Monday, April 11, 2011

जबरियन छपाई के हसीन साइड इफ़ेक्ट

http://web.archive.org/web/20140419213019/http://hindini.com/fursatiya/archives/1937

जबरियन छपाई के हसीन साइड इफ़ेक्ट

  1. जिसकी जैसी अकल होती है वह वैसी ही बात करता है।
  2. जो जैसा होता है वैसा ही दूसरों के बारे में सोचता है।
छपाई
पिछले महीने बहुत व्यस्तता में बीते। महीने के आखिरी दिन तो तारीख बदलने के कुछ मिनट पहले ही घर आ पाये।
इस बीच छुटपुट ब्लाग देखते-टिपियाते रहे। संकलक के अभाव और फ़ेसबुक के बढ़ाव में उन कुछ लोगों का ब्लाग पोस्ट लिखना कम हुआ लेकिन नये ब्लाग रोज बनते जा रहे हैं। दस-पन्द्रह-बीस की संख्या में। धीरे-धीरे ही सही ब्लाग लेखक बढ़ रहे हैं। जिनमें अभिव्यक्ति की ललक है और जिनकी पहुंच प्रिंट मीडिया तक नहीं है वे ब्लाग पर जुड़ रहे हैं।
प्रिंट मीडिया ब्लागिंग से अनजान नहीं है। गाहे-बगाहे कोई तथाकथित बड़का लेखक/पत्रकार कोई ब्लागिंग के बारे में कोई बचकाना बयान जारी कर देता है। ब्लागर उस पर हल्ला बोल देते हैं। ब्लागिंग की जय-जयकार कर लेते हैं। खुश हो लेते हैं।
लेकिन इससे अलग प्रिंट मीडिया ब्लागरों की पोस्टों को अपने अखबार में छापते रहते हैं। कुछ अखबार और पत्रिकायें भी ब्लागिंग के बारे में नियमित कालम छापते हैं। ये कालम ज्यादातर ब्लागर ही लिखते हैं। इन कालमों में या तो ब्लागरों का जिक्र होता है या समसामयिक मुद्दों पर ब्लाग में क्या लिखा जा रहा है उसकी चर्चा हो्ती है।
कुल मिलाकर यह है कि मीडिया के लोग अब ब्लाग के बारे में इतना जो समझ ही गये हैं कि ब्लाग और ईमेल में अन्तर समझने लगे हैं।
छपाई
अखबार ब्लागरों की पोस्टों से सामग्री उठाकर अपने यहां छाप लेते हैं। ज्यादातर मामलों में बिना पूछे। अक्सर छपने के बहुत दिन बाद ब्लागर तक उसकी पोस्ट अखबार में छपने की खबर पहुंचती है। ब्लागर लहालोट हो लेता है। यह सोचकर कि उसका लिखा इतना पठनीय है कि वह अखबार वाले उसको बिना पूछने छापने का लोभ संवरण नहीं कर पा रहे हैं। अपने ब्लाग से ये हसीन चोरी ब्लागर को गुदगुदाती है। हाऊ स्वीट टाइप लगने लगता है उसको अपना लेखन और वह खुद भी। कभी-कभी आस-पास के दोस्त उससे चाय-पानी के पैसे तक झटक लेते हैं।
पिछले कई सालों में मेरे कई लेख अखबार वालों ने मुझसे बिना पूछे छापे। हमारे लेखन को हमसे बिना पूछे कृतार्थ किया। अक्सर महीनों बाद दोस्तों ने उलाहने दिये -तुम तो उस अखबार में छपे थे। ये देखो लिंक। हम अक्सर शर्माकर रह गये। अपने छपने का। अपने लुटने का हमें होश ही नही रहा। खबर ही नहीं मिली।
इस बार पता चला कि हमारा एक लेख रंग बरसे भीगे चुनर वाली होली के मौके पर दो अखबारों ने छापा। एक लखनऊ से निकलने वाले अखबार जनसंदेश ने और एक स्वतंत्र भारत ने। हमको पता चला तो हम भी शर्मीली खुशी में डूब गये। यह सोचकर कि हमारा लेखन भी चोरी होने लगा। :)
अखबारों को फ़ोन करके उलाहना देने की तो खैर क्या हिम्मत होती। लेकिन मैंने सोचा कि उनके नम्बर-पते होते तो उनको शुक्रिया कह देते कि वे कित्ते अच्छे हैं जो हमारे लेखन के इत्ते मुरीद हैं कि हमको बिना बताये हमारा लिखा छापने का लोभ संवरण नहीं कर पाये।
जबरियन छपाई
लेकिन सारे जबरियन छपाई के सुख हसीन नहीं होते। पता चला कि मेरा पिछले साल होली के मौके पर लिखा लेख लिखौं हाल मैं ब्लागरगण का, माउस देवता होऊ सहाय लखनऊ से छपने वाले अखबार जनसंदेश टाइम्स इस होली पर अपने अखबार में छापा। लेख के साथ अल्पविराम, पूर्णविराम तक उठा लिया। इसकी खबर नुक्कड़ पर छपी। अखबार ने मेरे लेख शायद प्रभावपूर्ण बनाने के लिये एक और ब्लागर राजीव तनेजा की पोस्टों से कुछ चित्र भी उठा लिये। उठाकर मेरे लेख के साथ सटाकर छाप लिये। नुक्कड़ पर छपी इस खबर को बांचकर खुश-फ़ुश होने का मुझे मौका ही न मिला। हम इसे तुरंत देख न पाये।
