Tuesday, September 14, 2010

…टिप्पणी बंद करने के साइड इफ़ेक्ट

http://web.archive.org/web/20140419052750/http://hindini.com/fursatiya/archives/1675

…टिप्पणी बंद करने के साइड इफ़ेक्ट

फ़ूल
…और सतीश पंचम ने अपने ब्लॉग पर टिप्पणियां बन्द कर दीं।
पुराने जमाने में जैसे लोग नौकरी को लात मार देते थे वैसे ही कि उन्होंने टिप्पणियों को लात मार दी। लेकिन यहां तो टिप्पणियां हुई कहां जो उनको लात मारें वे। अब तो उन्होंने टिप्पणियों की वंशवेलि ही काट डाली। ब्लॉग के कमेंट बॉक्स पर ताला ठोंक दिया।
और फ़ी पोस्ट दस-बीस कमेंट वाला एक माई डीयर घराने का ब्लॉगर देखते-देखते चर्चा का विषय बन गया। एक बार टिपिया के चद्दर तान के सो जाने वाला बेचारा उठ-उठकर तीन-तीन बार टिपिया रहा है। सफ़ाई दे रहा है। शहीदाना गौरव मिलने की बजाय उसके पल्ले आई तानाशाही की खुरचन। यही बची है भैये अभी तो! अपने ऊपर लागू कर लेव।
सतीश पंचम ने अपने ब्लॉग पर कमेंट बंद कर दिये। दुबारा खोलेंगे कि नहीं यह अभी कहना ठीक नहीं। मुझे ठीक-ठीक पता नहीं कि उन ब्लॉगरों में हैं कि नहीं जो ब्लॉग लिखना बंद करने की घोषणा करने के पहले आप सबके स्नेह से अविभूत होकर दुबारा लिखना शुरू कर रहा हूं मसौदे वाली पोस्ट लिखकर ड्राफ़्ट में रखलेते हैं लेकिन ऐसा करने से उनको चर्चा माइलेज तो मिला ही है। अभी तक सतीश पंचम की चर्चा करते हुये कुछ लोग उनको गाहे-बगाहे रेणु जैसा रचनाकार कह देते थे। शायद इसलिये भी कि वे अपने वाक्यों के बाद बिन्दियां बहुत लगाते थे ……., …….., इस तरह। शायद रेणू जी भी ऐसा ही कुछ करते हों। लेकिन अब उनकी चर्चा के कारण में उनका टिप्पणियां बंद करना बड़ा कारण हो गया है।
यह कुछ ऐसे ही है कि जीवन भर गेंद फ़ेंककर पसीना बहाने वाले चेतन शर्मा की याद उस बॉलर के रूप में की जाये जिसकी आखिरी गेंद पर जावेद मियांदाद ने छक्का जड़कर अपनी टीम को जिताया था।
ऐसा लग रहा है कि एक धुर घरेलू इंसान देखते-देखते घर बैठे बाबा वैरागी हो गया। प्रंशसा पाने की सहज उद्दात मानवीय कमजोरी को धोबियापाट मारकर पटक दिया। टिप्पणियां बंद करते ही बंदा तेजी से महानता के राकेट पर सवार हो गया और देखते-देखते विश्वामित्र बन गया और अब टिप्पणी के लिये पैसे मांगने लगा। अरे भाई पैसे चाहिये तो सीधे मांग लो। अपना एकाउंट नम्बर बताओ IFSC कोड बताओ। पोस्ट लिखने के बाद चवन्नी-अठन्नी जो होगा भेज देंगे। एक पोस्ट भी लिख देंगे -सतीश भाई को पैसे की जरूरत है। यथासंभव मदद करें। इशारे से बता भी देंगे कि हम पांच रुपये पचपन पैसे दे भी आये। जब सतीश भाई इसके लिये हमें धन्यवाद देंगे तब हम उनसे शिकायत भी कर देंगे -ये आपने अच्छा नहीं किया सतीश भाई। हमने जो सहायता की उसके बारे में खुलासा करके आपने अच्छा नहीं किया। :)
बहरहाल यह सतीश जी का अपना फ़ैसला है। वे जो मन आये करें। ब्लॉगिंग में टिप्पणियों के लिये कुछ आप्शन में से एक आप्शन मात्र है यह आप्शन! मात्र एक बदलाव! अगर उनको लगता है कि इसे उनके घर में उनकी इमेज में शालीमार पेंट हो जायेगा और उनका समय बचेगा तो उनको कर लेने दिया जाये। कुछ दिन बाद जब मन आये तो फ़िर बदल लें मन और खोल दें कमेंट बॉक्स।
अब देखा जाये कि टिप्पणी बंद करने से क्या बदलाव आ सकते हैं किसी ब्लॉगर के ब्लॉग लेखन में। मतलब किनारे के क्या प्रभाव हो सकते हैं टिप्पणी बंद करने से।
1. सबसे पहली बात तो यह है कि टिप्पणी का आप्शन बंद करते ही कोई अदना सा ब्लॉगर तड़ से अलग टाइप का महान ( ? )ब्लॉगर बन जाता है। कोष्ठक के अंदर (?) की जगह अपनी श्रद्धा के अनुसार भर लें। हम जब खुद ऐसा कुछ करेंगे तो अपने लिये चिरकुट शब्द चुनना पसंद करेंगे। सतीश पंचम चाहें तो माई डियर या डेयरिंग भर सकते हैं।
2. टिप्पणी बंद करते ही ब्लॉग की कीमत में बिना आपके लगाये एडसंस लग जाता है। जो ब्लॉगर कल तक टिप्पणी के लिये पैसे देने तक को तैयार हो सकते थे वे टिप्पणी का आप्शन बंद करने पैसे मांगने लगने हैं। अब यह बात अलग है दोनों ही स्थितियों में पैसा रावणजी की सभा में अंगदजी के पांव सरीखा टस से मस नहीं होता।
3. टिप्पणी बंद करते ही आप अपने ब्लॉग पर आपकी इस बारे में राय क्या है घराने के सवाल नहीं पूछ सकते। न आप अपने लिये कैमरे/लैपटॉप का माडल सरेब्लॉग तय कर सकते हैं न ही इस बात के लिये आम जनता को परेशान कर सकते हैं कि आप अपनी सैंडो बनियाइन को बदलकर रूपा फ़्रंट लाइन की बनियाइन लें या फ़िर जॉकी की या फ़िर गांधी जी की खादी वाली बनियाइन पर उतर आयें जिसकी जेब में आप अपने ब्लॉगिंग के मसौदे भी रख सकते हैं।
4. उपरोक्त घटना के चलते आपकी ब्लॉगिंग का दायरा सिमट जाता है। आप देखते-देखते बहादुरशाह जफ़र हो जाते हैं जो आखिरी समय में सारे भारत का राजा होते हुये भी दिल्ली के कुछ इलाकों तक ही सीमित होकर रह गया था।
5. क्रमांक 4 की बात अगर आपको अपने खिलाफ़ लगती है तो इसका आप इस तरह प्रचार कर सकते हैं कि आप स्पेसिफ़िक ब्लॉगिंग करते हैं। ऐरी-गैरी पोस्टें भले लिखते हैं लेकिन ऐरे-गैरे विषयों से उसी तरह दूर रहते हैं जैसे अपने यहां सार्वजनिक स्थलों से सफ़ाई।
6. कमेंट बंद करते ही आपके ब्लॉग टेम्पलेट बदलें, फ़ॉंट बड़ा करें, मात्रा सुधारें, शेर सही करें, ये गलत है वो सही है घराने की मिशनरी समझाइशें लोकतंत्र में स्वच्छ प्रशासन की आशा की तरह देखते-देखते गायब हो जाती हैं।
7. टिप्पणियों का विकल्प बंद करते ही आपके ब्लॉग का उपयोग शौचालय की दीवार के उपयोग की तरह होने की संभावना समाप्त हो जाती है। आपके ब्लॉग पर कोई भी अपनी पोस्ट, संकलक, एजेंडे का लिंक सटाकर भाग नहीं सकता। अब यह बात अलग है इसके चलते आप आम जनता के अभिव्यक्ति के अधिकार में डंडी मारने के दोषी पायें जायें।
8. टिप्पणी विकल्प बंद करने वाला ब्लॉगर देखते-देखते सुरक्षित ब्लॉगर सा बन जाता है। आप उससे बेखटके बात कर सकते हैं बिना इस बात की चिंता किये कि वह बात-बात में अपनी किसी पोस्ट का लिंक थमा देगा।
9. टिप्पणी विकल्प बंद करने के बाद जब आप किसी दूसरे के यहां टिप्पणी करते हैं तो उसको इसकी चिंता नहीं रहती कि उसको भी आपके यहां टिपियाना है। इससे दुनिया में चिंता की औसत मात्रा कम होती है।
10. क्रमाकं 9 से उलट विचार रखने वाले मानते हैं कि ऐसे व्यक्ति की टिप्पणियां ऐसे एहसान की तरह हावी रहती हैं जिसका बोझ आप उतार नहीं सकते। इस बोझ से उबरने के लिये आपका मन उन टिप्पणियों के बदले एक ठो पोस्ट लिखने का होता है। चिंता का यह (क्रमांक 9 एवं में 10 वर्णित )सिद्धांत चिंता संरक्षण का सिद्धांत कहलाता है। इसके अनुसार दुनिया की कुल चिंता की मात्रा स्थिर है। उसे न तो नष्ट किया जा सकता है न बनाया जा सकता है। मात्र उसका रूप परिवर्तन किया जा सकता है!
11. टिप्पणी का विकल्प बंद करते ही आपके बारे में लोग पोस्टें लिखने लगते हैं। आप देखते-देखते चर्चा का विषय बन जाते हैं। जो रुतबा लोगों को गाली-गलौज, अबे-तबे करके और तमाम अन्य हरकतें करके हासिल हो सकता है वह मात्र टिप्पणी का विकल्प बंद करने मात्र से हासिल हो सकता है।
ये कुछ साइड इफ़ेक्ट हैं टिप्पणी बंद करने के। इसके अलावा बहुत से और भी हैं लेकिन सतीश पंचम के अनकिये अनुरोध पर हम उनको आपको बता नहीं रहे हैं। हालांकि इसके पीछे कोई नैतिक शपथ नही हैं न ही कोई ऐरी-गैरी अच्छी सोच। बस यह समझ लीजिये कि ……. अब छोडिये क्या बतायें। कुछ तो रहन दिया जाये। :)

