Monday, September 26, 2011

मियां मोहब्बत तुम्हारे बस की नहीं

मियां मोहब्बत तुम्हारे बस की नहीं तोबा कर लो,
तुम्हारे तो होश-ओ-हवास हमेशा दुरुस्त रहते हैं।

बहुत लम्बी लाइन लगी थी उनके चाहने वालों की,
रूपा फ़्रंटलाइन की बनियाइन पहन के आगे हो गया।

वो मोहब्बत में फ़ेल होने के जुगाड़ में है,
उसकी तमन्ना है बहुत बड़ा शायर बनना।

तुमसे बात करने से क्या फ़ायदा जी,
तुममें कोई कमी तो दिखती ही नहीं !

कल को कहीं झगड़ने का मन हुआ तो,
किस बात पे कोसेंगे तुम्हें बताओ भला।

वो बोला मैं तेरा फ़ैन हूं बहुत दिन से
आज मेरी चाय का पैसा तू ही दे दे।

देखा नहीं औ उस पर मरना भी शुरू कर दिया,
न जाने कैसे-कैसे जल्दबाज लोग हैं दुनिया में।

न जाने क्या खता हुयी मुझसे मुलाकात में,
वो बोले आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा।

वो क्यों मुझपे इतना भरोसा करता है,
मैंने तो उसे हमेशा अंधेरे में ही रखा है!

बेवकूफ़ियां नहीं दिखती खत में तो लगता है
तू मुझसे खफ़ा है खत मन से लिखा नहीं।

खत में शेर लिखना बंद करो बहुत हुआ,
मेरी सहेलियां तुमको शायर समझने लगीं।

संदेशे में भेजे शेर पढ़कर जी धड़कने लगता है,
वो शायर कौन है उससे मुलाकात कराओ न प्लीज।

तुम मेरी खूबियां बयान करते हो तो डर लगता है
लगता है कि किसी और का खत मुझे भेज दिया।

दो दिन बाद शहर लौटे शायर से चिपट कर शेर बोले,
आपके पीछे बहुत परेशान किया आपके मुरीदों ने।

Sunday, September 25, 2011

ई ससुर मोहब्बत भी एक बड़ा बवाल होता है

ई ससुर मोहब्बत भी एक बड़ा बवाल होता है,
मसला कौनौ नहीं सीधा, सब गोलमाल होता है।

घंटा भर कहीं मुलाकात का जुगाड़ हुआ भी तो
जिंदगी भर बिछुड़कर जीने का सवाल होता है।

शागिर्द ने उस्ताद को अपना पहला कलाम दिखाया,
बिना देखे, आंख मींच के वो बोले- बहुत खूब, शुब्भानल्लह

शायर ने मजाक में ही एक बेवकूफ़ी की बात कही,
शरीफ़ लोग भिड़ गये- ये हमे कहा, हमारे लिये कहा।

Saturday, September 24, 2011

उन्होंने अपने गुस्से का इजहार कुछ यूं किया

उनकी याददास्त तो अब लगता है टोटली चली गयी,
बता रहे थे कि हमने उनका हमेशा ख्याल रक्खा है।

उन्होंने अपने गुस्से का इजहार कुछ यूं किया,
मिलते ही भींच लिया लगा जान निकल जायेगी।

-कट्टा कानपुरी

Friday, September 23, 2011

एक दूसरे को ,सरेआम कोसा औ जलील किया

एक दूसरे को ,सरेआम कोसा औ जलील किया,
कहीं कोई कमी न रह जाये दोस्ती निभाने में।

दोस्ती निभाने में जो कुछ चूक हुई हमसे
वो हमने दुश्मनी निभाने में पूरी कर दी।

हमारी दोस्ती रही फ़कत चार दिन औ कुछ घंटे
अपन ने जिंदगी भर दुश्मनी के किस्से सुनाये।

-कट्टा कानपुरी

Thursday, September 22, 2011

हिंदी विकि में लेखों की संख्या एक लाख के पार

http://web.archive.org/web/20140419213531/http://hindini.com/fursatiya/archives/2212

हिंदी विकि में लेखों की संख्या एक लाख के पार

हिंदी विकिपीडिया
कुछ दिन पहले मितुल ने बताया कि हिंदी विकिपीडिया के लेखों की संख्या एक लाख से अधिक हो गयी है। मितुल चिट्ठों की दुनिया से जुड़े हैं। लेकिन शायद उन्होंने अपना ब्लाग आजतक नहीं बनाया। [मितुल का परिचय यहां देखें। ] शुरुआती दिनों में चिट्ठों पर मितुल की टिप्पणियां दिखतीं थीं लेकिन इधर काफ़ी दिनों से कम दिखीं। लेकिन हिंदी विकिपीडिया से वे जुड़े रहे। उन्होंने जब यह सूचना दी कि हिंदी विकिपीडिया के चिट्ठों की संख्या एक लाख के पार हो गयी तो बहुत खुशी हुई।
मितुल ने आज से पांच साल पहले निरंतर पत्रिका के लिये लेख लिखा था – विकिपीडिया: हिन्दी की समृद्धि की राह । इससे प्रेरणा लेकर हमने भी हिंदी विकिपीडिया को समृद्ध करने का मन बनाया था और शुरुआत भी की थी। लेकिन फ़िर ज्यादा कुछ कर नहीं पाये। केवल एक लेख लिखकर रह गये जिसमें हिंदी विकिपीडिया का मुखपृ्ष्ठ, हिन्दीविकि पर अपना खाता कैसे खोंले और अपना गांव-शहर कैसे जोड़े इससे संबंधित लिंक दी गयीं थीं। इतना योगदान करके हमने हिदी विकिपीडिया को नमस्ते सा कर लिया।
लेकिन सब हम जैसे नहीं हैं। कई लोगों ने अपने योगदान जारी रखे। इनमें प्रमुख नाम पूर्णिमा वर्मन, अनुनाद सिंह, देबाशीष , मितुल आदि के अलावा और बहुत से लोग हैं जिनके बारे में मुझे अच्छी तरह से पता नहीं। पूर्णिमा जी के बारे में मेरा मानना है कि नेट पर अगर हिंदी प्रचार-प्रसार के लिये सबसे अधिक योगदान करने वालों की अगर कोई सूची बनायी जाये तो उनका नाम सबसे ऊपर के लोगों में होगा। विकिपीडिया में महादेवी वर्मा और अन्य साहित्यकारों से जुड़े पेजों की शुरुआत उन्होंने ही की थी। इसके पहले अभिव्यक्ति, अनुभूति (अभि-अनु ) के माध्यम से उन्होंने नेट पर हिन्दी के प्रचार-प्रसार में बहुत काम किया। लेखकों को पहचानकर उनको लिखने के लिये प्रेरित करना और अभि-अनु की निरंतरता बनाये रखना एक अद्भुत काम है जिसे पूर्णिमा जी अपने साथियों के साथ पिछले ग्यारह से अधिक वर्षों से कर रहीं हैं। निरंतर पर लिखे एक लेख में उन्होंने अभि-अनु की शुरुआत और बाद की यात्रा के बारे में जानकारी दी थी।
इसके अलावा उन्मुक्तजी ने एक बार जानकारी दी थी कि वे अपने लेख विकिपीडिया पर डालते रहते हैं। आशीष तो अब शायद विकि के लिये ही लिखते हैं। उनके विज्ञान श्रंखला के जानकारी से भरे-पूरे लेख देखकर बहुत अच्छा लगता है। शुरुआत में आशीष खाली-पीली नाम से ब्लाग से लिखते थे और उनका ब्लाग सबसे लोकप्रिय ब्लागों में से था। अब अपनी कल्लो बेगम का साथ छोड़कर (?) वे पूरी तरह से विज्ञान विश्व के माध्यम से विज्ञान की जानकारी देने वाले लेख लिखने में जुट गये हैं और आज चिट्ठाकार पर Quantum entanglement का हिंदी पर्याय पूछते पाये गये। आशीष का परिचय पाने के लिये देखें- बहुमुखी प्रतिभा वाले हैं झालिया नरेश !
हिन्दी विकि के समाचार बाद के दिनों में देबाशीष से मिलते रहते थे। यह जानकारी भी कि उसमें योगदान देने वालों में भी आपस में विचारधारात्मक द्वंद चलता रहता था। एक विचारधारा के लोग दूसरी सोच के लेखों पर वीटो सरीखा करके अपने मनमाफ़िक जानकारी फ़्रीज कर देते हैं। आदि-इत्यादि। लेकिन यह सहज-स्वाभाविक मानव व्यवहार है। हर जानकारी को लोग अपने चश्मे से हमेशा से देख सकते हैं। यह सब तो तब होगा जब वहां सामग्री होगी। अभी तो सामग्री के लिहाज से बहुत काम बाकी है!
हिन्दी विकिपीडिया का प्रवेशद्वार देखकर लगता है कि इसमें जानकारियां पिछले तीन साल से अपडेट नहीं हो रहीं हैं। वजह इससे जुड़े लोग बता सकें शायद!
हिंदी विकि पर आज तमाम लोग अपना योगदान दे रहे होंगे। हम और आप भी दे सकते हैं।
हिन्दी विकिपीडिया पर लेखों की संख्या एक लाख के पार होना एक खुशी का मौका है। इस प्रयास में योगदान देने वाले लोगों को बधाई!

