Tuesday, July 19, 2011

हमें तो देश की चिंता हैं

http://web.archive.org/web/20140420024549/http://hindini.com/fursatiya/archives/2134

हमें तो देश की चिंता हैं

हुमायूं का मकबरा
हम देख रहे हैं कि देश अपना बड़ी गतिमान स्थिति से गुजर रहा है। हमेशा की तरह गतिमान। गतिमान माने कि डायनामिक। हर दिन कोई न कोई समस्या देश की सबसे बड़ी समस्या बन जाती है। चील झपट्टे की तरह आती है समस्या और सबसे आगे खड़ी हो जाती है समस्या।
कोई कहता है देश की सबसे बड़ी समस्या भ्रष्टाचार है। कोई बताता है कि जनसंख्या सबसे बड़ा बोझ है देश का। किसी की नजर में संस्कारहीन शिक्षा सब बबाल की जड़ है। पाकिस्तान भी किसी दिन आगे खड़ा हो जाता है फ़ोटो खिंचाने के लिये कि हम भी शामिल हैं समस्याओं की टीम में। कभी-कभी विश्व पटल पर घटी कोई घटना बताती है कि सब समस्याओं की जड़ ये है कि हम डरपोंक हैं। मन मजबूत नहीं है अपन का। खतरों से खेलने में डरते हैं। अब कोई कैसे कहे कि भाई हम क्रिकेट खेलते हैं जिसमें पैसा है। खतरे से खेलने में क्या मिलेगा?
बाढ़, सूखा, भूस्खलन, ट्रेन दुर्घटनायें, सुनामी-उनामी जैसी समस्यायें भी आती हैं। चर्चित होती हैं फ़िर शरीफ़ बच्चों की तरह अपना पार्ट करके स्टेज के पीछे खड़ी हो जाती हैं। वे ज्यादा जिद नहीं करतीं मंच पर रहने की। सोचती हैं कि ये तो अपना ही घर है। कभी भी आ जायेंगे। औरों को मौका दिया जाये।
एक तरफ़ रोना है कि देश को जातिवाद, भाई-भतीजावाद, क्षेत्रवाद देश को खोखला कर रहा है। दूसरी तरफ़ लोग गाना गाते हैं कि भाई-भाई में प्रेम नहीं रहा। लोग अपनी जाति के ही लोगों को चूना लगा रहे है। अपने ही क्षेत्र में लूटपाट मचा रहे हैं। यह बात सही ही होगी वर्ना काहे को शायर लोग शायरी करते- घर को आग लगी घर के ही चिराग से।
लब्बो और लुआब यह कि हम इस बारे में एकमत नहीं हो पाते कि हमारी असल समस्या क्या है। बेरोजगारी कि जनसंख्या! भ्रष्टाचार या पाकिस्तान। कट्टरपंथ या नरमपंथ। अमेरिका या रूस। आधुनिकता या कि पोंगापंथी मन। एक बार असल समस्या पता चल जाये तो उसका टेंटुआ दबा के उससे मुक्ति पायी जाये। अगर हिंसा से एतराज हो तो उसको सविनय अवज्ञा वाले आंदोलन में विनम्रतापूर्वक देश से बाहर जाने के लिये बाध्य कर दिया जाये। लेकिन पता तो चले कि समस्या की जड़ क्या है?
बबाल और भी हैं। जिनको समस्या पता है उनको समाधान नहीं पता। जिनको समाधान पता हैं उनको यह नहीं पता कि उनको लागू कैसे करें! जिनको सब पता है उनकी कोई सुनता नहीं है। इसी चक्कर में भतेरे लोग बिलखते रहते हैं कि हम कब से समाधान बता रहे हैं लेकिन हमारी कोई सुनता कहां है?
कुछ लोगों के द्वारा सुझाये समाधान इत्ते जटिल होते हैं लगता है इससे तो समस्या भली। ज्ञान की जटिलता कुछ लोगों के लिये उसकी पहली अनिवार्यता होती है। जानकारी सीधी हुई तो समझ में आ जायेगी। उसका सौंन्दर्य खतम हो जायेगा। :)
बहुत सरल भाषा में लोग कहते हैं कि आप खुद अपने को सुधार लें । आप की देखा-देखी दस और लोग हो सकता हैं संवर जायें। उनके दस के झांसे में हो सकता है सौ लोगों को दिशा मिले।
लेकिन ज्यादातर लोगों को इतनी सरल बात समझ में नहीं आती। उनका मानना है कि हमारे अकेले सुधरने से क्या होता है। हमें तो देश की चिंता है। जब देश को सुधार लेंगे तो हम तो तड़ से सुधर जायेंगे।
देश बेचारा समझ नहीं पाता कि उसका क्या कुसूर है जो लोग उसको सुधारने में जुटे पड़े हैं।