हिंदी दिवस मुबारक

आज हिंदी दिवस है। सबको मुबारक हो। अच्छे-अच्छे लेख लिखें। हिन्दी के सेवक हिन्दी की सेवा अच्छी तरह से करें। खुश रहें। हिन्दी के चाहने वाले हिन्दी की दुर्दशा पर रोतीले लेख लिखें। डबल खुश रहें।
इस मौके मुझे अपनी निर्माणी में कुछ लोगों कोहिन्दी में कामकाज करने वालों के नाम तय करने थे और उनको इनाम के लिये संस्तुत करना था। लगभग सभी लोग कृतिदेव, आगरा फ़ांट पर टाइप करते हैं। यूनीकोड फ़ॉट की हवा नहीं लोगों को। कुछ लोगों ने तो साल में छह लाख तक शब्द टाइप किये।
इनाम के लिये प्रस्तावित अभ्यर्थी में एक ऐसे स्टॉफ़ का भी नाम भी था जो मेरे साथ काम करता है। सीधा-साधा। प्यारा-दुलारा। मैं खुश हुआ कि मेरे साथ काम करने वाला भी प्रस्तावित सूची में था। लेकिन जब उसका काम देखा तो पता चला कि बंदे ने मेरे द्वारा टाइप किये कुछ पत्र लगा रखे थे। मैंने उसको बुलाकर पूछा तो जिस तरह मुस्करा वह शरमाया उसे देखकर लगा कि अपने अवतारी पीरियड में बालिग हो चुके भगवान कृष्ण की भी मुस्कराहट इतनी ही मोहनी थी क्या!