संबंधित लेख:

विकिपीडिया और उसकी प्रकृति के बारे में और जानकारी के लिये देबाशीष का यह लेख भी देखें: दस चीजें जो विकिपीडिया नहीं है

मेरी पसंद

कुछ कर गुजरने के लिये
मौसम नहीं, मन चाहिये!
थककर बैठो नहीं प्रतीक्षा कर रहा कोई कहीं
हारे नहीं जब हौसले
तब कम हुये सब फासले
दूरी कहीं कोई नहीं
केवल समर्पण चाहिये!
हर दर्द झूठा लग रहा सहकर मजा आता नहीं
आंसू वही आंखें वही
कुछ है गलत कुछ है सही
जिसमें नया कुछ दिख सके
वह एक दर्पण चाहिये!
राहें पुरानी पड़ गयीं आखिर मुसाफिर क्या करे!
सम्भोग से सन्यास तक
आवास से आकाश तक
भटके हुये इन्सान को
कुछ और जीवन चाहिये!
कोई न हो जब साथ तो एकान्त को आवाज दें!
इस पार क्या उस पार क्या!
पतवार क्या मंझधार क्या!!
हर प्यास को जो दे डुबा
वह एक सावन चाहिये!
कैसे जियें कैसे मरें यह तो पुरानी बात है!
जो कर सकें आओ करें
बदनामियों से क्यों डरें
जिसमें नियम-संयम न हो
वह प्यार का क्षण चाहिये!
कुछ कर गुजरने के लिये मौसम नहीं मन चाहिये!
-स्व.रमानाथ अवस्थी

37 responses to “हिंदी विकि में लेखों की संख्या एक लाख के पार”

