Monday, February 15, 2010

टुकुर-टुकुर देउरा निहारै बेईमनवा

http://web.archive.org/web/20140421162802/http://hindini.com/fursatiya/archives/1253

32 responses to “टुकुर-टुकुर देउरा निहारै बेईमनवा”

  1. Prashant(PD)
    लोक गीत सुनना हमेशा से ही अच्छा लगता है, सो ये भी बढ़िया लगा.. :)
    कुछ समझ में नहीं आया तो मिनिग भी मिल गया, अब और क्या चाहिए??
  2. anil kant
    [:)]
    अच्छा लगा
  3. वन्दना अवस्थी दुबे
    लोक-गीत किसी भी क्षेत्र-विशेष की पहचान होते हैं. अवधी बोली के लोकगीत तो वैसे भी बहुत लोकप्रिय हैं. यहां इस सुन्दर लोकगीत सुनवा के आपने हमारी जडें याद दिला दीं. बहुत सुन्दर. (वैसे मैने पहले ही सुन लिया था.)
  4. समीर लाल 'उड़न तश्तरी वाले'
    भावार्थ बड़ा मन लगा कर लिखे हैं. :)
    बढ़िया गीत रहा.
  5. संजय अनेजा
    शुक्ला जी, आनंद आ गया। अर्थ साथ देकर हम जैसॊं के लिये आसानी कर दी। आभार।
  6. amrendra nath tripathi
    .
    अति उत्तम ! ! !
    .
    उस दिन प्रदत्त लिंक के अनुसार जब पढ़ा था तभी मन बंध गया था , यहाँ
    तो सभी पक्ष जैसे स्पर्धा कर रहे हों – क्या चित्र , क्या गीत , क्या लोकगीत , क्या
    भावार्थ ,क्या ध्वनित वस्तु , क्या ध्वनन – शैली , क्या मार्मिकता , क्या सहजता ,
    क्या खिलंदडपना-सह-डपटपना(डहपटपना भी) , क्या लोकगीतजन्य बेबाकपना , आदि – आदि ……
    .
    यह चित्रकार भी उतना ही ‘फोक’ में फुका है गोया
    बिरहा-अगिनिया उकेर कर ही मानेगा !
    .
    और आपने जो भावार्थ लिखा है उसपर उड़न – तस्तरी की सही उड़ान
    है कि ”भावार्थ बड़ा मन लगा कर लिखे हैं. ” , यह मजाक
    नहीं है सच्चाई है ! और एक राज की बात यह भी है कि जब इतने छोटे – छोटे
    वाक्य होने लगें तो मान लीजिये भावुकता पैंयाँ – पैंयाँ चल रही है ! अनुभव जैसे
    अपने आदिम रूप में जाना चाह रहे हों … इस लोक – गीत का अभिप्रेत भी तो यही है !
    ऐसा भावार्थ उस अभिप्रेत का सहज-सरल-सजल-सरस साधन है ! इस मनोयोग-पूर्ण
    साधन को प्रणाम !
    .
    लोकगीत के कंटेंट पर बहुत कुछ कहा जा सकता है पर फिर कभी ! … आज इतनी देर तक
    जगता रहा , अब लगता है कि इस अच्छी पोस्ट को पढ़ना बदा था … आभार ,,,
  7. amrendra nath tripathi
    और हाँ !
    ई गौनई तौ कइउ
    बार सुनि डारेन !