इतिहास-भूगोल-समाजशास्त्र

मेरी पिछली पोस्ट में रचना सिंह जी की एक टिप्पणी थी- “कल आप ने एक और लड़की को दब्बू बनने के लिये प्रेरित किया हैं इतिहास आप को इसके लिये शायद ही माफ़ करे .”
यह बात उन्होंने डा.दिव्या की पोस्टों के संदर्भ में लिखी थी। डा.दिव्या , डा.अरविन्द मिश्र और (वुड बि डाक्टर) अमरेन्द्र त्रिपाठी की पोस्टों से आगे यह संभावना बन रही थी कि शायद कुछ और पोस्टें आयें जो भले ही उत्तेजना में पोस्ट हो जायें लेकिन हासिल किसी को कुछ कुछ नहीं होगा सिवाय इनकी ब्लॉग हंसाई के और लोगों के चिरकुट मनोरंजन के। संयोग से डा.दिव्या ने मुझसे बात की तो मैंने जो राय दी वही राय मैं किसी को भी देता। डा.दिव्या ने अपनी पोस्टें बिना कुछ कहे हटा लीं। इसके बाद मेरे ऊपर भलमनसाहत का दौरा पड़ा और मैंने गिरिजेश राव से डा.अरविन्द मिश्र का नंबर लेकर उनको फ़ोन किया और फ़िर (वुड बि डॉ )अमरेन्द्र को। उनसे अनुरोध किया कि अपनी बहादुरी को थोड़ा सा स्थगित रखें। डा.अरविन्द जी ने हालांकि हल्का उपदेशाचार्ज किया और अपनी पोस्ट तो नहीं हटाई लेकिन सुबह अपनी उसी पोस्ट में अपने ही अंदाज में बदलाव कर दिया।
इस बात को रचनाजी ने लड़की को दब्बू बनने के लिये प्रेरित करने वाली घटना बताया और यह भी कि इतिहास माफ़ नहीं करेगा मुझे।
मैं सिर्फ़ इतना कहना चाहता हूं कि जो मैंने किया उसके बारे में मुझे कोई भ्रम नहीं है कि मैंने कुछ गलत किया। मेरे अपने परिवार के सदस्य होते तो भी मैं यही करता। बाकी इतिहास की चिंता मुझे बिल्कुल नहीं है। मैंने जो किया वह मैंने अपनी सोच के अनुसार किया और इसका मुझे सुकून है कि इस मौके पर ऊल-जलूल की बातें लिखकर मौज लेने की अपनी सहज प्रवत्ति पर अंकुश रख रखा। जहां तक किसी को दब्बू बनाने की बात है,तो बहादुरी के मौके असंख्य हैं। एक खोजो, हजार मिलते हैं। यह अलग बात है कि असफ़ल बहादुरी को अक्सर लोग बेवकूफ़ी बताते हैं और यह और भी अलग बात है कि सच्चे बहादुर इस तरह की बाते कहने वालों की परवाह नहीं करते हैं।
यह बात रचनाजी की टिप्पणी पर अपना पक्ष रखने के लिये लिखी क्योंकि मुझसे कुछ दोस्तों ने पूछा कि कौन सा मामला है जिसमें इतिहास ने तुमको सम्मन जारी किया है।
मन करे तो यह भी देख लें: ….मॉडरेशन के इंतजार में टिप्पणियां

मेरी पसंद

चला भी जाऊं तो तुम इंतेज़ार मत करना
और अपनी आंख कभी अश्कबार मत करना
उलझ न जाए कहीं दोस्त आज़माइश में
कि ख़्वाहिशें कभी तुम बेशुमार मत करना
मैं जानता हूं कि तख़रीब है तेरी आदत
हरे हैं खेत इन्हें रेगज़ार मत करना
मेरी हलाल की रोज़ी सुकूं का बाइस है
इनायतों से मुझे ज़ेर बार मत करना
जो वालेदैन ने अब तक तुम्हें सिखाया है
अमल करो, न करो, शर्मसार मत करना
सड़क भी देंगे वो पानी भी और उजाला भी
सुनहरे वादे हैं बस,ऐतबार मत करना
मुझे तो मेरे बुज़ुर्गों ने ये सिखाया है
उदू की फ़ौज पे भी छुप के वार मत करना
तुम्हारे काम ’शेफ़ा’ गर किसी को राहत दें
बजाना शुक्र ए ख़ुदा इफ़्तेख़ार मत करना
तख़रीब= बर्बाद करना ; रेग ज़ार =रेगिस्तान ; बाइस =कारण ; ज़ेर बार =एहसान से दबा हुआ
इफ़्तेख़ार =घमंड
इस्मत जैदी’ शेफ़ा’

50 responses to “…टिप्पणी बंद करने के साइड इफ़ेक्ट”

