Sunday, January 25, 2009

कम से कम तुम ठीक तरह मरना

http://web.archive.org/web/20140419213703/http://hindini.com/fursatiya/archives/574

45 responses to “कम से कम तुम ठीक तरह मरना”

  1. Isht Deo Sankrityaayan
    क्या बात है. ज्ञानदत्त जी हेगियोग्राफी पर ब्लागिया रहे हैं तो आप हगियोग्रफी पर. पर बात आपने सही कही है. बधाई स्वीकारें.
  2. अरविन्द चतुर्वेदी
    एक बहुत ही अच्छा लेख. ऐसा कि मानस पटल पर छाया रहेगा कई दिनों तक.
    इस लेख के कई बिन्दु महत्वपूर्ण हैं. उन बिन्दुओं को विस्तारित करके अलग से बहस हो सकती है. नहीं बहस में मैं नहीं पढ़ना चाहता. अधिकांश बिन्दुओं पर सहमति व्यक्त करते हुए एक बार फिर लेख पर लौटता हूं. पंडित नेहरू ,कम से कम अपने समय में तो विवाद से परे रहे. बात चाहे लोहिया की हो या जेपी या कृपलानी जी की. किसी ने भी नेहरू जी की व्यक्तिगत कमजोरियों को निशाना नहीं बनाया. ( कोई भी व्यक्ति सर्व समाज का सर्वकालिक आदर्श नहीं हो सकता,क्यों कि हर व्यक्ति में कुछ न कुछ कमियां /कम्ज़ोरियां होती हैं). प्रतिमा से सिन्दूर खुरचने की प्रवत्ति इधर कुछ बढी है. वेद मेहता ने महात्मा गान्धी पर विवाद खडा किया, हंसराज रहबर ने नेहरू पर निशाना साधा. इन्दिरा, अटल बेहारी, चरन सिंह, कामराज, राजाजी, एन टी आर कितने ही नाम गिनाये, हर नेता की एक छवि होती है, उनके अन्ध भक्त भी होते हैं. सही या गलत का सबका अपना पैमाना होता है. कुछ की नज़रों में मोदी भी महान हैं , नेहरू भी. किंतु आपका लेख इन सभी लोकप्रिय व्यक्तित्वों की आलोचना के मापदंड निर्धारित किये जाने का संकेत करता है. आलोचना संय़मित होनी चाहिये. यदि हम्किसीसे सहमत नहीं हैं और उसे नायक नहीं मानते तो हमें खलनायक बनाने का प्रयत्न भी नहीं करना चाहिये.
    मैं पंडित नेहरू की अनेक नीतियों से असहमत हूं किंतु इससे उनकी महानता कम नहीं आंकता.
    एक बहुत ही अच्छे लेख हेतु धन्यवाद.
  3. Prashant (PD)
    aaj lekh kuchh jyade hi ghambhir ho gaya.. aaj ham kuchh na kahenge..
    chintan me daalne vaala post hai yah..
  4. swapandarshi
    Great!!!
  5. ताऊ रामपुरिया
    आज की आपकी पोस्ट बहुत कुछ कह रही है. कल अनिल रघुराज की पोस्ट हमने भी पढी थी जहां आपने टिपणी की थी कि “हम लेख और टिपणियों का मजा ले रहे हैं:)”, वहीं हम भी लिखना चाह रहे थे कि हम भी फ़ुरसतिया जी के पीछे २ हैं, पर शायद हमारी टीपणि जा नही पाई.:)
    अब ये जो बातें उठ रही हैं ? क्या सस्ती लोकप्रियता का साधन नही है? मेरा मतलब सिर्फ़ नेहरु जी से नही है, अब वो चाहे जैसे भी मरे हों, निजी रुप से मैं भी उनकी कई बातों से सहमत नही रहा, तो इससे क्या उनका योगदान कम हो गया? उनकी निजी जिन्दगी मे वो क्या करते थे, इसको डिसकस करना है तो एक अलग ही किताब लिखी जानी चाहिये, हर इन्सान के दो पहलू होते हैं.
    और लिखने वाले बताएं कि हमाम मे कौन कपडे पहन कर नहाता है? सभी नंगे हैं. भाई कब्र मे सोये लोगों को तो चैन से सोने दो.
    बहुत सही है आज की ये लाईन : “-जिंदगी में कुछ करना चाहे न करना, कम से कम तुम ठीक तरह मरना!”