लेकिन सब हमारी तरह गफ़लत में तो रहते नहीं है। राजीव तनेजा ने देखा होगा या फ़िर किसी ने उनको बताया होगा। उन्होंने सोचा या उनको सोचवाया गया कि मैंने यानि अनूप शुक्ल ने उनकी पोस्टों से बड़ी मेहनत से बनाये चित्र बिना बताये इस्तेमाल करके अखबार में अपना लेख छपा लिया। उन्होंने इस बारे में मुझसे जानकारी लेने की जरूरत नहीं समझी। न ही यह सोचने की जहमत उठाय़ी कि अखबार बिना बताये ही यह लेख और फ़ोटो छाप सकता है। उनको यही सोचना सही लगा कि मैंने उनकी पोस्ट से चित्र चुराकर अपना लेख छपा लिया।
यह तय करने के बाद कि उनके लेख अनूप शुक्ल ने चुराये है राजीव तनेजा ने 31 मार्च को पोस्ट लिखी जिसका शीर्षक था- अनूप शुक्ल चोर है। यह बात उन्होंने एकदम डंके की चोट पे भुनभुना कर दनदनाते हुये कही! इस लेख में विस्तार से बताया गया था कि किस तरह अनूप शुक्ल ने उनके ब्लाग से चित्र चुराकर अखबार में अपने नाम से छपे लेख में इसके में इस्तेमाल किये।
राजीव तनेजा की पोस्ट को पढ़कर मुझे अपने बारे में फ़िर से कुछ और जानकारियां मिलीं जैसे कि:
  1. ब्लॉगजगत में आप (अनूप शुक्ल) भ्रामक एवं कलिष्ट भाषा का प्रयोग कर अपने पाठकों को…अपने एक ही लेख को समझने लिए कई-कई बार पढ़ने और पढकर समझने के लिए बाध्य कर देते हैं!
  2. आप(अनूप शुक्ल) शुरू से ही ऐसे हैं या फिर जैसे दिए के बुझने से पहले उसकी लौ कुछ ज्यादा ही तेज़ी से फडफडाने लगती है.. आप भी फडफडाने लगे हैं?
  3. चोरी तो आप (अनूप शुक्ल) कर ही चुके हैं…अब खिसिया कर सीनाजोरी करते हुए खम्बा नोचने के बारे में सोचिएगा भी मत…..कहीं ऐसा ना हो कि राम भजन करने के बजाय मुँह की खाते हुए..निठल्ले बैठ…बेकार की वेल्ली कपास ओटनी पड़ जाए!
  4. आप (अनूप शुक्ल) मुझसे बड़े हैं…बड़े होने के नाते थोड़े से बुज़ुर्ग भी हैं इसलिए कायदा तो यही कहता है कि भले ही जितनी भी लीकेज हो चुकी हो आपके दिमागे शरीफ में लेकिन फिर भी गाहे-बगाहे M-SEAL का चोरी-छुपे इस्तेमाल करने से कुछ तो…थोड़ी-बहुत शर्म औ हया बची रह गई होगी आपके इस अफ्लातूनी भेजे में…तो उसी का इस्तेमाल कर कम से कम मुझे इत्तिला तो कर देते !
  5. अरे!…डायन भी तो सात घर छोड़ के वार करती है….और मैं तो आपसे सात कदम की दुरी पर भी नहीं था…बस माउस को डबल क्लिक कर के मुझे चैट बॉक्स में ही संदेसा भर दे देना था कि….
    “भय्यिये!…तुम्हारे फोटू मुझे बड़े जोरदार लगे है और मैं इन्हें अपने एक आर्टिकल के साथ पब्लिश करवा रहा हूँ”…
  6. बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि पहले आप मेरे लिए आदरणीय थे…उसके बाद अनुकरणीय हुए और अब?…अब तो धिक्कारणीय शब्द भी कम लगता है आपके लिए
  7. मानता हूँ कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड सकता लेकिन भड़भूजे की आँख फोड़ने का प्रयास तो अवश्य ही कर सकता है ..और कुछ भले ही मैं कर पाऊं या ना कर पाऊं लेकिन इतना अवश्य कर जाऊँगा कि जब भी आप या आपका कोई अन्य चहेता किसी भी सर्च इंजन में ‘अनूप शुक्ल’(हिन्दी या अंग्रेज़ी..दोनों में)… ‘फुरसतिया’ या फिर ‘हिन्दिनी’ का नाम सर्च करे तो उसे इस पोस्ट का टाईटल “अनूप शुक्ल चोर है” अवश्य दिखाई दे और बारम्बार दिखाई दे!