    फुरै मा …
    जिउ अघाय गा !!!
  8. M Verma
    बहुत भाव विभोर कर देने वाली गीत सुनाने के लिये आभार
    बेहतरीन
  9. हिमांशु
    झट से जोड़ दिया आपने लोक संवेदना से ! अवधी का समृद्ध लोक-पक्ष उजागर हुआ यहाँ ।
    लवकुश जी की आवाज में इसे सुनना तो और भी आनन्ददायी है ।
    चित्र भी शानदार बनवाया है आपने ! चित्र का संप्रेषण जबरदस्त है !
    हर्ष हो आया है बहुत । अवधी-अमरेन्द्र तो आ ही रहे होंगे कलेजे लगाने इस प्रविष्टि को !
  10. Dr.Manoj Mishra
    बेहतरीन पोस्ट ,गीत तो हम सभी के तन-मन में बसा है,प्रस्तुति के लिए आपको बहुत धन्यवाद.
  11. ताऊ लठ्ठवाले
    …. उस नठिया को तो बस टुकुर-टुकुर ताकना है!
    लगता है बेचारे पर होली चढ्गई है.:)
    रामराम.
  12. ज्ञानदत पाण्डेय
    यह गाना बज नहीं रहा है। सो कितना टुकुर टुकुर ताकें!
    हमेशा की तरह उम्दा पोस्ट।
  13. विवेक सिंह
    सुन्दर ।
  14. Saagar
    यहाँ तो फाग रंग चढ़ा है… वैसे टेस्ट अच्छा है…. “जोगी जी धीरे -धीरे” वाला… यह फ्लेवर जरुरी था इस बसंत में.
  15. Ranjana
    उफ्फफ्फ्फ़ क्या कहूँ…..
    गीत ने तो मन बाँध ही लिया,पर उसकी जो विवेचना की है आपने….वाह !!!
    सचमुच यह गीत केवल चित्ताकर्षक ही नहीं बल्कि ग्रामीण परिवेश में परिवार के मध्य स्थित नारी की स्थिति भी बखूबी बयां करती है…
    “तोरे संग देउरा मनइहौं फगुनवा,
    मनइहौं फगुनवा,
    जइसै वीरनवा मनावैं सवनवां,
    भौजी तोरी मइया तू मोरो ललनवा,
    टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा| ”
    शील का जिस प्रकार से संवहन किया गया है इनमे…ओह्ह्ह !!! कमाल का है…
    लाजवाब पोस्ट है…लाजवाब…आपका बहुत बहुत आभार इस अद्भुद पोस्ट के लिए…कुछ न कहते हुए भी इस एक गीत के बहाने कितना कुछ कह दिया आपने…
  16. purushottam rana
    bahut he acha laga man karta hai chu lu un pao ko jo hame gyan ke sath sath sahi raste pe chalne ke prerna deta haimouka mele to es no par ek misscal jarur mareye aapse baat kar ke mujhe bahut hr khushi milega thanks …………….09804832572
  17. Abhishek
    बढ़िया !
  18. कार्तिकेय मिश्र
    लाजवाब.. देवर भाभी के आध सूत नाजुक रिश्ते को बहुत नये ढंग से छूती है आपकी यह पोस्ट!
    अबतक इस तरह के रिश्तों में हँसी ठिठोली ही मूल भाव उभर कर आता था, लेकिन इस पोस्ट से भौजाई की संशय में पड़ी मनोवृत्ति बड़े मुखर ढंग से सामने आई है..
    अवधी-भोजपुरी क्षेत्र में पला बढ़ा होने के बावजूद इस मनोविज्ञान पर आज तक गौर नहीं किया… अजीब बात है।
  19. कार्तिकेय मिश्र
    वैसे एक बात बताइये, ई देवर-भौजाई की ठिठोली काहे सूझ रही है,, फागुन का ही असर है या कोई और बात है..?
    ऑफ द रेकार्ड ही सही..
  20. jyotisingh
    shirshak ne hi man moh liya ,jahan aagaz hi itna khoobsurat hai aage kahne ki jaroort hi nahi mahsoos hui ,aapki kalam ki roshni to adbhut hai .
  21. Dipak Chaurasiya 'Mashal'
    किस किस बात की तारीफ करुँ??? माकूल चित्र की, कमाल के लोकगीत की या फिर उसके खूबसूरत निर्वहन की?
    तीनों ने मिलकर इसे एक महत्वपूर्ण पोस्ट बना दिया.. आभार इसे चर्चा में रखने पर..
    जय हिंद… जय बुंदेलखंड…
  22. काजल कुमार
    रचनात्मकता जटिल व दुरूह तो है किंतु है प्रकृति-प्रदत्त. और इस क्षेत्र में प्रकृति अत्यंत कृपण है. अनूप जी, दुखियों (अधिकांश) की इस ब्लागबस्ती में कुछ ही ब्लाग हैं जहां आकर मन वास्तव में ही प्रसन्न होता है.
