Friday, November 21, 2008

ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती

http://web.archive.org/web/20140419213612/http://hindini.com/fursatiya/archives/545

35 responses to “ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती”

  1. Satish Pancham
    हुर्रे….एकदमै फुरसतिया लेख। बहुत उम्दा ।
  2. VIVEK SINGH
    बोले तो फुरसतिया ब्राण्ड टाइमपास . झकास लिखेले हो . हमारे गुरु को भी लपेट लिया . बेचारे कल वहाँ लपेटे गए , आज यहाँ .
  3. Tarun
    Tanki pe charkar tippanibaaj nazae aayen, to Phir wahan hume bhi bulaya jay
    muktak bare shabdaar rahe, pehli baar hi pari hongi is terah ki kuch lines.
    bakiya to sabhi mast hai,
  4. Tarun
    connection ka to pata nahi lekin tippani karke daali to connection try karne wali jaroor dikh gayi ;) jo abhi tak gayab thi
  5. seema gupta
    चांद लंगड़ा रहा था हम बोले ई कैसे, कैसे हुआ,
    तेरी चांदनी किधर गयी ये पलस्तर क्यों हुआ?
    बोला पूछो न भैया डाक्टर के यहां मिला अंधेरा ,
    थोड़ी पी के टहल रहे थे उनके आंगन गिरे मुंहभरा!
    ha ha ha ha ha ha ha chand ko aap he pilaa sktyn hain, or kise ke bus ka ye kaam to hai nahee…….wonderful writing..enjoyed each word..
    regards
  6. ताऊ रामपुरिया
    चांद लंगड़ा रहा था हम बोले ई कैसे, कैसे हुआ,
    तेरी चांदनी किधर गयी ये पलस्तर क्यों हुआ?
    शुक्लजी कुछ भी कहिये , सुबह सुबह चोला मस्त हो गया आपकी पोस्ट पढ़ कर ! अभ दो तीन बार और आकर पढेंगे ! बहुत धन्यवाद !
  7. कविता वाचक्नवी
    जमाए रहिए।
    तुक्तक पर भारी –
    फ़ुरसतिया होगा पहला कवि,
    चिरकुटई से उपजा होगा गान!
    सो, अब जल्दी से उस गान की पोडकास्टिंग करवा लीजिए। सब सुनने का आनंद लें।
  8. समीर लाल
    आशा करता हूँ अब टिप्पणियों की संख्या तसल्ली देगी और आप टंकी पर चढनें का मनोरथ त्यागेंगे.
    कविता के नाम पर फुरसती कलम काफी लचक के चली.. :) मजा आया चाल देखकर.
  9. कुश
    बड़ी ख़ालजयी पोस्ट लिख डाली है आपने.. मेरा मन भी वही कर रहा है जो उस महान राजा का कर रहा था..
  10. संजय बेंगाणी
    एकीदम फुरसतियाई पोस्ट….बाकि हम कवि तो है नहीं…… :)
  11. VIVEK SINGH
