Saturday, September 29, 2012

सरकारी आदमी ’डिफ़ॉल्टर टाइप’ होता है

http://web.archive.org/web/20140420082033/http://hindini.com/fursatiya/archives/3381

सरकारी आदमी ’डिफ़ॉल्टर टाइप’ होता है

उस दिन इतवार को जरा जल्दी उठ गये। अब जब उठ गये तो नहा-धोकर तैयार भी हो लिये। अब जब तैयार हो गये तो सोचा कमरे में बैठ के कपड़ों की क्रीज काहे खराब करें सो नगर भ्रमण पर निकल लिये। गंतव्य डूबे जी का ठिकाना।

डूबेजी कार्टून बनाते हैं। कुछ दिन अखबारों के लिये बनाये कार्टून। लेकिन अखबार वाले बेचारे बहुत गरीब होते हैं। उनको कार्टून के पैसे नहीं दे पाते थे। सो परिवार चलाने के लिये दुबेजी को नौकरी करनी पड़ रही है। सोचा दुबेजी से कार्टून कला की कुछ जानकारी ली जाये। सो निकल लिये फ़टफ़टिया पर बैठकर!

अभी ’व्हीकल’ मोड़ से निकले ही थे कि सामने से एक ने हाथ दिया। हम रुक गये। उसने लिफ़्ट टाइप मांगी। हमने दे दी। चल दिये। उसको भी उधर ही जाना था जिधर हमको। दोनों फ़ुरसत में थे सो बातचीत होने लगी।
पता चला लिफ़्टित जवान का नाम दीपक है। उमर उन्तीस-तीस साल। दर्जी का काम करते हैं। रोज सबेरे जाते हैं। देर रात लौटते हैं। कटिंग का काम करते हैं। मास्टर दर्जी। रोज की तीन सौ की आमदनी। महीने में करीब दस हजार। पत्नी घर में सिलाई का काम करती है। खुद हाईस्कूल पास। पत्नी इंटर। दोनों की कमाई से गुजारा चलता है। कभी-कभी घुमाने भी ले जाते हैं पूरे परिवार को।

दीपक के दो बेटियां हैं। खुद कम पढ़े हैं लेकिन बेटियों को खूब पढ़ाना चाहते हैं। पिता भी दर्जी का काम करते थे लेकिन नहीं चाहते थे कि लड़का भी कैंची थामे। लेकिन लड़के ने उनसे छिपाकर टेलरिंग का काम सीखा। पिता के गुजरने के बाद वही रोजी का साधन बना।

वैसे तो दीपक साइकिल से जाते हैं काम पर लेकिन उस दिन पंचर हो गयी साइकिल सो हमसे लिफ़्ट ली। हम न मिलते तो राझीं मोड़ तक पैदल या किसी और से लिफ़्ट लेकर आते। उसके बाद आटो से काम की जगह तक।
बात करते हुये पेट्रोल पम्प तक आ गये। आजकल जब भी किसी पेट्रोल पम्प के पास गुजरते हैं तो मन करता है तेल भरवा लें। न जाने कब दाम बढ़ जायें। वहां रुके। पेट्रोल भरवाया।

तेल भरवाते हुये हम सोच रहे थे कि तेल की लगातार बढ़ती कीमतों के चलते जल्दी ही शहरों में ’मकान किराये की लिये खाली है’ की तर्ज पर दोपहिया वाहनों में – पीछे की सीट लिफ़्ट के लिये खाली है, किराया दो रुपया प्रति किलोमीटर, पैसे छुट्टे दें की तख्तियां लगने का चलन शुरु हो सकता है। हो सकता है कोई किसी के लिये किराये में कुछ डिस्काउंट भी ऑफ़र करे। कोई आसान किस्तों पर भुगतान की सुविधा प्रदान करे। कोई वस्तु विनिमय वाले हिसाब के लिये कुछ और कुबूल करने की सूचना सटायें।

तेल भरवाने के बाद और बातें होने लगीं। सवाल-जबाब। अचानक सवारी ने पूछा – क्या आप बिजनेस मैन हैं?
हमने कहा- न तो। हम तो यहां व्हीकल में नौकरी करते हैं।

सच अपने अनुमान से अलग पाकर सवारी चुप हो गयी। हमने पूछा – क्या हम बिजनेस मैन लगते हैं?