  1. Pankaj Upadhyay
    फ़िलहाल तो ’चिंता संरक्षण का सिद्धांत’ सीखकर निकल रहा हूँ ;)
    Pankaj Upadhyay की हालिया प्रविष्टी..एक कॉफ़ी और ढेरों कोरी पर्चियाँ
  2. वाणी गीत
    सड़क भी देंगे वो पानी भी और उजाला भी
    सुनहरे वादे हैं बस,ऐतबार मत करना…
    ऐतबार मत करना..ये पहले लिखने की बात थी …!
    वाणी गीत की हालिया प्रविष्टी..आख़िर लाचार कौन था
  3. rachna
    आप ने अपना पक्ष रख कर मामला रफा दफा कर दिया । आप ने सही किया या गलत किया ये भी आप ने कह दिया आप का नज़रिया हैं । आप ने कहा कोई आप के परिवार का होता तो भी आप यही करते बस यही फरक हैं सोच का । ब्लोगिंग परिवार नहीं हैं । आप को जब मे २००७ मे ब्लोगिंग मे आयी थी बड़ा भाई कहा जाता था । आप के विरुद्ध जा कर मैने नीलिमा / ज्ञानदत/ खिचड़ी प्रसंग पर लिखा था और आप के परम मित्र जो आज कल सक्रिये नहीं हैं ने एक ब्लॉग पर जा कर मेरे ही नहीं मेरे माता पिता के भी विरुद्ध टिपण्णी की थी । उस समय ये प्रेम भाव क्यूँ जागृत नहीं था ??? उस समय आप ने कहा था “ज्ञान जी को मौज लेना नहीं आता ” . ये सौहार्द केवल और केवल उस समय क्यूँ जागृत हुआ जब अमरेन्द्र जो की आप के ब्लॉग सहयोगी भी एक ब्लॉग पर इस प्रकरण मे आये । सब जानते हैं अमरेन्द्र और अरविन्द के बीच तनातनी हैं और आप और अमरेन्द्र आज कल बंधुत्व मे बंधे हैं । अगर बात केवल और केवल अरविन्द और दिव्या के बीच होती तो भी पोस्ट केवल दिव्या की ही डिलीट होती क्युकी सामजिक प्रतिष्टा का भय आप उसको ही दिखा सकते थे ।
    बीच बाचाव करने की पक्षधर मे इस लिये नहीं हूँ क्युकी यहाँ बहुत से खेमे हैं और दूसरी बात यहाँ हर कोई बड़ा भाई बनने का इच्छुक हैं ऑनलाइन । इस पर दिव्या जी भी भड़क गयी हैं और ब्लॉग संसद ब्लॉग पर उन्होंने कह ही दिया हैं वो किसी की बहिन नहीं हैं । कही ये भी पढ़ा था की जो पोस्ट आप ने उनकी हटवाई उसको हटाने का भी उनको पछतावा हैं ।
    आप सब के इस बीच बचाव प्रोग्राम मे कभी सतीश सक्सेना आप के और समीर के बड़े भाई बन जाते हैं और कभी आप किसी को परिवार का मान लेते हैं । यानी परिवार से हट कर ब्लोगिंग हैं ही नहीं । इतिहास दोहरा ले कम से कम मन मे और फिर देखे क्या इस “कपडा उतार ” प्रक्रिया के लिये आप खुद कितने ज़िम्मेदार हैं ।
    “वो अच्छी औरते नहीं हैं ” ये मेरे और सुजाता के लिये इस्तमाल की जाने वाली tag लाइन हैं किसने दी सोचे ना याद आये गूगल करे । उम्मीद हैं इतिहास जो नेट पर हमेशा सुरक्षित हैं मिल जाएगा
    और
    कमेन्ट ना छापना चाहे कोई शिकायत नहीं होगी क्युकी ये कमेन्ट इस लायक है ही नहीं की मुआ छपे , इस को तो पोस्ट होना चाहिये था बिना लाग लपेट के !!!
  4. Shiv Kumar Mishra
    एक स्वस्थ बहस को आमंत्रित करती सुन्दर पोस्ट!
    बधाई!
    आभार!
    Shiv Kumar Mishra की हालिया प्रविष्टी..मुन्नी जी- कोई भी बदनामी आख़िरी नहीं होती
  5. satish saxena
    आप नहीं सुधरोगे … हर एक की टांग खिंचाई और तुड़ाई …इतिहास तुम्हे वाकई माफ़ नहीं करेगा गुरु इस पंगेवाजी के लिए … कमेन्ट बंद कर दिया तब भी आपको कुर्सी पर बैठे चैन नहीं जो इतनी लम्बी पोस्ट लिख मारी , कमेन्ट दुबारा खोलने पर न जाने क्या करोगे महाराज …
    कुछ कमेन्ट का गंभीरता से जवाब दे सको तो अवश्य देना …हालांकि आपका भरोसा कुछ नहीं प्रभो …
  6. प्रशान्त (PD)
    वो सारा प्रसंग पढ़ कर हम तब भी खूब हँसे थे, आज भी हँस रहे हैं.. हाँ मगर टिपिया पहली बार यहाँ रहे हैं.. :)
    प्रशान्त (PD) की हालिया प्रविष्टी..बेवजह
  7. rachna
    हाँ
    पोस्ट शानदार हैं दमदार हैं नमकीन हैं मीठी हैं
    हा हा ही ही ठा ठा ठी ठी हैं कुछ भी नहीं ग़मगीन हैं
    पंचम से सक्सेना को मारा हैं
    कहीं पे निगाहे हैं
    तो कहीं पे निशाना हैं
  8. sanjay
