Friday, January 31, 2014

सूरज भाई हंसते-हंसते लोटपोट हो गये



#‎सूरज‬ भाई पेड़ के पत्तों के परदों की ओट से झांक रहे हैं। पत्तों के बीच से निकलती धूप किसी बच्ची की मुस्कान सी खिली हुई है। दरवाजा खुलते धम्म से फ़र्श और मेज पर जमकर बैठ गये। मुस्कराते हुये चाय के थरमस के ऊपर कब्जा कर लिया। हम दोनों चाय की चुस्कियां ले रहे हैं। मार्निग गुड है !

हमने ‪#‎सूरज‬ भाई को सब्सिडी वाले तीन सिलिन्डर बढने की बात बताई तो वे बड़ी देर तक हंसते रहे। पूरे कमरे में फ़ैली धूप से लग रहा है #सूरज भाई हंसते-हंसते लोटपोट हो गये हैं। धूप चटक और खुशनुमा होती गयी।

Thursday, January 30, 2014

धूप और रोशनी की राजनीति

सूरज भाई के साथ सुबह की चाय पीते हुये हमने उनसे पूछा- क्यों भाई दिल्ली से क्या कुछ नाराजगी है क्या? आजकल उधर कम जाते हो!
अरे यार, वहां राजनीति बहुत है। जाने का मन नहीं होता। तुम्हारे पास अच्छा लगता है इसलिये आ जाता हूं रोज। -चाय की चुस्की लेते हुये सूरज भाई बोले।

Wednesday, January 29, 2014

सूरज भाई अन्दर मेज पर आकर चमकने लगे

अभी दरवाजा खोला तो सूरज भाई दिखे। गरम कर दिया मिनट भर में। बोले -जब ठिठुरते थे आगे-पीछे घूमते थे। अब जरा सर्दी कम हुई तो भाव बढ गयें हैं। दूर भागते हो। तोताचश्म कहीं के! हमने कहा -अरे सूरज भाई आपके बिना किसका गुजारा? आओ अन्दर चाय पीते हैं। सूरज भाई अन्दर मेज पर आकर चमकने लगे। फ़ोटो नईं और गरम हो जायेंगे।