Monday, August 22, 2011

अपना लक पहिन के चलो…

http://web.archive.org/web/20140419214604/http://hindini.com/fursatiya/archives/2178

अपना लक पहिन के चलो…

टीम इंडिया
ब्रिटेन में गई अपनी टीम इंडिया क्रिकेट वाली अभी जरा पिटन मोड में चल रही है। प्रेम से पिट रही है। हारे चली जा रही है। पहले तो बेचारी टीम इंडिया बड़ी परेशानी में थी। वो सोच रही थी कि इधर वह हार रही है उधर उसे देश में हचक के गालियां मिल रही होंगी। लेकिन अन्ना आंदोलन ने उसकी यह चिंता दूर कर दी है। कोई उसे पूछने वाला नहीं। जितना मन मर्जी हार लो। कोई उसका जिकर नहीं करेगा। अभी इधर सारे कैमरे अन्ना पर फ़िट हैं। टीम अन्ना की सबसे बड़ी समर्थकों में से होगी। क्या पता वह वहां ड्रेसिंग रूम में नारा भी लगता हो- अन्ना तुम संघर्ष करो, हम यहां पर हारेंगे ही।
टीम के पिटने के लिये अलग-अलग कारण बता रहे हैं। कोई खराब बैटिंग, कोई बेकार बालिंग, कोई अधिक क्रिकेट को कारण बता रहा है। लेकिन टीम के हारते चले जाने का सबसे बड़ा कारण कोई बता नहीं रहा है। असल बात यह है कि टीम इंडिया अपना लक पहन के नहीं गयी है। टीवी पर देखिये सनी देवल बताते रहते हैं - अपना लक पहन के चलो। लेकिन इंडिया टीम वाले माने तब न! इसीलिये पिट रही है। अभी आगे और पिटेगी। अब लक कोई आर.पी.सिंह और वीरेंद्र सहवाग थोड़ी हैं जो हवाई जहाज से उड़कर चला जाये। उसे तो यहीं से पहन के जाना होता है भाई!
टीम इंडिया के लक पहन के न जाने के कारण खोजे गये तो पता चला कि उसे तो भ्रष्टाचार ने पहन लिया है। उसे पता था उसके दिन खराब आने वाले हैं तो उसने टीम इंडिया का लक गोल करके खुद पहन लिया। देश का सबसे चमकीला लक इंडियन क्रिकेट टीम का ही तो है। टीम हारे या जीते लेकिन उसके तो पैसे पक्के हैं। विज्ञापन, इनाम-सिनाम तो ऊपर की आमदनी है। क्रिकेट टीम के अपना लक पहन कर न चलने के कारणों की खोज करने पर पता चला कि उनको लगता है कि उनका सब काम प्रायोजक ही करेंगे। लक पहनकर चलने का भी। यही हाल रहा तो शायद कुछ दिन बाद बैटिंग,बालिंग, फ़ील्डिंग भी कहीं प्रायोजक ही न करने लगें।
खैर हियां की बातैं हियनै छ्वाड़ौ, अब भ्रष्टाचार का सुनौ हवाल।
एक वातानुकूलित कमरे में भ्रष्टाचार अपने लक को किसी झण्डे सा लपेटे बैठा है। अपने को चिंतित और गम्भीर दिखाने की पूरी कोशिश के बावजूद उसके चेहरे से आत्मविश्वास झलक दिखला ही जाता है। जैसे गली में निकलने वाले जुलूस को देखने के लिये बच्चे सहज ही बाहर निकल आते हैं वैसे ही वह भी बाहर आ गया था। भ्रष्टाचार की व्यवहारिक बुद्धि आत्मविश्वास को डपटकर अंदर करती है। कहती है-खबरदार जो अब कुछ दिन सामने आये तो। मुंह नोच लेंगी तेरा ये ईमानदारी और सच्चाई की टीम। जा अंदर से दीनता, असहायता और समझदारी को भेज। कहना- मेकअप थोड़ा डार्क वाला करके आयें। ताकि निराश दिखें। वे आकर कुछ दिन मोर्चा संभाले। भ्रष्टाचार के मुख मंच पर बैठे। देश भर के कैमरे अपनी सारी बैटरी यहीं फ़ूंक रहे हैं।
