Tuesday, February 24, 2009

हमका अईसा वईसा न समझो…

http://web.archive.org/web/20140419214424/http://hindini.com/fursatiya/archives/591

30 responses to “हमका अईसा वईसा न समझो…”

  1. Dr.Arvind Mishra
    जोरदार रहा अन्तरिक्ष चिंतन -अच्छा लगा कि आपका यह ज्ञान भी अपडेट है -तनिक काक्भुशुन्दी का ब्रह्माण्ड दर्शन बकुल तुलसी पर फिर से एकबारगी नजरें फिरा लें ! भी अन्तरिक्ष ज्ञान की कई गलतियं अनसुलझी ही हैं ! अब प्रकाश की गति से तेज चलने वाला धरती से चला कोई यान मंगल ग्रह पर उतरता हुआ पहले दिखेगा ,धरती से टेक आफ करता बाद में !
    जय हो !
  2. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    काहें गुस्से में हैं जी? कवि लोगों को आकाश-पाताल एक करने दीजिए। वैज्ञानिक गण को सच्चाई का पता लगाने दीजिए। दोनो अपने काम के परफेक्ट अन्त तक नहीं पहुँच पाएंगे। यह बात पक्की है।
    इस अखिल ब्रह्माण्ड में बहुत कुछ रह जाएगा जाने बगैर। केवल कुछ अंश तक ही हमारी पहुँच होने वाली है। तो फिर सबको अपने-अपने ढंग से गोता लगाने की छूट होनी ही चाहिए। क्या फर्क पड़ता है…?
  3. mahesh chander kaushik
    अतिः उतम रचना है।साथ ही दिनांक 24.02.2009 मंगलवार की जो अमावस्या है वो भौमवती अमावस्या है तथा चन्द्रमा भी शतभिषा नक्षत्र पर है। अतः इस दिन सम्पतिशाली बनने का देवी उपाय करनें का दिन है विस्तार से मेरे ब्लोग पर पढें यदि अन्य ब्लोगर इस जानकारी को पुनः प्रकाशित करते हैं तो मुझे कोइ एतराज नहीं है।
  4. दिनेशराय द्विवेदी
    वाह! एकदम फुरसतिया आलेख।
    जब ब्रह्मांड फैल रहा है तो लक्ष्मण जी के जमाने में मटके जैसा ही रहा होगा? और हनुमान ने तो बचपन में ही सूरज को मुँह में रख लिया था, तब वह जरूर गेंद जितना ही रहा होगा? जब हम ने ये कथाएँ सच्ची माननी ही हैं तो यह मान लेने में क्या आपत्ति है?
    आप मानना चाहें तो यह भी मान सकते हैं कि धरती पर बतौर सजा आदम हव्वा आए और चाहें तो यह भी कि डार्विन सही थे। यह तो मानने मानने की बात है।
  5. ताऊ रामपुरिया
    मैं गम को जी के निकल आया, बच गईं खुशियां,
    उन्हें जीने का सलीका़ मेरी नज़र कर दे।
    आ.नन्दन जी की पंक्तियां जीवन का एक अलग ही नजरिया दिखाती हैं. बहुत सुंदर कविता आपने दी यहां पर.
    लूलिन तो हमारे को दिखा था, दिखा क्या था? मिल गया था, कह रहा था ताऊ मैं तो घूमते घूमते थक गया हूं. अब मेरा भी एक ब्लाग बनवा दो, तो थोडे दिन यहीं आराम कर लूं.
    हमने आदर्णिय मिश्रा जी का पता दे दिया है, और अभी हमारे ब्लाग पर श्री मिश्रा जी की टिपणि आई है कि वो लूलिन से दी्दे लडा रहे हैं. शायद ब्लाग की लूलिन ब्लाग कीडिस्कशन
    चल रही दिखती है.:)
    रामराम.
  6. संगीता पुरी
    लूलिन तो शायद ही किसी को दिखा हो…अधिकांश जगहों से नहीं की ही रिपोर्ट आ रही है….एक धरती तो मानवों के हाथ संभल ही नहीं पा रही….पूरे ब्रह्मांड की रक्षा क्‍या कर पाएगी…इसलिए तो सिर्फ अवलोकण का अधिकार ही मिला है हमें….शायद ग्‍लोबल वार्मिंग की वजह से अवोकण में भी दिक्‍कत आ रही हो।