पोस्ट पढ़ने के बाद मैंने राजीव तनेजा को फ़ोन पर जानकारी दी कि लेख अखबार ने छापा है। मुझसे बिना पूछे। यह टिप्पणी की उनकी पोस्ट पर:
राजीव तनेजा जी, आपका उत्साह काबिले तारीफ़ है लेकिन यह सब लिखने के पहले मुझसे जानकारी ले ली होती तो बेहतर होता।
मैंने कोई लेख इस अखबार में नही भेजा। अखबार वालों ने खुद नेट से इसे चुराकर अपने अखबार में छाप लिया है शायद। इस बारे में आप अखबार से संपर्क कर ले और असली चोर पर बमबारी तो बेहतर होगा।
अखबार वालों के इस लेख का टाइटिल मेरी पोस्ट लिखौं हाल मैं ब्लागरगण का, माउस देवता होऊ सहाय से और बाकी का मसाला आपके ब्लाग से चोरी करके अपने अखबार में छाप दिया। आप अपनी पोस्टों के लिंक मुझे थमाते रहते हैं लेकिन, अनूप शुक्ल चोर है, लिखने से पहले आपने इस बारे में मुझसे जानकारी लेना उचित नहीं समझा यह आपकी समझ का परिचय देता है।
मैं अगर अपने लेख में किसी का तकिया कलाम तक प्रयोग करता हूं उसका तक उल्लेख करता हूं। किसी दूसरे की पोस्ट, सामग्री उपयोग करके कोई लेख किसी अखबार में या अपने ब्लाग पोस्ट अपने नाम से करने से बेहतर मैं लिखना बन्द कर देना समझूंगा।
अनूप शुक्ला जिनका उल्लेख अखबार में हुआ है वह कौन हैं यह आप उस अखबार से पता करिये लेकिन आपसे अनुरोध है कि आप यहां से मेरी फ़ोटो हटा दीजिये।
आपको शुभकामनायें कि आप इतनी उत्कृष्ट पोस्टें लिखते रहें ताकि अखबार वाले उनको चुराकर छापते रहें और आपको अनूप शुक्ल या किसी और को चोर बताने का मौका देते रहें।
मेरी सफ़ाई पर भरोसा करते हुये राजीव तनेजा ने बड़ी उदारतापूर्वक अपनी पोस्ट हटा दी। लेकिन उनकी पहले की तमन्ना (“अनूप शुक्ल चोर है” अवश्य दिखाई दे और बारम्बार दिखाई दे!) के मुताबिक यह नेट पर बराबर दिखाई दे रहा है। मैंने “अनूप शुक्ल चोर है” गूगल पर सर्च किया तो 0.13 सेकेंड में 11900 परिणाम दिखाई दिये। मतलब राजीव तनेजा की प्राथमिक तमन्ना उनके द्वारा पोस्ट हटाने के बाद भी पूरी हो रही है।
इस घटनाक्रम के बाद मैंने इस मसले पर काफ़ी देर सोचा। मुझे लगा कि हमारी जिन्दगी में कितनी कटुता है। राजीव तनेजा तो बड़े जिन्दादिल इंसान हैं। हर भाई चारे वाली ब्लागर मीटिंग में सपरिवार शिरकत करते हैं। ब्लाग का टाइटल हंसते रहो है। अगर उनके मन में इतना आक्रोश और अधैर्य है कि वे बिना पूरी बात जाने किसी को चोर बता देते हैं और चाहते हैं कि अगला हमेशा चोर के रूप में जाना जाये तो उन लोगों का क्या हाल होगा जो रोने-रुलाने वाली पोस्टें लिखते हैं।
यह तो अच्छा हुआ मैं उनसे दूर था। पास होता तो शायद वे मुझे और अच्छे से निपटाते । फ़िर गलतफ़हमी दूर होने पर अफ़सोस जाहिर कर देते और कहते चलिये अच्छा हुआ- एक गलतफ़हमी दूर हुई। मेरे बुजुर्ग होने के नाते अपने संस्कारवान होने का सबूत देते हुये बड़ी सभ्य भाषा इस्तेमाल की। अगर मैं उनसे बड़ा न होता और वे संस्कारवान न होते तो न जाने कौन सी भाषा इस्तेमाल करते।
किसी मित्र ने बाद में इस घटनाक्रम पर अपनी टिप्पणी करते हुये लिखा कि राजीव तनेजा को एक और पोस्ट लिखनी चाहिये जिसमें वे बतायें कि अनूप शुक्ल चोर नहीं हैं। यह भी कि वे अपनी पोस्ट में अनूप शुक्ल से खेद प्रकट करें।
इस पर किसी ने टिपियाते हुये लिखा कि -अनूप शुक्ल ने ब्लाग जगत में बहुतों की चड्डी उतारी है। इसलिये यह पोस्ट लिखकर राजीव तनेजा ने बहादुरी का काम किया है।
मुझे लगा कि शायद वह साथी लोगों की उतरी चढ्ढियां गिनता रहता है। या शायद उनको इकट्ठा करके नीलाम करने के काम में लगा हो। लेकिन उन लोगों का क्या होगा जो ब्लागजगत में आये ही दिगम्बर हैं। उनकी चढ्ढी कौन उतारेगा जो इसे पहनते ही नहीं।
मैंने यह भी सोचा कि एक पोस्ट का शार्षक लिखकर लगायें – “अनूप शुक्ल चोर नहीं हैं”! उसको बार-बार क्लिक करें और ताकि वह सबसे पहले दिखे। लेकिन लगा यह तो चोर की दाढी में तिनका वाला बात होगी।
इस सारे घटनाक्रम पर मेरे एक और मित्र की प्रतिक्रिया था कि अब आपको ब्लागजगत में अभी तक मिली सारी उपाधियों का संकलन करके एक पोस्ट लिखनी चाहिये। मैंने कहा न जाने कितनी उपाधियां मिलीं। कहां-कहां खोजूंगा। वैसे काफ़ी कुछ तो यहां लिख चुका हूं अब और क्या लिखा जाये। इस पर उन्होंने सहयोग का आश्वासन दिया – जबसे मैं ब्लागिंग में आया हूं उसके बाद की उपाधियों के लिंक तो मैं आपको दे दूंगा। मैंने सोचा कि ब्लागजगत में हर तरह के स्कोरर मौजूद हैं। कोई उतारी चढ्ढियों का हिसाब रखता है। कोई मिली उपाधियों का। यह ब्लागजगत की जीवंतता का प्रमाण है।
आपका क्या ख्याल है इस बारे में?