    रामराम.
  6. anil pusadkar
    सिफ़लिस ने मुफ़लिस कर दिया? आप सही कह रहे है,अब तो मरने के भी तरीके ढूंढने पड़ेंगे लगता है,शहीद मोहन चंद शर्मा और हेमंत करकरे जैसे जवानो की मौत पर जो बवाल मचा उससे तो लगता है डर कर कथित महान लोग मरने का इरादा ही छोड़ दें।गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएँ ।
  7. Gyan Dutt Pandey
    मुझे सिफलिसवाद की विचारधारा में खोट नजर आता है। ब्लॉगर लोग अगर सत साहित्य लिखें तो वीर्य का एक भी कतरा बरबाद न करने और ब्रह्मचर्य की महिमा/तेज पर लिखें।
  8. PN Subramanian
    नेहरू और लेनिन के समय में काश एच.आई.वी. आ गयी होती तो बीमारी का नाम बदल गया होता! जो अधिक सम्मानजनक रहता.
  9. दिनेशराय द्विवेदी
    अनिल रघुराज के आलेख पर आप की टिप्पणी पढ़ी तो यह पढ़ कर कुछ बुरा महसूस हुआ था। पर आज समझ गए कि वह टिप्पणी उतनी ही मिथ्या थी जितना गधे के सिर पर सींग। आप ने उस आलेख और टिप्पणियों को पढ़ कर जो व्यथा महसूस कर के टिप्पणी की थी उसे अब समझा जा सकता है। वैसी ही या उस से भी गहरी व्यथा मेरे मन में थी। मैं भी लिखना चाहता था। पर बाहर जाने और कुछ पारिवारिक जिम्मेदारियों की व्यस्तता से वह नहीं कर पाया। आप का यह आलेख पढ़ कर दिल खुश हो गया। जो मैं अभिव्यक्त करना चाहता था। वह सब आप ने इतने बेहतर ढंग से और विस्तार से अभिव्यक्त किया है कि मैं कभी नहीं कर सकता था। मैं व्यक्तिगत रूप से इसी कारण से आप का ऋणी महसूस कर रहा हूँ। एक बात और सीखी कि पीड़ा का अतिरेक हो तो कहा जा सकता है कि मैं आनंद ले रहा हूँ। आनंद शब्द का इतना व्यापक अर्थ आज ही पता लगा। हालांकि अनुभव में जाने पर महसूस हो रहा है कि जीवन में हजारों अवसर ऐसे आते हैं जब हम तकलीफ में रहते हुए व्यक्ति से पूछते हैं, कैसे हो? और उत्तर मिलता है, आनंद में हूँ। तब कोई जवाब नहीं होता उस उत्तर का।
  10. Kaushal Kishore
    किसी का सिफलिस से मर जाना ( अगर इसे मृत्यु की वजह मान भी ली जाए तो ) और केवल इसी आधार पर उसके चरित्र पर उंगली उठाना उस मध्युगीन पिछड़ी मानसिकता का द्योतक है जिसमें कोढ़ को पूर्वजन्मों का पाप माना जाता था .येसा सोचने और लिखने वाले महान आत्माएं हैं तो इस सदी में पर इनकी कलुषित आत्माएं अभी शायद उसी पुरातन युग में भटक रहीं हैं. भगवान् उन्हें सद्बुद्धि दे या न दे कम से कम इन्हें सही pathology का ज्ञान जरूर दे दे.