वो बोला – हां। बिजनेस मैनई लगते हैं।

हमने पूछा- क्यों नौकरी वाले काहे नहीं लगते।

इस पर दीपक ने जबाब दिया। आप जिस तरह बात कर रहे हैं उस तरह सरकारी आदमी बात नहीं करते। इसलिये हमें लगा कि आप बिजनेस मैने होंगे।

हमने फ़िर पूछा- सरकारी आदमी कैसे होते हैं? हम उनसे कैसे अलग लगते हैं?

उसने बताया- सरकारी आदमी ’डिफ़ॉल्टर टाइप’ होता है। वो आप की तरह ’तरीके से’ बात नहीं करता। इसीलिये हमें लगा कि आप सरकारी आदमी नहीं हो सकते।

हमने फ़िर बताया कि हम सरकारी नौकरी ही करते हैं। अब तुमको ’डिफ़ॉल्टर टाइप’ नहीं लग रहे तो इसमें हमारा क्या कसूर?

बाद में हमें लगा कि शायद हो सकता है उस दिन इतवार होने के कारण ऐसा लग रहा हो। दूसरे दिन शायद हम भी वैसे ही लगते हों। :)

काफ़ी देर की बातचीत के बाद उसने हमको सरकारी आदमी मान लिया लेकिन इस शर्त के साथ कि ’फ़िर आप बड़े आफ़ीसर होंगे’। उसका मानना है कि आम तौर पर सरकारी आदमी ’डिफ़ॉल्टर टाइप’ होता ही होता है। हम अलग दिख रहे हैं इसका मतलब हम बड़े अधिकारी होंगे।

इस बीच और भी बहुत सारी बातें होती रहीं। दीपक हमको अंकल कहने लगा। एक अजनबी सवारी पांच किलोमीटर की दूरी में भतीजा बन गयी।

दीपक को उसके ठीहे के पास उतार कर उसकी फोटो खींचे। ऊपर की फोटो दीपक की है।

आज फ़िर उसी मोड़ के पास से गुजरे तो दीपक की बात याद आ गयी- सरकारी आदमी ’डिफ़ॉल्टर टाइप’ होता है!

42 responses to “सरकारी आदमी ’डिफ़ॉल्टर टाइप’ होता है”