122 responses to “जबरियन छपाई के हसीन साइड इफ़ेक्ट”

  1. समीर लाल
    @ ज्ञानदत्त पांडे जी
    “समीर लाल चोर है” पर ३५७०० रिजल्ट निकले। इसका मायने क्या?
    यूँ तो
    “ज्ञानदत्त पाण्डे चोर है” या
    ” मानसिक हलचल वाले ज्ञानदत्त पाण्डे चोर हैं”
    सर्च करने पर इससे दूने रिजल्ट निकले. किन्तु ज्ञानदत्त लिखने पर यह नहीं दिखाता था कि “ज्ञानदत्त चोर हैं” जो कि उस पोस्ट के कारण “अनूप शुक्ल” सर्च करने पर दिखाने लगा है मगर अपनी टिप्पणी के माध्यम से आपने मुझे उसी केटेगरी में ला कर खड़ा कर दिया कि समीर लाल सर्च करने पर आपकी टिप्पणी से यह जुमला उठा ले.
    वही अगर मेरी टिप्पणी शुक्ल जी कृपा से अगर दिखने लगी, तो आगे से आपके साथ होने लगेगा.
    मेरे ख्याल में जैसा कि पोस्ट और शीर्षक लिखते समय सतर्कता और नैतिक आचरण बरतने का सुझाव उपर टिप्पणियों के माध्यम से दिया जा रहा है, वो ही टिप्पणियों के साथ भी बरता जाना चाहिये. अब आप अपनी टिप्पणी मिटा भी लेंगे तो आपके द्वारा लिखा गया मेरी शान में यह स्वर्णिम कथ्य सदा विराजमान रहेगा और मैं सदैव आपका इस हेतु आभार (भले निगेटिव) मानता रहूँगा सो ही आप मेरे लिए करते रहियेगा क्यूँकि मैने भी वही किया है उदाहरण बतौर लिखकर कि:
    “ज्ञानदत्त पाण्डे चोर है” या ” मानसिक हलचल वाले ज्ञानदत्त पाण्डे चोर हैं”
    किन्तु मेरा अब भी मानना है कि ऐसी बातें नेट पर दर्ज करना गलत है और इस तरह की हरकतों की चाहे वो टिप्पणी की माध्यम से ही हों, मैं घोर भर्तस्ना करता हूँ.
    समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..सांप चालाक हैं दूरबीन लिये बैठे हैंअन्ना संभलना!!
    1. Gyan Dutt Pandey
      आपको अगर कष्ट हुआ तो बहुत क्षमा करें। मेरे लिखने का ध्येय भी यही था कि गूगल सर्च का आंकड़ा निकाल कर कुछ प्रमाणित करना निरर्थक है।
      Gyan Dutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..एक अधकचरा इण्टरव्यू
      1. समीर लाल
        @ज्ञानदत्त जी
        आपके ध्येय या मंशा पर मुझे कोई आपत्ति न थी किन्तु जिस तरह आपने उदाहरण में वाक्य का प्रयोग किया, वह भी अब बेवजह गुगल के सर्च का हिस्सा बन चुका है. बस, वही इंगित करते हुए कहना चाहता हूँ कि न सिर्फ पोस्ट बल्कि टिप्पणी लिखने में भी सतर्कता की दरकार है.
        समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..मैं हूँ न!!
    2. फ़ुरसतिया
      @ समीरलाल,
      जैसा कि लिखा गया:
      “मेरे ख्याल में जैसा कि पोस्ट और शीर्षक लिखते समय सतर्कता और नैतिक आचरण बरतने का सुझाव उपर टिप्पणियों के माध्यम से दिया जा रहा है, वो ही टिप्पणियों के साथ भी बरता जाना चाहिये.”
      यह टिप्पणियों के प्रति सतर्कता का आवाहन अद्भुत है। मैं यह सोच रहा हूं कि क्या वे समीरलाल कोई और थे जो अनूप शुक्ल और कुश को कोसने वाली पोस्टों पर मुग्ध होकर वाह-वाही टिप्पणियां करते थे?