    सादर
  11. विष्‍णु बैरागी
    निश्‍चय ही यह ‘हिन्‍दी साहित्‍य की फुरसतिया विधा’ है जो ‘एक में अनेक’ की सुविधा उपलब्‍ध कराती है। या फिर साहित्‍य के अन्‍धों का हाथी या फिर गोस्‍वामीजी की ‘जैसी की रही भावना जा की’ सूक्ति का सुन्‍दर और प्रभावी विस्‍तार।
    किसी के मूल्‍यांकन में यदि इतना सन्‍तुलन और ऐसा विवेकी संयम हो तो विवाद की चटनी अनुपस्थित हो जाएगी और दावत बेमजा। आप सबको जंगलों में भेज देंगे-बैरागी बना कर। कुछ आग्रह, दुराग्रह बनाए रखने की गुंजाइश उपलब्‍ध कराए रखिएगा वर्ना सब कुछ सफेद और शान्‍त नजर आएगा-नीरस, रंगहीन।
    कुछ सूत्र वाक्‍य सहेजे हैं। फरसतिया कापी राइट न हो तो लागों पर ‘तालीबी रौब’ झाडने की सुविधा मिल जाएगी। उधार की पूंजी यह है -
    ‘ज्यादा उमर तक जीना अपनी महिमा के तेज को कम करवाना है। निर्विवाद महान बने रहना है तो दुनिया से जल्दी निकल लेना चाहिये।’
    ‘यह मजे की बात है कि हर जननायक की पोल उसके मरने के बाद ही खुलती है।’
    ‘आज जब वे हमारे बीच में नहीं हैं तब उनकी व्यक्तिगत मानवीय कमजोरियों को माइक्रोस्कोप से देखने की बजाय यह देखें कि उन्होंने क्या किया? जो किया क्या हम उसके जैसा या उससे बेहतर कुछ कर सकते हैं।’
    ‘वैसे भी महान लोगों की पोलें उनके मरने के बाद ही कायदे से खुलती हैं। अभी उनके बारे में क्या परेशान होना जो महानता के पथ पर अग्रसर हैं।’
    ये सूक्तियां कुछ को परेशान करेंगी तो कइयों को निश्चिन्‍त।
    कुल मिलाकर ‘मार्निंग इज वेरी गुड’ हो गई।
    जय हो फुरसतियाजी की।
  12. संजय बेंगाणी
    पढ-अ ली है, अब फिर से लिखना पड़ेगा. समय माँगता है…अपून को.
  13. mohan vashisth
    आप सभी को 59वें गणतंत्र दिवस की ढेर सारी शुभकामनाएं…
    जय हिंद जय भारत
  14. anitakumar
    बहुत ही महत्वपूर्ण बात कही आप ने इस लेख में। थोड़ा लंबा हो गया लेकिन वो जरूरी था। सही है किसी की कमियों की तरफ़ ध्यान देने के बदले उसने अच्छा क्या क्या किया उसपे ज्यादा ध्यान देना चाहिए,खासकर अगर उसकी कमियों/बुराइयों से दूसरों का कोई नुकसान नहीं हो रहा। लेकिन मानव प्रवृति है जब किसी को बुर्ज से नीचे उतारने को कोई कारण न मिले तो उसके कपड़े ही उतारने पर उतारू हो जाते हैं। ताऊ जी ने सही कहा कि हमाम में कौन कपड़े पहन कर नहाता है?
    आप का ये लेख एक दिन कोर्स की किताबों का हिस्सा होगा। कैलाश बाजपेयी जी की कविता एकदम सटीक है। इतना सुंदर लेख देने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया।
  15. anitakumar
    ‘ज्यादा उमर तक जीना अपनी महिमा के तेज को कम करवाना है। निर्विवाद महान बने रहना है तो दुनिया से जल्दी निकल लेना चाहिये।’
    एकदम सही कहा
  16. कार्तिकेय
    पहले तो आपको बधाई, आज पढ़कर लगा नहीं कि जीवन के गंभीरतम पहलुओं को भी हास्य की चाशनी में डुबोकर पेश करने वाले फ़ुरसतिया अनूप जी का ही आलेख है।
    मान्यवर, कहा जाता है कि पोस्ट-मैच एनालिसिस करना शायद दुनिया का सबसे आसान काम है लेकिन माहौल की गरमी गेंदबाज का सामना करने वाला बल्लेबाज ही जानता है। आपकी बात बिलकुल सत्य है कि एक कमी किसी जननायक या महान व्यक्तित्व के जीवन को ओवरशैडो नहीं कर सकती। इसमें मेरा यह कथन और शामिल कर लें कि तत्कालीन परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए ही किसी व्यक्तित्व का सार्थक मूल्यांकन किया जा सकता है। प्रश्न यह भी है कि उन अज़ीम शख्सियतों पर उंगली उठाने वाले स्वयम कितने पाक-साफ हैं और क्या राष्ट्र-निर्माण में उनका शतांश योगदान भी रहा है?