  1. देवांशु निगम
    ये तो गज़ब इंटरव्यू हो गया ( ये समझना मुश्किल है की किसका इंटरव्यू हुआ :) )
    डूबे जी से क्या गुर सीखे ये भी बताइए !!!!
    और हाँ नए भतीजे की शुभकामनायें :) :) :)
    देवांशु निगम की हालिया प्रविष्टी..जुगलबंदी..बोले तो दो तीर से एक शिकार!!!!
  2. देवेन्द्र पाण्डेय
    अब दीपक नहीं समझ पाया तो इसका मतलब यह थोड़े ही है कि इस पोस्ट के पाठक भी नहीं समझ पायेंगे! उसदिन रविवार था इसलिए धोखा खा गया बिचारा। जब आपने यह पोस्ट लिखी तब थोड़ी न रविवार होगा।( सबसे मस्त लाइन यही रविवार वाली है जिसे पढ़कर हम हंसी नहीं रोक पाये थे।) आपने पोस्ट शुरू करी कार्टून कला सिखाने वाली और एक लिफ्ट क्या देना पड़ा पूरी कथा उसी पर झोंक कर पूरा किराया वसूल करने के लिए पोस्ट तैयार कर दी! इसी को कहते हैं … सरकारी आदमी ’डिफ़ॉल्टर टाइप’ होता है। वह नहीं समझ पाया हम तो समझ ही गये न।:) फिर लिफ्ट मत दीजियेगा अउर यह पोस्ट और मेरा कमेंट तो नहिये पढ़ाइयेगा उसे।:) :)
  3. vishun dayal
    सर जी इसमें कोई दो राय नहीं है की सरकारी आदमी शायद इंसानियत से परे होने लगता है सामने बाले की मजबूरी से कोई सरोकार न रखते हुए नियमो की दुहाई से आम आदमी को चक्कर लगवानी से पीछे नहीं रहता है अपवाद स्वरुप आप जेसे कुछ महा मानव इस दुनिया मैं हैं जो लोगो के लिए प्रेरणा दायक सिध्ह हो सकते हैं पब्लिक डीलिंग मैं लगे अधिकांश सरकारी कर्मचारियों को क्लोसिंग टाइम अछे से याद रहता हैं उसका नियमतः पालन भी करते हैं लकिन बेगिनिंग टाइम का न तो कोई धयान होता है नहीं पालन जब तक विंडो पर हो हाला न हो तब तक काम शुरू नहीं हो सकता हैं तो ऐसे में दीपक नाम के उस सहयात्री ने आप से जो कहा हैं मेरे अनुसार काफी हद तक सही कहा है
  4. amit srivastava
    बाई डिफाल्ट ,डिफाल्टर होता है |
    amit srivastava की हालिया प्रविष्टी.." १९ जुलाई से २८ सितम्बर तक ……"
  5. sanjay @ mo sam kaun.....?
    हमने एक कहावत सुनी थी, ‘पढ़े हुए से कढा हुआ कम नहीं होता’ कहावत थोड़ी सी बदल दी है कहीं कोई ये न समझ ले कि हमने पढ़े लिखे चचा से कढ़े भतीजे से बेहतर बताया है, बाकी भतीजा जबरदस्त ढूंढा है या यूं कहिये भतीजे ने चचा जबरदस्त ढूंढें हैं:)
    sanjay @ mo sam kaun…..? की हालिया प्रविष्टी..मुरारी लाल …?
  6. aradhana
    हे हे हे ! एक तो ए.जी.एम. होकर फटफटिया चलाते हैं, दूसरे दीपक जैसे नॉन डिफाल्टर टाइप लोगों को लिफ्ट दे देते हैं और तीसरे उससे ‘उस तरह से’ (मतलब जिस तरह सरकारी आदमी बड़ी-बड़ी हांकता है) बात नहीं करते हैं, हँस-हँसकर बात करते हैं (ध्यान रहे सरकारी आदमी के चेहरे पर हमेशा सिकन रहती है :))…तब आपको वो बेचारा ‘डिफाल्टर टाइप सरकारी आदमी’ कैसे समझ सकता है? उसको तो आप बिजनेसमैनई लगेंगे :)
    हाँ, ई बढ़िया बोला कि ‘तब आप बड़े अफसर होंगे’ बेचारे के दिमाग में ही नहीं आया होगा कि बड़े अफसर ड्राइवर समेत गाड़ी से चलते हैं और खुद शान से पीछे बैठते हैं :)
    कुल मिलाकर ये सिद्ध होता है कि आप ना सरकारी आदमी हैं, न बिजनेसमैन और न ही बड़े अफसर, आप तो फ़ुरसतिया हैं, जो बेचारे दीपक का फोटू खींचकर एक ठो पोस्ट लिख डालते हैं :)
    aradhana की हालिया प्रविष्टी..New Themes: Gigawatt and Pinboard
  7. arvind mishra
    चलिए आपके दिन बहुरे ..हमें तो आज तक किसी ने सरकारी क्या असरकारी भी नहीं माना ! बधाई!
    और शुरुआत में उस दिन लिखा ,फिर लिखा इतवार -दोनों में एक ही लिखना था :-)
    arvind mishra की हालिया प्रविष्टी..अथातो लंगोट जिज्ञासा!
  8. ashish
    हे हे . भतीजा तो सवा सेर निकला , धर लिस सच्चाई , लेकिन एक ठो बतिया नहीं समझा की बड़े अफसर डिफाल्टर नहीं होत का? अगली बार मिले तो पूछियेगा उससे .