      1. समीर लाल
        उचित जबाब के आभाव में गुरु के द्वारा किये गये अनर्गल प्रलापों पर एक श्रेष्ट शिष्य का मौन धारण कर जाना ही शास्त्रों में धर्मानुरुप माना गया है, अतः मैं चुप रहना ही उपयुक्त समझते हुए आगे इस विषय पर वार्तालाप को समाप्त मान कर आपके सम्मान में विदा लेता हूँ.
        फिर आप स्वयं ही हमेशा सिखाते हैं कि
        1. जिसकी जैसी अकल होती है वह वैसी ही बात करता है।
        2. जो जैसा होता है वैसा ही दूसरों के बारे में सोचता है।
        ऐसे में मेरा इसे क्या दोहराना!! आप तो सर्वज्ञाता हैं ही.
        अनेक शुभकामनाएँ.
        समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..मैं हूँ न!!
  2. समीर लाल
    बाकी राजीव तनेजा जी के स्वभाविक आक्रोश एवं त्वरित प्रतिक्रिया और गुरुदेव अनूप जी के द्वारा अपनी ओर से इस छपाई घटनाक्रम के लिए दिये गये लचर तर्कों पर मेरा पूर्ववत मौन ही अब भी जारी माना जाये.
    समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..सांप चालाक हैं दूरबीन लिये बैठे हैंअन्ना संभलना!!
    1. फ़ुरसतिया
      @समीरलाल,
      जो मैंने बताया वह सच है। उसको फ़िर भी लचर तर्क बता रहे हो। साथ में गुरुदेव भी कह रहे हो। फ़िर मौन भी। ऐसे स्वत:स्फ़ूर्त चेलों से भगवान बचाये। :)
      इसके अलावा और कुछ कह भी नहीं सकते जो पोस्ट की शुरु में लिखा:
      1. जिसकी जैसी अकल होती है वह वैसी ही बात करता है।
      2. जो जैसा होता है वैसा ही दूसरों के बारे में सोचता है।
      फ़ुरसतिया की हालिया प्रविष्टी..ब्लाग पोस्ट की चोरी बचाने के कुछ सुगम उपाय
  3. समीर लाल
    अंत में:
    मुझे अब तक यह बात समझ नहीं आई कि अगर उदाहरण ही देना था तो मेरा नाम क्यूँ..ज्ञानदत्त जी खुद का नाम देते तो बेहतर उदाहरण बनता क्यूँकि उनके सर्च रिजल्ट ज्यादा आ रहे हैं.
    बात कहने के लिए खुद को उदाहरण बनाना ज्यादा बेहतर माना गया है ताकि कोई ऊँगली न उठा पाये. आशा है आगे से ध्यान रखा जायेगा इस बात का.
    अब मैं इस प्रकरण को अपनी तरफ से समाप्त करते हुए इस पर आगे कोई बात करने का उत्सुक नहीं हूँ मगर साथ ही निवेदन भी कि मेरा नाम बेवजह फालतू के झमेलों में न घसीटा जाये, जिससे मेरा कोई लेना देना नहीं. आप लोग कृपया अपना खेल बखेड़ा आपस में खेलें.
    समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..सांप चालाक हैं दूरबीन लिये बैठे हैंअन्ना संभलना!!
  4. अशोक पाण्‍डेय
    तनेजा जी जैसे अनुभवी लोग बिना सच्‍चाई परखे इस तरह आवेश में आ जाएंगे तो बाकियों का क्‍या ? …खैर, आपकी संयत भाषा में आपका बड़प्‍पन झलकता है।
    बड़े बुजुर्ग ठीक ही कहते हैं, सब समय का दोष है। हम असहिष्‍णुता के दौर से गुजर रहे हैं।
  5. jaunhaitaun
    समीर लाल जी,
    जहां तक आप ने ज्ञानदत्त जी की बात की और उनकी भर्त्सना की अपना नाम लेनेले किये वहाँ तक तो बात समझ में आयी
    अब असली बात राजेव तनेजा की ‘स्वाभाविक’ प्रतिक्रिया की और ‘गुरुदेव’ शुक्ल जी के ‘लचर’ तर्कों की , तो हम तो फ़िदा हो गए उसी तरह जिस प्रकार हमारी gullible पब्लिक ठूंस कर खाने के बाद २ घंटे के व्रत की घोषणा करने वालों के ऊपर वारी -वारी होती है ! आपने अपना मत भी व्यक्त कर दिया और मौनी बाबा भी घोषित कर दिया स्वयं को
    धन्य हो प्रभू. अपने चरण फ़ौरन भेंजे मेल में नत्थी करके !
    तो तनेजा की प्रतिक्रिया ‘स्वाभाविक’ थी, ‘त्वरित’ थी, आपको सूट कर रही थी तो लिहाजा ठीक ही थी ! तो भर्त्सना की नौटंकी तो मूढमति जनता के मनोरंजन के लिए होगी थोडा comic relief के लिए | ‘गुरुदेव’ के तर्क ‘लचर’ . of course, पुराना मामला जो ठहरा !