भ्रष्टाचार
भ्रष्टाचार को उसके साथी घेरे बैठे हैं। भाई-भतीजावाद, कामचोरी, जातिवाद, हरामखोरी, निकम्मापन, बेशर्मी, बत्तमीजी, एय्याशी, विलासिता, सामंतवाद, सांप्रदायिकता, तुष्टिकरण, अवसरवादिता आदि-आदि और इत्यादि-इत्यादि के साथ-साथ वगैरह-वगैरह के अलावा अगैरह-वगैरह भी उसके समर्थन में बैठे हैं। चाय-पानी का दौर भी चल रहा है। भजन इत्यादि भी गाये जा रहे हैं। नारे भी लग रहे हैं। कुछ नारे जो हमारे संवाददाता ने याद किये वे आपको यहां पढ़वाये देते हैं:
  1. भ्रष्टाचार तुम मस्त रहो, हम तुम्हारे साथ हैं।
  2. भ्रष्टाचार से जो टकरायेगा, चूर-चूर हो जायेगा।
  3. भ्रष्टाचार के जलवे हैं, देश समाज में बलवे हैं।
कुछ लोग प्रसिद्ध कविताओं की पैरोडी भी भ्रष्टाचार के सम्मान में कर रहे थे:

चल पड़े जिधर दो डग मग में
कट गये कोटि चेक उसी ओर,
पड़ गयी जिधर भी दृष्टि एक
गुम हुआ कोटि धन उसी ओर।
इस पैरोडी को सुनकर एक प्रख्यात आलोचक ने बयान जारी किया- किसी कविता का कालजयी होना इस बात पर निर्भर होता है कि वह हर देशकाल में समाज के हर वर्ग के द्वारा प्रयुक्त हो सके। किसी कविता के कालजयी होने की पहचान उसकी पैरोडी हो जाने की ताकत पर निर्भर होती है।
विरोधी घराने के आलोचक ने इसके विपरीत स्थापना देते हुये कहा- किसी कालजयी कविता की अंतिम परिणति उसका पैरोडी में बदल जाना होता है।
इस दूसरी स्थापना को सुनते ही तमाम पैरोडीबाज अपनी-अपनी पैरोडियों को कालजयी कविता में शामिल करवाने के लिये कालजयी कविता पंजीकरण कार्यालय के लिये लपक लिये। तमाम चंपू कवियों ने अपनी कविताओं के प्रिंटआउट भी साथ ले लिये। कुछ तो रास्ते में अपने मोबाइल पर अपनी आशु चिरकुटई भी अपलोड करते जा रहे थे। कुछ के मोबाइल में हिंदी में टाइप करने की व्यवस्था नहीं थी। ऐसे लोग अपनी आशु चिरकुटई वाया गूगल हिंदीट्रांस्लिट्रेशन पोस्ट कर रहे थे। इससे उनकी वर्तनी की कमियां कम हो गयीं थी। एक चंपू कवि का मोबाइल हैंग हो गया। उसने रिफ़ेश बटन इतनी जोर से दबाया कि वह बिना मे आई कम इन सर बोले मोबाइल के अंदर चला गया। इसके बाद कवि ने मोबाइल को उसी तरह झटका दिया जिस तरह पेन में स्याही कम होने पर पेन को झटकते हैं। इससे कविता उसके मोबाइल स्क्रीन पर स्याही की तरह छलक पड़ी। इससे एक आशु आलोचक ने एक और स्थापना ठेल दी- कविता हमेशा झटका लगने पर ही प्रकट होती है।

