Thursday, May 28, 2009

अब तो जो पानी पिलवाय दे ,है वही नया अवतार

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38 responses to “अब तो जो पानी पिलवाय दे ,है वही नया अवतार”

  1. anil pusadkar
    आज तो लग रहा है यंहा बरखा की किरपा होकर रहेगी। गनीमत है मध्यप्रदेश से अलग होने के बाद छत्तीसगढ खासकर राजधानी रायपुर मे बिजली की कोई किल्लत नही है और पानी भी भगवान की दया से जिन्को मिल रहा है भरपुर मिल रहा है।उनमे से एक हम भी है वरना हम भी एक से एक धांसू शेर मारे रहत्ते आपकी तरह्।मज़ा आ गया बरसात का असली आनंद आ गया और इस्का मज़ा लेने निकल रहा हूं थोड़ी देर मे नागपुर-अमरावती-अकोला-भुसावल के सफ़र पर लांग ड्राईव का मज़ा लेने।स्वागत है बरखा रानी-स्वागत है और देखिये उसके आते ही बेगम लू कैसे खिसक ली जैसे सौत हो।
    अनिल भाई: हम तो कह ही रहे हैं भैया- बरखा रानी जरा जम के बरसो। लेकिन अभी तक बारिश के आसार नहीं दिख रहे हैं। लांग ड्राइव के लिये शुभकामनायें। लौट के इसके किस्से बतायें। बेगम और सौत के किस्से भी सुनायें। :)
  2. ALBELA KHATRI
    waah waah ji waah waah
    anand aagaya………..

    अलबेलाजी:
    हम भी आपके आनंद को देखकर आनंदित हो रहे हैं
  3. Manoshi
    सुंदर (अ)-दोहे हैं।
    फ़्रिज से कुल्फ़ी निकलकर, ऐंठी गरदन अकड़ाय,
    गर्मी ने झप्पी दई, दिया फ़ौरन उसको पिघलाय! :-) सुंदर
    –मानोशी

    मानोशी!
    शुक्रिया !!(अ)-दोहे इसलिये कहे गये काहे से कि ये १३-११-१३-११ वाली मात्राओं में नहीं हैं। ये दोहे फ़ुरसतिया संग दोष के कारण बिगड़ गये। कुसंग का ज्वर भयानक होता है न! :)
  4. दिनेशराय द्विवेदी
    दो दिनन से रात को बदलियाँ छुटपुट बरसात कर रही हैं। लेकिन दिन में धूप सत्यानाश कर देती है। आज सुबह से बादल छाए हैं, हम भी बैठे आस लगाए हैं।
    द्विवेदीजी: धूप बदलियों का सत्यानाश कर दे रही है। इनको दिल्ली भेज दीजिये। आज वहां सम्मेलन हो रहा है। आस बनायें रखें। :)
  5. मीनाक्षी
    बदरा बदरी भी हमारी तरह ही व्यस्त हैं… दिल्ली पहुँच कर मिन्नत करेंगे कि कुछ पल फुर्सत के निकाल कर शीतल नेह की बरखा कर जाओ….
    मीनाक्षीजी: बदरा-बदरी व्यस्त हैं और मस्त भी। आपके लिये दुआ करते हैं कि आप भी जल्द ही परेशानियों से उबर कर मस्त हो जायें। आपके बच्चे का जन्मदिन मुबारक! :)
  6. Dr.Amar Kumar

    व्याकुल गरमी सों दिखें ई फ़ुरसतिया कविराय
    कवित्त ऎसी रच रहे कि मौज़ लिया नहिं जाय

    डा.साहब: व्याकुल हम न बहुत हैं, न हैं ज्यादा हलकान
    गर्मी कुछ ज्यादा बढ़ी , सो चढ़ि आये ब्लाग-मचान।

