Sunday, July 18, 2010

….बरखा रानी जरा जम के बरसो

http://web.archive.org/web/20140419220107/http://hindini.com/fursatiya/archives/1576

33 responses to “….बरखा रानी जरा जम के बरसो”

  1. PN Subramanian
    एक्स्ट्रीमली सुन्दर. मजा आ गया. आभार.
    PN Subramanian की हालिया प्रविष्टी..भुबनेश्वर का प्राचीनतम मंदिर – परशुरामेश्वर
  2. Shiv Kumar Mishra
    पहले भी पढ़े थे लेकिन फिर से पढ़कर मन प्रसन्न. और क्या चाहिए?
    धन्य हुए फिर से बांचकर.
    वाह!
  3. चला बिहारी ब्लॉगर बनने
    गुरुदेव,
    ऊ का कहते हैं तनी धोती बगलाइए और अपना चरन स्पर्श करने का अनुमति दीजिए… हमरा दिल्ली का भी ओही हाल है… लगता है इंदर भगवान भी नेताओं से मिल गए हैं… या दिल्ली में बढता हुआ क्राईम रेट से डरा गए हैं… बादल रोज देखाई देता है लेकिन जैसे एलेक्शन डिऊटी में मास्टर सब भागल चलता है नाम कटाने के लिए, वैसे ही भाग जाता है… पता नहीं कहाँ से पैरवी लगाता है कि नमवा कट जाता है एलेक्शन डिऊटी से.. इंदर भगवान को चाहिए कि इसपर भी कमीशन बिठाए, लेकिन कहीं वो भी कमीशन लेकर गलत रिपोर्ट दिया तब तो कोई सुनवाई नहीं.
    गुरुदेव आज तो पंडित श्रीलाल शुक्ल और स्व. शरद जोशी दोनों का मज़ा आ गया. बरसात का फुहार में भीगे चाहे नहीं, आपका फुहार में सराबोर हो गए.एक फिर से चरन स्पर्श!!
  4. संगीता पुरी
    बहुत सुंदर पोस्‍ट लिखा है .. बिल्‍कुल फुरसत से सोंचते और लिखते हैं आप .. कवि सम्‍मेलन का इंतजार कर रही हूं !!
  5. प्रवीण पाण्डेय
    हमें तो पता चल गया कि बादल अनुशासनहीन हैं। सरकार को पता चलेगा तो सारी अर्थव्यवस्था की चरमराहट इसी के नाम कर दी जायेगी।
  6. काजल कुमार
    लेख के साथ-साथ सर्वेश्वर जी को पढ़वा कर मज़ा लगा दिया. धन्यवाद.
  7. amrendra nath tripathi
    इन्द्र देवता तो गजब कहर ढा रहे हैं , तकनीकी के मामले में अभी भी आयात पर भरोसा नहीं कर रहे हैं , बड़े आशावादी हैं – देवभूमि चाहे जितना दगा दे ! .. यथास्थिति से वे भी तंग आ चुके हैं , शायद ऐसी ही परिस्थिति में इन देवताओं से बड़ा सौभाग्य मनुष्यों को दिया गया – ‘सुर दुर्लभ’ ! .. ग़ालिब कहे – ‘ ऐसी जन्नत का क्या करे कोई / जिसमें लाखों बरस की हूरें हों ! ‘ .. देवता मानुस के दुःख समझें चाहे न समझे लेकिन धन्य हैं आप की देवेश के दुःख को समझ गए ! .. इंद्राणी से भी चटा-चटा महसूस रहा है जैसे .. !
    लेखन के दौरान सामयिक को रखते जाना , आपकी विशिष्ट शैली है ! और अक्सर ब्लॉग-जगत का जिक्र न हो ऐसा हो ही नहीं सकता ! दाल में नमक के चटपटे सा यह भी रहता ही है ! जरूरी भी है , पर नमक ज्यादा न हो यही कुशलता है !
    आपके मेघ ने खूब भूगोल भी बांचा है , दिलचस्प रहा यह ! हठीले मेघ , मुए अपने स्वामी की भी नहीं सुनते , बड़ी अराजकता है देवलोक में ! ‘बेचारे देव’ ! वहाँ कौन जाना चाहेगा ! ………. नवीन साम्य-विधानों ने कथ्य की ख़ूबसूरती बढ़ा दी है ! आभार !