और अंत में

पिछली पोस्ट में भगवती प्रसाद दीक्षित’ घोड़ेवाला’ के बारे में लिखा। कई साथियों ने उस पोस्ट पर अपने विचार व्यक्त किये। कुछ लोगों ने यह भी कहा कि उन्होंने चर्चित होने के अलावा और कोई काम नहीं किया। ’ दीक्षितजी’ का और कोई योगदान भले न हो लेकिन उन्होंने हलचल तो मचाये रखी। अकेला आदमी कभी सफ़ल नहीं हो सकता। लोगों को साथ जोड़ना पड़ता है। लेकिन उन जैसे सिरफ़िरे भी कितने हैं दुनिया में जो निश्चित असफ़लता के बावजूद लगे रहे अपनी जिंदगी भर अपनी जिद पूरी करने में।
आगे कभी विस्तार से उनके बारे में और लिखा जायेगा।
ऊपर की फ़ोटो पिछली दिल्ली यात्रा के दौरान खींची गयी थी। हुमायूं का मकबरा देखने गये थे। दो बच्चे हाथों में फ़ूल लिये भागते दिखे। उनकी तस्वीर खैंच ली हमने। सामने से खैंचने के चक्कर में बहुत देर कैमरा साधे रहे लेकिन वो पोज न मिला।
हुमायूं का मकबरा एक खूबसूरत कब्रगाह है। हर कमरे में एक कब्र आरामफ़र्मा है। जिसके वंशज को दो गज जमीन न मिली अंत समय वे अपने तमाम लावलश्कर के साथ यहां आराम से सो रहे हैं। इसी कब्रगाह के बगीचे में आरामफ़र्मा मुद्रा में हमारी फ़ोटॊ भी खैंच ली गयी। देखिये कैसी है! :)

मेरी पसंद

कोई छींकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की शांति
भंग न हो जाए,
मगध को बनाए रखना है, तो,
मगध में शांति
रहनी ही चाहिए!
मगध है, तो शांति है!
कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्‍यवस्‍था में
दखल न पड़ जाए
मगध में व्‍यवस्‍था रहनी ही चाहिए!
मगध में न रही
तो कहाँ रहेगी?
क्‍या कहेंगे लोग?
लोगों का क्‍या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है,
रहने को नहीं
कोई टोकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज न बन जाए!
एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रूकता हस्‍तक्षेप-
वैसे तो मगध निवासिओं
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्‍तक्षेप से-
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुज़रता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्‍न कर हस्‍तक्षेप करता है-
मनुष्‍य क्‍यों मरता है?
श्रीकांतवर्मा

57 responses to “हमें तो देश की चिंता हैं”