  7. M Verma
    नल पर लंबी लाइन है, मचा है पानी हित हाहाकार,
    अब तो जो पानी पिलवाय दे , है वही नया अवतार।
    —————————-
    शानदार अन्दाज —- बहुत सुन्दर
    वर्माजी: शुक्रिया, धन्यवाद!
  8. गिरिजेश राव
    आज लखनऊ में भी फुहारें पड़ी हैं। उमस बढ़ी है। हो सकता है कि मानसून बाबा आ ही गए हों..
    शायद पहली बार यहाँ आया। विविधता देख कर मस्त हो गया हूँ।
    “7.बूंद पसीने की चली, अटकी भौहों के पास,
    बढ़ने की हिम्मत नहीं ,बहुत गर्म है सांस!”
    मजा आ गया। इसमें चश्मा पहनने वालों को भी लपेटना था। पसीना जब चश्में के सहारे आँखों घुस जाता है तो बहुत परेशान करता है।
    गिरिजेशजी लखनऊ की खबर पता चली। मानसून बाबा आयेंगे तो परिवार समेत आयेंगे। बादल, बदली, बूंदा, बांदी! आप पहली बार आये मस्त हो गये । शायद यह भी मानसून बाबा का प्रसाद है। आते रहें। चश्मा पहनने वालों के लिये आपकी फ़िक्र देखकर अच्छा लगा- हमहुं चश्मुद्दीन हैं न! :)
  9. विवेक सिंह
    दोहे पढ़ि मुसकात हम, अबहि नहावन जाइं
    बाथरूम में गिर गए, लगी चोट दिल माहिं :)
    विवेक: मुस्की तक तो ठीक है, मुलु और न सोहे तोय,
    फ़िसलन बाथरूम की बुरी,हड्डी का चूरा होय!
    :)
  10. PN Subramanian
    बड़ा मजा आया. इस बार तो पानी की किल्लत ने जीना दूभर कर दिया था. नहाने धोने के लिए जब मारामारी हो तो कूलर के लिए कहाँ से पानी मिले. अब कुछ सांस में सांस आई है. मानसून हमरे दरवज्जे पे खड़ी है. अभी केवल हलकी हलकी फुहार छोड़ रही है.
    सुब्रमनियमजी: शुक्रिया। बारिश अब तक अपने जलवे दिखाने लगी होगी। :)
  11. ताऊ रामपुरिया
    .नल पर लंबी लाइन है, मचा है पानी हित हाहाकार,
    अब तो जो पानी पिलवाय दे , है वही नया अवतार।
    एक से बढकर एक..और बहुत ही सामयिक.
    रामराम.
    ताऊजी: शुक्रिया! आपकी जय हो! :)
  12. अन्योनास्ति
    बरस गयी बरस गयी रे बदरिया ,
    कमरे माँ बैठब ऐसै ही रहा मुहाल,
    बिजुरी जाय के बाद कै तौ पूछौ न हाल,
    पंखौ गरम-गरम भपका मारे ड्रैगन के नाय ||
    अन्योनास्तिजी: शुक्रिया!! आपकी कविता पूरी बांची। मजा आ गया।
    चलै लाग की-बोरड पै फटाफट अंगुरिया ,
    काओ लिखी सोचत बैठा रहेन खुजात खोपडिया

    :)
  13. Dr.Arvind Mishra
    अब तो यह मुई गर्मी और तल्ख़ हो गयी !
    डा.अरविन्द मिश्रा: ये तल्खी आखिरी फ़ड़फ़ड़ाहट है शायद गर्मी की। :)
  14. nitin
    शायद बरखा रानी और बादल महाराज भी आपके काव्य लेखन का ही इंतज़ार कर रह थे, देखो अब तो मिलजुल के बरसेंगे।
    सुंदर रचनायें – #७ और ११ बहुत पसंद आई!
    नितिन भाई: पसंदगी के लिये शुक्रिया। बरखा रानी, बादल महाराज आज कई जगह झमाझम तो कहीं हौले-हौले बरसे हैं। :)
  15. mahendra mishra
    गजब की सोच है महाराज बदरी बदरा के साथ भाग गई . बहुत रोचक पोस्ट . पढ़कर आनंद आ गया . अब तो बदरा बदरी मिलकर डांस कर रहे है और खूब बरस कर जलवे बिखेर रहे है . आभार.
    महेन्द्र मिश्रजी: शुक्रिया। बदरा-बदरी के जलवे के क्या कहने। बनारसी कवि चकाचक बनारसी
    कहते हैं
    :
    बदरा-बदरी के पिछवऊलेस, सावन आयल का?
    खटिया चौथी टांग उठईलेस, सावन आयल का?
    :)
  16. ज्ञानदत्त पाण्डेय
    मुझे तो इलाहाबाद में नहीं, धनबाद में बारिश का इन्तजार है। वहां बारिश हो और कोयले का लदान बन्द हो। इतने कोयले के रेक आये जा रहे हैं धकाधक कि नाक में दम है!
    यह टिप्पणी रेल प्रशासन को लीक न की जाये!
    ज्ञानजी: हम कुच्छौ लीक न करेंगे लेकिन आपै सोचिये। सुबह आप अपने ब्लाग पर एथिक्स की बात करते हैं। लेकिन दोपहर को जब टिपियाते हैं तो आपका एथिक्स गो-वेन्ट-गान हो जा रहा है। धनबाद में कोयले का लदान बन्द होने से रेलवे की आमदनी कम होगी। देश का ऊर्जा-उत्पादन चौपट होगा। ई कैसी एथिक्स पालिसी है जी आपकी? :)
  17. सागर नाहर
    1 से 11 नंबर के दोहे बहुत अच्छे लगे, पर इस दोहे में हंसी आ गई
    लैला-मजनू बतियात थे, करते जुल्फ़ों, नयनों की बात,
    पानी देख लैला भगी, भरने लगी वो गगरी, ग्लास, परात!