  8. रँगरूट
    श्री रँगरूट जी को विपक्षी खेमें ने बँधक बना लिया है ।
    कुछ हल्कों से इँद्राणी पर सरकारी सँसाधनों के दुरुपयोग के लिये जाँच कमीशन बैठाने की माँग उठायी गयी है ।

    कुछेक जागरुक मेघ बारँबार तड़ित फ़ैक्स भेज रहे हैं, कि शरद पवार में उन्हें शरद प्रत्यय माफ़िक नहीं आता, अतः उनके खेती-बाड़ी मँतरू रहने तक वह इसी तरह गैरजिम्मेदार, अर्ध-लकवाग्रस्त और बेफ़ज़ूल की गरजन मचाये रहेंगे ।
    कुछेक कारी मनचली बदरियाँ नज़र बचा के चुप्पै से अपने सजन के पास फूट ली हैं ।
    गृह मँत्रालय के हवाले से सँगीता पुरी जी से रिपोर्ट माँगी गयी है.. उनकी विस्तृत रिपोर्ट की प्रतीक्षा है ।
  9. Pankaj Upadhyay
    उडीसा जाने के बाद एक परिचित शब्द के नये प्रयोग से परिचय हुआ था.. ’खतरा’..
    कुछ भी बात होती तो लोग कहते कि क्या ’खतरा’ गाया है.. क्या ’खतरा’ शाट है… कुलमिलाकर हमे ये अपने लखीमपुर वासियो के ’भौकाल’ शब्द जैसा ही लगा… अब हमारी तरफ़ से इतना सब ज्ञानवर्धक जानकारी किसलिये..
    क्यूकि बस इतना कहना था कि ’खतरा पोस्ट’.. एकदम ’खतरा’ :) टाईटिल तो उस्सै खतरा… सब ’खतरा’..
  10. Sanjeet Tripathi
    मजा आ गया बॉस, दिल खुश हो गया इसे पढ़कर तो.
    Sanjeet Tripathi की हालिया प्रविष्टी..पाठकों को समर्पित
  11. शरद कोकास
    हम तो पसीने में भीग रहे हैं इन दिनो ,, बादल रूठ गये है
    शरद कोकास की हालिया प्रविष्टी..खून पीकर जीने वाली एक चिड़िया रेत पर खून की बूँदे चुग रही है
  12. samvedana ke swar
    आपके लेखन के मुरीद हम भी हैं, सर जी!
    बहुत अच्छी लगी यह पोस्ट भी!
  13. Alpana
    बताईये आप तो इंद्र देव और इन्द्राणी जी के संवाद भी रिकॉर्ड कर लाये!
    क्या खूब कल्पना की उड़ान भरी है..
    बादलों को ड्यूटी पर भेजने की इंद्र देवता की परेशानी ..हा हा हा!
    -बदलियां .. झरने सी इठलाती ..कोलगेटिया मुस्कान बिखेरती..
    बाहोत ही रोचक :D
    Alpana की हालिया प्रविष्टी..गीता दत्त-एक सितारा जो आज भी जगमगा रहा है
  14. Alpana
    अरे वाह !ये सिस्टम बहुत ही बढ़िया है कि पहले की गयी टिप्पणी के साथ हमारी हालिया पोस्ट अपने आप प्रचारित हो रही है .ये टिप्पणी लिखने वाले को पुरस्कार तो खूब रखा है.
  15. Anonymous
    मौसम के अनुकूल पोस्ट. मज़ेदार इतनी, कि हंसी के स्पीड ब्रेकर मिलते रहे, और पूरी पोस्ट पढने में एक घंटा लग गया…. :)
    “बादल भी अब राजनीतिक दलों के नेताओं की तरह अनुशासनहीनता की हरकतें करने लगे हैं। भेजो कहीं के लिये, बरस कहीं और आते हैं…”
    ‘अरे क्या बेवकूफों की तरह बात करते हो? जहां ड्यूटी लगी है वहाँ जाना चाहिये। हमने तुम लोगों को पचास बार समझाया कि पैट्रयाट मिसाइलों जैसी हरकतें मत किया करो जो दगती किले पर हैं, गिरती आबादी पर हैं। ”
    और क्या खूब समझाइश दी है-
    पेड़ तो बादलों के लिये लंगर होते हैं। जहां पेड़ होंगे वहां बादल खूंटा गाड़ के बरस लेंगे। होते-करते पानी का ड्योढ़ा गड़बड़ गया। खर्चा हुआ ज्यादा ,जमा हुआ कम।
    हमेशा की तरह सुन्दर, जीवंत पोस्ट.
  16. Archana
    अरे..कही ब्रेअक्वा तो लगाये होते . ..पढ़ते पढ़ते कितनी बार फिसले…जितनी तेजी से आप उड़न भरते हैं..उतने ही तेजी से हम पढ़ लिए.