  1. प्रवीण पाण्डेय
    अधिक समस्यायें होने से उनके दाम ऐसे ही कम हो जाते हैं और साथ ही साथ विकल्प भी खुले रहते हैं, अपनी मन पसन्द सामस्या के विरोध में आवाज उठाने के।
  2. सतीश सक्सेना
    बढ़िया है ….
    शीर्षक पढ़ कर चौंक गया था कि अब आपका क्या होगा मगर अन्दर जाने पर पता चला कि हमेशा की तरह फोटू खींचने में लगे हुए हो …
    लगे रहो गुरु !
    शुभकामनायें
    सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..टूटे घोंसले -सतीश सक्सेना
  3. सतीश पंचम
    राप्चिक फुरसतिया पोस्ट।
    देश के प्रति ‘चिंतन सिण्ड्रोम’ बड़े व्यापक तौर पर पसरा है…..पसर रहा है और आगे भी बड़ी तेजी से पसरने वाला है :)
    सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..राजनीति के ‘क़ोतल’ घोड़े
  4. संतोष त्रिवेदी
    आपकी चिंताओं को पढ़कर लगा की वाक़ई कितनी समस्याएं हैं इस देश में ! वैसे आपके चिंता करने से क्या होता है,जिनको करनी चाहिए वो तो मुंह ढँक के सोये हुए हैं.पूरे पाँच साल बाद जब उनकी नींद खुलती है तब हम सो जाते हैं और बेख्याली में ही उन्हें फिर से अपना ‘हुक्मरान’ बना देते हैं.
    सबसे बड़ी समस्या तो खुद ई ब्लॉगर हैं जो खाते-पीते,सुस्ताते लोगों को कोड़े मारकर जगाते हैं.आराम से देश ‘चल’ रहा है,फिर भी इनको खुजली हो रही है.जल्द ही इनके लिए कटघरे का इंतजाम भी होने जा रहा है.
    श्रीकांत वर्मा की कविता ऊपर की पोस्ट का ज़वाब है…बेहतरीन रचना !
    फोटू में हमेशा की तरह आप गंभीर हैं…लेखन शैली के बिलकुल विरुद्ध !
    संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..मेरा गाँव !
  5. सतीश पंचम
    वैसे, जो लोग छूट गये हैं चिंता करने से, या अब तक चिंता नहीं कर पाये हैं उन्हें यदि अभी से चिंतित होना हो तो वह हो लें न बाद में मत कहे कि बताया नहीं :)
    क्योंकि बड़े पैमाने पर जब चिंतन सिण्ड्रोम पसरेगा तो उनकी हालिया जताई चिंताओं का महत्व खो जाने की आशंका है :)
    सतीश पंचम की हालिया प्रविष्टी..राजनीति के ‘क़ोतल’ घोड़े
  6. Ghanshyam Maurya
    बढि़या पोस्‍ट और बढि़या फोटो। लेकिन कुछ और फोटो लगाये होते तो और मजा आता।
    Ghanshyam Maurya की हालिया प्रविष्टी..जुगाड़
  7. आशीष 'झालिया नरेश' विज्ञान विश्व वाले
    हमें तो देश की चिंता करने वालों से चिंता हो रही है!
    आशीष ‘झालिया नरेश’ विज्ञान विश्व वाले की हालिया प्रविष्टी..विकिरण(Radiation) क्या होता है?
  8. Rachna
    पता चला हैं की जे अन यू में आप ने ब्लॉग मीटिंग की
    उससे त्रिवेदी जी इतना भड़क गए की उन्होने मुझे कवियत्री तो छोडिये ब्लॉगर मानने से भी इनकार कर दिया .
    और ये जो वहाँ आपने मर्द ब्लोगर वाली बात की हैं उस से भड़क कर वाराणसी वाले दिल्ली आगये
    उनके आने से आप इतना डर गए की वापस हो लिये
    देश की चिंता हैं किसे
    अपनी अपनी तस्वीर का दूसरा रुख कौन कब देखता हैं
    Rachna की हालिया प्रविष्टी.."आप किस मिटटी की बनी हैं ? "
    1. संतोष त्रिवेदी
      हमरी हैसियत अभी ब्लॉग-जगत में एक नवजात-शिशु की तरह है तो अपन कैसे किसी का मूल्याङ्कन कर सकते हैं ? रचनाजी के ब्लॉग में मैं मनोज कुमार जी की पोस्ट से गया था,उत्सुकतावश! मुझे नहीं पता था कि इस ब्लॉग में बला की आग है !मुझे प्रथम-दृष्टया थोडा अजीब-सा लगा कि ‘ब्लॉगर रचना का ब्लॉग’ बिना उद्घोष किये भी उन्हीं का माना जायेगा,फिर यदि लिखना ही ज़रूरी है तो ‘रचना का ब्लॉग’ भी लिख सकते हैं.अगर कोई ब्लॉग लिखता है तो ज़ाहिर है वह ब्लॉगर ही होगा कोई जादूगर नहीं !
      फिर भी,यदि मेरी किसी टीप से रचनाजी आहत हुई हों तो बहुत खेद है !
      1. Rachna
        किस को क्या लिखना हैं और क्या नहीं ये फैसला उसका अपना होता हैं
        आप मनोज के ब्लॉग पर क्या बोले , फिर मेरे ब्लॉग पर क्या बोले इसका कोई औचित्य ना था ना हैं ना होगा . हाँ ये जरुर पता चलगया की लोग बिना जाने केवल इस लिये रुष्ट होजाते हैं क्युकी सोचते हैं केवल उनकी कविता को ही समीक्षित होने का कानूनी अधिकार हैं