  7. संजय बेंगाणी
    अपनी लघुता का अहसास करने के लिए बस नजर उठा कर अनंत आकाश को देख लेता हूँ.
  8. कुश
    अरे प्रकाश को आने में कोई समय नही लगता.. हमारे पीछे वाली गली में ही रहता है. ससुर जब देखो तब आ जाता है.. फिर ये कौनसा प्रकाश है जिसको चार साल लगते है??
    और आप भक्तो को रुष्ट नही कर सकते.. जो आपने लिखा है उसे तुरंत हटाइए वरना हम आ रहे है झंडा लेकर.. :)
  9. seema gupta
    मैं गम को जी के निकल आया, बच गईं खुशियां,
    उन्हें जीने का सलीका़ मेरी नज़र कर दे।
    ” waah waha aaj to shabd nahi hmare pass in panktiyon ke liye..”
    Regards
  10. हिमांशु
    बहुत कुछ ऐसा है इस दिमाग में भी जो अबूझ और सुदूर है। मैं सोच रहा हूं कि इस प्रविष्टि को किसी सूक्ष्म अर्थ की प्रतीति कराती हुई सामान्य अभिव्यक्ति मानूं या सामान्यतः व्यक्त कर दिया जाने वाला वाक्-विलास !
    आपकी पसंद के अंत में आ जाने से मैंने देखा है कि आपकी प्रविष्टियों से बहुत सारा ध्यान बहक कर इस पसंद पर अटक जाता है। जैसे आज ही –
    “मैं कोई तो बात कह लूं कभी करीने से,
    खुदारा!मेरे मुकद्दर में वो हुनर कर दे।”
  11. vijay gaur
    निश्चित बहुत कुछ अन्जाना है अभी और न जाने कितनी सदियों तक अन्जाना रहने वाला है बहुत कुछ।
  12. Dr.anurag
    उसको टाइम मशीन कहते है जी….हम कब से ढूंढ रहे है .पर वेटिंग लाइन लम्बी है .ओर पासवर्ड मिलता नही
  13. अजित वडनेरकर
    अजी आप तो वैसे ही बडे़ काम की चीज़ है….
    हमरी क्या मजार जो अईसा-वईसा समझ लें ?
    मैं कोई तो बात कह लूं कभी करीने से,
    खुदारा!मेरे मुकद्दर में वो हुनर कर दे।
    नंदन जी का यह शेर बहुत पसंद आया…
    साभार
    अजित
  14. परमजीत बली
    बाप का जन्म बेटा कैसे जान सकता है? सो जितना मर्जी उड़ो हाथ कुछ भी नही आएगा।सो बेहतर है जो आपने अंत मे कहा -डा.कन्हैयालाल नंदन जी शब्दो में।
  15. Gyandutt Pandey
    बड़ी दनादन दो पोस्टें ठेल दीं! फुरसत में आ गये लगता है!
  16. Isht Deo Sankrityaayan
    लगता है अरविन्द मिसिर जी ने आपको भी जगा दिया. इसीलिए इतने ज़ोर का ग़ुस्सा आपके कपारविन्द पर चड़ा हुआ है.
  17. vandana A dubey
    शानदार है…..जानदार भी…..
  18. anitakumar
    ये अंतरिक्ष की बातें वो भी गणित के साथ…अपनी समझ से तो बाहर हैं जी। हम तो इंजिनियर हैं नहीं। हम तो जब भी नजर ऊपर उठा के देखते है चंदा तारे बड़े प्यारे लगते हैं , चंदा में बैठी बुढ़िया भी दिखती है। तारों को देख शम्मी कपूर गाता दिखाई देता है ‘बदन पर सितारे लपेटे हुए…’ इस लिए भाई ये ज्ञानियों वाले नजरिए आप को और अरविन्द जी को ही मुबारक।
    नन्दन जी की कविता रोज पढ़वाई जाए, ये हमारा आग्रह है। आसमान को ताकने से ( वैसे भी बंबई में आसमान देखना सबके नसीब में नहीं, सिर्फ़ छत दिखती है) नन्दन जी की कविता को पढ़ना ज्यादा रोचक लगता है।