    दूसरा प्रश्न यह भी है कि नेहरू के मर्ज या लेनिन की बीमारी हमें क्षणिक उत्तेजना या जुगुप्सा तो दे सकती है लेकिन नेहरू को विदेह या चरित्रभ्रष्ट बनाकर भी हम इस उत्तेजना के अलावा क्या हासिल कर लेंगे? दुःख होता है यह देखकर कि असंख्य सार्थक विष्यों के होते हुए भी आखिर बह्स कुछ रंगीन साइटों या गड़े मुर्दे उखाड़ने तक ही क्यों सीमित रह जाती है! नेहरू पर ही चर्चा करनी है तो उनकी विदेश नीति या औद्योगीकरण नीति की सफ़लता/असफलता/वर्तमान प्रासंगिकताओं पर चर्चा की जा सकती है।
    मेरे विचार से हमें शीघ्रातिशीघ्र अपनी प्राथमिकतायें पुनः तय करनी होंगी अथवा ज्यदा दिन नहीं बचे हैं सार्थक चर्चा के इस मंच को अनर्गल प्रलाप और बकवास का अड्डा बनने में…
  17. विवेक सिंह
    हमें तो रघुवीर सहाय जी की कविता ही अपने काम की लगी !
    वैसे बाकी भी ठीक है ! शानदार है ! गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर आपको बधाई !
  18. गौतम राजरिशी
    सोचता हूं,पढ़ तो लिया…अब कहूं क्या!!!
    फिर सोचता हूं…..
  19. नितिन
    सहेजने लायक पोस्ट!
    आपके दिये गुरुमंत्रो का पालन करने का मन बन रहा है, ये पोस्ट उन सभी लोगों को भेज रहा हूँ जो जल्द ही महान बनना चाहते हैं और अपनी पोल बचाना चाहते हैं।
    वैसे “पूछिये फुरसतिया से” के लिये सवाल है कि
    १. महान आदमी की “पोल” कहाँ होती है?
    २. ऐसी “पोलें” खोलने के बाद कईयों की “बांझे” खिल जाती है, ये “बांझे” कहाँ होती है और किन किन कारणों से खिल / बंद हो जाती है?
  20. mahendra mishra
    सटीक
    गणतंत्र दिवस के पुनीत पर्व के अवसर पर आपको हार्दिक शुभकामना और बधाई .
  21. Dr.Arvind Mishra
    मन से लिखा है आपने और मैंने मन से पढ़ा भी – मंत्रमुग्ध हूँ ! अब विस्तार क्या !
  22. डा. अमर कुमार

    बारंबार पढ़ने और गुनने योग्य है, आज का यह आलेख ।
    अब ‘हनन की मानसिकता’ से उबरने का समय है,
    न कि इन गैर-अहम मुद्दों पर ?
    आपका आलेख अपने औचित्य के संग भरपूर न्याय कर रहा है ।
    धन्यवाद जी ।

  23. डा. अमर कुमार

    यदि भावातिरेक में अपनी प्रतिक्रिया सही तरह से संप्रेषित न कर पाया,
    तो आज यह कमी वहन करें, मेरे प्रिय भ्राताश्री !

  24. बवाल
    जनाब फ़ुरसतिया साहब, आपको अब तक जितना पढ़ा और समझा है उसमें इस लेख का दर्जा बहुत ही बहुत ऊँचा पाया, “साल गया बवाल गया के बराबर”। सच कहता हूँ, पिछ्ली बार की कविता और इस बार का यह बहुबिन्दु लेख ! विस्मय है सर! क्या कहना! अभिभूत कर दिया आपने!
  25. नीरज रोहिल्ला
    अनूपजी,
    निन्दा सुख में बडा आनन्द है। इसमें किसी को त्रियाचरित्र साबित करने का मौका मिल जाये तो मजा और भी ज्यादा। सच कहूँ तो इस पोस्ट को पढकर दो बार और पढा, परिपक्वता यूँ ही नहीं आती। हिन्दी ब्लाग जगत में आप, विष्णुबैरागीजी, ज्ञानदत्तजी, दिनेशजी, सुजाताजी जैसों से हमें एक पीढी के बराबर सीखना है। ऐसे ही एक बार हमारे अंकल ने एक बात कही थी कि किसी भी विमर्श/वाद विवाद की पहली शर्त है कि दूसरे पक्ष को ईमानदारी से सम्मान दिया जाये भले ही वो हमारा कितना भी धुरविरोधी क्यों न हो। उसके बाद संवाद में नम्रता बनाये रखना दूसरी शर्त है। इस दोनो के बिना वाद विवाद/विमर्श नहीं होता बल्कि लोग अपने मन की बात चिल्लाकर कह जाते हैं।
    अमेरिका के चारित्रिक पतन के बारे में कुछ भी कहें लोग वहाँ चरित्र से ऊपर उठ गये हैं। अपने कैरियर की सबसे बडी गलती के बाद भी क्लिंटन कल्ट फ़िगर हैं सिर्फ़ अपने दिमाग और सोच के कारण। जनता में समझ है कि कब उसे अनफ़ार्गिविंग होना है और कब माफ़ कर देना है।
  26. सुमन्तमिश्र
    अरे देश को प्रगति के रास्ते पर आगे ले जाना है तो सिफलिस से मरनें में क्या बुराई है? कम से कम उनसे तो अच्छे हैं जिन्हे AIDS(अक्वायर्ड़ इन्टलेक्चुल डे़फिसिंयसी सिन्ड्रोम) है और फिर भी ज़िन्दा हैं?