  1. सतीश सक्सेना
    पंगेबाजी से हटकर लिखा गया एक बेहद आवश्यक लेख , शुक्र है आज किसी की धोती खोलने की हुड़क नहीं आई अनूप भाई !
    आभार आपका !
    सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..वेदना -सतीश सक्सेना
  2. सतीश सक्सेना
    विकी पर मैंने भी आप जितना लिखने का प्रयास किया था ! अब आपके दिए लिंक्स को पढ़कर दुबारा कोशिश करूंगा !
    सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..वेदना -सतीश सक्सेना
  3. मनोज कुमार
    वाह! बहुत प्रेरित करने वाली बाते हैं। इन लोगों को नमन जो निःस्वार्थ भाव से हिन्दी के प्रचार-प्रसार में लगे हैं।
    मनोज कुमार की हालिया प्रविष्टी..अस्पताल में नर्स का काम
  4. प्रवीण पाण्डेय
    कारवाँ यूँ ही बढ़ता रहे।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..क्या हुआ तेरा वादा ?
  5. आशीष 'झालिया नरेश' विज्ञान विश्व वाले
    नहीं जी, अभी तक हमने ज्यादा कुछ नहीं किया है! हिन्दी वीकी के लिए बहुत कुछ किया जाना बाकी है। वीकी से मै जितना लेता हूं उसका १% भी वापिस कर दिया तो बहुत है!
    आशीष ‘झालिया नरेश’ विज्ञान विश्व वाले की हालिया प्रविष्टी..टेलीपोर्टेशन : विज्ञान फंतासी कथाओं मे विज्ञान
  6. देवेन्द्र पाण्डेय
    ज्ञान बढ़ाती पोस्ट के लिए आभार। स्व० रमानाथ अवस्थी की कविता तो मंत्र की तरह सहेजने लायक है।
  7. घनश्‍याम मौर्य
    हिंदी विकीपीडिया का उपयोग जानकारी प्राप्‍त करने में तो किया है, किन्‍तु आज तक मैनें अपनी ओर से इसमें कोई योगदान नहीं किया। आपका लेख पढ़कर प्रेरणा मिली है कुछ करने की।
  8. अमरेन्द्र अवधिया
    इस उपयोगी आलेख के लिये आभार।
    लिंकों तक जा-जाकर देखने फिर आउँगा। इस प्रेरक-कार्य की चर्चा के लिये आपको साधुवाद।
    अमरेन्द्र अवधिया की हालिया प्रविष्टी..दिल्ली के दरबार कै अब हम का बिस्वास करी ? (कवि अउर कंठ : समीर शुक्ल)
  9. ashish
    प्रशंसनीय कार्य . कुछ खुराफात अच्छी होती है . (बतर्ज कुछ दाग अच्छे होते है )
    ashish की हालिया प्रविष्टी..मै लिख़ नहीं सकता
  10. Khushdeep Sehgal
    क्या मौज शीर्षक के तहत भी कुछ किया जा सकता है…
    आपके ब्लॉग पर सब टिप्पणीकारों की ताजा प्रविष्टि दिखती है, मेरी क्यों नहीं दिखती गुरुवर…
    जय हिंद…
    1. सतीश सक्सेना
      ट्रेड सीक्रेट है गुरु का …..
      ऐंवेयी समझ रखा है चेलो ने …:-)
      गुरु ने तुम्हारा लिंक गायब कर दिया देख लो :-)
      सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..वेदना -सतीश सक्सेना
  11. Abhishek
    बहुत बढ़िया काम है जी ये तो. निःस्वार्थ – पुण्य का काम कर रहे हैं ये लोग.
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..हर तरह का पब्लिक है ! (पटना ४)
  12. पूजा उपाध्याय
    विकी सतत प्रयासों से ही दिन प्रतिदिन जानकारी का खजाना बनती जा रही है. मैंने एक बार उसमें कुछ लिखने की कोशिश की थी…पर उस वक़्त प्रक्रिया कुछ लम्बी थी शायद…तो कर नहीं पायी. वैसे हिंदी विकी का इस्तेमाल कम ही करती हूँ…मगर ऐसी कई चीज़ें हैं जो हिंदी में भी उपलब्ध होनी चाहिए.
    आपने ठीक कहा है…अपने आसपास के शहर के बारे में वहां जानकारी जमा करनी चाहिए. लेख के लिए धन्यवाद…ऐसे आँख खोलने वाले पोस्ट्स बेहद जरूरी हैं.
    पूजा उपाध्याय की हालिया प्रविष्टी..कुछ अच्छे लोग जो मेरी जिंदगी में हैं…
  13. चंदन कुमार मिश्र
    आप भी अजीब आदमी हैं। एक लेख पढ़ने में इतने लिंक मिले कि, अब लगता है कि पूरा दिन पढ़ना ही होगा। और आज तो जवाब भी अधिकांश टिप्पणीकारों को दिया है। दस प्रतिशत वाली बात अच्छी लगी। अभी तो नहीं लेकिन प्रयास करेंगे।
    चंदन कुमार मिश्र की हालिया प्रविष्टी..नीतीश कुमार के ब्लॉग से गायब कर दी गई मेरी टिप्पणी (हिन्दी दिवस आयोजन से लौटकर)
  14. shikha varshney
    अच्छा लगता है निस्वार्थ हिंदी के लिए कुछ होता देखकर.
    shikha varshney की हालिया प्रविष्टी..कुछ पल.
  15. eklavya
    वैरी गुड ……………. फॉर अ चेंज…………….
    @.प्रशंसनीय कार्य . कुछ खुराफात अच्छी होती है . (बतर्ज कुछ दाग अच्छे होते है )…………………इस लाइन के लिए आशीषजी को आशीष मिले…………
    प्रणाम
  16. अल्पना
    बहुत अच्छी खबर है.
    विकिपीडिया पर मैं ने भी कई लेख डाले हुए हैं…
    जब भी समय मिलेगा तो अन्य लेख भी वहाँ पोस्ट करूँगी..
  17. उन्मुक्त
    यह जान कर अच्छा लगा कि हिन्दी विकिपीडिया के लेख १ लाख से ऊपर हो गये हैं।
    मैंने पहले लेख विवकिपीडिया पर डाले थे। इधर समयाभाव के कारण यह नहीं हो पा रहा है। देखियो फिर कब शुरू कर पाता हूं।
    उन्मुक्त की हालिया प्रविष्टी..The file ‘Understand infinity – be close to God’ was added by unmukt
  18. Ranjana
    एकदम नयी और नायाब जानकारी रही यह हमारे लिए….
    बहुत बहुत आभार…
    Ranjana की हालिया प्रविष्टी..माँ सी…
  19. संतोष त्रिवेदी
    हिंदी विकिपीडिया के बारे में सुना है,दो-एक बार गए भी ,पर अभी पूरी तरह रमे नहीं हैं.अब शायद चिपक पाऊंगा.
    रमानाथजी की कविता को हमने आपकी तरफ से ही माना है !इस पोस्ट में वह फुरसतिया अंदाज़ गायब रहा !
    संतोष त्रिवेदी की हालिया प्रविष्टी..हमने तो बस गरल पिया है !
  20. Dr.ManojMishra
    ई पोस्ट बहुते बढिया लगी.
    Dr.ManojMishra की हालिया प्रविष्टी..क्या ऐसे ही हम 2020 तक महाशक्ति बनेंगे ? (३)
  21. ….ब्लागरों की वर्षगांठों के बहाने चर्चा : चिट्ठा चर्चा
    [...] के बारे में प्रतिक्रिया देते अपनी एक पोस्ट लिखा था : मनोज कुमार, सही में ऐसे लोग [...]
  22. सलिल वर्मा - चैतन्य आलोक
    अनूप जी!
    वास्तव में यह एक प्रेरक पोस्ट है.. हम भी चेष्टा करते हैं ! हमने तो हिन्दी दिवस पर अपने वक्तव्य रखते हुए सम्पूर्ण ईमानदारी से यूनिकोड का आभार व्यक्त किया जिसने हमारी भावनाओं को अभिव्यक्ति दी!!
    सलिल वर्मा – चैतन्य आलोक की हालिया प्रविष्टी..बधाई!!
  23. Gyandutt Pandey
    अभी जरा सुस्ता लें। फिर विकी को रुख करेंगे!
    Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..डेढ़ऊ बनाम ओरल केंसर
  24. चंद्र मौलेश्वर
    हिंदी विक्की को एक लाख पोस्ट की बधाई। विकी, कविताकोश, गद्यकोश… अपना ब्लाग… कहां कहां लिखें :)
    चंद्र मौलेश्वर की हालिया प्रविष्टी..एक समीक्षा
  25. SHARAD KOKAS
    अवस्थी जी का गीत पढ़कर अच्छा लगा ।
    SHARAD KOKAS की हालिया प्रविष्टी..रेल्वे स्टेशन पर एक भिखारी
  26. ePandit
    आपके बताये नाम असामयिक हैं। मितुल विकिपीडिया के संस्थापकों में से एक थे लेकिन उन्हें वहाँ से गये अरसा हो चुका है, देवाशीष जी भी बहुत पहले जा चुके हैं, उन्मुक्त जी ने भी पहले कुछ लेख लिखे थे परन्तु ज्यादा समय उनका काम जारी नहीं रहा। पूर्णिमा जी ने लम्बे समय तक बहुत योगदान दिया, एक विवाद के चलते वे जो गयीं तो लौटी नहीं। हमने भी विकिपीडिया पर अच्छी पारी खेली पर अपने औजारों के विकास के लिये जो अवकाश लिया था तो दोबारा काम पर लौट नहीं सके।
    वर्तमान में विकिपीडिया पर मयूर कुमार तथा आशीष भटनागर दो सबसे सक्रिय व्यक्ति हैं। लेकिन विकि के सबसे समर्पित सिपाही अनुनाद जी हैं जो विकि के शुरुआती समय से अब तक सक्रिय हैं और शायद हमेशा रहेंगे। उनकी निरन्तरता का मैं कायल हूँ। विकि पर समय-समय पर बहुत लोग आते हैं, अच्छा काम करते हैं पर एक बार जोश उतर जाने पर या किसी कारण से चले जाने पर दोबारा वापस नहीं आ पाते। इसलिये मैं अनुनाद जी को उनकी विकिपीडिया के प्रति लगन और समर्पण के लिये नमन करता हूँ।
    ePandit की हालिया प्रविष्टी..मॅक्टिनी – दुनिया का सबसे छोटा कम्प्यूटर [वीडियो]
  27. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] [...]
  28. CAPTAIN RAJ
    हिंदी हम्मरी रास्ट्र भासा हई हिंदी वह भासा हई जो सब को एक धागा में बाद कर रखता ह : कैप्टेन rk

Wednesday, September 21, 2011

तुम जो समझे वो मेरी बात का मतलब नहीं

उसने अपना दर्द बयान किया, आंसू बहाये फ़ेसबुक पर,
सारे अजीज दोस्तों ने उसके स्टेटस को ’लाइक ’ किया।

वो फ़िर पिटा कोई बात नहीं, ये तो रोज का दस्तूर है,
ताज्जुब कि इस बार उसकी गलती भी बताई गयी।

पहले राहगीर को पीटा, फ़िर पहचाना औ कहा धत्तेरे की,
पीटने के बाद पहचान का चलन जरा अजीब लगता है!