        Rachna की हालिया प्रविष्टी..कुछ ऐतिहासिक गलतियां
  9. Suresh Chiplunkar
    पोस्ट तो “हमेशा” की तरह ही है, हाँ लेकिन फ़ोटो जोरदार एंगल से खिंचवाया है आपने…
    आपको वहाँ पाकर, मौज लिये जाने से आशंकित, हड़बड़ाकर जागा हुआ हुमायूं भी सोच रहा होगा कि हमारे टाइम पे काहे नहीं था ई ससुर कैमरा… :) :)
    Suresh Chiplunkar की हालिया प्रविष्टी..दयानिधि मारन का “निजी टेलीफ़ोन एक्सचेंज” और मनमोहन का धृत “राष्ट्रवाद…” Personal Telephone Exchange, Dayanidhi Maran, 2G Scam, Manmohan Singh
  10. आशीष
    भाई आपने पायी है लिखने की कला, क्या खूब लिखा है देश की चिंता के बारे में! सब अगर अपने ही अंदर देख लेते तो देश में समस्या होती ही नहीं, दोष तो पहले बाहर का ही नज़र आता है हम सबको..
    आशीष की हालिया प्रविष्टी..Research in IITs
  11. Puja Upadhyay
    बाप रे!! देश में इत्ती समस्या सब है…उसपर आपको देश की कित्तीई तो चिंता है…ये चिंता हमको खाए जा रही है…हाय रे…हम अभी से देश की चिंता में आपका साथ देते हैं. :)
    Puja Upadhyay की हालिया प्रविष्टी..गुज़र जायें करार आते आते
  12. Shikha Varshney
    देश से ज्यादा उसके कर्णधार चिंता के लायक है :) .
    Shikha Varshney की हालिया प्रविष्टी..क्या यही डांस है…हाँ हाँ यही डांस है ….
  13. sanjay jha
    आभारी हूँ आपका के वक़्त रहते …………. चिन्तां करने में साथ कर लिए……………क्या पता कल को कोई चिंता करनेवालों की सुनामी आ ली तो ……… अपन जैसे १००/५० ग्राम चिंता करनेवालों को कौन पूछता…..
    कुछ लोगों के द्वारा सुझाये समाधान इत्ते जटिल होते हैं लगता है इससे तो समस्या भली।…………….ऐसे बहुतेरे
    समस्याएं इस ब्लॉग-जगत में भी ………. मिलते ………जिसके समाधान की जटिलता, समस्याओं को बने रहने
    में ही भली लगती है……………बकिया आपकी पसंद हमारी पसंद है ही……………….
    प्रणाम.
  14. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    अब तो चिंता करने का मन ही नहीं करता। जो काम बहुत लोग करने लगें वह बेमजा हो जाता है।
    अब तो बस यह चिंता है कि देश की चिंता करने वालों की स्थिति चिंतनीय क्यों होती जा रही है। आजकल रामदेव जी कहाँ है? :)
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..मई के मजे, जून की जन्नत और जुलाई की जुदाई
  15. dr.anurag
    देश बेचारा इसलिए हलकान है के लोग बस चिंता करते है ….बाकी कुछ नहीं करते
    dr.anurag की हालिया प्रविष्टी..वो क्या कहते थे तुम जिसे …..प्यार !
  16. भारतीय नागरिक
    सुना है कि एक चिन्ता और चिन्तन मन्त्रालय भी बनाया जा रहा है, जहां चिन्ता पर चिन्तन किया जायेगा और किस पर चिन्ता की जाये, इस पर चिन्तन किया जायेगा… :)
    भारतीय नागरिक की हालिया प्रविष्टी..इस्लाम तो शांति का उपदेश देता है लेकिन उसके ये तथाकथित अनुयायी!
  17. राजेंद्र अवस्थी
    समस्याओं की सामस्या को बहुत बढ़िया ढंग से बताया है आपने, बस हम तो धन्य हो जाते है आपका कोई भी लेख पढ़ कर, हर बार की तरह बढ़िया बोले तो बिलकुल झक्कास लगा….
  18. Abhishek
    असल में सबके पास एक समाधान है तो अपने समाधान के आगे किसी और का समाधान क्यों सुने कोई ? :)
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..तुमने जो देखा-सुना…
  19. निट्ठल्ला
    श्री काँत वर्मा की कविता …. क्या बात है !
    आपने चुन चुन कर इतनी समस्याये गिनवा दीं, कि हम भूल ही गये कि हमारी समस्या खुदपरस्ती है.. और कुछ नहीं !
    अपने को ही देखिये.. समस्यायों के बोझ से हम्मैं लाद कर आप साहब छाँव में सुस्ता रहे हैं….रंज फुरसतिया को बहुत है लेकिन आराम के साथ :)
    फोटो में आप कुछ काले लग रहे हैं, जबकि हमारा अनुमान है कि आप इत्ते काले भी नहीं हो सकते । कृपया स्पष्टीकरण दें ! ;-)