  27. समीर लाल
    कल ही पढ़ लिया था. टीप नहीं पाये. आज फिर आये तो पुनः पढ़ा. और डूबे. (क्रमशः)
  28. समीर लाल
    भाग २: काफी जाना, समझा, बूझा और परसाई जी को याद किया. कैलाश बाजपेयी जी रचना पढ़ी. (क्रमशः)
  29. समीर लाल
    भाग३: अद्भुत है. बहुत बेहतरीन पूरा आलेख हर तरह से. एक बार में पूरा कमेंट नहीं हो पा रहा. (समाप्त)
  30. समीर लाल
    नया कमेंट: आपको एवं आपके परिवार को गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.(समाप्त)
  31. SHUAIB
    क़ाबिले तारीफ़ पोस्ट है।
    गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई
  32. roushan
    हमारे मन की बात लिख दी आपने.
    इस मुद्दे पर हम भी लिखने की सोच कर बैठे थे अब आपने हमसे बेहतर लिख दिया तो लकीर क्या पीटना .
    बड़े लोगों के बारे में इस तरह की अनेक बातें चर्चा में रहती हैं और एक तबका ऐसा होता है जो इन चीजों की बात कर कर के खुश होता रहता है हम अभी तक सोचते थे कि ये आम लोगों की ही फितरत होती है पर अभी हाल ही में हेमा मालिनी की इलाहाबाद में आई आई आई टी में अमिताभ बच्चन और जवाहर लाल को लेकर की गई टिप्पणी से पता चला कि ये मानसिकता हर जगह है.
    शायद भगत सिंह, सुभाष आदि भाग्यशाली थे कि आजादी के बाद नही रहे.
  33. Dr.anurag
    देरी से आने के लिए मुआफी …..लगता है सन्डे लोग ज्यादा धमाल करते है…पर अच्छा है इस तरह की वैचारिक बहस दिमाग के कुछ दरवाजे दुबारा खोलती है .कुछ ढीले पड़े पुर्जे दुबारा कसवाती है …आजकल वैसे जमाना धाँसू है …हर विषय पर इतने शोध है ओर इतने विधार्थी .एक क्लिक पर किसी की भी जन्म पत्री खुल सकती है ….ओर उसके दोनों किस्म के चेले चपाटे जुट जाते है …समर्थन वाले भी विरोधी भी….वैसे ५० पुण्य पर एक ग़लत काम की छूट ऐसा नया विधान है शायद ?
    गणतंत्र दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाऐं.
  34. सतीश चंद्र सत्यार्थी
    “यशपाल जी भी क्रांतिकारी थे। लेखक भी थे। काफ़ी दिन जिये।…………………………………”
    मैंने “झूठा सच” को तब पढ़ा था जब मैं १२वी में था.
    सचमुच इस लेखक को वह सम्मान और ख्याति कभी नही मिल पाई जिसके वो हकदार थे |
    बहुत ही सुंदर लेख !!!!!!!!
    (अगर आप बिना किसी हर्रे फिटकरी के कोरियन लैंगुएज सीखना चाहते हैं तो मेरे ब्लॉग http://koreanacademy.blogspot.com/ पर आएं |)
  35. Shiv Kumar Mishra
    शानदार पोस्ट.
    कोई ओवरनाईट तो क्या जी कई साल लगाकर भी फुरसतिया नहीं बन सकता. फुरसतिया जी तो एक ही हैं. नेहरू जी के बारे में कही गई बात के बारे में तो हमें एक उक्ति याद आती है;
    ग्रेट मेन आर रिमेम्बर्ड फॉर देयर फेल्योर्स एंड ऑर्डिनरी फॉर देयर ट्र्याम्फ्स….
