Thursday, December 12, 2013

समलैंगिकता विरोधी कानून के बहाने

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समलैंगिकता विरोधी कानून के बहाने

समलैंगिकतादिल्ली में सरकार बनाने के मामले में पहले आप, पहले आप की नौटंकी देखकर लगता है आला अदालत को गुस्सा आ गया और उसने समलैंगिकता को गैरकानूनी बता दिया।
सुप्रीम कोर्ट सरकार से कह रहा है भाई समलैंगिकता वाला कानून बना लो। सरकार बेचारी कह रही है बहुमत कहां है भाई? इन दुई पाटन के बीच में बेचारे समलैंगिक फ़ंस गये।
सारा मीडिया दिल्ली की सरकार को अधबनी छोड़कर समलैंगिकता को प्राइम चैनल पर सजा के बैठ गया। होने लगी दनादन बहस। बहसबाज लोग समलैंगिकता को अलग-अलग कोण से झांक झूंक कर देखने लगे । कोई कह रहा है- अच्छा हुआ। कोई बोला- मन दुखी हो गया।
एक बाबा जी आंख मूंदकर बोले- “समलैंगिकता अप्राकृतिक, असामाजिक, अमर्यादित, अमानुषिक और आपराधिक प्रवृत्ति है।” अनुप्रास अलंकार के आशिक बाबाजी समलैंगिकता को भी असमलैंगिकता बताये थे। जब उनको बताया गया कि वो अलग चीज है तो वो एक ‘अ’ हटाने को बेमन से राजी हो गये।
दूसरे साहब ने बयान जारी किया – “समलैंगिकता भी मानवीय प्रवृत्ति है। कोई अपने मन से थोड़ी समलैंगिक होता है। थोड़ा उनको भी जीने का हक दो भाई।”
गरज यह कि अब पूरा देश दिल्ली में सरकार बनने की बात पर बहस छोड़कर समलैंगिकता पर बहस करने लगा। पक्ष और विपक्ष में वाद-विवाद हो रहा है। हाल यह है कि आज की तारीख में सारे टेलीविजन चैनलों का प्राइम टाइम समलैंगिकता- सागर में डुबकी लगा रहा है। लोग दुखियारे हो रहे हैं।
हमें लगता है कि आने वाले समय में स्कूलों में “आरक्षण समाज के हित” की जगह वाद-विवाद का विषय कहीं “समलैंगिकता और समाज” न होने लगें।
अब चूंकि आला अदालत ने कह दिया है तो बहस भले ही कित्ती हो जाये लेकिन कानूनन तो समलैंगिकता गैरकानूनी है ही। अभी यह तय नहीं है हो पाया कि समलैंगिकता का पक्का पक्का मतलब क्या माना जाये। इससे और कुछ हो न हो लेकिन पुलिस बिरादरी के मजे हो जायेंगे। चोरी की योजना बनाते हुये चार लोग गिरफ़्तार की तर्ज पर पुलिस किन्हीं भी दो लोगों को पकड़कर अंदर कर सकती है। खबर बनेगी- “धारा 377 के उल्लंघन की योजना बनाते गिरफ़्तार”। अगर अपनी पर उतर आये तो यह देश का एक ऐसा गिनीज बुक रिकार्ड वाला कानून साबित हो सकता है जिसका वाकई में उल्लंघन करने की बजाय उल्लंघन की योजना बनाते हुये पुलिस जिसको चाहे उसको अंदर कर सकती है। बाजार और मीडिया भी चमक जायेगा। कुछ सम्भावित उदाहरण देखिये जरा:
-अभी तक पुलिस लड़का-लड़की को साथ पकड़कर थपड़ियाती थी। कान पकड़कर उट्ठक-बैठक लगवाती थी, सौ-पचास रुपये ऐंठकर भगा देती थी। अब उसके दायरे का विस्तार हो जायेगा। अब वह किसी को भी पकड़कर मुर्गा बना सकती है। पहले पुलिस लड़का-लड़की को रंगरेलियां/आवारागर्दी के आरोप में हड़काती थी। अब लड़के-लड़के, लड़की-लड़की को 377 के उल्लंघन में दौड़ायेगी। दो लोगों का साथ चलना मुहाल हो जायेगा ।
-ऊपर वाले उदाहरण में कोई समाज की जरूरत को देखते हुये कोई जुगाड़ी ऐसा कोई जुगाड़ बनायेगा जिससे साथ-साथ चलते हुये भी दो लोग समलैंगिकता कानून के हिसाब से तकनीकी रूप से अलग-अलग चलते दिखें। हर घर में हेलमेट के साथ वो जुगाड़ भी रखना जरूरी हो जायेगा। टीवी पर विज्ञापन आयेगा- “अपना बचाव वाला जुगाड़ ले के चलो।”
-सांस्कृतिक मूल्यों के रक्षक समझाइश देते हुये बतायेंगे – पर्दा/बुरका प्रथा अपनाओ, धारा 377 का डर दूर भगाओ।
-जिलाधिकारियों को कानून व्यवस्था लागू करने के लिये धारा 144 लगाने की आवश्यकता खतम हो जायेगी। धारा 144 चार से अधिक लोगों को एक साथ होने पर प्रतिबंध लगाती है। 377 में दो लोगों को भी पकड़कर दस वर्ष की कैद की धमकी देकर अंदर किया जा सकता है।
-किसी बुजुर्गवार का पोटेंसी टेस्ट निगेटिव दिखाकर पुलिस आरोप पत्र दाखिल कर सकती है कि संतानोत्पत्ति में असमर्थ होने के बावजूद ये अपनी शरीकेहयात के साथ पाये गये।
-शरीफ़ टाइप के क्रिकेट/फ़ुटबाल खिलाड़ी बेचारे उत्तेजना के क्षणों में आपस में भागकर गले मिलने , चिपकने से परहेज करने लगेगें। कहीं कैरियर की शुरुआत में ही दस साल के लिये अंदर न हो जायें।
-कई बार पत्रकार बेचारों को कुछ समझ में नहीं आता कि वे किसी से क्या सवाल करें। अब उनकी यह दुविधा खतम हो जायेगी। वे पहले सवाल की ही शुरुआत यह पूछते हुये कर सकते हैं- समलैंगिकता के बारे में आपके क्या विचार हैं?
-राजनीतिक प्रवक्ता विरोधी पार्टी के लिये कह सकते हैं- सरकार बनाने का दावा करने से पहले समलैंगिकता पर अपना स्टैंड क्लियर कर दीजिये।
-तमाम लोग होते हैं जो देश की चिन्ता करना चाहते हैं। देश के लिये निराश होना चाहते हैं। लेकिन बहुत बार उनको निराश होने का कोई सटीक बहाना नहीं मिल पाता। समलैंगिकता विरोधी कानून ने ऐसे लोगों को एक अवसर मुहैया कराया। अब वे धड़ल्ले से समलैंगिकता कानून लागू होने के आला अदालत से फ़ैसले से निराश हो सकते हैं।
अब आप पूछ सकते हैं कि मैं समलैंगिकता के समर्थन में हूं या विरोध में? तो हम तो भैया यही कहेंगे कि समर्थन और विरोध छोड़िये भाईसाहब! हम तो इसी बात पर गल्ल हैं कि मीडिया में बहस देश के अगले प्रधानमंत्री के अलावा किसी और विषय पर हो रही है।