    फुर्सते नहीं मिली…..सांस लेने की.. :) :डी
    बोले तो एकदम धांसू …………
  17. Indranil Bhattacharjee
    बहुत ही बढ़िया पोस्ट … बहुत मज़ा आया पढके …
    Indranil Bhattacharjee की हालिया प्रविष्टी..बस हो क्षुधा निवारण
  18. Anonymous
    हम खुले में खड़े थे। आसमान महीने की अंतिम तारीख की जेब सा साफ था। अचानक मौसम किसी अवसर वादी नेता की जबान सा पलटा और बादल पिंडारियों की तरह हमारे कपड़े का सूखापन लूट कर सडकों,नालियों से होते हुये जमीन को भिगोते हुये नाले में बहने लगे .
    बहुत ही शानदार ,हम तो बस मज़ा लेने आते है यहाँ ,कहने को अपने पास कुछ नहीं .बरखा रानी से अपनी भी यही विनती है .
    क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी
    ‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’
    बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
    मेघ आये बड़े बन-ठन के ,सँवर के।
    अति सुन्दर
  19. Anonymous
    क्षितिज अटारी गदरायी दामिनि दमकी
    ‘क्षमा करो गाँठ खुल गयी अब भरम की’
    बाँध टूटा झर-झर मिलन अश्रु ढरके
    मेघ आये बड़े बन-ठन के ,सँवर के।
    अति सुन्दर
  20. SHAILENDRA JHA
    KYA BAT HAI
    WAH
    SHAILENDRA JHA
    CHANDIGARH
  21. dhiru singh
    बरसो राम धडाके से
    बुढिया मर जाये फ़ांके से
    dhiru singh की हालिया प्रविष्टी..क्वीन बेटन को कामन मैन बेटन क्यों नहीं कहते -वसीम बरेलवी
  22. वन्दना अवस्थी दुबे
    इस नयी व्यवस्था का कमाल देख रहें है न, सर? तीन-तीन टिप्पणियां बेनामी……. मतलब अकेली मैं ही नहीं हूं.. :)
  23. devendra pandey
    आधी पढ़ी आधी कल पढ़ेंगे. ..नींद आ रही है. ..पोस्ट पढ़ के नहीं..बहुत थके हैं. वो तो फुरसतिया के बगल में तितली उड़ रही देख, ललचिया के आ गये.
    devendra pandey की हालिया प्रविष्टी..एक अभागी सड़क
  24. गौतम राजरिशी
    पहले पढ़ा था क्या? शायद…
    लेकिन अभी बाँचने में खूबे मजा आया। सक्सेना जी की इस कविता के लिये धन्यवाद…
    गौतम राजरिशी की हालिया प्रविष्टी..फटा पोस्टर निकला राइटर
  25. गुलामी जेहन की बड़ी मुश्किल से जाती है « www.blogprahari.com
    [...] बादल कुछ शर्म से तथा बाकी बेशर्मी से बोला,’साहब बरसने का मजा तो मुंबई में ही है। वहां तो हीरो-हीरोइनों तक को भिगोने का मौका-मजा मिलता है। मुझे जब आपने झांसी भेजा तो स्टेशन से बरसने की शुरूआत का डौल लगा ही था ,भूरा रंग कर लिया था,हवा चला दी। मेढक की टर्र-टर्र का इंतजाम कर लिया,कौन झोपड़ी गिरानी है यह भी तय कर लिया।कौन सा नाला उफनायेगा,कहां सड़क में पानी भरेगा सब प्लान कर लिया। हम बस ‘एक्शन’कहने ही वाले थे कि साहब हमें पुष्पक एक्सप्रेस दिख गयी। सो साहब अपना दिल मचल गया। पिछले साल की याद आ गई। दिल माना नहीं और हम लटक लिये ट्रेन में और जाकर मुंबई में बरस आये। अब आप जो सजा देओ ,सो सर माथे। ‘सजा सर माथे’ सुनते ही इन्द्र भगवान ने अपना सर और माथा दोनों पकड़ लिया।’….बरखा रानी जरा जम के बरसो [...]
  26. manoj kumar
    वाह! अद्भुत!! लाजवाब!!!
    सारा समय, जब तक इसको पढते रहे, चेहरे पर बिजली, मुस्कानों की, कौंधती रही। क्या कल्पना की उड़ान भरे हैं!!!!