तुम जो समझे वो मेरी बात का मतलब नहीं,
हमने जो समझाया वो तो बिल्कुल ही नहीं है।

-कट्टा कानपुरी
 

Tuesday, September 20, 2011

दफ़्तर में सोते हो

वो बेचारा सुबह से काम करता रहा मेज पर झुकेए हुये
शाम को साहब ने फ़टकारा- दफ़्तर में सोते हो!

-कट्टा कानपुरी

Sunday, September 18, 2011

कार की टंकी का पेट्रोल बच्चों में आधा-आधा

तू जो कहे वो सब कर गुजरूंगा तुम्हारे लिये
पर खुदा के लिये पुराने दाम पर पेट्रोल न मांग!

देवता तो भाई सच में इस्मार्ट होते हैं,
किसी की सवारी में पेट्रोल नहीं लगता।

तपस्या से खुश हो भगवान ,पैदल पहुंचे औ बोले,
मांग ले वत्स जो तेरा जी चाहे, सिरफ़ पेट्रोल के सिवा!

जवान गुस्सैल मर्द के एक बार फ़िर से होश उड़ गये,
ठसके से ज्योंही कहा इंस्पेक्टर ने , मेरे पास पेट्रोल है।

तेल के दाम बढ़ने से ,कई बहुओं की जिंदगी बच गई,
सोच रहे हैं ससुराल वाले, सस्ता तरीका निपटाने का।  

वसीयत में बाप ने अभी -अभी ये जोड़ा है,
कार की टंकी का पेट्रोल बच्चों में आधा-आधा।

दहेज में तय कार मना कर दी है लड़के वालों ने,
बदले में मांगे हैं पैसे पेट्रोल के दस साल के लिये।

निकल रहा है अमरीका, ईराक औ अफ़गान से,
तेल निकाल देती हैं, तेल की कीमतें हर एक का।

Thursday, September 15, 2011

बहुत लगाव है हमको अपनी प्यारी हिंदी से

खाये-पिये, चिंता की औ फ़िर थक कर सो गये,
और कितना त्याग करें कोई अपनी भाषा के लिये!

बहुत लगाव है हमको अपनी प्यारी हिंदी से,
रोयेंगे आज जम कर हम इसकी दुर्दशा पर!

वो इतनी ज़ोर से तड़पा, भन्नाया,बड़बड़ाने लगा,
जी किया उसके सर पे हाथ फ़ेर के पुचकार दूं!

-कट्टा कानपुरी

इसमें साजिश है रकीबों की

पिट चुका है कई बार वो उठाईगिरी के चक्कर में ,
हर बार कहा उसने, इसमें साजिश है रकीबों की।

कुछ ज्यादा ही कड़ा होता है इम्तहान मोहब्बत का,
ऐन इम्तहान के पहले सिलेबस बदल जाता है।

मोहब्बत के न जाने कितने इम्तहान हुये मेरे
हर बार सुना परचा आउट था इम्तहान दुबारा होगा।

पीटा मुझे बे- बात के तेरे मोहल्ले वालों ने,
तू कहे हो तो इसे मोहब्बत के खाते में चढ़ा लूं!

-कट्टा कानपुरी 


Wednesday, September 14, 2011

इनकम अपन की डबल है, अब तू फ़ैसला सुना

न कोई गिला न शिकवा न तोहमत न कोई इल्जाम,
ये कौन सा तरीका है यार मोहब्बत निभाने का!

मोहब्बत करने चला है तो मोहब्बत का सलीका तो सीख,
जिंदगी को तहा के धर दे, मरने की कसम खाना तो सीख!

लिखा है खत स्याही से , तू इसे खून मत समझना,
पेन भी वो वाला जिससे, लिखते-लिखते लव हो जाये!

जा भाग के ब्लड बैंक से, खून की बोतल ले आ,
लिखना है मुझे खत , अपने कुछ ’लवर्स’ के नाम! 

खत जो लिखे रकीब ने, उसे तू मेरे समझ ले,
इनकम अपन की डबल है, अब तू फ़ैसला सुना।

वे मिले अकेले में, बहुत लम्बे समय के बाद,
बनाते रहे प्लान कैसे रोयेंगे बिछड़ने के बाद!

-कट्टा कानपुरी

Tuesday, September 13, 2011

भटक जाओगे अंधेरे में

चांद ने सूरज को समझा दिया आहिस्ते से,
भटक जाओगे अंधेरे में, गर रात को न निकला मैं!

बिखर जायेगा सारा तामझाम, हवा-पानी,सब जलवा,
अगर दलाली छोड़ दी मैंने, रोशनी की रात के अंधेरे में

शाइर से गुफ़्तगू हुई , उसने तखल्लुस उड़ा लिया
दुनिया में भले आदमियों की, अभी कोई कमीं नहीं!

-कट्टा कानपुरी

Monday, September 12, 2011

किस्से बहुत सुनाता है

 वो अपनी कामयाबियों के, किस्से बहुत सुनाता है,
उसके करीबी कहतें हैं ,उसको तो कुछ भी नहीं बुझाता है।

वो अपने इश्क के किस्से बहुत सुनाता है,
शायद जिन्दगी में मोहब्बत की कमी छिपाता है!

-कट्टा कानपुरी

शायर दोस्त मिले हैं

शायर दोस्त मिले हैं, एक लम्बे समय के बाद
कर रहे हैं हिसाब अपने मुकर्रर औ इरशाद का।

पच्चीस मुकर्रर औ तीस दाद का कुछ भी पता नहीं,
शायर टटोल रहे हैं, एक दूसरे को शक की निगाह से।

जब मिला न हिसाब तो अपनी गजले निकाल ली,
सुना रहे हैं आपस में ,औ जोड़ रहे हैं मुकर्रर, इरशाद।

-कट्टा कानपुरी

Sunday, September 11, 2011

जैसे कोई ग्वाला दूध में पानी मिलाता है

केबिन में साहब से डंटकर ,वे बाहर निकले औ बोले!
आज बॉस को कस के रगड़ा, घंटे भर काम करा लिया।

दबोच लिया अंधेरे में, सीने से कट्टा सटा दिया,
दांत पीसकर गुर्राया - खामोशी से शेर सुन, दाद दे।

वे जा घुसे घर में, अंदर से ताला भी लगा लिया,
हकलाते हुये ललकारा -हिम्मत है तो बाहर आ !