    आपने फोटू हमारे टिपियाने के बाद लगाया, इसलिए उसके लिए अलग से टिप्पणी है जी. पसंद आगई . आपका भी टंकी पर चढने का मन करता है जानकर खुश होंगे वे लोग, जो पहले एकाध बार टंकी की सैर कर चुके हैं . छोटा मुहँ बडी बात : आपके ब्लॉग पर टिप्पणी करके लगता है जैसे आपने इसे प्रकाशित करके हम पर एहसान किया हो . अगर टिप्पणी तुरंत प्रकाशित होजाय तो क्या कहना .
  12. paramjitbali
    फुरसतिया जी,सही शीर्षक दिया है”ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती” यह हाल सभी का है।रही टिप्पणी की बात तो चिन्ता ना करें और टंकी पर चड़ने की जरूरत भी नही है।आप बहुत बढिया लिखते हैं। बस इन्तजार करीए-”वो सुबह कभी तो आएगी….जब जनता खूब टिपियाएगी…..”
  13. Debashish
    आप क्यों चढ़े टंकी भैयाजी, आपकी पोस्ट पर टिप्पणी करने में कोई कंजूसी नहीं कर सकता :) छान पोस्ट!
  14. रवि
    आप तो पोस्ट पे पोस्ट लिक्खो. तसल्ली तो हम पाठकवा के पास है ना! ढेर तसल्ली.
  15. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    टंकी पर चढ़ने की नौबत आ रही है?! आखिर हम पहले ही कर रहे थे हम जैसे शरीफों से मौज न लीजिये। शरीफ की आह बहुत लगती है! :-)
  16. Shiv Kumar Mishra
    बहुत शानदार!
    अर्थ सलाहकार दुर्योधन की डायरी का ‘अर्थ’ ही तो निकाल रहा था. यही कारण है कि दुरजोधन के बारे में जानता है और अर्थ के बारे में नहीं.
    “वैसे तो कवित विवेक एक नहीं मोरेहु”…
    त झाल कवि ‘वियोगी’ की तरह कवितवा ठेलें का एक ठो?
  17. Abhishek Ojha
    इन फुरसतिया ब्रांड चार-चार लाइनों के आगे सब फीके हैं !
  18. विनय प्रजापति
    आप तो ब्लागरों में सबसे आगे हो फिर तसल्ली अपना रस्ता कैसे भटक गयी!
  19. tara chandra gupta
    mai to kahata hoon is bar “tasalli” ko hi mariye.
  20. डा. अमर कुमार
    वाह, आनन्दम आनन्दम.. बड़ि मौज़दार पोस्ट है, अनूप भाई !
    यह अपने दिमाग के सोचे ( शौचे ) वाला डब्बा साफसुथरा रक्खे वालों के लिये नहीं, बल्कि हम जैसे ज़बरद्स्ती के लेखक विचारक चिंतक ठेलक-पेलक घोंचू मानुष के लिये नसीहत पोस्ट है !
    वाह, आनन्दम आनन्दम, उल्टे पंडिताइन इस पोस्ट की तुक भिड़ा रहीं हैं, ” तारीफ़ करूँ क्या उसकी.. जिसने इन्हें बनाया ! ” सच्ची फ़ुरसत में बनाये गये होगे, तभी फ़ुरसतिया मार्का ब्लाग ढालना मुश्किल है ! वाह, आनन्दम आनन्दम.. वैसे मुझे तो इसके पीछे छिपा दर्द भी दिख रहा है सो, साधुवाद !