    सतीश पंचम जी के लेखन के हम फ़ैन हैं, मस्त लिखते हैं, बिंदास लिखते हैं और चीजों का देखने का उनका एक अलग नजरिया है। उन्होंने टिप्पणी ऑप्शन बंद करने की जो वजह बताई है, उससे एक दम से असहमत तो नहीं हो सकते। हाँ, लेटेस्ट पोस्ट उनकी इमोशनल अत्याचार की कैटेगरी में आती है, उनपर मुकदमा चलाया जा सकता है। रही बात टिप्पणी ऑप्शन खोलने के बदले पैसे की, तो जिसे गरज होगी वो इस सुविधा का लाभ उठायेगा(ब्लैक्मेलिंग का शिकार होगा)। हमारे पास तो ईमेल आईडी है उनकी, एक आध छुट्टी उनके नाम ही सही, भर देंगे मेल बक्सा, बिना पैसे धेले खर्च किये।
    फ़ैन वैसे हम आप के भी हैं, बल्कि अंदाज-ए-मौज के फ़ैन है। एक बार फ़िर से मस्त पोस्ट लिखी है आपने।
    जिसे आपने मेरी पसंद कैटेगरी में लिखा है, उसे कापी करके लिये जा रहा हूँ, मेरी भी पसंद हो गई है ये। बहुत खूबसूरत जज़्बात हैं।
    sanjay की हालिया प्रविष्टी..बिछड़े सभी बारी बारी-३
  9. विवेक सिंह
    ऊपर चित्र में जिसका अँगूठा मोबाइल दबा रहा है उसके दो लड़के और एक लड़की होने का योग है ।
    विवेक सिंह की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी-डे का सेलीब्रेशन
  10. arvind mishra
    आपके बस इसी (यथोक्त ) कदम से मैं आपके ६ खून माफ़ कर चुका हूँ ,जिसमें ३ आप अभी भी कर सकते हैं लाईव हैं ..एक माफ़ नहीं होगा जो बहुत पहले ही हो चुका है -मतलब कुल सात में से अभी भी तीन खून आप कर सकते हैं -पूरी छूट है -एक मोहतरमा को भी क्यों न निपटा दीजिये !
    :) आज अंग्रेजों की बेतहाशा याद आ रही है …
    मैं सुबह यही सोच रहा था की एक पोस्ट आज मैं भी लिखू और आने वाली टिप्पणी पर प्रति टिप्पणी दस रूपये “टिप्पणी दान” करूं-इतना पैसा है मेरे पास और समाज सेवा में दस पञ्च हजार खर्चने का जज्बा रहता है ….
    किसे लेना है टिप्पणी दान -महा ब्राह्मणों का आह्वान है !
  11. विवेक सिंह
    और हाँ काम की बात बताना तो भूल ही गए ।
    जिस किसी सज्जन को सतीश पंचम जी के ब्लॉग पर टिप्पणी भेजनी हो वे हमारे ब्लॉग पर भेज सकते हैं । हम नि:शुल्क उन तक पहुँचा देंगे ।
    धन्यवाद !
    विवेक सिंह की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी-डे का सेलीब्रेशन
  12. sangeeta swarup
    सतीश जी तो टिप्पणियाँ बक्सा बंद करके चर्चित हो गए ….
    नक़ल में भी अकल कि ज़रूरत होती है …आपके पेचे संभाल कर कुछ तो अकल का करिश्मा हुआ ही …
    सामाजिक उत्थान के लिए इतिहास में नाम आ जाये तो क्या बुराई है ?
    गज़ल लाजवाब …हर शेर उम्दा …आभार
    sangeeta swarup की हालिया प्रविष्टी..साँप – सीढी
  13. मनोज कुमार
    ये तो पोस्टों से भरी पोस्ट है।
    और यहां पोस्ट भी टिप्पणी पोस्ट है।
    तो मैं हिन्दी दिवस पर ही केन्द्रीत हूं आज।
    कल फिर आउंगा बाक़ी के लिए।
    बहुत अच्छी प्रस्तुति। हार्दिक शुभकामनाएं!
    राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
    मैं दुनिया की सब भाषाओं की इज़्ज़त करता हूँ, परन्तु मेरे देश में हिन्दी की इज़्ज़त न हो, यह मैं नहीं सह सकता। – विनोबा भावे
    हरीश प्रकाश गुप्त की लघुकथा प्रतिबिम्ब, “मनोज” पर, पढिए!
    मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..लघुकथा – प्रतिबिम्ब
  14. मनोज कुमार
    ट्प्पणि प्रकरण पर एक शे’र याद आया
    रहिए अब ऐसी जगह चलकर जहां कोई न हो,
    हमसुखन कोई न हो हमज़बां कोई न हो।
    बेदर-ओ-दीवार सा इक घर बनाना चाहिए,
    कोई हमसाया न हो और पासबां* कोई न हो। * – दरवान
    — मिर्ज़ा ग़ालिब
    मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..लघुकथा – प्रतिबिम्ब
  15. मनोज कुमार
    बाक़ी के पोस्ट पर भी एक शे’र याद आया
    इन चिरागों में रोशनी बो दो,
    टूटते मन में जिन्दगी बो दो।
    मौन हावी है जिन बहारों पर
    उन बहारों में सनसनी बो दो।
    मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..लघुकथा – प्रतिबिम्ब
  16. बीच-बचऊआ
    मुश्किलों में मुस्कराना सीखिये,
    हर फ़टे में टांग अड़ाना सीखिये।
    काम की बात तो सब करते हैं,
    आप बेसिर-पैर की उड़ाना सीखिये।