    फिर आप राग दरबारी के वैद्य जी की तरह सारा बखेड़े का आनंद उठा कर अपना मत व्यक्त करके फिर जो सविनय निर्गुट आन्दोलन व्रती बन कर आग्रह करते हैं की आपको न घसीटा जाए इस ‘बखेड़े’ में , आय हाय – क्या इश्टाइल है गुरु – लगे रहो …
  6. Anonymous
    अनूप शुक्ल चोर है- राजीव तनेजा
    Posted by god 19 days ago (http://www.hansteraho.com) ना…ना चौंकिये मत…सही कह रहा हूँ और एकदम डंके की चोट पे भुनभुना कर दनदनाता हुआ कह रहा हूँ कि… ‘अनूप शुक्ला’ चोर है…. “हाँ!…चोर….एकदम पक्का चोर”… “क्या कहा?…विश्वास नहीं है आपको मेरी बात का?”…. “अरे!…हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े-लिखे को फारसी क्या?…ये देखिये…मैं जो बात कह रहा हूँ उसे मय सबूतों के डंके की चोट पे नगाड़ा बजाते हुए एकदम से फडफडा के कह रहा हूँ…आप खुद अपनी ही निजी आँखों से देख लीजिए कि इतने बड़े और जाने-माने प्रबुद्ध टाईप के ब्लोगर ने कैसी गिरी हुई ओछी टाईप की हरकत की है”….. नोट: नीचे दिए गए रंगीन चित्रों को आप क्लिक करके देख सकते हैं कि वो मेरे ब्लॉग ‘हँसते रहो’ पर पहले से ही मौजूद हैं और उन्हें मैंने ही बनाया है|साथ ही खबार वाले चित्र को क्लिक करके आप देख सकते हैं कि उन्हें वहीँ से चुराया गया है अब ज़रा इन अनूप शुक्ला महाराज जी से दो टूक बात हो जाए … “अरे!…जब दूध ही दुहना था तो अपनी…खुद की निजी गाय-बछिया या फिर भैंसिया का ही दुहना था ना भईय्या……काहे को मेरे तबेले में अपना मटमैला डोल्लू ले के बिना परमिशन दाखिल हो गए?”…… “माना की दूसरे की धोती में सबको… “खैर!…छोड़ो अभी कुछ शर्म औ लिहाज बाकी है मेरी जुबान में इसलिए अपनी बात को बीच में ही अधूरा छोड़ मैं उसे पूरा नहीं करता…वैसे…ज्यादार पढ़ने वाले तो अपने आप समझ ही जाएंगे कि ये बन्दा आखिर…कहना क्या चाहता है?…. जानता हूँ कि जहाँ एक तरफ इस पूरे ब्लॉगजगत में आप भ्रामक एवं कलिष्ट भाषा का प्रयोग कर अपने पाठकों को…अपने एक ही लेख को समझने लिए कई-कई बार पढ़ने और पढकर समझने के लिए बाध्य कर देते हैं इसके ठीक विपरीत मैं बहुत ही सरल एवं सुरुचिपूर्ण भाषा के प्रयोग के लिए जाना जाता हूँ…ज़्यादातर मेरी बातें पाठकों को एक ही बार में समझ आ जाती हैं और आपकी बुद्धि का इतना अधिक ह्रास हो जाने के बावजूद भी मुझे पूर्ण विश्वास ही नहीं बल्कि यकीन भी है कि आपको भी मेरा लिखा एक ही बार में ठीक से समझ आ जाएगा नोट: लेकिन इसके साथ ही मेरा ये दावा भी है कि आप मेरी लिखी इस पोस्ट को बार-बार पढ़ने के लिए आएंगे…आना ही पड़ेगा आपको…इतना बाध्य जो मैं कर दूँगा आपको कि ताजातरीन हालातो को जानने एवं समझने की गरज से आपको मेरे ब्लॉग पर आ सर-माथा टेक अपनी हाजरी बजानी ही पड़े… वैसे!…अगर आप बुरा ना मानें तो एक बात पूछूँ?…छोडिये!…आपने भला कौन सा मेरे ब्लॉग ‘हँसते रहो’ से मेरा माल चुराने से पहले मुझसे पूछा था जो मैं इस सब में मैं भी अपना टाईम वेस्ट करता फिरूँ? लेकिन…फिर भी चलो नई ब्लोगर पीढ़ी की सामने सह्रदयता की मिसाल करने के नाते से ही मैं आपसे ये पूछ ही लेता हूँ कि… “आप शुरू से ही ऐसे हैं या फिर जैसे दिए के बुझने से पहले उसकी लौ कुछ ज्यादा ही तेज़ी से फडफडाने लगती है.. आप भी फडफडाने लगे हैं?”… चलो…माना कि इस पूरी होली की श्रंखला में आपके भी कई फोटो थे और इस नाते उन पर आपका भी कुछ हक बनता था|कुछ …क्या?…पूरा हक बनता था…जैसे मर्जी इस्तेमाल करते उनका लेकिन दूसरों के चित्रों को क्या आपने….अपने ……का माल समझ के हड़प लिया?… न्न्….चोरी तो आप कर ही चुके हैं…अब खिसिया कर सीनाजोरी करते हुए खम्बा नोचने के बारे में सोचिएगा भी मत…..कहीं ऐसा ना हो कि राम भजन करने के बजाय मुँह की खाते हुए..निठल्ले बैठ…बेकार की वेल्ली कपास ओटनी पड़ जाए… आप तो यार…एकदम से पूरे के पूरे नासमझ निकले जो इस बर्रे के छत्ते में(याने के मेरे इलाके में) हँसते-हँसते अपना हाथ डाल उसे बेवजह ही लहुलुहान कर खुद को छलनी कर बैठे…… दरअसल!