  19. ranjana
    प्लीज……… अपनी चिंतन सरिता इसी तरह निर्बाध बहाते रहिएगा ,ताकि हम उसमे डुबकी लगा लगा कर अपना दिन बनाते,गमकाते(सुवासित करते) रहें…….
    एकदम आनंद आ गया…..और क्या कहें…..LLLLLLLLLAAAAJJJJJAAAAAWWWWWWWWAAAAABB..
  20. विवेक सिंह
    देखिए महानुभाव आप हमारी भावनाओं को ठेस न पहुँचाएं . हनुमान जी ने सूरज को निगल लिया था मतलब निगल लिया था .फाइनल . आगे कोई बहस नहीं .
  21. pallavi trivedi
    हा हा…आपके चिंतन के तो हम कायल हो गए! सूरज को निगलने वाली बात एक बार हमारे भेजे में भी आई थी और कुछ ऐसा ही तर्क देकर अपने किसी बढे बूढे से पूछ लिया था….फिर क्या था डांट खाकर अपने सा मुंह लेकर लौट आये थे! आज आपकी बात सुनकर फिर से हौसला बढ़ गया!
  22. Anonymous
    आपकी पूरी प्रोफाइल नहीं पढ़ी लेकिन ऐसा लगता है कि बंदूक- वंदूक बनाने के कारखाने में काम करते हैं. आपके जैसा खुर्राट या दुर्दांत ब्लॉगर कोई ऐसे ही थोड़े ही बनता है. ठीक है नाम फुरसतिया है लेकिन क्या वास्तव में इतना झक्काझोर लिखने की फुरसत रहती है या फुरसज ही फुरसत. वैसे आप लिखते बढिय़ा हैं. और क्या-क्या करते हैं?
  23. कौतुक
    “कोई अतीत में जाकर अपने मां-बाप का टेटुआ दबा देगा। फ़िर उसकी पैदाइश डाउटफ़ुल हो जायेगी।” :D
    थोडा सीरियस हो कर कहें तो …
    एक धरती का तो सत्यानाश करने का इंतजाम कर लिया इन वैज्ञानिकों ने, अब दूसरी ढूंढ रहे हैं. वैसे लगता नहीं कि दूसरी धरती की खोज तक हम मनुष्य अपनी जाति को सुरक्षित रख पाएंगे.
  24. puja
    ये सब लोग लूलिन के पीछे क्यों पड़ गए हैं, मान लेते हैं की वैज्ञानिक देख कर कुछ उल्टे सीधे जोड़ घटाव करेंगे पर ये आम इंसान धूमकेतु देख कर क्या करेगा? या न देख कर क्या करेगा…हाँ ब्लॉगर जरूर धूमकेतु पर पोस्ट लिख सकता है. मज़ेदार पोस्ट है…और अंत वाली कविता बहुत अच्छी लगी हमें.
    ऐसा वैसा किसको कौन समझता है, एक हम हैं की डरते डरते टिपण्णी करते हैं कि जाने किसकी डांट पड़ जाए की क्या लिखा है.
  25. लावण्या
    नँदन जी ने बडे पते की बात कह दी !
    और नासावाले भी इस ब्रह्माण्ड का ब्योर जुटाने मेँ मिलियनोँ डालर
    जाया किये जा रहे हैँ और हनुमान जी उसे गेँद बनाकर खेल रहे हैँ
    लुलिन की चमक आकाश मेँ धूम मचाकर विलीन हो जायेगी ..
    फिर कोई दूसरा धूमकेति आएगा ..
    “सकल ब्रह्माण्ड माँ एक तू श्री हरि “( नरसिँह मेहतो )
    - लावण्या
  26. समीर लाल
    पोस्ट तो बहुत पसंद आई थी. कमेंट भी किये थे शायद. दिख नहीं रहा.
  27. बवाल
    लीलत उगलत पीर घनेरी, फ़ुर्सतिया जी ख़ूब कहै री
  28. रौशन
    ज्ञानवर्धन हो गया अपना भी
    गुरुदक्षिना में टिप्पणी अर्पण कर रहे हैं स्वीकार करें
  29. berojgar
    pata nahi aap kya likataen hain,line lenght hi samajh me nahi aa rahi hai ,lekhan ko rochak banaiye…
  30. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] हमका अईसा वईसा न समझो… [...]

