस वर्ष का लक्ष्य यह भी है, कि शत प्रतिशत
    मीडिया हमारे साथ हो जाये । फिर किसी को हमारे खेला की भनक भी न होगी ..
    अब हमारा समूहगान होगा उसके बाद सभी भाई पतली गली से एक एक कर
    निकल लें ।
    ..आवाज़ दो कि हम भ्रष्ट हैं, हाँ जी भ्रष्ट है..भ्रष्टता हमारी रगों में..”

    ( धड़ धड़ धड़ , दरवाज़ा खोलो..पुलिस..धड़ धड़ )
    भाईयों,बाकी गान अगले अधिवेशन में । अभी आप लोग निकलिये वरना यहीं
    आपको अपनी ज़ेबें हल्की करनी पड़ेगी, ये चोट्टे यहाँ भी आ गये… “

    आजकल आप लापरवाह होते जा रहे हैं, अनूप जी ! इसको मँगवा लीजिये,
    हो सकता है, मौका लगते ही हम कल से ही भ्रष्ट हो जायें । बोलो सत्यमेव जायःते !!
  13. डा० अमर कुमार
    BREAKING NEWS
    ज्ञानदत्त जी का गूगल रीडर भ्रष्ट हो गया है,
    फ़ुरसतिया के आलेख दिखाने के पैसे खुल
    के नहीं माँग रहा है, पर करप्ट हो गया है !!
  14. Abhishek Ojha
    रीडर वाली समस्या इधर भी आई… रीडर में आज अपडेट हो पायी पोस्ट :(
  15. arun gautam
    कल मरे सो आज मर, आज मरे सो अब
    लकड़ी मँहगी हो रही तू मरेगा कब
    अरुण गौतम
    akgautam@indiatimes.com
  16. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे [...]
  17. sana catchwick
    ils great

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