    निट्ठल्ला की हालिया प्रविष्टी..श्री गधे जी का महत्व – वैशाखी अमावस्या पर
  20. archana
    समस्याएं सुलझने की बजाय उलझने लगती है …इसलिये चिंता का चिंतन होने लगता है….हुंमायू तो अन्दर है और हम बाहर…..सब सो रहे हैं…….’बस यूं ही’ …..देश की चिंता…….
    आपके ब्लॉग की खूबी है “मेरी पसंद”
    कविता पढ़ने को मिली…आभार
  21. Gaurav Srivastava
    बबाल और भी हैं। जिनको समस्या पता है उनको समाधान नहीं पता। जिनको समाधान पता हैं उनको यह नहीं पता कि उनको लागू कैसे करें! जिनको सब पता है उनकी कोई सुनता नहीं है।
    –बहुत बड़ी बातें आपने बहुत सरल तरीके से कह दी.
  22. आशीष श्रीवास्तव
    ” देश बेचारा समझ नहीं पाता कि उसका क्या कुसूर है जो लोग उसको सुधारने में जुटे पड़े हैं। ”
    हम भी आज तक नहीं समझे की लोग दूसरों को क्यों सुधारना चाहते है खुद क्यों नहीं सुधर जाते, चिंता तो फुरसतिया पोस्ट की थी वो तो आ गयी :)
    और ये JNU वाला क्या मामला है ,इसकी पोस्ट कब आ रही है ??
    आशीष श्रीवास्तव
  23. dr manoj mishra
    @बहुत सरल भाषा में लोग कहते हैं कि आप खुद अपने को सुधार लें । आप की देखा-देखी दस और लोग हो सकता हैं संवर जायें। उनके दस के झांसे में हो सकता है सौ लोगों को दिशा मिले।
    लेकिन ज्यादातर लोगों को इतनी सरल बात समझ में नहीं आती। उनका मानना है कि हमारे अकेले सुधरने से क्या होता है। हमें तो देश की चिंता है। जब देश को सुधार लेंगे तो हम तो तड़ से सुधर जायेंगे………..
    …………………आपसे सहमत,सटीक चिंतन,कर भला तो हो भला…..
  24. Anonymous
    ये दो बातें तो बहुत पते की लिखी हैं आप ने–
    -फ़ोटो खिंचाने के लिये कि हम भी शामिल हैं समस्याओं की टीम में।
    -ज्ञान की जटिलता कुछ लोगों के लिये उसकी पहली अनिवार्यता होती है।
    बाकि आप के अनुसार अब तो देश ही चिंतित हो गया की सारे उसे सुधरने में लगे हैं!:)))
    ……………….
    दिल्ली में खींची गयी यह फोटो अच्छी है .
    सामने बिछी हरी -हरी घास मुख्य आकर्षण है.मकबरा भी खूबसूरत दिख रहा है.खींचने वाले को बधाई ,अच्छा एंगल ले कर खींची है.
  25. अल्पना
    ये दो बातें तो बहुत पते की लिखी हैं आप ने–
    -फ़ोटो खिंचाने के लिये कि हम भी शामिल हैं समस्याओं की टीम में।
    -ज्ञान की जटिलता कुछ लोगों के लिये उसकी पहली अनिवार्यता होती है।
    बाकि आप के अनुसार अब तो देश ही चिंतित हो गया की सारे उसे सुधरने में लगे हैं!:)))
    ……………….
    दिल्ली में खींची गयी यह फोटो अच्छी है .
    सामने बिछी हरी -हरी घास मुख्य आकर्षण है.मकबरा भी खूबसूरत दिख रहा है.खींचने वाले को बधाई ,अच्छा एंगल ले कर खींची है.
    [बताईये टिप्पणी पोस्ट करने के चक्कर में नाम- पते का फॉर्म भरना ही भूल गयी!]
    अल्पना की हालिया प्रविष्टी..मुझे जाँ न कहो