Monday, February 23, 2009

चिठेरा-चिठेरी विमर्श

http://web.archive.org/web/20140419215943/http://hindini.com/fursatiya/archives/590

31 responses to “चिठेरा-चिठेरी विमर्श”

  1. irshadsir
    अपने ब्लागिंग धर्म का इतनी तन्मयता और आत्मियता से पालन करने वाला मैंने अभी तक दूसरा कोई नही देखा गुरूजी। मुझे जैसे अल्पज्ञानी भी आपको पढ़कर बहूत कुछ सीख जाते हैं। बहूत-बहुत शुक्रिया। अपनी पुस्तक में आपके बारे में एक पूरा आलेख मैंने दिया है। और आपकी एक बेहतरीन रचना को भी स्थान दिया है।
  2. कुश
    शास्त्रार्थ शब्द की धज्जिया उड़ाने वाले युग के बारे में तो आपने लिखा ही नही… जहा साहब जी अपने चेले चपा टो से घिरे आत्ममुग्धता से सारॉबार दिखते है.. और जहा कोई उनसे असहमति दिखाता है.. बस वही शास्त्रार्थ को खूँटी पे लटकाकर पेर्सनल कमेंटिंग पे आ जाते है..
    वैसे ये चिठेरी चिठेरा है कौन जो सब अंदर की बात जानते है..
    और आप कहा इनकी बाते सुनते रहते है.. ??
  3. vijay gaur
    samvad achchhe hain, chutile aur wyangy bhare. maja aa raha hai.
  4. seema gupta
    चिठेरी: नैन लड़ि जैहैं तो मनवा मां कसक हुइबै करी!
    चिठेरा:प्रेम का बजिहै जब पटाखा तो मनवा मां कसक हुइबै करी!
    चिठेरी:मिलि जैहे जो कोई कन्या तो विमर्श हुइबै करी।
    चिठेरा:जो कोई बीच मां टोकिहै तो शास्त्रार्थ हुइबै करी!
    चिठेरी:शरीफ़ को कोई फ़ंसैहे तो बड़ा दुख हुइबै करी।
    चिठेरा:ये दुनिया बड़ी जालिम है,उटपटांग कहिबै करी!
    चिठेरी:चल बहुत हुआ काम से लग वर्ना देर तो हुइबै करी!
    चिठेरा:चल मिलब फ़िर कबहूं कहूं तो मुलाकात हुइबै करी!
    ” ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha ha अब कित्ता हसें ………..”
    Regards
  5. विपुल
    चिठेरी: फुरसतिया को पढ़ा!
    चिठेरा: हाँ पढ़ा कोई तकलीफ!
  6. कुश
    अब जी क्या कहिए ऐसे लोगो से.. ये लोग तो सविता भाभी के फ़ैन है..
  7. ताऊ रामपुरिया
    आपका चिठेरा जरा नौसिखिया है. चिठेरी से इस तरह बाते कर रहा है, किसी रोज आफ़त मे फ़ंसेगा जरुर. :)
    शास्त्री जी को भी लपेट लिया आपने.:)
    रामराम.
  8. समीर लाल
    मनौना युग भूल गये..वरना तो रुठे ही रह जायें.
    चिट्ठा चिठेरी संवाद में चिठेरी विमर्श..यहाँ भी?
    नन्दन जी की रचना बहुत अच्छा लगी.
  9. archana
    “मेरी पसन्द” पढ्ने के बाद ये वाक्यांश याद आ रहे है—-
    १-”बद अच्छा बदनाम बुरा।”
    २-”बेपेंदे क लोटा घर का न घाट का।”
    ३-”वो कुए मे कुदने को कहेगा तो तुम कुद जाओगे?”
    ४-”सिर पर लगा कलंक धो नही पाओगे।”
    ५-”सब कुछ पी चुका हूं, गम क्या चीज है।”
    ६-”जो डर गया,समझो मर गया।”
    ७-”कर के तो देख।”
  10. हिमांशु
    1. आदि युग,चिट्ठाविश्व युग, नारद युग, ब्लागवाणी युग,चिट्ठाजगत युग!
    2. ब्लागस्पाट युग, वर्डप्रेस युग और अपना काम युग
    3. साधुवाद युग, असाधुवादयुग, धत-धत युग, भग-भग युग, धिक्कार युग,बहिष्कार युग,
    मार-मार युग
    4. टंकी युग, फ़ंकी युग, सनकी युग
    5. कवि युग, अकवि युग, लेख युग, देख युग, सुन युग, सर-धुन युग
    6. मुखौटा युग, चौखटा युग, फ़टाफ़टा युग, सटासटा युग
    7. क्या लिखा युग?, क्यों लिखा युग?, फ़िर लिखा युग?
    8. नारी विमर्श युग, पुरुष विमर्श युग, ब्लागर विमर्श युग, ये विमर्श युग, वो विमर्श युग
    9. सराहना युग, उलाहना युग, बहाना युग,ठिकाने लगा युग
    जबरदस्त युग विभाजन. वाह रे फ़ुरसतिया युग.
  11. mahendra mishra