तुमसे बि्छुड़कर मर जायेंगे- कहने में डर लगता है
अंदर हो जायेंगे कोशिश-ए- खुदकशी के इल्जाम में।

सुबह से मेरी तारीफ़ों के पुल उसने बांध रखे हैं
इतना उतर गये हैं उसकी निगाह में हम! 

एक ही बात पर सौ बार वो रूठा , खुश हुआ,
उसके स्टेटस को सौ बार लाइक /अनलाइक किया।

वो प्यार का भरोसा कुछ इस तरह दिलाता है
जैसे कोई ग्वाला दूध में पानी मिलाता है।

-कट्टा कानपुरी

गुस्से में लगते हैं हसीन लोग

जब से सुना उन्होंने, गुस्से में लगते हैं हसीन लोग
बात-बेबात झल्ला के पूछती हैं-कैसी लग रही हूं मैं!

 अंधविश्वास के खिलाफ़, उनको लिखनी है एक गजल
सुबह से कर रहे इंतजार, पंडित का मुहूरत के लिये।

मेरे जिस खत का जबाब भेजा है तूने मु्झे तफ़सील से,
उसको लिख के तुझे भेजने की मुझे फ़ुरसत ही नहीं मिली ॥

-कट्टा कानपुरी

Saturday, September 10, 2011

तेरा साथ रहा बारिशों में छाते की तरह

तेरा साथ रहा बारिशों में छाते की तरह ,
कि भीग तो पूरा गये पर हौसला बना रहा।

वही घिसी-पिटी बातें, वही ख्याल- कुछ भी तो नया नही,
चल बहर में कह, तरन्नुम में पढ -गजल में खप जायेगा।

-कट्टा कानपुरी

Friday, September 09, 2011

हसीं सोहबतों में रहा ही नहीं

आप कहते हो कि बहुत झूठ बोलता है माना
लेकिन वो तो कभी हसीं सोहबतों में रहा ही नहीं!

मै कोई अदना शायर नहीं मेरे चाहने का वो वाला मतलब मत निकाल
मैंने तो तुझे सिर्फ़ ’लाइक किया है’ किसी फ़ेसबुक के स्टेटस की तरह।

-कट्टा कानपुरी

Thursday, September 08, 2011

वो बेवजह हल्ला बहुत मचाता है

माना कि शेरों में तेरे बोरियत खूब दिखने लगी
उनमें जरा बेवफ़ूफ़ी और मिलाओ तो दाद दें।

वो बेवजह हल्ला बहुत मचाता है
हमेशा नारे लगाता है सो जाता है।

-कट्टा कानपुरी

Saturday, September 03, 2011

…और ये फ़ुरसतिया के सात साल

http://web.archive.org/web/20140419215145/http://hindini.com/fursatiya/archives/2214