कालजयी कविता पंजीकरण कार्यालय पहुंचने पर लोगों को पता चला कि वहां के सारे बाबू अपने रजिस्टर खुले छोड़कर रामलीला मैदान की तरफ़ निकल लिये हैं। अपना काम छोड़कर भ्रष्टाचार हटाओ मुहिम में योगदान देने के लिये।
मूंगफ़ली वाला
दफ़्तर के बाहर खड़े मूंगफ़ली वाले ने बताया कि सब लोग उसके ठेले से जबरियन मूंगफ़ली के पैकेट उठा के ले गये हैं। पचीस लोग दफ़्तर से निकले। पचास लोग बाहर के थे। पैसे मांगने पर कुछ लोगों ने वापस लौटकर हिसाब करने का आश्वासन दिया। लेकिन ज्यादातर लोगों ने उससे कहा-बड़े अजीब हो! इस क्रांतिकारी समय में भी मूंगफ़ली के पैसे मांगते हो। कैसे मूंगफ़ली वाले हो कि तुमको यह तक पता नहीं कि क्रांति कुर्बानी मांगती है। हम अपने काम की कुर्बानी कर सकते हैं तो तुम अपनी मूंगफ़ली की क्यों नहीं! :)
बेचारा मूंगफ़ली वाला उस भले आदमी का इंतजार कर रहा था जिसने उसको दस रुपये की मूंगफ़ली के बदले सौ रुपये का नोट दिया। वह सोच रहा था भला आदमी वापस आये तो उसके नब्बे रुपये लौटा कर अपना ठेला बढ़ाये। उसको बेचारे को क्या पता कि भले आदमी को जब अपने नब्बे रुपये का ख्याल आया तब आया जब वह मूगफ़ली वाले से चार सौ रुपये पेट्रोल की दूरी पर पहुंच गया था। पैसा वापस लेने जाने में सात सौ दस रुपये के नुकसान की बात सोचते हुये उसने सारे घटनाक्रम पर लेख लिख मारा -आंखो देखा हाल टाइप। समाज की लानत-मलानत करते हुये इशारे से अपने मूंगफ़ली वाले को उसका नुकसान पूरा करने के लिये सौ रुपये जबरदस्ती थमा देने की बात बताते हुये संदेश भी थमा दिया कि समाज में अभी भी भलमनसाहत बची हुई है।
समाज
मजे की बात कि अगले दिन जब वह लेख अखबार में छपा और उसमें मूंगफ़ली वाले को सौ रुपये देने वाली बात छपने से रह गयी तो उस भले आदमी की त्वरित प्रतिक्रिया थी- आजकल दुनिया में भलाई का जमाना नहीं रहा। :)
उधर वातानुकूलित कमरे में भ्रष्टाचार के साथी आपस में विमर्श करने में जुट गये हैं। अवसरवाद ने अब तेरा क्या होगा रे कालिया? वाला पोज बनाकर प्रकटत: बड़ी विनम्रता के साथ भ्रष्टाचार से पूछा – भाई साहब आगे का क्या प्लान है?
इसी तरह और साथियों ने भी भ्रष्टाचार को अपने बिना शर्त समर्थन का वायदा देते हुये उससे आगे का प्लान पूछा। इस पर भ्रष्टाचार ने अपने लक को सहेज कर पहनते हुये अपना गला खंखारकर बोलना शुरु किया:
भाइयों और बहनों! मैं इस तथाकथित संकट की घड़ी में आपके तथाकथित सहयोग का आभारी हूं। वैसे मैं आपको बता हूं कि मैं और समाज एक साथ ही पैदा हुये हैं। जहां समाज है वहां मैं हूं। कम-ज्यादा होना अलग बात है लेकिन हमको मिटा सके ये जमाने में दम नहीं !