  21. सागर नाहर
    हम तो तुक्‍तक और चार लाईनां पढ़ कर ही मुस्कुरा रहे हैं, ठेठ नीचे आते आते टंकी पर चढ़ने के राज का पर्दाफाश भी कर दिया।
    बढ़िया है
  22. anita kumar
    हाले-दिन सुनाना है,मुआ कनेक्शन नहीं मिलता
    हमें तो फ़ुरसत रहती है,उनका नेटवर्क बिजी रहता है
    रोना चाहते हैं तेरी याद में ,जी भर के सनम हम
    सारा मेकअप बिगड़ जायेगा, बस इसका डर लगता है।
    ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती,
    लोग पढ़ते हैं टिप्पणी नहीं मिलती,
    इस ब्लाग दशा से उबरने का उपाय बतायें
    टंकी पर चढ़ जायें, मनचाही टिप्पणियां पायें।
    वाह वाह!
    वैसे टंकी पर चढ़े तो तसल्ली को साथ ले जाना अच्छा साथ रहेगा, पता नहीं कितने पल का प्रोग्राम हो टंकी पर। अब टंकी पर चढ़ ही रहे हो तो , लगे हाथ अनुराग जी का भी काम कर देना और चांद को भी ऊपर टांग आना…।
  23. मसिजीवी
    डिलर्निंग…यानि ज्ञानसफाई। वाह क्‍या ईजाद है।
    उम्‍मीद है कि हम अगर इसका इस्‍तेमाल क्‍लास में करें तो आप किसी रायल्‍टी की मांग नहीं करेंगे।
  24. फुरसतियाजी, कृपया भूल सुधारें!
    [...] ठीक वैसे ही कल फुरसतियाजी की एक पोस्ट हिट हो गई – [...]
  25. eswami
    मेरी प्रतिक्रिया यहां है!
  26. राज भाटिया
    गाय बोली बैल से, “क्यों छेड़ते हो भाई
    जानते हो, कहते हैं सब मुझे माई?”
    बैल बोला धत्त रे
    मारूंगा दुलत्त रे
    मैं भी चौपाया हूं, और तू भी है चौपाई
    अरे सांड भी तो चोपाया है, फ़िर गाय उसे क्या बोलेगी??
    अगर हंसना है ओर खुन बढाना है तो आप का लेख जरुर पढना चाहिये.
    धन्यवाद
  27. neeraj
    खूब लिखे हो भाई…तुक्तक, मुक्तक और चौपाई…हम को सारी समझ में आई…ही ही ही ही…
    नीरज
  28. दीपक
    कर लो दुनिया मुठ्ठी मे ब्लाग लिखो चुटकी मे !!
    वैधानिक चेतावनी : ब्लागिंग राईटिंग इज इंजेरीयश फ़ार रीडर ॥
  29. Vivek Kesarwani
    भाई अनूप जी, तुत्तक, चौपाई और कविताओं की ऑडियो पॉडकास्ट सुनने को मिल जाए तो और मज़ा आ जाए, फ़िर तो इत्ता टिपियाये जायेंगे की…. आपके ब्लॉग पर पहली बार आया हु. शानदार लेख, अच्छा लगा
  30. anupam agrawal
    कल चाँद फ़िर आया था ,बड़े गुस्से में था ,
    कह रहा था कि ये फुरसतिया जी को समझाइये कि मुझे ‘मुआ’और ‘लंगडा ‘ क्यों कह रहे हैं .जरा सा गिर गया तो ये ढिंढोरा पीट दिए .
    अभी मै हर तरफ़ लफ़ड़े , भाई-भाई में झगड़े नहीं करा रहा हूँ वरना मुझे ऊपर से कभी कोई लाइन कभी कोई लाइन दिखाई दे रही है मै टिप्पणी में बता दूंगा .उदाहरणार्थ ;
    ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती
    इनसे निपटने का क्या तो क्या करें?
    देख लो कहीं कुछ फ़साना न हो जाये
    सारा मेकअप बिगड़ जायेगा, बस इसका डर लगता है।
  31. प्रवीण त्रिवेदी-प्राइमरी का मास्टर
    # ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती,
    लोग पढ़ते हैं टिप्पणी नहीं मिलती,
    इस ब्लाग दशा से उबरने का उपाय बतायें
    टंकी पर चढ़ जायें, मनचाही टिप्पणियां पायें।
  32. प्रवीण त्रिवेदी-प्राइमरी का मास्टर
    # चांद लंगड़ा रहा था हम बोले ई कैसे, कैसे हुआ,
    तेरी चांदनी किधर गयी ये पलस्तर क्यों हुआ?
    बोला पूछो न भैया डाक्टर के यहां मिला अंधेरा ,
    थोड़ी पी के टहल रहे थे उनके आंगन गिरे मुंहभरा!
  33. anupam agrawal
    सर और एक बात ;
    आप ने बताया था ये देख लें शायद अच्छा लगे .
    त्रिवेणी :एक विधा
    मैंने उसे पढ़ा .
    आप ने बहुत बदिया ज्ञान दिया है .
    इजाज़त हो तो हम भी एक कोशिश कर लें ;
    रात भर चाँद ने छटा भी दी दिखला
    सुबह का सूरज मचल कर निकला
    किसको सुंदर कहें किसको नाराज़ करें
  34. E-Guru Rajeev
    :)
  35. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] ब्लाग लिखता हूं तसल्ली नहीं मिलती [...]

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