  26. वन्दना अवस्थी दुबे
    सब समस्याओं की जड़ ये है कि हम डरपोंक हैं। मन मजबूत नहीं है अपन का। खतरों से खेलने में डरते हैं। अब कोई कैसे कहे कि भाई हम क्रिकेट खेलते हैं जिसमें पैसा है। खतरे से खेलने में क्या मिलेगा?
    बहुत सही :) .
    लब्बो और लुआब यह कि हम इस बारे में एकमत नहीं हो पाते कि हमारी असल समस्या क्या है।
    लो जी. अगर असल समस्या पर सहमति हो गयी, तो फिर चर्चा किस बात पर की जायेगी? असहमति बहुत ज़रूरी है, ताकि नेतागण, आम आदमी बहस एन मुब्तिला रह सके :)
    हुमायूं का मकबरा तो एकदम आगरे के जहाँगीरी महल जैसा है :)
    बढ़िया चिंताग्रस्त पोस्ट. कविता बढ़िया है.
  27. देवेन्द्र पाण्डेय
    सब समझते हैं कि समस्या क्या है मगर समस्या यह है कि सब पहल नहीं हल चाहते हैं।
  28. देवेन्द्र पाण्डेय
    ऐसे भी कह सकते हैं….
    समस्या क्या है सभी जानते हैं तुम जानते हो हम जानते हैं
    देश हमसे पहल चाहता है मगर हम तो सिर्फ हल चाहते हैं।
  29. Eswami
    बहुत अच्छा लेख है. मोबिल फ़ोन पे पढ़ रहा हूँ.
    Eswami की हालिया प्रविष्टी..नया iPhone 4 पाने की होड! एप्पल स्टोर्स के बाहर बडे जमघट
  30. mayank singh
    समस्या ki खोज ही एक समस्या है समस्या खोजी लोगों का उन्मूलन समाधान है.
    उम्दा लेख
  31. mayank singh
    समस्या के उदाहरण
    १- खाने के बाद भूख nhi लगती
    २- सोने के बाद नीद नही लगती
    एटक
  32. रंजना
    वाजिब चिंता है…समस्याओं के जड़ तक पहुँचने के लिए यह पता होना बहुत जरूरी है कि असल समस्या है क्या ??
    सत्ता स्व उपकार के लिए ही होती आई है सदा से, परोपकार के लिए नहीं…तो जब यह जिसके हाथ रही, उसने ज़िंदा रहते भर के ही लिए नहीं मुर्दा होने के बाद के लिए भी जीतती चाही जगह घेर ली..
    कविता लाजवाब स्टेपल किया है..
  33. arvind mishra
    दिल्ली से सकुशल लौट कर ई पोस्ट पढ़ तो लिए मगर अब टिप्पणी इत्मीनान से अगली पर !
  34. Gyan Pandey
    यह अच्छा किया; आपने चिंता कर ली और छुट्टी पा लिये।
    वैसे भी ब्लॉग पर मोट्टो तो यूं हो लिया है – हम तो (जबरिया) न लिखिबै, यार हमार कोई का करिहै!
    Gyan Pandey की हालिया प्रविष्टी..गंगा तीरे बयानी
  35. नीरज त्रिपाठी
    जानकारी सीधी हुई तो समझ में आ जायेगी। उसका सौंन्दर्य खतम हो जायेगा।
    बवाल पंक्तियाँ हैं ये तो :)
    पाकिस्तान भी किसी दिन आगे खड़ा हो जाता है फ़ोटो खिंचाने के लिये कि हम भी शामिल हैं समस्याओं की टीम में। मजा आया पढ़कर !
    श्रीकांत वर्मा जी की कविता बहुत अच्छी लगी !
  36. sunil patidar
    सर जी आपका लेख सरस सुलेख होने के साथ साथ पाठक को जोड़ने में भी सक्षम है , बेहतर ………पढ़कर मज़ा आया
  37. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] हमें तो देश की चिंता हैं [...]