    शुकुल जी
    हई
    मुखौटा युग, चौखटा युग, फ़टाफ़टा युग, सटासटा युग
    चिठेरी: नैन लड़ि जैहैं तो मनवा मां कसक हुइबै करी!
    चिठेरा:प्रेम का बजिहै जब पटाखा तो मनवा मां कसक हुइबै करी
    चिठेरी: चिठेरा
    की कहानी हुई गई है इ कौन सी चिठ्ठो की चर्चा कहात है .
    महासिवरात्रि की हार्दिक शुभकामना
  12. Dr.Arvind Mishra
    गजबै !
  13. Shiv Kumar Mishra
    गजब है चिठेरा-चिठेरी संवाद.
    वैसे ब्लागिंग युग पर एक शास्त्रार्थ करवाना उचित रहेगा. वैसे आपने महाभारत युग की बात नहीं की. मेरी कई पोस्ट का सोर्स वही युग है.
  14. puja
    चिठेरा चिठेरी के बहाने बहुत कुछ कह दिया आपने…हम तो सोच ही रहे हैं…कलयुग में इतने सरे युग देखने पड़ रहे हैं….सही है.
  15. Dr.anurag
    क्या कहे शुक्ल जी….विमर्शो से इतना डरे बैठे है की आपकी पोस्ट पर भी डरते डरते आए की ना जाने आप कौन सा नया विमर्श ले आये ….खैर कुछ से हम परिचित थे,कुछ से अब हो गये है….छोटी सी दुनिया के पहचाने रास्ते है…
  16. सुजाता
    अरे ! आज तो आप अपने पुराने ढब मे आ गए लगते हैं।बढिया लिखा !
  17. Isht Deo Sankrityaayan
    युगों का तो आपने बढिया बटवारा किया ही. ख़ास तौर से उद्धिजीवियों की आधिनिकताई समझ की जो ऐसी-तैसी की, मज़ा आ गया. बधाई.
  18. Gyandutt Pandey
    दो युग हैं प्री चिठेरा-चिठेरी युग और पोस्ट चिठेरा-चिठेरी युग!
  19. nitin
    नंदन जी की रचना बहुत पसंद आई!
  20. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    ये विमर्श क्या होता है…?
  21. anitakumar
    :) मौज लेने का इल्जाम आप पर बहुत पुराना है फ़िर भी बाज नही आये…॥मजा आ गया चिठेरी विमर्श पर …॥अनुराग की तरह हमें भी कुछ पता था कुछ यहां पता चला। नन्दन जी की कविता तो है ही सहेज रखने योग्य्। मजेदार पोस्ट
  22. Shastri JC Philip
    “उनका तो पता नहीं लेकिन जिसको चुनौती देते हैं वो अपने बाल नोचता है!”
    इस पूरे शास्त्रार्थ कांड को सुन कर ऐसा हंसा कि जो कुर्सी पिछले दस साल से मेरा साथ देती आयी है उसके सार चूल ढीले हो गये. इसका हर्जाना देने के लिये तय्यार रहें.
    आपने शास्त्रार्थ के बारे में जो लिखा है वह अपने आप में इतना क्लासिकल है कि आज रचनात्मकता के लिये मैं चिट्ठा-रचनात्मकता-शास्त्री-ऑस्कर आपके नाम घोषित किये देता हूँ!!
    चिठेरा-चिठेरी विमर्श बहुत सुंदर है. हां चिट्ठा-युगों का विश्लेषण तो बहुत सुंदर है.
    लिखते रहें, क्योंकि फिलहाल आप को फुर्सत देने की हम नहीं सोच रहे हैं!!
    सस्नेह — शास्त्री
  23. Shastri JC Philip
    पुनश्च: शिव भईया सही कहते हैं. जल्दी ही आप से एक शास्त्रार्थ करना पडेगा! आप को बाल नोचते देखना बडा आनंददायक होगा!!
  24. दिनेशराय द्विवेदी
    मजे मजे में काम कर गए।
  25. anil kant
    भैया ऐसे लपेटा लापाटी मत करो ….. कब क्या हो …फंस फसा जाओगे
  26. प्रमेन्‍द्र प्रताप सिंह
    उम्‍दा
  27. cmpershad
    चिठेरी: जहां लडकी देखी फिसल गए
    ये शौक तुम्हारा अच्छा है…
    चिठेरा: आज कल की नारियां
    देती है ये गालियां
    काम कुछ करती नहीं
    और बांधती है साडियां … लारिलप्पा लारिलप्पा लाई रे खुदा..
  28. swapandarshi
    Bahut Badhiyaa.
    Nandan ji kee kavita ke liye aabhaar
  29. विवेक सिंह
    बाल नुचवाने का षडयंत्र है सस्नेह :)
  30. काजल कुमार
    अच्छा है भई
  31. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
    [...] चिठेरा-चिठेरी विमर्श [...]