  36. लावण्या
    जितना जानेँ वही बहुत है समाज के बारे मेँ !
    – गणतँत्र दिवस की शुभेच्छाएँ “सुकुल जी”
    आपकी विवेकी , परिपक्व सोच बनी रहे -
    सिँदूर खरोँचनेवाले अपना काम करते रहेँगेँ
    - जो अपना कार्य करना चाहता है, वह करता रहता है –
    - लावण्या
  37. कुश
    आजकल गाँधी नेहरू को गाली देना तो फैशन हो गया है… पता नही आजकल के नौजवान तो बिगड़ गये है.. चलो कोई परसो के नौजवान ढूँढे जाए..
  38. कौतुक
    बिल्कुल सही कहा आपने..
    एक नीति बन चुकी है विरोध की नीति, चाहे वो तार्किक हो या तर्कहीन, शायद अज्ञानता और विचारहीनता शायद एक बड़ा कारण है. चीजों को ठीक से जानने का समय और धैर्य तो हमारे पास तो है नही, तो जानकारी आए कहाँ से? और जब जानकारी नही तो तर्क कहाँ से, अब कुछ करना भी जरूरी है तो चलो कुतर्क करें.
    एक और अच्छी रचना के लिए बधाई.
  39. अजित वडनेरकर
    शानदार…ज्यादा कुछ नहीं कहेंगे क्योंकि बाकी लोग कह गए हैं। आज दिनेश जी हमारे पास भोपाल में थे। आपको याद कर रहे थे।
    अच्छी पोस्ट। यही संतुलन और विश्लेषण पढ़ने हम आते हैं फुरसतिया के पास। बैरागी जी ने जो उक्तियां छांटी हैं, उन्हें हमने पहले ही छांट लिया था।
  40. Smart Indian
    बहुत सुंदर आलेख है, अनूप जी.
    जिनके हाथ हीरे से काले न हों वह उसपर कोयला रगड़ लेते हैं. यह कुछ लोगों का शौक होगा मगर कईयों का व्यवसाय है. ऐसे लोग नकली पासपोर्ट भी छाप सकते हैं और नकली पोस्टमोर्तोम रिपोर्ट भी.
    विद्रोही जी की कविता बिल्कुल फिट बैठी है यहाँ पर:
    काकभुशुण्ड गरुड़ से बोले
    आओ कुछ लड़ जायें चोंचे
    चलो किसी मन्दिर के अन्दर
    प्रतिमा का सिन्दूर खरोंचे।
  41. Abhishek Ojha
    ‘बोल पट्ठे सीता राम’
    कमाल लिखे हैं !
  42. Rahul Tripathi
    Hi, sir
    apka blog pda acha likte hai aur duniyadare ko bkhobe samjhte b h tbe syad shabdo s byan kar pate h.
    Mai b jaurnalism field ka ek chota sa studet ho aur har smay seek rha ho. Aur aap jai se gyane vidhawane logo k under m rahkar bhut kuch aur sekhana chahta ho. Kya aapka sahyog milega?
    Rahul tripathi
    MD/EDITOR THE NEWS 1
    email-rahultripathi959@gmail.com
    mo.9305029350
    thanku
  43. चंदन कुमार मिश्र
    काहे खाली पिटाई करने में ही लगे हैं भाई। बढ़िया। भगतसिंह ने पत्र में लिखा भी है कि मैं जिंदा रहा तो लोगों के सामने मेरी कमजोरियाँ भी आ जाएंगी और इतना महान नहीं मानेंगे लोग। यशपाल हों या राहुल सांकृत्यायन जिसे ई सब भकोलवा चाहेगा उसी को न महान बनाएगा। कुछ लोग महान होते हैं, कुछ बनाए जाते हैं और कुछ बनवाए जाते हैं…अब कोई हमें महान लगता है तो उसकी शिकायत या आलोचना भी सुनने को तैयार रहना चाहिए, ठीके बात है। लेकिन ई पालन केतना आदमी करेगा?…
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..इधर से गुजरा था सोचा सलाम करता चलूँ…
  44. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] कम से कम तुम ठीक तरह मरना [...]
  45. Dr. Data Ram Pathak
    बहुत अच्छा लगा पढ़ कर।

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