    तनी कवि सम्मेलनों करवाइए देते। पता नहीं ऊ तसतरी कहां है, हम ओकरा इन्तज़ार में बैठले हैं। हमहूं थोड़ा बहुत कबिता बांच लेता हूं।
    बंगाल में त इंदर भगवान मेनका, उर्बसि,रम्भा सबको लेकर नाच रहें हैं, पता नहीं आप लोग की तरफ़ से क्यों नराज़ हैं।
    इस हंसी के बाद यह भी कहना है कि आपकी इस रचना में निराधार स्वप्नशीलता और हवाई उत्साह न होकर सामाजिक बेचैनियां और सामाजिक वर्चस्वों के प्रति गुस्सा, क्षोभ और असहमति का इज़हार बड़ी सशक्तता के साथ प्रकट होता है।
  27. aradhana
    वाह क्या बात है ! देखिये मैं हँस-हंसकर लोटपोट हो गयी, तो मैं कुछ लिखने की हालत में नहीं हूँ. बस अपनी मनपसंद लाइनें चिपका रही हूँ-
    -आसमान महीने की अंतिम तारीख की जेब सा साफ था। अचानक मौसम किसी अवसर वादी नेता की जबान सा पलटा और बादल पिंडारियों की तरह हमारे कपड़े का सूखापन लूट कर सडकों,नालियों से होते हुये जमीन को भिगोते हुये नाले में बहने लगे ।
    -पेड़ तो बादलों के लिये लंगर होते हैं।
    -यहां भी हिसाब भारत दैट इज इंडिया के रुपये की तरह हो गया है जिसके जितने हिस्से का हिसाब मिलता है उससे कई गुना ज्यादा का तो मिलता ही नहीं। जितना सफेद होता है उससे कई गुना ज्यादा काला होता है।
    -अफवाह की चाल से जाना,सांसदों के वेतन-भत्ते पास होने की गति से वापस आना। ध्यान रहे कि राहत सामग्री की तरह इधर-उधर मत डोलने लगना वर्ना संसद में महिला बिल की तरह तुम्हारा अगला प्रमोशन लटकवा दूंगा।’
    … … और आजकल आप ब्लॉगकवियों के पीछे बोरिया-बिस्तर लेकर पड़ गए हैं… बेचारे ब्लॉगकवि :-)
    aradhana की हालिया प्रविष्टी..ओढ़े रात ओढ़नी बादल की
  28. बेचैन आत्मा
    फ्री-फण्ड में पानी पाते-पाते मानव जाति नराधम हो गयी
    उधर उन्होंने देखा कि बदलियों का झुण्ड खिलखिलाते हुये इधर-उधर डोलने का अहसास देते हुये पंखों को फ्राक की तरह समेटे सरपट ही,ही,ही करता भागा चला जा रहा था। इधर-उधर के आवारा बादल उनके आसपास घूमते-घूरते हुये उनसे सटने की तमन्ना सी लिये उनके आगे पीछे लग लिये।
    …शानदार लेख है. ऐसा ही पढ़ने को मिलता रहे तो ज़िंदगी कितनी खुशगवार हो जाय !
    …ऐसा लेख मिले पढ़ने को मन जब कीचड़-कीचड़ हो.
    …सर्वेश्वर दयाल सक्सेना की कविता ने तो पोस्ट में चार चाँद ही लगा दिया है.
    बेचैन आत्मा की हालिया प्रविष्टी..सरकारी अनुदान
  29. shefali
    बहुतै मस्त लिखे हैं …..
    shefali की हालिया प्रविष्टी..लाल- बॉल और पॉल
  30. गुलामी जेहन की बड़ी मुश्किल से जाती है : चिट्ठा चर्चा
    [...] बादल कुछ शर्म से तथा बाकी बेशर्मी से बोला,’साहब बरसने का मजा तो मुंबई में ही है। वहां तो हीरो-हीरोइनों तक को भिगोने का मौका-मजा मिलता है। मुझे जब आपने झांसी भेजा तो स्टेशन से बरसने की शुरूआत का डौल लगा ही था ,भूरा रंग कर लिया था,हवा चला दी। मेढक की टर्र-टर्र का इंतजाम कर लिया,कौन झोपड़ी गिरानी है यह भी तय कर लिया।कौन सा नाला उफनायेगा,कहां सड़क में पानी भरेगा सब प्लान कर लिया। हम बस ‘एक्शन’कहने ही वाले थे कि साहब हमें पुष्पक एक्सप्रेस दिख गयी। सो साहब अपना दिल मचल गया। पिछले साल की याद आ गई। दिल माना नहीं और हम लटक लिये ट्रेन में और जाकर मुंबई में बरस आये। अब आप जो सजा देओ ,सो सर माथे। ‘सजा सर माथे’ सुनते ही इन्द्र भगवान ने अपना सर और माथा दोनों पकड़ लिया।’….बरखा रानी जरा जम के बरसो [...]
  31. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] ….बरखा रानी जरा जम के बरसो [...]
  32. index
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