आगे बोलते हुये भ्रष्टाचार ने कहा- सच पूछा जाये तो मेरा अपना कोई अस्तित्व ही नहीं है। मैं तो समाज में हो रही गतिविधियों का आईना हूं। समाज में अच्छाई बढ़ेगी, मैं कम दिखूंगा। लोग ईमानदारी से रहेंगे, मेरी उपस्थिति कम होगी। मुझे मिटाने की कसमें खाने वाले अपने समाज की बुराइयां कम करें। मैं अपने आप वहां कम दिखूंगा। हमको कोई शौक थोड़ी है कि हम साफ़-सुथरी जगह पर जाकर अपनी जान आफ़त में डालें। जो लोग हमको मिटाने की बात करते हैं उनको अच्छे काम करने चाहिये। मैं समाज की कारगुजारियों का उत्पाद हूं। मैं कोई कच्चा माल नहीं कि मुझको इधर किसी मशीन में डालोगे और उधर से अच्छाई, भलमनसाहत निकल पड़ेगी। सब तरफ़ रामराज्य छा जायेगा।
समाज
और आगे अपनी बात कहते हुये भ्रष्टाचार ने कहा- चूंकि मैं सदा-सर्वदा रहा हूं, सदा-सर्वदा रहूंगा। इसलिये कोई यह सोचता है कि मुझे एक बार कम करके लोग मस्त हो जायें तो वह गलत सोचता है। समाज कोई आटो पायलट मोड में पड़ा जहाज नहीं है कि मंजिल तक अपने आप पहुंच जायेगा। हमारे कोप से बचने के लिये समाज को मेहनती बनना होगा, पसीना बहाना होगा, सबको सबका ख्याल रखना होगा। यह सब होता रहेगा तो मैं खुद शान्त रहूंगा। :)
भ्रष्टाचार के साथियों में से एक भाई-भतीजावाद ने उसके समर्थन में जिन्दाबाद का नारा लगाते हुये कहा- क्या फ़िलासफ़ी झाड़ी है भाईसाहब आपने! आज तो आपने बापू आशाराम की भी छुट्टी कर दी। मजा आ गया। :)
इसी तरह की और न जाने कितनी बातें भ्रष्टाचार बताता रहा। और आगे कुछ कहता तब तक स्टूडियो से उसका संपर्क टूट गया। आखिरी बार जब वह दिखा था तो अपना लक कस के अपने चारो तरफ़ लपेटे हुये था। जितनी तेज हवायें तेज चल रहीं थीं उतनी ही मजबूती से वह अपना लक लपेट रहा था।
बाद में पता चला कि उसके सभी साथियों भाई-भतीजावाद, कामचोरी, जातिवाद, हरामखोरी, निकम्मापन, बेशर्मी, बत्तमीजी, एय्याशी , विलासिता, सामंतवाद, सांप्रदायिकता, तुष्टिकरण, अवसरवादिता उसके समर्थन में बयान जारी किया है।
आपका क्या कहना हैं इस बारे में! वैसे बुरा न मानें तो हम यही कहना चाहेंगे कि आप भी अपना लक पहिन के चलो। :)

21 responses to “अपना लक पहिन के चलो…”

  1. sanjay bengani
    सरकारी दफ्तर में खास बनियान धारण किये जाते है. क्या पता कभी घूस देने में फायदा हो जाता है.
    अन्ना के आन्दोलन से कई लोगों को फायदा हुआ है. झण्डे बनाने वाले से लेकर टोपी बनाने वाले निहाल हो गए.
    लोकपाल भ्रष्टाचार खत्म कर पाएगा, इसमें शंका है. हाँ एक और दफ्तर जरूर खूल जाएगा.
    जो भी हो जनता सड़क पर उतरी तो सही. नहीं तो लगता था वो दिन गए अब केवल शीला की जवानी ही नचवाएगी, मगर शीला के कर्म पीएम को नजवा रहे हैं.