5 responses to “समलैंगिकता विरोधी कानून के बहाने”

  1. सतीश सक्सेना
    धन्य हुए आपका विश्लेषण सुनकर प्रभू . .
    सतीश सक्सेना की हालिया प्रविष्टी..हमको अपने से मनचाहे,लोग कहाँ मिल पाते हैं – सतीश सक्सेना
  2. suman
    बहुत बढ़िया !
  3. eswami
    “एक बाबा जी आंख मूंदकर बोले- “समलैंगिकता अप्राकृतिक, असामाजिक, अमर्यादित, अमानुषिक और आपराधिक प्रवृत्ति है।” अनुप्रास अलंकार के आशिक बाबाजी समलैंगिकता को भी असमलैंगिकता बताये थे। जब उनको बताया गया कि वो अलग चीज है तो वो एक ‘अ’ हटाने को बेमन से राजी हो गये”
    वाह!
    eswami की हालिया प्रविष्टी..कटी-छँटी सी लिखा-ई
  4. ashok kumar avasthi
    सुप्रीम कोर्ट जब टूजी स्पेक्ट्रम या स्विट्ज़रलैंड में ब्लैकमनी के बारे में आर्डर पास करती है तो कहा जाता है कि वह अपनी सीमायें लांघ रही है. प्रधानमन्त्री से लेकेर छुटभैये नेता तक कहतें हैं कि वह लक्समन रेखा का सम्मान करे. इस बार जब किया तो भूचाल आगया. सांसदों की इतनी हिम्मत नहीं है कि क़ानून में बदलाओ कर पाये. बहुत दिन बाद सुप्रीम कोर्ट ने सही फैसला दिया. दिल्ली रैप काण्ड के बाद ३७६ आदि धारायों में संसोधन किया गया. क्यों नहीं ३७७ में चेंज. दरअसल नेता इसको टच नहीं करना चाहते. उन्हें दर लगता है कि जब वे वोट मांगने जायेंगे तो लोग कहेंगे कि देखो होमो जा रहा है . तथाकथित पर्सनल फ्रीडम पर संसद क्या रुख अपनाती है यह देखना रोचक होगा. सुप्रीम कोर्ट को साधुवाद.
  5. प्रवीण पाण्डेय
    सच कह रहे हैं, अब यही दिन आने वाले हैं

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