Friday, October 28, 2011

कल उजालों के गीत बहुत गाये गये!

असल में अंधेरे की अपनी कोई औकात नहीं होती,
इसकी पैदाइश तो उजालों में जूतालात से होती है।

कम रोशनी ज्यादा से भन्नाई सी रहती है,
अंधेरों में आपस में कोई दुश्मनी नहीं हो्ती।

जरा सा जुगनू भी चमकने लगता है अंधेरे में,
ये अंधेरे का बड़प्पन नहीं तो और क्या है जी!

कल उजालों के गीत बहुत गाये गये!
इसी बहाने गरीब अंधेरे निपटाये गये।

अंधेरे ने रोशनी से जरा सी छेड़छाड़ की,
उजाले ने रपटा लिया उसे बहुत दूर तक!


-कट्टा कानपुरी
 

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