    sanjay bengani की हालिया प्रविष्टी..महिलाएं जो रक्तदान नहीं कर सकती
  2. काजल कुमार
    भ्रष्टाचार की परिभाषा बहुत क्लिष्ट है… मैं ए.सी. तो चलाउं पर बिजली का मीटर स्लो करके, मैं माल तो लूं पर बिल तभी लूं जब गारंटी/वारंटी की ज़रूरत हो (बहाना, दुकानदार ही ने पचा लेना है मेरा दिया टैक्स भी), दफ़्तर में जितनी कामचोरी हो सके कर लूं, जितना घटिया माल हो सके चला लूं/दूं, जहां तक हो सके टैक्स बचा लूं, अपने ख़र्चे बिजनेस में दिखा लूं, सरकारी/बिजनेस की सुविधाएं अपने लिए भोग लूं… जब मैं ये सब करूं तो भ्रष्टाचार नहीं… दूसरा ये सब करे तो भ्रष्टाचार…जब मैं ये सब करूं तो भ्रष्टाचार नहीं… दूसरा नोट कूटे तो भ्रष्टाचार…
  3. मनोज
    आज तो बस इतना ही कहने का मन है -
    तुम मांसहीन, तुम रक्त हीन, हे अस्थिशेष! तुम अस्थिहीऩ,
    तुम शुद्ध बुद्ध आत्मा केवल, हे चिर पुरान हे चिर नवीन !
    तुम पूर्ण इकाई जीवन की, जिसमें असार भव-शून्य लीन,
    आधार अमर, होगी जिस पर, भावी संस्कृति समासीन।
    मनोज की हालिया प्रविष्टी..मुग़ल काल में सत्ता का संघर्ष-1
  4. वन्दना अवस्थी दुबे
    ०-अपनी टीम इंडिया क्रिकेट वाली अभी जरा पिटन मोड में चल रही है। :) :)
    कमाल का मोड है!
    ०-किसी कालजयी कविता की अंतिम परिणति उसका पैरोडी में बदल जाना होता है।
    :) :) :)
    ०-कालजयी कविता पंजीकरण कार्यालय
    :)
    ०-मैं आपको बता हूं कि मैं और समाज एक साथ ही पैदा हुये हैं। जहां समाज है वहां मैं हूं। कम-ज्यादा होना अलग बात है लेकिन हमको मिटा सके ये जमाने में दम नहीं !
    लगता तो ऐसा ही है :)
    ०-मैं समाज की कारगुजारियों का उत्पाद हूं।
    :)
    और चलते-चलते क्या गज़ब का सन्देश दिया है आपने- मतलब भ्रष्टाचार के मुंह से :)
    “सच पूछा जाये तो मेरा अपना कोई अस्तित्व ही नहीं है। मैं तो समाज में हो रही गतिविधियों का आईना हूं। समाज में अच्छाई बढ़ेगी, मैं कम दिखूंगा। लोग ईमानदारी से रहेंगे, मेरी उपस्थिति कम होगी। मुझे मिटाने की कसमें खाने वाले अपने समाज की बुराइयां कम करें। मैं अपने आप वहां कम दिखूंगा। ”
    आनंदम-आनंदम.
    वन्दना अवस्थी दुबे की हालिया प्रविष्टी..क्या है जनलोकपाल विधेयक?
  5. arvind mishra
    फुर्सतिया चिंतन की एक और बेमिसाल बानगी !
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..कान्हा जब धरती पर अवतरित हुए तो बैकुंठ खाली हो गया…….
  6. Dr.ManojMishra
    इस सिस्टम के दोषी हम सब भी तो हैं,शार्ट कट मारने के चक्कर में चुपके से थमा देते हैं मुट्ठी में.
    Dr.ManojMishra की हालिया प्रविष्टी..रक्षा बंधन पर विशेष– लोक-गीत कजरी में व्यक्त, भाई-बहन का प्यार…
  7. देवेन्द्र पाण्डेय
    ई पोस्ट में जौन बात ढेर बढ़िया हौ ऊ ढेर करिया अक्षर में हौ…!