…और ये फ़ुरसतिया के सात साल

फ़ूल
…..और मजाक-मजाक में हमारी चिट्ठाकारी के सात साल निकल लिये! कोई गड़बड़ नहीं भाई इसके पहले एक , दो ,तीन , और चार , पांच और छह भी निकले इज्जत के साथ!
इन सात सालों के अनुभव मजेदार रहे। झन्नाटेदार भी। याद करते हैं कि विन्डॊ 98 के जमाने में, जयहनुमान सुविधा के सहारे, छहरी की-बोर्ड के जमाने में डायल अप इंटरनेट कनेक्शन के दिनों से शुरु हुये थे। जब भी नेट लगाते तो किर्र-किर्र करके घर भर को पता चल जाता कि नेट-बाजी हो रही है। आये दिन सुनने को मिलता -तुम्हारी ब्लागिंग के चलते फ़ोन बिजी रहता है। लोग शिकायत करते हैं फोन हमेशा बिजी रहता है। कट-पेस्ट करके लिखने और टाइप करके कमेंट करने के जमाने थे वे। ई-स्वामी ने हिंदी में सीधे टिप्पणी करने का जुगाड़ आज से छह साल पहले लगाया था। उस पोस्ट पर आई प्रतिक्रियाओं से उस समय की कठिनाइओं का अंदाजा लगाया जा सकता है। :)
ब्लागिंग अपने आप में अभिव्यक्ति का अद्भुत माध्यम है। हर एक को अभिव्यक्ति का प्लेटफ़ार्म मुहैया कराती है यह सुविधा। क्या रेंज है जी! शानदार से शानदार लेखन से लेखन से लेकर चिरकुट से चिरकुट विचार के लिये भी यहां दरवज्जे खुले हैं। यही इस माध्यम की ताकत है। बड़े से बड़ा लेखक/कवि/पत्रकार भी अंतत: प्रथमत: और अंतत: एक इंसान ही होता है। उसका लेखन भले शानदार हो लेकिन एक सीमा के बाद वह टाइप्ड हो जाता है। ब्लागिंग के जरिये आम आदमी की एकदम ताजा स्वत:स्फ़ूर्त अभिव्यक्तियां सामने आती हैं। यह सुविधा अद्भुत है।
ब्लागिंग के बारे में अलग-अलग लोग अपने-अपने हिसाब से धारणायें बनाते हैं। अपन को तो यह बहुत भली मासूम सी विधा लगती है। आप जैसे हो उसई तरह का आपके पेश कर देती है नेट पर। कभी-कभी क्या अक्सर ही लोग ब्लागिंग के स्तर को लेकर हलकान होते हैं। पोस्टें लिखते हैं। लेकिन ब्लागिंग में नित-नये लोग जुड़ते जाते हैं। झमाझम पोस्टें आती रहती हैं। हू केयर्स फ़ार स्तर? हेल विद इट! स्तर की चिंता करें कि मन का रेडियो बजायें।
संकलक के निपटने से तमाम लोगों को असुविधा हुई है लोगों को। लोग लिखते हैं पता नहीं चलता लोगों को। लेकिन अब दूसरे जुगाड़ फ़ेसबुक, गूगल बज , ट्विटर हैं अपनी पोस्टें पढ़वाने के लिये। लेकिन इत्ता पक्का है कि अगर किसी ने कुछ अच्छा लिखा है या काम भर का विवादास्पद तो वह देर-सबेर पढ़ ही लिया जाता है।
टिप्पणियां हिंदी ब्लागजगत की चंद्रमुखी/मृगलोचनियां हमेशा से रही हैं। ज्यादातर ब्लागर केशवदास बने इनको हसरत से निहारते रहते हैं। टिप्पणियों का अपना गणित है। अच्छे लेखन के अलावा नेटवर्किंग, मेहनत, पाठक के साथ व्यवहार, इमेज पर इनका संख्या निर्भर करती है। कुछ भाई लोग तो ऐसी टिप्पणियां करते हैं कि उनका मतलब निकालना उनके लिये ही मुश्किल हो! :)
ब्लागिंग में हमने देखा है कि लोग आमतौर पर अपनी आलोचना के प्रति असहनशील हैं। किसी की बात के खिलाफ़ कोई बात लिखी जाये तो सबसे पहली धारणा वह यही बनाता है जरूर उससे जलन के चलते यह बात लिखी है। यह प्रवृत्ति आमप्रवृत्ति है हिंदी ब्लागिंग के मामले में। पहलवान टाइप के ब्लागरों छोड़िये यहां तो सामाजिक समरसता , अच्छाई, भलाई के लिये हलकान रहने वाले लोग भी अपने लेखन और व्यवहार की आलोचना पर ’ पड़सान ’ हो जाते हैं। घूम-घूम कर अपने घाव दिखाते हैं सबको! ऐसा करते हुये वे इत्ते मासूम लगते हैं कि उनसे “हाऊ स्वीट , हाऊ क्यूट ” कहने का मन करता है। लेकिन कहते नहीं फ़िर इस डर से कि वे और ज्यादा “स्वीट और क्यूट ” हो जायेंगे -हिंदी ब्लागिंग में अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग करने का इल्जाम लगेगा सो अलग! :)
बीते सालों में समय के साथ ब्लागिंग की पहचान बढ़ी है। सात साल पहले -ब्लागर -ये कौंची होता है? की स्थिति थी। आज यह स्थिति है कि कुछ दिन पहले एक टी.वी. चैनल में एक वार्ताकार के नाम के साथ ब्लागर की पट्टी लगी थी। हिंदी अखबार और किताबों में ब्लागर बहुतायत में छपने लगे हैं। अब ब्लागिंग अनजान विधा नहीं रही जी।
ब्लागिंग के जरिये लोगों का मिलने-मिलाने का सिलसिला भी बढ़ा है। हमारे तमाम जानने वालों में ब्लागर बढ़ते जा रहे हैं। हर शहर में कोई न कोई ब्लागर दोस्त है। यह मजेदार सुकून है भाई!
पिछले सालों में हमारा लिखना-लिखाना कम हुआ है। आज देखा तो गये साल में कुछ जमा 37 लेख लिखे। उसमें से आधे से ज्यादा रिठेलित हैं। यह हालत उन कवियों की तरह है जो पांच साल कवितायें लिखकर पचास साल तक सुनाते हैं। वो तो कहिये कि हमारे कुछ पाठक भले हैं और हमारा रिठेला हुआ पढ़े भले न लेकिन यह जरूर लिख देते हैं -दोबारा पढ़ा और उतना ही मजा आया। अब बताइये भला किसी और माध्यम में इतने भले पाठक-प्रशंसक मिलते हैं। :)
ब्लागिंग में कमी का कारण और कारणों के अलावा फ़ेसबुक जैसे तुरंता माध्यमों का अवतरण भी रहा। आजकल तो फ़ेसबुक पर वह भी ठेलने लगे हैं जिसे भले लोग शायरी के नाम से जानते हैं। एकाध शेर आप भी वो फ़र्माइये जिसे शायर लोग मुलाहिजा के नाम से जानते हैं:
  1. दबोच लिया अंधेरे में, सीने से कट्टा सटा दिया,
    दांत पीसकर गुर्राया – खामोशी से शेर सुन, दाद दे।
  2. वही घिसी-पिटी बातें, वही ख्याल- कुछ भी तो नया नही,
    चल बहर में कह, तरन्नुम में पढ -गजल में खप जायेगा।
  3. मै कोई अदना शायर नहीं मेरे चाहने का वो वाला मतलब मत निकाल
    मैंने तो तुझे सिर्फ़ ’लाइक किया है’ किसी फ़ेसबुक के स्टेटस की तरह।
  4. वो अपने इश्क के किस्से बहुत सुनाता है,
    शायद जिन्दगी में मोहब्बत की कमी छिपाता है
  5. आप कहते हो कि बहुत झूठ बोलता है माना
    लेकिन वो तो कभी हसीं सोहबतों में रहा ही नहीं!
  6. तेरा साथ रहा बारिशों में छाते की तरह ,
    कि भीग तो पूरा गये पर हौसला बना रहा।
ये आखिरी वाला तो हमने अपनी श्रीमती जी का छतरी लिये हुये फोटो देखने के बाद लिखा। इससे एक पंथ दो काज हो गये। एक शेर का शेर निकल आया और उधर श्रीमती जी को यह जता भी दिया कि हम उनके लिये भी शेर लिख सकते हैं। :)
शेर लेखन में हमारी रुचि देखकर आलोक पुराणिक ने हमको सलाह दी कि हमको कनपुरिया भाषा में शेर लिखने चाहिये । तखल्लुस भी तय हो गया -’कट्टा’कानपुरी। शाम को देखा उधर से शिव बाबू- ’कट्टा’ कानपुरी के नाम से चालू हो गये। हमारा तखल्लुस लुट गया। हमने आलोक पुराणिक को बताया तो उन्होंने सलाह दी -शायरों/कवियों से अपने आइडिया शेयर नहीं करने चाहिये। :)
बाद में हमने सोचा कि हम अपना तखल्लुस ’ कट्टा ’ कानपुरी असली वाले धर लें। साथ में नोट लगा दें- नक्कालों से सावधान होने की कौनौ जरूरत नहीं- वे भी अपने ही भाई बंधु हैं।
और ये देखिये एक ठो शेर भी उछल के आ गया मैदाने-जेहन में! अब सुन ही लीजिये:
शाइर से गुफ़्तगू हुई , उसने तखल्लुस उड़ा लिया
दुनिया में भले आदमियों की, अभी कोई कमीं नहीं!
:)
हां भाई यह भलमनसाहत ही है। जैसे पहली बार चिलम आपके हाथ में देखकर कोई भला आदमी उसे आपके हाथ से छीनकर खुद सुट्टा लगाने लगे ताकि आपको नशे की गिरफ़्त से बचा सके। और ये जो शाइर लिखा है न वो इसलिये कि गुलजार साहब शाइर ही लिखते हैं शायर को। हमारे तमाम पाठक गुलजार भक्त हैं। उनको अच्छा लगेगा! :)
खैर शायरी-वायरी अलग की बात! यहां मामला ब्लागिंग का है। सात साल पूरे हुये थे बीस अगस्त को। आज यह पोस्ट लिख रहा हूं। ब्लागिंग के माध्यम से जुड़े अपने तमाम साथियों को याद करके खुश हो रहा हूं कि इस माध्यम के चलते मजाक-मजाक में लिखना शुरु किया और की-बोर्ड के फ़जल से अभी तक ठेल और रिठेल मिलाकर छह सौ पोस्टें निकलकर सामने आ गयीं। हमारे साथ के लोगों को भी इससे सहूलियत हुई है। हमारे बारे में और कुछ समझ न आने पर अचकचा के कह उठते हैं -ये ब्लागिंग करते हैं। इनका ब्लाग कम्प्यूटर पर छपता है। इनके ब्लाग का नाम फ़ुरसतिया डाट काम है! :)
आज के दिन डा.अमर कुमार भी बहुत याद आ रहे हैं। उनका न होना बहुत खल रहा है। उनके बारे में सोचते हुये काशीनाथ सिंह का लिखा याद आता है जो उन्होंने धूमिल के न रहने पर लिखा था- उसके जाने के बाद तो ऐसा लगा घर से बेटी की डोली उठ गयी। आंगन सूना हो गया।
आज एक बार फ़िर अभिव्यक्ति का नये माध्यम : ब्लॉग से परिचय कराने वाले रविरतलामी और इस ब्लाग में लिखने के अलावा बाकी सब मामलों के पीर-बाबर्ची-भिस्ती-खर ईस्वामी का शुक्रिया कर रहा हूं। उस सभी साथियों का भी आभार जो हमें पढ़ते रहे और यह एहसास दिलाते रहे कि हमारा लिखा पढ़ने वाले भी हैं कुछ लोग! :)