  23. Alpana
    लवकुश दीक्षित का लिखा/गाया गीत बहुत ही बढ़िया लगा .
    लोक गीत सुनने का अपना ही आनंद है.
    बहुत ही सुंदर!आभार.
  24. Manish Kumar
    शुक्रिया इस लोकगीत को यहाँ साझा करने के लिए।
  25. बवाल
    तोरे संग देउरा मनइहौं फगुनवा,
    मनइहौं फगुनवा,
    जइसै वीरनवा मनावैं सवनवां,
    भौजी तोरी मइया तू मोरो ललनवा,
    टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा|
    बहुत ही वास्तविक और जीवंत यथार्थ का परिचय देती इस पोस्ट की एक एक विषय वस्तु। फ़ुरसतिया जी,
    बस इसीलिए लोग आपके मुरीद हुआ करते हैं।
    सुन्दर अति सुन्दर ! होली पर इससे आला बात नहीं कही जा सकती।
  26. गौतम राजरिशी
    हमारे मिथिलांचल में भी खूब मैथिली गीत हैं इस विषय-वस्तु पर। मेरे ख्याल से इस भाभी-देवर के रिश्ते पर यूपी और बिहार में सर्वाधिक लोक-गीत लिखे गये हैं।
    पिछले पोस्ट जो छूट गये थे पढ़ने जा रहा हूँ अब…
  27. Dr.Danda Lakhnavi
    इस लोक गीत को मंचों पर श्री लवकुश लवकुश दीक्षित से अनेक बार सुना ……..इसे जितनी बार सुनो आनन्द बढाता है। होली की बधाई……इस अवसर पर प्रकृति भी उल्लास से सराबोर है…..उसका एक रूप एक रचना आपको नज़रानाए अकीदत …………डॉ० डंडा लखनवी !
    नेचर का देखो फैशन शो
    -डॉ० डंडा लखनवी
    क्या फागुन की फगुनाई है।
    हर तरफ प्रकृति बौराई है।।
    संपूर्ण में सृष्टि मादकता -
    हो रही फिरी सप्लाई है।।1
    धरती पर नूतन वर्दी है।
    ख़ामोश हो गई सर्दी है।।
    भौरों की देखो खाट खाड़ी-
    कलियों में गुण्डागर्दी है।।2
    एनीमल करते ताक -झाक।
    चल रहा वनों में कैटवाक।।
    नेचर का देखो फैशन शो-
    माडलिंग कर रहे हैं पिकाक।।3
    मनहूसी मटियामेट लगे।
    खच्चर भी अपटूडेट लगे।।
    फागुन में काला कौआ भी-
    सीनियर एडवोकेट लगे।।4
    इस जेन्टिलमेन से आप मिलो।
    एक ही टाँग पर जाता सो ।।
    पहने रहता है धवल कोट-
    ये बगुला या सी0एम0ओ0।।5
    इस ऋतु में नित चैराहों पर।
    पैंनाता सीघों को आकर।।
    उसको मत कहिए साँड आप-
    फागुन में वही पुलिस अफसर।।6
    गालों में भरे गिलौरे हैं।
    पड़ते इन पर ‘लव’ दौरे हैं।।
    देखो तो इनका उभय रूप-
    छिन में कवि, छिन में भौंरे हैं।।7
    जय हो कविता कालिंदी की।
    जय रंग-रंगीली बिंदी की।।
    मेकॅप में वाह तितलियाँ भी-
    लगतीं कवयित्री हिंदी की।8
    वो साड़ी में थी हरी – हरी।
    रसभरी रसों से भरी- भरी।।
    नैनों से डाका डाल गई-
    बंदूक दग गई धरी – धरी।।9
    ये मौसम की अंगड़ाई है।
    मक्खी तक बटरफलाई है ।।
    धोषणा कर रहे गधे भी सुनो-
    इंसान हमारा भाई है।।10
    सचलभाष-0936069753
  28. बेचैन आत्मा
    …टुकुरु-टकुरु देउरा निहारै बेइमनवा।
    वाह! आपके ब्लॉग पर तो अनमोल खजाने हैं .
  29. RAJ SINH
    क्या बात है अनूप जी ! न जाने ये पोस्ट कैसे छूट गयी थी .देर से आये ………..टुकुर टुकुर निहारते :) .
  30. roop
    बहुत प्रभावी रचना है , अब जाकर पढ़ा . और गायन तो और भी सुस्वादु… वाह ..क्या कहना ! …
  31. Anonymous
    क्या कहू आपके लेखो का, मैं तो दीवाना हूँ तो सिर्फ आपकी कविताओ का |
    मैं तो सलाम करता हु आपके इस दिमाग को की कैसे करते हैं ये अद्भुत रचना
    मैं तो दीवाना हूँ तो सिर्फ आपकी कविताओ का || ;-)
  32. राजकिशोर
    बहुत बढ़िया भईय्या…मजा आ गया…पढ़ने से ज्यादा आनंद सुनने में आया…

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