Wednesday, April 27, 2011

निष्ठुर समय में अकेला कवि!

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निष्ठुर समय में अकेला कवि!


कवि
१. कविता लिखता आदमी
दुनिया का सबसे मासूम आदमी होता है
पवित्रमना, बांगड़ू!
वह सोचता है- बस वही सोच रहा है इस तरह
इसके पहले किसी और ने सोचा नहीं इस तरह!
दुनिया में एक साथ
करोड़ो लोग सबसे मासूम हो सकते हैं
पवित्र और बांगड़ू भी
बशर्ते वे सभी लिखने लगे कवितायें
एक साथ एक ही समय में।
लेकिन डर यह भी है कि करोड़ों लोगों को
एक साथ देखकर कोई कवि सबको साथ लेकर
सरकार बनाने के सपने न देखने लगे
और चौपट कर दे करोंड़ों की एकता!
२. प्रेम कवितायें लिखता कवि अक्सर
वियोग के किस्से लिखता है।
दुख ओढ़ता है, पीड़ा बिछाता है
अपने को गिरा पड़ा और
अगले को बहुत ऊंचा बताता है।
कविताओं में दिखते
प्रेमियों के बीच इतना
दुख, अलगाव, पीड़ा, बेचैनी
देखता हूं तो मन करता है
भगवान से कहूं
कि हे ईश्वर
दुनिया के और सारे झमेले तो हम झेल लेंगे
लेकिन अगर हो सके तो एक दया करो दीनानाथ
ये दो प्रेमियों के बीच का प्रेम हटा लो दुनिया से!
बहुत अझेल है दीनबंधु दुनिया में
साथ-साथ रहते दो प्रेमियों के किस्सों
में दुख, पीड़ा, वियोग के घिसे-पिटे बयान सुनना।
३. चांद ने ठोंक दिया है मुकदमा
कापीराइट एक्ट के तहत अदालत में!
दुनिया में जिन-जिन लोगों ने
अपनी प्रेमिकाओं के मुखड़े
चांद जैसे बताये हैं
उनसे बसूलेगा हर्जाना ब्याज सहित!
दर अभी तय नहीं हुयी है
लेकिन दुनिया भर के तमाम कवि
अखबारों में सूचना छपवा रहे हैं
मेरी सारी कविताओं में चांद की जगह
ये पढ़ा जाये, वो समझा जाये।
अखबारों की चांदी है
वे पैसा लेकर छाप रहे हैं कवियों की सूचनायें
महीने के अंत में सारी सूचनाओं के हिसाब के साथ
भेज देते हैं चांद के पास उसके हिस्से का चेक।
चांद की चांदी है वह जमा करवा रहा है
सारा पैसा स्विस बैंक के अपने खाते में
सोचते हुये कि दुनिया के कवि
कितने मासूम होते हैं!
४. सबेरे से बहुत भन्नाया हुआ है कवि
लगता है आज ओज की कवितायें लिखेगा
दुनिया को फ़ूंकने-तापने की बात करेगा
बदलाव की आंधी लायेगा,
क्रांति की सुनामी आयेगी
उथल-पुथल मच जायेगी।
लेकिन वह यह सब कुछ नहीं करता
मिलाता है फ़ोन अखबार के संपादक को
शिकायत करता है
कि अखबार में छपी कविता में
उसका नाम गलत क्यों छापा!
अखबार का संपादक उसको उल्टा हड़काता है
सबेरे से पचीस फ़ोन आ चुके हैं
इसी कविता के सिलसिले में
हर किसी को शिकायत कि इस कविता में
उसकी अलां सन में लिखी
फ़लां अखबार के
टलां पन्ने के
गलां कालम में छपी कविता का
यह अंश, वह भाव,
चुराया गया है!
आपसे तो ऐसी उम्मीद नहीं थी
कम से कम उल्लेख तो कर देते कहीं
कि कविता की प्रेरणा कहां से ली।
वो तो भला हो नेटवर्क का जो
फ़ोन कट गया और दुबारा लग के नहीं दिया
वर्ना एक अच्छी कविता के लिये
एक भले कवि को न जाने क्या-क्या सुनना पड़ता।
अखबार में छपी एक कविता
तमाम कवियों की प्रेरणा बनती है
सभी की अगली कविता का शीर्षक है
-निष्ठुर समय में अकेला कवि!
५. घर लौटा आदमी अपनी पत्नी से
खूब सारा प्यार जताता है
उसको दुनिया की सबसे अच्छी पत्नी और
अपने को नामुराद बताता है।
पत्नी आदतन मुस्कराती है
साथ में सोचती जाती है
इसका चाल-चलन न जाने कब सुधरेगा!

77 responses to “निष्ठुर समय में अकेला कवि!”

  1. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
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