151 responses to “…और ये फ़ुरसतिया के सात साल”

  1. Rashmi Swaroop
    बधाई सर, :)
    वैसे लिखा तो आपने ठीक ठाक ही है.. :P लेकिन जो आपका अंदाज़ है ना.. वो बड़ा स्वीट है..
    “शानदार से शानदार लेखन से लेकर चिरकुट से चिरकुट विचार के लिये भी यहां दरवज्जे खुले हैं।”
    बार बार पढ़ा मैंने इस लाइन को, ये इतनी प्यारी लगी.. :)
    सात साल में बहुत फैन बना लिए है आपने.. इस ग्लोबल वार्मिंग के दौर में ये बड़ी अच्छी बात है… ब्लोगिंग की गर्मी को फैन्स की हवा से बैलेंस करना वैसे भी ज़रूरी है.. मैंने तो आपका ब्लॉग पढ़कर ही पहली बार ब्लॉग बनाने के बारे में सोचा था.. आपको देख देखकर ही बच्चे सीखते हैं सर, आप लगे रहिये..
    “सर आप ब्लोगिंग करो हम आपके साथ हैं..” बेफिक्र प्रवेश करिए सातवे वर्ष में… शुभकामनाये..
    Rashmi Swaroop की हालिया प्रविष्टी.."JEEVAN SATYA KI TALASH"
  2. पंकज उपाध्याय
    एकदम ढिंचक पोस्ट… सलमान खान टाइप्स… :-)
    कट्टा कानपुरी (नकली और असली दोनों) के जितने चर्चे सुने, वो कम ही निकले|
  3. राजीव
    फुरसतिया के सात वर्ष सकुशल समपन्न होने पर बधाई। फुरसतिया तो चल गये सात साल पर कट्टा कानपुरी पहली ही बार में बोल गया। क़ोई बात नहीँ कट्टा तो होता ही ऐसा है। वैसे तो लघु-शस्त्र निर्माणी के कारण कट्टे और पिस्तौल पर आपका ही प्रथमाधिकार (सर्वाधिकार भी?) है, पर कट्टा कानपुरी का प्रसंस्कृत रूप “पिस्तौल” कानपुरी ठीक है, एक तो कट्टे से प्रमोशन और फिर लघु-शस्त्र निर्माणी का मान भी रह जायगा।
  4. Smart Indian - स्मार्ट इंडियन
    बधाई हो सात-साला सफ़र की। ठीक ही किया कि कट्टा कानपुरी तक ही सीमित रहे, चक्कू रामपुरी तक पहुँचने का प्रयास नहीं किया। भाभीजी के फ़ोटो में छतरी के साथ बस शेड जैसा भी कुछ दिखरा है मगर बारिश और धूप साफ़ नज़र नहीं आ रहे! डॉ. अमर कुमार की कमी तो सभी को खल रही है।
    Smart Indian – स्मार्ट इंडियन की हालिया प्रविष्टी..११ सितम्बर के बहाने …
  5. संजय @ मो सम कौन?
    ’हम तो जबरिया लिखबै’ वालों पर कट्टात्मक तखल्लुस खूब मौजूं है। जो लेखन से न डरे, वो नाम से डरकर बधाई देगा। वैसे हम तो लेखन से प्रभावित होकर बधाई दे रहे हैं। बधाई हो।
    संजय @ मो सम कौन? की हालिया प्रविष्टी..पीयू पीटू – P U P 2
  6. eswami
    गुरुदेव,
    मैं सुनता आता था कि चिट्ठाकारी के दिन पूरे हो गए- काफ़ी हद तक ऐसा मानने भी लगा था लेकिन ये जो रचेगा वो बचेगा वाला केस ही है- हालिया आंकडे बताते हैं कि चिट्ठा पढने वालों की तादाद बढी है और चिट्ठों का प्रभावक्षेत्र भी.
    नो मोर रीठेल वाली गुहार/मनुहार में अपनी भी सहमति शामिल समझी जाए.
    eswami की हालिया प्रविष्टी..पेश-ए-खिदमत है ‘हर्बल माल’– स्व. नुसरत की एक विरली कव्वाली!
  7. sushma Naithani
    सात साल तक धैर्य से ब्लोगिंग के लिए बधाई. बीच बीच में आपका ब्लोग पढ़ना सुखद अनुभूति देता है. मेरे जैसे बहुत से लोग होंगे जिनके लिए हिंदी लिखने और लिखते रहने की सिर्फ एक मात्र जगह ब्लोग ही है….
    sushma Naithani की हालिया प्रविष्टी..तारा
  8. भुवनेश शर्मा
    घणी बधाई आपको… हिन्‍दी ब्‍लॉगिंग के इतिहास में आपका नाम फुरसत से लिया जाएगा :)
    वैसे आपको फुरसत से पढ़े जमाना हो गया.. नये-नये ब्‍लॉगिंग में थे तो खूब फुर्सत में पढ़ते थे… वैसे परसों हमारे भी 5 साल ब्‍लॉगिंग में पूरे हो जायेंगे.. लगे हाथ हमें भी बधाई दे डालिए :)
    भुवनेश शर्मा की हालिया प्रविष्टी..Now Tweet in Hindi
  9. neelima
    बधाई ! हम जैसे रनछोर भूतलाकीन ब्लॉगर (?) की तरफ से ! भाभी जी की सहनशीलता को कोटि कोटि नमन !
  10. मनोज
    सात साल … कम नहीं होता … खास कर जब आप उन चन्द लोगों में शामिल हों जिन्होंने इस जगत के निर्माण में अहम भूमिका निभाई हो।
    सात साल तक विपरीत धारा में हाथ-पैर मारना (तैरना) और उसी हौसले को बरकरार रखना अद्भुत जीवट का परिचायक है।
    सात साल के बाद फिर चेहरे पर असीम साहस की चमक लेकर तैयार हों अगले ३६५ दिनों के सफ़र को … नमन है आपको।
    आपकी यह ३६५ दिनों की यात्रा मंगलमय हो यही कामना है।
    बाक़ी दो पोस्टों की बात एक ही पोस्ट में देना ज़रूरी नहीं लगा।
    मनोज की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी दिवस- कुछ तू-तू मैं-मैं, कुछ मन की बातें … !
  11. anita
    बधाई। ब्लोगिंग समय खाऊ है और फ़िर भी आप सात साल से निरंतर लिख रहे हैं, नमन करने को जी चाहता है। फ़ुरसतिया का चिठ्ठा आने वाले कई सालों तक चलता रहे यही भगवान से प्रार्थना है।
    डा अमर की कमी तो खल ही रही है।
  12. अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी
    बधाई! बिना पोस्ट पढ़े दे रहा हूँ, बदस्तूरे-रस्म! जान रहा हूँ कि पोस्ट में आप क्या लिखे होंगे। जब किसी चीज/व्यक्ति के बारे में मुगालता न हो तो ‘बदस्तूरे-रस्म’ की अदायगी भी मजा देती है। :)
    अमरेन्द्र नाथ त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..बाज रही पैजनिया.. (कंठ : डा. मनोज मिश्र)
  13. सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी
    एक ठो बधाई इधर से भी ठेल रहा हूँ। आप वह दीजिए जिसे पावती कहते हैं।
    सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी की हालिया प्रविष्टी..सत्यकथा : अन्ना रे अन्ना…
  14. पूजा उपाध्याय
    हम दो दिन लेट से आये :(
    वैसे सात साल के हिसाब से देखें तो दो दिन लेट कोई बहुत लेट थोड़े ही है…इधर सागर से बात हो रही थी तो एकदम कूद के मन की एक बात निकली…’हमको लगता है हम आजकल हंसी मजाक और व्यंग्य लिखना इसलिए कम कर दिए हैं की अनूप जी को पढ़ना कम कर दिए हैं’. बात एकदम खरी है…आपको पढते थे, मन प्रफुल्लित रहता था, ऊटपटांग ख्याल भी आते थे तो घबराते नहीं थे…आप आजकल लिखना एकदम कम कर दिए हैं…हमारे हँसने का नुकसान हो रहा है…और दूसरा नुक्सान चिट्ठाचर्चा के अनियमित होने का है…आप कहेंगे शिकायत का पोटली खोल के बैठ गए…क्या करें, आपसे बेसी लिखने नहीं बोलें तो क्या करें.
    आपका धुआंधार लेखन बहुत कुछ लिखने को प्रेरित करता है…प्लीज थोडा ज्यादा लिखा कीजिये…इतना साल पूरा करने का बहुत बहुत बधाई…एकदम चकाचक, ढिंचक लिखते रहिये, बहुत दिन से आपके दर्शन नहीं हुए…कभी हमारे ब्लॉग पर भी पधारिये :) ;)
  15. प्रवीण शाह
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    बधाई हो पूरे सात बरस की मौज की…
    बढ़ता ही रहे यह मौज लेना आपका…
    और मौज को समझने वाले मनमौजी पाठक भी मिलें आपको…
    आभार!