    …लकालक पोस्ट हौ।
  8. भारतीय नागरिक
    मैं उन सब सज्जनों से सज्जनता के साथ असहमति जताता हूं जो जनता को भ्रष्टाचार के लिये दोषी बताते हैं और हम सुधरेंगे, जग सुधरेगा पर चलने की हिमायत करते हैं. घूस कोई आदमी १. दुखी होकर तब देता है जब उसे परेशान किया जाता है २. और खुशी खुशी तब जब वह कोई गलत काम कराना चाहता है. इतना बड़ा सिस्टम इसी लिये बनाया गया है और भारी भारी खर्चे इस सिस्टम पर इसीलिये किये जाते हैं कि व्यवस्था बनी रह सके और जब आज भ्रष्टाचार को शिष्टाचार बना दिया गया है तो मानकर चलिये कि पूरे सिस्टम को बदलने का वक्त आ गया है..
  9. संतोष त्रिवेदी
    किरकिट-चिंतन वाकई गज़ब का है,अगर अन्ना आज जमे न होते तो सारे मीडियावालों की तोपें उधर ही होतीं,उन्हें संदेह का लाभ मिल गया है.इसीलिए धोनी के परिवार ने भी अन्ना का समर्थन दन्न से कर डाला ,धोनी यूँ ही नहीं मैनेजमेंट के गुरु हैं !
    भ्रष्टाचार का मानवीकरण तो आपने कर ही दिया है,अब वह दानवीकरण के रूप में है.वह धन्यवाद का पात्र है कि देश के लोगों को अच्छी एक्सरसाइज करवा रहा है,नहीं तो हम पड़े-पड़े मुटिया रहे थे !
    सरकार-बहादुर अभी अपना वह चश्मा ढूँढ रहे हैं जिससे उनको साफ-साफ़ दिखाई दे,अभी अमेरिका से सुधरकर आना है ! तब तक देश की जनता को सहयोग करना चाहिए !
    ग़जब की फ़ुरसत में रहते हैं आप! मौका अच्छा है,थोड़ी ‘एक्सरसाइज’ भी कर डालें !
    संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..अन्ना का सन्देश !
  10. विवेक रस्तोगी
    फ़ुरसत में फ़ुरसत से किया गया चिंतन है, बस अब देखते हैं कि सारे भ्रष्टाचारी भी कहीं कल अपना मंच सामने ना लगा दें, और जितने लोग आंदोलन में हैं उनकी फ़ोटू हैंच कर रख लें कि आओ बेटा बहुत नारे लगा रहे थे ना हमारे विरोध में… तो सारी समर्थन में उतरी जनता गायब :D
    विवेक रस्तोगी की हालिया प्रविष्टी..गालों पर तिरंगा.. भ्रष्टाचार..जन्माष्टमी..इस्कॉन..और अमूल बेबी बॉय
  11. pragya pande
    एकदम्मे मस्त लिखे हैं आप .
  12. देवेन्द्र पाण्डेय
    ई पोस्ट में जौन बात ढेर बढ़िया हौ ऊ ढेर करिया अक्षर में हौ…! एकर मतलब ई हौ कि जेहके कम सुझाला ओहू पढ़ ले अउर समझ ले।
  13. आशीष श्रीवास्तव
    ये हुई न बात, सधी हुई भाषा में सटीक बयानी …..सबको लपेटते हुए :)
    हमने दिल्ली में बैठे मित्र से पूछा, ” सारे लुच्चे लफंगे ( अवसरवादी माफ़ करें :) ) अपनी रोटी सेंक रहे है ना, इस आग में ”
    बोला ” भाई साब! सब के सब बिरयानी खा रहे है आजकल ”
    मुम्फल्ली वाली घटना से पुष्टि हुई …………:) :)
    “किसी कविता के कालजयी होने की पहचान उसकी पैरोडी हो जाने की ताकत पर निर्भर होती है।”
    से सहमत होते हुए एक पैरोडी
    इब्तिदा-ए-जुलूस है रोता है क्या |
    आगे-आगे देखिये होता है क्या ||
    —-आशीष श्रीवास्तव
  14. sanjay jha
    चैनल वाले चिल्ला चिल्ला के कह रहे हैं ………. कांग्रेस…भाजपा….इस आन्दोलन को ‘अप-हरण’ करना चाहती है……………जयंती नटराजन कह रहीं हैं……………..मीडिया वाले ‘राजनीती’ कर रहे हैं आन्दोलन को लाईम लाइट में रखकर………….पब्लिक गंगाजल उठाने के लिए अब-तब कर रही है……………तो सरकार भी लोक सेवकों को मजबूरी में ही सही लोक-पाल समीति में ‘आरक्षण’ देने को तैयार हुए है……………
    बकिया ई पोस्ट को अभी रि-भैजिया रहे हैं ……………लेकिन भ्रस्टाचार के श्रीमुख से जो अस्सल बात कही ..