…छला तो मैं गया हूँ आपसे और आपके द्वारा किये गए इस घृणित एवं अवांछनीय कृत्य से…. “उफ्फ़!…मैंने आपको क्या समझा और आप क्या निकले?”.. आप मुझसे बड़े हैं…बड़े होने के नाते थोड़े से बुज़ुर्ग भी हैं इसलिए कायदा तो यही कहता है कि भले ही जितनी भी लीकेज हो चुकी हो आपके दिमागे शरीफ में लेकिन फिर भी गाहे-बगाहे M-SEAL का चोरी-छुपे इस्तेमाल करने से कुछ तो…थोड़ी-बहुत शर्म औ हया बची रह गई होगी आपके इस अफ्लातूनी भेजे में…तो उसी का इस्तेमाल कर कम से कम मुझे इत्तिला तो कर देते अरे!…डायन भी तो सात घर छोड़ के वार करती है….और मैं तो आपसे सात कदम की दुरी पर भी नहीं था…बस माउस को डबल क्लिक कर के मुझे चैट बॉक्स में ही संदेसा भर दे देना था कि…. “भय्यिये!…तुम्हारे फोटू मुझे बड़े जोरदार लगे है और मैं इन्हें अपने एक आर्टिकल के साथ पब्लिश करवा रहा हूँ”… ये तो सिर्फ फोटो थे मित्र…अगर आप कुछ और भी मांग लेते तो वो भी मैं बिना किसी शर्त के नानुकर किये बगैर तुरंत आपके लिए सहर्ष हाज़िर कर देता…लेकिन अब इसे क्या कहें?… लालच में आ पलट गई बुद्धि या फिर विनाश काले विपरीत बुद्धि? …आपने सोचा होगा कि… “लखनऊ तो इहाँ दिल्ली से बहुते दूर है….दिल्ली तक भला इस सब की भनक कैसे और क्योंकर लगेगी?”… लेकिन देख लो…कैसे ना कैसे कर के लग ही गई ना?….बताओ ज़रा…क्या फायदा हुआ इस सबसे?….जितना माल-मसाला मिला होगा अखबार वालों से…उससे कहीं ज्यादा का खर्च तो आपका सर्फ़-साबुन वगैरा से अपना काला-मुँह साफ़ करने में ही लग जाएगा…. अरे!…चोरी वो करो…जो पकड़ी ना जाए…ये क्या कि ऐसी चोरी करो जो पलक झपकते ही सबकी नज़रों में आ जाए और फिर तमाम दुनिया-जहाँ से नज़रें छुपाते फिरो… आप तो मेरे मित्र थे…थे क्या?…हैं….ऐसा मेरा मानना है… और फिर मेरा ब्लॉग ‘हँसते रहो’ तो जैसा कि आपने देखा ही है कि एकदम से खुला दरबार है…..साफ़-साफ़ बैनर बना के टांगा हुआ है फ्रंट पे ही कि … ‘चुराएं नहीं…खुशी से लें’… लेकिन आपने तो यहाँ से खुशी से ले…मुझे ही दुखी कर दे दिया… “अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का…यार ने ही लूट लिया घर यार का”… जहाँ आपने इतनी देर तक कीबोर्ड पे उंगलियां टकटकाई थी अपने इस धासूँ टाईप के फूँ-फाँ करते हुए लेख को लिखने के लिए वहीँ थोड़ी से मेहनत और कर इतना भर साथ में लिख देते कि “चित्र सौजन्य : राजीव तनेजा”…मैं बस इतने भर से ही खुश हो जाता कि चलो!…दाम ना सही लेकिन मेरे काम को पहचान तो मिली… इतनी ज़रा सी एक्स्ट्रा मेहनत से ना तो आपके कीबोर्ड ने टूट जाना था और ना ही आपकी माउस को जंग लग जाना था लेकिन अब इसे क्या कहें?…आपकी बुद्धि को तो दुनिया भर का जग पहले से ही लग चुका है… इस तरह चोरी कर के क्या सिखाना चाहते हैं आप नए उभरते हुए ब्लोगरों की ऊर्जावान पीढ़ी को कि…राम नाम जपना और पराया माल अपना?… कहने को तो इस पूरे प्रकरण पे लीप कर पोता-पोती करते हुए आप ये भी कह सकते हैं कि…भाई…राजीव मैंने तो तुम्हारा और तुम्हारे ब्लॉग ‘हँसते रहो’ का लिंक भी दिया था साथ में लेकिन पता नहीं कैसे ये छोटी सी चूक हो गई…. या फिर आप इस बात का भी रोना रो सकते हैं कि… … “बाज़ार में छाई विश्वव्यापी मंदी को मद्देनज़र रखते हुए तथा लुगदी कागज़ तथा स्याही की बचत करने के इरादे से अखबार वालों ने ऐसा किया” अगर ऐसी ही बात थी भईया जी तो मुझसे कहा होता… जो कुछ भी रूखा-सूखा मुझसे बन पडता…मैं ज़रूर मदद करता या कम से कम करने का प्रयास तो अवश्य ही करता बड़े अफ़सोस के साथ कहना पड़ रहा है कि पहले आप मेरे लिए आदरणीय थे…उसके बाद अनुकरणीय हुए और अब?…अब तो धिक्कारणीय शब्द भी कम लगता है आपके लिए उम्मीद है कि इस सब को पढ़ने के बाद आपकी आँखों के आगे अन्धेरा सा छाने लगा होगा…सिट्टी…जो है…वो पिट्टी समेत गुम होने की तैयारी कर रही होगी..