    सागर भाई: शुक्रिया। हंसते रहना चाहिये। :)
  18. रंजन
    दोहे एक से बढ़ एक.. जोरदार…
    और दिल्ली बारिश भेजने कि आपकी इच्छा पुरी हुई.. :)आज अच्छी बारिश हुई..
    रंजनजी: शुक्रिया। बारिश की बधाई। आनन्द लीजिये। :)
  19. समीर लाल
    कहे थे कि दोहे की कक्षा में आया करो तो उस समय साईकिल लेकर जाने कहाँ घूमते रहे. अब एसन ही रचो और क्या रास्ता है..हँस तो हम भी दिये मगर!! :)
    समीरलालजी: हम सब जगह साइकिल से घूम लिये कौनौ सिखाने वाले न मिला सिवा १३-११-१३-११ जो कि हम कक्षा आठ में ही सीख लिये थे। हंसने का काम ऐसे बेमन से नहीं किया जाता है जी। ऐसा हंसना भी क्या जिससे लगे कि रुलाई छूट रही है। :)
  20. Dr.Manoj Mishra
    अब तो जो पानी पिलवाय …..
    क्या मस्त -मस्त लाइनें हैं , इन्द्र देव जल्द कृपा करो .
    मनोज मिश्र: डा.साहब देखिये आपकी पुकार पर इन्द्र देव भागते चले आये। :)
  21. manvinder bhimber
    एक से बढकर एक..और बहुत ही सामयिक.मजा आ गया।
    मनविन्दरजी: शुक्रिया। :)
  22. Abhishek
    मस्त पोस्ट है जी. सेकेण्ड हाफ तो कमाल का है ! अब बारिश भी आ रही है जी.
    अभिषेक ओझा मजे लिये रहो। बारिश भी इसी लिये आई है:)
  23. ghughutibasuti
    वाह, वाह, मजा आ गया। वैसे हमारे यहाँ तो वर्षा हो चुकी और अब बुवाई का काम जोरों पर है।
    घुघूती बासूती
    घुघूती बासूतीजी: मजा आप लीजिये लेकिन थोड़ी वर्षा इधर भी भेज दीजिये ताकि हम भी मौज ले सकें।
  24. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    वाह! यह गर्मी तो वाकई कविताई को प्रेरित करने वाली साबित हुई।
    मजेदार तुक भिंड़ाया है आपने।
    सिद्धार्थ त्रिपाठी: आप भी कुछ भिड़ा-विड़ा लो। कहां ट्रेजरी में फ़ंसे हो! :)
  25. परमजीत बाली
    अब ऐसी गर्मी मे तो ऐसी ही कविता फूटेगी।वैसे भी गर्मी पर साहित्यकार मौन रहते हैं सो इस बार उस पर भी लिखने को सभी मजबूर हो जाएगें…….अगर बरसात ना हो…….बिजली का भी यही हाल रहा तो…….गर्मी को भी कुछ पुस्तके समर्पित होगीं।:))
    बालीजी: आपकी टिप्पणी का शुक्रिया। कविता फ़ूटेगी पर हमें तो नहीं लेकिन कुछ प्रतिष्ठित कविजन को आपत्ति हो सकती है। वे शायद कहना चाहें कि कविता फ़ूटती नहीं बल्कि प्रस्फ़ुटित होती है। :)
  26. Shiv Kumar Mishra
    बहुत सामयिक (अ) दोहे हैं. एक से बढ़कर एक. आपकी संगत पाकर दोहे भी बिगड़ गए?
    गर्मी पर दोहे गढे दिए ब्लॉग पर डाल
    ब्लॉगरगण के टीप से बढ़ता जाए माल
    मिश्रजी: (अ) दोहे तो अब कायदे से बिगड़े हैं आपका संग-सुख पायकर निहाल हो रहे हैं। खुशी से बेहाल हो रहे हैं। गुदड़ी के लाल हो रहे हैं। :)
  27. हिमांशु
    सामयिक दोहे तो हैं ही । हमारे कस्बे में तो झूम-झूम मृदु गरज गरज घनघोर बादल बरसे हैं आज ।
    ’चकाचक’ की कविता सुनी है ना ! अब उसी का मौसम आने वाला है –
    “बदरी के बदरा पिछुअउलस सावन आयल का
    खटिया चौथी टाँग उठउलस सावन आयल का !”
    हिमांशु: शुक्रिया। बादल के साथ आप भी कुछ झूमिये न! चकाचक बनारसी की कविता का जिक्र मैंने ऊपर महेन्द्र मिश्र जी की टिप्पणी के जबाब में किया है। आप ई वाली कविता पूरी पढ़वाइये ने! :)
  28. रचना.
    मौज मजे,ये लेते है, पानी का ले नाम!!
    जोड तोड दोहे लिखे, फ़ुरसतिया का काम!! :)
    रचनाजी:मौज मजा चलता रहे, कित्ती अच्छी बात,
    बिना जोड़ और तोड़ के, सजे न मौज-बारात!