    इस पोस्ट को उसी घराने की एक अच्छी पोस्ट बूझिये
    टिप्पणी अब बेमोल नहीं, बस पोस्ट पढ़िये और फूटीये
  17. SHAILENDRA JHA
    अभी पढ़ा …… टिपण्णी बाद में …….
  18. शिवकुमार मिश्र
    आपने तो सतीश पंचम जी के बारे में लिखा…सतीश सक्सेना जी के बारे में तो लिखा नहीं. फिर सक्सेना की टांग खिंचाई की बात समझ में नहीं आई.
    प्रकाश डाला जाय, भाई,
    नहीं समझ आई
    सक्सेना जी की टांग खिंचाई
    आप उनके छोटे भाई, और
    मैं आपका
    छोटा भाई.
    शिवकुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..मुन्नी जी- कोई भी बदनामी आख़िरी नहीं होती
  19. Saagar
    आपको मजाक लगेगा लेकिन हम भी कमेन्ट का बक्सा बंद कर दें कुछ दिनों से ऐसा ही मन में विचार आ रहा है… मैं किसी के बारे में नहीं कह रहा अपनी बात बता रहा हूँ… कहे से कि हम उसी ब्लॉग पर जाते हैं जो हमारे ऊपर कमेन्ट कर के जाता है… फंडा साफ़ है … भाई उतना ही देना जितना लेना…
    बहुत बढ़िया लिखे हैं… सूक्ष्म विश्लेषण…
    एक सिरिअस बात : कभी कभी लगता है हम लोग ठीक हैं… लिमिटेड ब्लॉग्गिंग करते हैं, ज्यादा नहीं करने से बेकार के विवादों को जानने से भी बचे रहते हैं. (यह भी सिर्फ मेरे मन से जोड़ कर देखा जाये)
    Saagar की हालिया प्रविष्टी..बालिग़ बयान
  20. वन्दना अवस्थी दुबे
    लगता है, आपने हिंदी नहीं पढी. पढी होती तो “होम करते हाथ जले” कहावत भी पढी होती. और अगर कहावत पढी होती, तो उससे कुछ सीख ली होती. उम्मीद है, अब कुछ सीख ली होगी. वैसे इतिहास पुरुष बन जाना भी बहुत मायने रखता है.
    अच्छी पोस्ट.
    वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..रक्षा सूत्र कैसे-कैसे
  21. abha
    हिंदी दिवस की शुभकामनाएँ , आप को पढ़ पढ़ कर मौज का मलतब समझ में आने लगा हैं ठीक ठीक…
  22. shefali
    शीर्षक देख कर ही समझ गए थे कि लिखने वाले आप ही होंगे …
  23. shikha varshney
    :) जबर्दस्त्त टाइप का लिख दिया है ..और इतिहास में नाम का क्या .न आये ..
    सड़क भी देंगे वो पानी भी और उजाला भी
    सुनहरे वादे हैं बस,ऐतबार मत करना
    मुझे तो मेरे बुज़ुर्गों ने ये सिखाया है
    उदू की फ़ौज पे भी छुप के वार मत करना
    एकदम सटीक पंक्तियाँ..
    shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..स्टेशन की बैंच से कॉन्वोकेशन के स्टेज तकसंस्मरण की आखिरी किश्त
  24. रंजन
    धन्य हो गया…
    रंजन की हालिया प्रविष्टी..ये क्रीम मुझे दे दो मम्मा
  25. संजीव तिवारी
    चिंता संरक्षण का सिद्धांत सीखनें की जुगत लगाता हूं.
    मुझे भी फणीश्‍वर जैसे आदत हो रही थी ….. कापीराईट तो नहीं है ना किसी का ….
    संजीव तिवारी की हालिया प्रविष्टी..बस्‍तर बैंड – आदिम संगीत के साथ प्रकृति की अनुगूंज
  26. AACHARYA SHIVENDRA
    ये क्या देव …. आपने मेरे हिस्से के कमेन्ट ले उरे ….. उइसे हम अपने लिए …… बचा के रखा था ……
    बच्चे का बचत आपने खर्च कर दी …… बकाया रहा आप पर ……..लेकिन एक बात समझ नहीं आया ……
    ये कविता हमारे मन से आपके की बोर्ड तक कैसे पहुंचा …… सक की सुई मुन्न.. के तरफ है.
    बकिया इनके लिखा का क्या ……. एक दीन में ५ बार पढ़ते हैं …. और १० दिन तक गुनगुनाते हैं ……
    बहुत बढ़िया लिखे हैं… सूक्ष्म विश्लेषण…
    एक सिरिअस बात : कभी कभी लगता है हम लोग ठीक हैं… लिमिटेड ब्लॉग्गिंग करते हैं, ज्यादा नहीं करने से बेकार के विवादों को जानने से भी बचे रहते हैं. (यह भी सिर्फ मेरे मन से जोड़ कर देखा जाये) करें …… ये लिखते ही कई दिन गुजर जाने के बाद ……. साभार – सागर भाई ……
    ऊपर कट-पेस्ट है ….. ये कहने के लिए ……पढ़ते कम नहीं हैं …… हाँ …..कम लोगों को पढ़ते हैं.
    प्रणाम
  27. सागर नाहर
    कई बार लगता है आप अकेले इस तरह झगड़े निबटाते हुए थक जाते होंगे। बड़े भाई बनने का ये खामियाजा तो भुगतना ही पड़ेगा आपको।
    :)
  28. Abhishek
    अभी ऊपर किसी ने लिखा है ‘जबरदस्त टाइप का लिख दिया है’ मैंने पढ़ लिया ‘जबरदस्त टाइप कर लिख दिया है’. बात भी सही है लिखा तो टाइप कर के ही होगा.
    आपने बताया नहीं उस अवतारी पुरुष का क्या हुआ? पुरस्कार मिला?
    और जिन्हें सतीशजी के ब्लॉग पर टिपण्णी करने का मन हो मेरे यहाँ कर जाए. सधन्यवाद रख लूँगा. :)
    मैं भी गया था उनके ब्लॉग पर कहने की ठीक है अकाउंट नंबर बताइए. लेकिन अब तो पैराडॉक्स हो गया है, टिपण्णी कर नहीं सकते कि अकाउंट नंबर दो और बिन अकाउंट के पैसे नहीं भेज सकते और बिना उसके टिपण्णी नहीं कर सकते !
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..आखिरी मुलाकात
  29. dhiru singh
    आपके सानिध्य में विवेक सिंह ज्योतिष्याचार्य भी हो गये
    dhiru singh की हालिया प्रविष्टी..धीरुभाईज्म
  30. सतीश पंचम
    अनूप जी,
    पोस्ट में आपने मेरी खिंचाई करने में जरूर दरियादिली दिखाई है वरना तो अब तक मैं जानता हूँ कि कैसे कैसे व्यंग्य बाण आप छोड़ सकते थे इस टिप्पणी बंदीकरण जैसे मौजूं विषय पर।
    मेरी राय में एक ‘ब्लॉगर वेलफेयर फंड’ नाम से अकाउंट खोला जाना अति आवश्यक है ताकि जैसे ही कोई ब्लॉगर मेरी तरह टिप्पणियो के बदले पैसे मांगे तुरंत ही ब्लॉगजगत में संदेश भेज दिया जाना चाहिए की फलां ब्लॉगर ने पैसे की मांग की है…… लगता है कि उस ब्लॉगर के दिन अच्छे नहीं चल रहे हैं… बेचारा गरीबी का मारा है….. इसे चाहिए किसी हमदर्द का सिनकारा है।
    ऐसी हालत में तत्काल ब्लॉगर वेलफेयर फंड से कुछ रूपए नकद दे दवा कर उस ब्लॉगर की गरीबी दूर करनी चाहिए ताकि वह कुछ दिन मुफ्त की खा पी सके। इसमें ध्यान रखना चाहिए कि खाना तो खैर वह जो चाहे खाए लेकिन उसके पीने का बराबर प्रबंध होना चाहिए क्योंकि बहकी बहकी टिप्पणियां पीने के बाद ही हो पाती हैं और उनसे उपजे वाद विवाद ब्लॉगजगत में जीवंतता बनाए रखते हैं।
    और वैसे भी ठंडी ठंडी ब्लॉगिंग भी कोई ब्लॉगिंग है भला…….ब्लॉगिंग तो वो है जो ठंडी ठंडी बीयर के साथ हो ताकि ब्लॉगर लिख सके कि काइन्डली ‘बियर’ विथ अस इन सच क्रिटिकल सिचुएशन :)
    सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..मेरे द्वारा टिप्पणी ऑप्शन खोलने की शर्त यह है किसतीश पंचम
  31. प्रवीण पाण्डेय
    बहस का चरस,
    लगता है सरस,
    मुलुक मुलुक देखते क्यों,
    अब तो करो बस।
  32. प्रवीण शाह
    .
    .
    .
    इंग्लिश फुटबाल में एक स्ट्राईकर था‘गैरी लिनेकर’ …ज्यादा भागता दौड़ता नहीं था फील्ड में… बस विरोधी पेनल्टी ऐरिया के आस-पास ही मंडराता रहता था… पर एक बार बॉल उसके पैरों में आई… तो ज्यादातर मामलों में गोल पर सीधा हमला होता था उसका… मौके और गोल सूंघने व वहाँ पर मौजूद रहने की अनूठी क्षमता थी उसमें…
    आप ब्लॉगवुड के ‘गैरी लिनेकर’ हैं आदरणीय अनूप जी…और आज तो आपने एक ही किक (सॉरी पोस्ट) में ४-५ गोल दाग दिये हैं…धन्यभाग्य है हम सबका…जो आपको खेलता देख-पढ़ पा रहे हैं।
    आभार!