आँखे डबडबा कर बन्द होते हुए रोने को उतारू हो रही होंगी लेकिन महज़ आँखें बन्द करने से ही अगर विपदाएँ टल जाया करें तो ना कभी कोई सुनामी या ज़लज़ला आए और ना ही कभी कोई भूकम्प मानता हूँ कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड सकता लेकिन भड़भूजे की आँख फोड़ने का प्रयास तो अवश्य ही कर सकता है ..और कुछ भले ही मैं कर पाऊं या ना कर पाऊं लेकिन इतना अवश्य कर जाऊँगा कि जब भी आप या आपका कोई अन्य चहेता किसी भी सर्च इंजन में ‘अनूप शुक्ल’(हिन्दी या अंग्रेज़ी..दोनों में)… ‘फुरसतिया’ या फिर ‘हिन्दिनी’ का नाम सर्च करे तो उसे इस पोस्ट का टाईटल “अनूप शुक्ल चोर है” अवश्य दिखाई दे और बारम्बार दिखाई दे और अब अंत में चलते-चलते मैं एक बात और आपको बताता चलूँ कि टिप्पणियों की मुझे ज्यादा परवाह नहीं है और इस बात की चिंता भी नहीं है कि इस मामले में कौन मेरा साथ देता है और कौन नहीं?… लेकिन मैं जानता हूँ…मेरा ज़मीर जानता है कि मैं अपने हक के लिए लड़ रहा हूँ और अंत तक लड़ता रहूँगा…आमीन… उम्मीद है आगामी 30 अप्रैल,2011 को दिल्ली के हिन्दी भवन में आपसे मुलाक़ात होगी…खूब मज़ा आएगा जब मिल बैठेंगे दीवाने दो.. विनीत: राजीव तनेजा rajivtaneja2004@gmail.com http://hansteraho.com +919810821361 +919213766753 +919136159706
  7. Ashish
    भाई ये अनामी मेहनत बहुत करता है ,
    इस सब का सार अनूप जी पहले ही लिख चुके थे ,राजीव जी ने भी अपनी गलती मान ली और पोस्ट डिलीट कर दी | लेकिन इस भाई को चैन नहीं पड़ा ,
    किसी ज़माने में कही अपनी बात याद आ गयी ….
    ” मेरे कातिल मुझे रह रह के दगा देते है ,
    इतना मासूम हूँ वो फिर से मना लेते है |
    इलाही देखना है कौन पहले बाज़ आता है ,
    मैं ज़ख्म सी रहा हूँ वो रोज़ नया देते है || ”
    –आशीष श्रीवास्तव,
  8. आशीष 'झालिया नरेश' विज्ञान विश्व वाले
    ये ‘आशीष श्रीवास्तव’ इतना कामन नाम क्यों है ?
    आशीष ‘झालिया नरेश’ विज्ञान विश्व वाले की हालिया प्रविष्टी..मानक प्रतिकृति- ब्रह्माण्ड की संरचना भाग ४
  9. Shiv Kumar Mishra
    दिल्ली भवन में मुलाकात करने जा रहे हैं? वैसे क्या है ३० अप्रैल को? दो दीवाने मिल बैठें तो जो मज़ा आएगा उसे फिल्म करके ब्लॉग पर लगाया जाय. देखें तो कैसा मज़ा आता है.
  10. AunkaPaun
    “खूब मज़ा आएगा जब मिल बैठेंगे दीवाने दो.. विनीत: राजीव तनेजा”
    दीवाने दो, विनीत और राजीव तनेजा?
    विनीत को इस मामले में घसीटने का कोई तुक नहीं था.
  11. सतीश चन्द्र सत्यार्थी
    राम राम!!!!
    ये सब हो गया यहाँ!!!
    कैसे कैसे लोग पड़े हैं…..
    और आप कहते हैं कि हिन्दी ब्लोगिंग का भविष्य उज्जवल है….
    जंगलीपन की भी कोइ सीमा होती है….
    सतीश चन्द्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..दुनिया की सबसे बेहतरीन और तेज इंटरनेट सेवा
  12. © चुनरी में दाग…./ नया सँशोधित सँस्करण 2011
    [...] कर लोगे भाई ( बतर्ज़ फुरसतिया गुरु ) ? जब कुछ कर ही नहीं रहे हो तो चुपचाप घर [...]
  13. mukesh choudhary
    not a good experience for starters. There are many more serious issues which need to be debated rather then the current one. I hope the learned and matured people make a note of it.
  14. kanchan
    great.
    i m reading first time fursatiya.
    but this is great . hindi language in a new form.
    but why like this . to make familiyar hindi wwe can do such more things .
    but anyways i injoyed it .
  15. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] जबरियन छपाई के हसीन साइड इ

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