  16. अविनाश वाचस्‍पति
    कट्टा कानपुरी
    नई है यह धुरी
    न हलवा पूरी
    काहे की कान
    काहे की नाक
    कट न जाए
    रहे पूरी पर
    न बने रोटी
    बाबा ब्‍लॉगरी
    ब्‍लॉग की धमक
    रही है चमक
    लपक ले लपक
    अनूप लुत्‍फ झपट
    झटपट लिपट लंपट।
  17. शेफ़ाली पाण्डेय
    आज तो आपकी पुरानी पोस्टें पढ़ कर ही उठेंगे …निश्चय किया है ….इसीलिये जल्दी उठ गए …बहुत दिनों से बैचैनी हो रही थी की आपने जाने क्या क्या लिख दिया होगा ….जिसे हम पढ़ नहीं पाए ….यहाँ आके पता चला की सात साल हो गए …बहुत बधाई …..अमर कुमार जी की याद हमेशा आती रहेगी …..वे और उनकी टिप्पणियां ….कोई भुला सकता है भला ?
  18. shefali
    हमारा कमेन्ट कहाँ गया ? सात साल होने पर बधाई ….आज आपके पिछले लेख पढ़ कर ही उठेंगे ….निश्चय किया है |
    shefali की हालिया प्रविष्टी..ड्राफ्ट के इस क्राफ्ट में एक ड्राफ्ट यह भी ………..
  19. Dr. Zakir Ali Rajnish
    अरे बारे रे, सात साल। अपुने भी गिनगी लगाए क्‍या?
    ऐसे शुभ अवसर पर कुछ मिठाई-विठाई जइसे ठग्‍गू के लड्डू तो होने ही चाहिए थे।
    ——
    कभी देखा है ऐसा साँप?
    उन्‍मुक्‍त चला जाता है ज्ञान पथिक कोई..
    Dr. Zakir Ali Rajnish की हालिया प्रविष्टी..ब्‍लॉगवाणी: ‘उन्‍मुक्‍त’ चला जाता है, ज्ञान-पथिक कोई।
  20. समीर लाल
    सात साल की बधाई तो बनती ही है…ले लिजिए…….
    मगर ऐसी अतिश्योक्ति भी अच्छी नहीं कि आप कहें:
    ’इसके पहले एक , दो ,तीन , और चार , पांच और छह भी निकले इज्जत के सा’थ’
    आप भी बहुत मजाकिया हैं…..कितनी फन्नी बात करते हैं खुद के लिए…. :)
    समीर लाल की हालिया प्रविष्टी..एक कहानी जिसे शब्द नहीं मिले…
  21. Ashok Shukla
    अभी अभी नेट चला रहा हु लिखना भी सीख रहा हु व्यंग पेज मिल गया हसरत पूरी हुई .सात बर्ष पूरे हुए आप को बहुत बहुत बधाई.
  22. Manish
    आपकी शैली आकर्षित करती है. काहे कि ऐसी शैली ज्यादातर नहीं मिला करती है पढ़ने को… ऐसी शैली का प्रयोग एक जिन्दादिल इन्सान ही कर सकता है जो बाहर से न सही लेकिन अन्दर से जबरदस्त बिन्दास हँसमुख हो :)‌:)
    ऐसे इन्सान किसी बात की प्रतिक्रिया इतने लाजबाब ढंग से देते हैं कि।. :)‌
    आपकी श्रीमती जी की आई आई टी कानपुर से मिली फ़ेस टू फ़ेस टिप्पणी पर ट्रेन में विचार किया. और जब यहाँ आया तो देखा आप वाकई कमाल का लिखते हैं एक गजब की सोच और उसी रूप में प्रस्तुति भी।.
    सात साल लेट आये तो क्या हुआ? उन ६०० पर निगाह दौड़ाने की “भरसक” कोशिश रहेगी. और मन की मौज में निरन्तर बहे जाना सबके बस की बात नही होती. आपको प्रणाम.
    Manish की हालिया प्रविष्टी..प्रेम : “आओ जी”
  23. Ashok Shukla
    में सोच रहा था की आप मुझे भी संबोधित करेंगे कम से कम यह तो देख ही लेते की नया पाठक हे. और रात के १२ बजे कमेन्ट कर रहा हे.
  24. नितिन
    फुरसतिया जी – बधाईयां
    नितिन की हालिया प्रविष्टी..विश्व विकास यात्रा
  25. Anonymous
    कानपुरी कट्टा दोउ खड़े
    काके लागुन पाए
    बलिहारी कानपुरी आपनो
    कट्टा देओ दीकाहय
  26. anaonymous
    कानपुरी कट्टा दोउ खड़े
    काके लागुन पाए
    बलिहारी कानपुरी आपनो
    कट्टा दीओ देखाई
  27. फ़ुरसतिया-पुराने लेख
    [...] …और ये फ़ुरसतिया के सात साल [...]
  28. …और ये फ़ुरसतिया के आठ साल
    [...] जी ने साल भर का “ब्लॉगवर्क” दिया था- इस साल आप १०० फुरसतिया टाइप पोस्ट [...]
  29. : …और ये फ़ुरसतिया के नौ साल
    [...] बांचकर हमने ब्लॉग लिखना शुरु किया , दो साल पहले साल में सौ पोस्ट लिखने का काम बताया [...]