    प्रवीण शाह की हालिया प्रविष्टी..कहीं मैं बड़ा आदमी तो नहीं बन गया हूँ
  33. रवि
    इस बार आपने अपनी टिप्पणी सूक्ति – टिप्पणी बिन पोस्ट विधवा की सूनी मांग की तरह है नहीं दोहराई. अच्छा किया नहीं तो मुझे भी अपनी दर्जनों विधवा पोस्टें याद आ जातीं… :)
    रवि की हालिया प्रविष्टी..आपके लिए हिन्दी दिवस विशेष सौगात – शानदार मुफ़्त अंग्रेज़ी-हिंदी-अंग्रेजी शील की डिक्शनरी
  34. काजल कुमार
    ” टिप्पणियों का विकल्प बंद करते ही आपके ब्लॉग का उपयोग शौचालय की दीवार के उपयोग की तरह होने की संभावना समाप्त हो जाती है। “…हम्म … (मैं सोच रहा हूं)
  35. Ranjana
    हिन्दी दिवस की शुभकामनाएं…
    इस से अधिक /अलग और क्या कहें ????
    एक बात तो है…ऐसे अवसरों पर बड़ा अफ़सोस होता है कि केवल पाठक क्यों न रहे हम ….
    बड़े आराम से ,ईमानदारी से सब कह पाते थे तब…
    वैसे सही है…टिप्पणियों की ऐसी भी कोई आवश्यकता नहीं..
  36. विनोद कुमार पांडेय
  37. aradhana
    आपकी पोस्ट अच्छी लगी और अमर जी, शिव मिश्र जी और प्रवीण जी की कविता भी… आप किसी को नहीं छोड़ते. सतीश जी की भी खिंचाई कर डाली.
    aradhana की हालिया प्रविष्टी..उलझन-उलझन ज़िंदगी …
  38. Swapna Manjusha 'ada'
    बाह बाह बाह..!!
    ऐसा ही लोग-बाग आपको गुरुदेव नहीं नु कहते हैं…
    का मारते हैं…मरने बाला पानीयों ना मांगे……
    हाँ नहीं तो..!!
    Swapna Manjusha ‘ada’ की हालिया प्रविष्टी..तिनका ही था कमज़ोर सा- उसका मुक़द्दर- देखना
  39. काशिफ़ आरिफ़
    बहुत अच्छे फ़ुरसतिया जी……….एक लेख में अभुत सारे बैक लिंक दे दिये आपने….!
    ===============
    “हमारा हिन्दुस्तान”
    “इस्लाम और कुरआन”
    Simply Codes
    Attitude | A Way To Success