  9. यशवन्त माथुर
    कल 01/10/2012 को आपकी यह खूबसूरत पोस्ट http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
    धन्यवाद!
  10. सलिल वर्मा
    पेट्रोल की कीमतें जब नहीं बढ़ी थीं या उस समय बढ़ाने पर इस टाइप का चर्चा नहीं होता होगा, तब से दिल्ली में हमारे एक सरकारी साहब आपके आइडिया को अमली जामा पहना चुके थे.. हाँ अन्तर सिर्फ इतना है कि उन्होंने तख्ती नहीं एक डिब्बा रख छोड़ा था.. लिफ्ट-सुविधा का उपभोग करने वाला यात्री उतरते समय दान-पात्र में कुछ न कुछ सुविधा शुल्क जमा कर (टैक्स वाला कर नहीं) देता था..
    एक बात तो समझ में आ गयी आज कि रविवार को आदमी का सरकारी व्यक्तित्व भी छुट्टी पर रहता है!! वैसे ‘डूबे जी’ का क्या हुआ?????
    सलिल वर्मा की हालिया प्रविष्टी..मैं हूँ ना!!
  11. ताऊ
    भतीजा कितनी आसानी से सच्च बयान कर गया?:)
    रामराम.
  12. गिरीश चन्द्र अग्निहोत्री
    अति सुंदर
  13. प्रवीण पाण्डेय
    चलिये, अब कड़ी से कड़ी मिला कर फॉल्ट ढूढ़ते हैं।
    प्रवीण पाण्डेय की हालिया प्रविष्टी..बच्चों की खिलती मुस्कान
  14. shikha varshney
    अच्छा चाचा भतीजे का इंटरव्यू हो गया.वैसे हमें भी आप बड़े आफिसर ही लगते हैं :).
  15. Anonymous
    सरकारी आदमी ’डिफ़ॉल्टर टाइप’ ही होता है ,
    वाह ! क्या कहने मुझे भी कुछ ऐसा ही लगता था ! रोज का वास्ता जो है :D
  16. vibha rani shrivastava
    सरकारी आदमी ’डिफ़ॉल्टर टाइप’ ही होता है ,
    वाह ! क्या कहने मुझे भी कुछ ऐसा ही लगता था ! रोज का वास्ता जो है :D
    http://vranishrivastava1.blogspot.in/
  17. sundar-nagri wale
    क्या खूब मिले …………. पूरी पोस्ट का जुगार हो गया…………वैसे दीपक ने सही कहा ‘सरकारी अफसर डिफाल्टर’ के माफिक ही होता है, कुछेक आप जैसों को छोरकर…………
    ‘पोस्ट तो फुरसतिया ही है बट बाई डिफाल्ट वाली मौज नहीं ली गई’ ……. जो लिया जाना था…………..
    “अब ये काम भी क्या हम-सब अमरीकी आउट-सोर्स वालों से करेंगे”…………………………………………
    प्रणाम.
  18. Gyandutt Pandey
    दीपक भतीजे से अगली बार मिलकर मेरी फोटो दिखा कर पूछियेगा – ये डिफाल्टर टाइप लगता है या नहीं?!
    Gyandutt Pandey की हालिया प्रविष्टी..शहरी भैंसें
  19. mahendra mishra
    डूबेजी के यहाँ आप कब पहुंचे वो तो लिखिए ..आभार
  20. Abhishek
    लिफ्टित दीपक तेज व्यक्ति हैं देखते ही पहचान ही लिया बड़े अफसर को :)
    Abhishek की हालिया प्रविष्टी..संसकीरित के पर्हाई (पटना १५)
  21. डूबेजी और उनकी कार्टूनलीला
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  22. सतीश चंद्र सत्यार्थी
    हाहाहा.. सही बोले.. इतबार होगा इसलिए डिफॉल्टर टाइप नहीं लग रहे होंगे.. ;)
    दरअसल आजकल ढंग के कपड़ों में पढ़ा-लिखा टाइप आदमी आत्मीयता से बात करने लगे तो लोग कनफुजिया जाते हैं..
    हमने पोस्ट को उलटे क्रम में पढ़ा.. दुबे जी से मुलाक़ात वाली पोस्ट पहले पढ़ ली.. ये बाद में.. :)
    सतीश चंद्र सत्यार्थी की हालिया प्रविष्टी..हिन्दी दिवस से नयी शुरुआत
  23. ajit gupta
    खैर बातों ही बातों में आपने बता दिया कि हम ऐसे वैसे सरकारी नौकर नहीं हैं, हम तो अफसर हैं। बाय डिफाल्‍ट अफसर ही पैदा हुए थे वो तो ब्‍लागिंग के लिए स्‍टोरी तलाशते रहते है और तुम जैसों को लिफ्‍ट दे देते हैं। कहानी की तलाश में कितने पापड बेलने पड़ रहे हैं आपको। ऐसे छोटे-छोटे वाकये समाज की नब्‍ज बता देते हैं।
    ajit gupta की हालिया प्रविष्टी..चतुर्थ खण्‍ड – स्‍वामी विवेकानन्‍द कन्‍याकुमारी स्थित श्रीपाद शिला पर
  24. : फ़ुरसतिया-पुराने लेख
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