  29. sciblog
    अब जब आप पानी पी पी कर दोहे लिखेंगे, तो तारीफ तो करनी ही पडेगी।
    ह ह हा।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }
    रजनीशजी: अब हम कैसे रोक सकते हैं आपको तारीफ़ करने से। आप करिये। पानी पी-पीकर करिये। हम शुक्रिया कह रहे हैं। :)
  30. वन्दना अवस्थी दुबे
    पानी के ज़बर्दस्त संकट में नल से गिरता पानी!!!! अच्छा है.
  31. गौतम राजरिशी
    अहा देव…क्या लिक्खे हो…किंतु मैं पढ़ने आया तब, जब बारिश की फुहार आ चुकी है।
    इन दो पंक्तियों पर खूब तालियां देव:-
    “बूंद पसीने की चली, अटकी भौहों के पास,
    बढ़ने की हिम्मत नहीं ,बहुत गर्म है सांस”
  32. मुकेश कुमार तिवारी
    अनूप जी,
    दोहों में गर्मी की महिमा और वर्षा का इंतजार, बड़ा रोचक रहा। मुझे तो यह दोहा बहुत ही पसंद आया, गाँव, अमराई और नींम के ओटले / चौपालों की याद दिलाता हुआ :-
    आम-नीम मिलि बैठकर, रहे आपस में बतियाय,
    हिलें-डुलें तब हवा चले, कुछ पुन्य बटोरा जाय।
    सादर,
    मुकेश कुमार तिवारी
  33. - लावण्या
    लपक झपक तू आ री बदरिया
    सर सुकुल जी की खेती सूख रही है
    आ …बदरिया …आ भी जा
    :-)
    वाह उस्ताद जी बहुत बढिया लिक्खे हो आप
    – लावण्या
  34. अविनाश वाचस्‍पति
    इतनी आई हंसी कि
    आंखों से आंसुओं की नदिया बह गईं
    देखा आपने कल मानसून
    सुन कर सून ही बारिश की कहानी कह गई
    रह गई तमन्‍ना भीगने की जो
    वो भी बस में चढ़ने से पहले
    तरबतर हो गई, जल जल हो गई
    हर पल हो गई
    छल छल निच्‍छल हो गई।
  35. K M Mishra
    अनुप जी इन दोहों की किस मुंह से बड़ाई करूं, कुछ समझ में नहीं आ रहा है, इसलिए इसी घिसे पिटे मुंह से काम चला रहा हूं । शानदार ! आपकी ये पोस्ट, ये झम्मामाटे दोहे अगर ऊपर बैठे इंद्र महाराज पढ लें तो मारे खुशी के बादल फाड़ डालें । काश ।
    सालों बाद कोई दोहा मेरी समझ में आया है । इसलिए मेरी समझ बढाने के लिए प्लीज़ झउआ भर बधाई सहर्ष स्वीकार करें ।
  36. : फ़ुरसतिया-पुराने लेखhttp//hindini.com/fursatiya/archives/176
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  37. सतीश चंद्र सत्यार्थी
    भारत की गर्मी देखे दो साल गए…
    उसका भी अपना मजा है :)
  38. डियर बादल! तुम आये इतै न कितै दिन खोये
    [...] बादल-बदली के चरित्र से जोड़ रहे हैं और दोहाबाजी कर रहे हैं: बदरा, बदरी के संग में, हुआ [...]

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