    काशिफ़ आरिफ़ की हालिया प्रविष्टी..हमारा हिन्दुस्तान के नये रुप में आपका स्वागत है!! अपनी राय दें!!!New Look &amp Design Of Hamara Hindustaan
  40. कुश भाई 'छोटे वाले'
    छोटे छोटे भाइयो के बड्डे भईया
    डूबेंगे किसी दिन लेके अपनी नय्या
    ढोल नगाड़े बजे शहनाईया
    करते है मोडरेट अपनी टिप्पणिया..
    छोटी छोटी बातो से
    दिल को छोटा करते है..
    चाहे ना चाहे कोई..
    झट से बड़े बन जाते है..
    शरम नहीं है इनको हाय दईया
    हे.. हे.. हे..
    हे हे..
    शरम नहीं है इनको हाय दईया
    लफड़े में फसी देखो इनकी नय्या
    होए….
    छोटे छोटे भाइयो के बड्डे भईया
    पीछे पड़े इनके देखो फुरसतिया..
    सतीश जी ने करके बंद टिप्पणिया
    नाच नचाये सबको ता ता थईया
    (तर्ज – छोटे छोटे भाईयो के बड़े भईया, फिल्म – हम साथ साथ है)
  41. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    (१)बहुत आनंद आया पोस्ट पढ़कर। अब इन्तजार है सतीश जी की छुट्टी खतम होने का। वे टिप्पणी बक्सा बन्द किए बिना भी टिप्पणियों की चिन्ता करना बन्द कर सकते थे। जो दे उसका भला जो न दे उसका भी भला टाइप दृष्टिकोण। टिप्पणी दाताओं के प्रति कोई ऑब्लीगेशन फील करने से छुटकारा पाने के चक्कर में हम प्रशंसकों को निराश कए दिया उन्होंने। क्या हमारे प्रति कोई जिम्मेदारी नहीं बची।?
    (२)आज मुझे यह पक्का विश्वास हो चला है कि शुद्ध हिंदी में टिप्पणी करने के लिए कोई एजेन्सी ऑउटसोर्स के रूप में सेवाएं दे रही है। बहुत उपयोगी सेवा है यह। मैं अपने ब्लॉग पर मुफ़्त में इसके विज्ञापन हेतु स्पेस उपलब्ध कराने को तैयार हूँ। संबंधित व्यक्ति संपर्क कर सकते हैं।:)
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..तेरा बिछड़ना फिर मिलना…
  42. drshyamgupta44
    सारे व्यर्थ के अन्जाम दिये जारहे हैं अनावश्यक , ब्लोग का दुरुपयोग है, सब नाटक है–बदनाम होंगे तो क्या नाम न होगा .
  43. amrendra nath tripathi
    रोबिन्हुड ब्लॉगर तो आप हैं ही ! कोई इच्छा दबी नहीं रहनी चाहिए ! लीजिये हम भी कह देते हैं — अहो रूपं , अहो ध्वनिः !!
    टिप्पणी आप्शन बंद करना सतीश जी का अपना फैसला है , उसपर इतनी ब्लागर-झौं झौं अनावश्यक है ! पर चलिए इसी बहाने ढुलमुल नैया भी खे ली जाय , यह भी बुरा कहाँ , वह भी इन दिनों !!
    आप ने कहा कि ” …. मेरे अपने परिवार के सदस्य होते तो भी मैं यही करता ” , आपकी इस बात की भलमनसाहत पर मुझे पूरा यकीन है , पर घर के सदय होते तो भी क्या आप इसके पूर्व की वही मौजिया प्रविष्टि ( जस्ट बीच-बचाव-इंटरव्यू वाली पिछली प्रविष्टि ) भी लिखते ?? , यदि हाँ तो मौन ही श्रेयस्कर !! आभार !
  44. शरद कोकास
    गागर में सागर इसे ही कहते हैं ।
    शरद कोकास की हालिया प्रविष्टी..भीख देने से पहले भी कभी कोई इतना सोचता है
  45. राजीव तनेजा
    दूसरों के ब्लोगज को ज्यादा ना पढ़ने से ये नुक्सान होता है कि आपको ताजातरीन ब्लॉग हलचल के बारे में पता नहीं चल पाता ..मेरे साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ है …अब इसके लिए ब्लोगवाणी के बन्द होने को दोष दूँ या फिर अपने आलस्य को?…अभी तय नहीं कर पा रहा हूँ…
    आज शायद पहली या दूसरी बार आपके ब्लॉग पर आया हूँ…अब सोच रहा हूँ कि यहाँ आ के मैंने क्या पाया और क्या खोया? …
    एक लेखक के रूप में मैंने आपकी लेखनी को खूब धारदार पाया तो आपकी मौज लेने की प्रवृति को देखकर कुछ निराशा भी हुई …खैर!..जो भी हो…आपकी लेखनी का रस लेने के लिए तो आपके ब्लॉग पर आना ही होगा …
    एक बार फिर से कहूँगा कि…”इत्ती खिंचाई काहे को करते हो यार?”
    राजीव तनेजा की हालिया प्रविष्टी..ऐसी आज़ादी से तो गुलामी ही भली थी- राजीव तनेजा
  46. sanjay
    ११ दिन निकल लिए ……
    अब तो पोस्ट बंद करने के साइड एफ्फेक्ट पर एक पोस्ट बनता है भाईजी ……..
    प्रणाम.
  47. देवेन्द्र पाण्डेय
    कमेंट बाक्स खुल गया…अभी तक आपकी पोस्ट इस पर नहीं आई ! वहाँ से सीधे यहाँ, ललुआ के आए थे।
    ..आपकी पसंद लाजवाब है।
  48. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] …टिप्पणी बंद करने के साइड इफ़ेक्ट [...]
  49. Devraj Poudel
    कु
  50. Devraj Poudel
    कु

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