    उसका तो ताबीज बनाकर खाली पब्लिकिया को पहना दें…….राम राज्य बस आ ही जायेगा…………
    प्रणाम.
  15. ashish
    हम तो गए रहे ग्रीनपार्क , भर दुपहरिया चिलचिलाती धुप मा . १० रूपये की टोपी भी खरीदी जो गेट पर बिक रही थी . चील का जनम तो अब नहीं होगा ना . गाँधी बाबा वाली टोपी एकबार तो पहिने ली .
    ashish की हालिया प्रविष्टी..पुनर्मिलन
  16. Anonymous
    ”भ्रष्टाचार तुम मस्त रहो, हम तुम्हारे साथ हैं।
    भ्रष्टाचार से जो टकरायेगा, चूर-चूर हो जायेगा।
    भ्रष्टाचार के जलवे हैं, देश समाज में बलवे हैं।”
    ……………………………………….!!!!!!!!!!!!!
    धन्य हैं आप अनूप जी !… हँसते हँसते आँसू निकाल आये !!!
  17. सुशीला पुरी
    ”बाद में पता चला कि उसके सभी साथियों भाई-भतीजावाद, कामचोरी, जातिवाद, हरामखोरी, निकम्मापन, बेशर्मी, बत्तमीजी, एय्याशी , विलासिता, सामंतवाद, सांप्रदायिकता, तुष्टिकरण, अवसरवादिता उसके समर्थन में बयान जारी किया है।”……………………………..!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
    अनूप जी ! व्यंजना में बहुत बड़ी बात कह गए आप …!….!…!
  18. neeraj tripathi
    मस्त है अनूप जी ,
    वो सोच रही थी कि इधर वह हार रही है उधर उसे देश में हचक के गालियां मिल रही होंगी। लेकिन अन्ना आंदोलन ने उसकी यह चिंता दूर कर दी है।
    क्रांति कुर्बानी मांगती है। ये तो बवाल था … मजा आ गया … भ्रस्ताचर के संबंधियों से मुलाक़ात एक सुखद अनुभव रहा …
    और ये अपना लक पहिन के चलो नया ही फंडा है ॥
    हम भी इस वीकेंड में कुछ और नए लक ये आएंगे , ऐसा न हो आपका ये लेख लोगों को जागरूक बना दे और लक ब्लैक होने लगे 
    neeraj tripathi की हालिया प्रविष्टी..सरकार का जवाबी अनशन
  19. चंद्र मौलेश्वर
    क्रिकेटरिया ही नही शीला,कलमाडी,राजा जैसे भी कह रहे हैं अन्ना ज़िंदाबाद। जब तक तुम ज़िंदा हो हमें कोई याद नहीं करेगा :)
    चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..मुस्कान
  20. प्रवीण पाण्डेय
    यही टोटके अब टीम को बचा सकते हैं।
  21. shefali
    इस दूसरी स्थापना को सुनते ही तमाम पैरोडीबाज अपनी-अपनी पैरोडियों को कालजयी कविता में शामिल करवाने के लिये कालजयी कविता पंजीकरण कार्यालय के लिये लपक लिये। ……………….
    हम भी पीछे नहीं रहे …..लगे हाथ एक ठो पैरोडी हमने भी बना डाली थी …..
    shefali की हालिया प्रविष्टी..ड्राफ्ट के इस क्राफ्ट में एक ड्राफ्ट यह भी ………..

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