#सूरज
उग आया था। सबेरा हो गया था। चारो ओर पक्षी चहचहा रहे थे। हर एक पक्षी
दूसरे से तेज आवाज में चहचहाने में लगा था। ऐसा लग रहा था कि सारे पक्षी
किसी प्राइम टाइम बहस में आये हुये प्रतिभागी हैं और अपनी आवाज से दूसरे की
बात को काट रहे हों। जब पक्षी ज्यादा जोर से चहचहाने लगते तो बीच-बीच में
कोई मोर और ऊंची आवाज में प्राइम टाइम के एंकर की तरह उनकी आवाज दबाकर बहस
को पटरी पर लाने की कोशिश करने लगता है। समूची प्रकृति टेलीविजन के चैनलों
की मानिन्द चहक रही है। इधर-उधर खिले फ़ूल-पौधे-क्यारियां खबरों के बीच
विज्ञापन सरीखे खूबसूरत दिख रहे हैं। दिन खिल रहा है। सूरज के लिये चाय आ गयी है। सूरज भाई चाय पीते हुये कह रहे हैं आज चाय कुछ ज्यादा स्वादिष्ट है क्या बात है? आज की चाय Madhu Arora जी के सौजन्य से है इसलिये। सूरज भाई मुस्कराते हुये चाय पी रहे हैं। किरणें भी स्माइल कर रही हैं। वातावरण खुशनुमा हो रहा है।
लेबल
अमेरिका यात्रा
(41)
अम्मा
(11)
आलोक पुराणिक
(13)
इंकब्लॉगिंग
(2)
कट्टा कानपुरी
(110)
कविता
(49)
कानपुर
(216)
गुड मार्निंग
(44)
जबलपुर
(1)
जिज्ञासु यायावर
(17)
पंचबैंक
(151)
परसाई जी
(126)
पाडकास्टिंग
(3)
पुलिया
(172)
पुस्तक smeekShaa
(3)
बस यूं ही
(276)
बातचीत
(26)
रोजनामचा
(667)
लेख
(34)
लेहलद्दाख़
(12)
वीडियो
(7)
व्यंग्य की जुगलबंदी
(35)
शाहजहाँ
(1)
शाहजहाँपुर
(62)
श्रीलाल शुक्ल
(3)
संस्मरण
(41)
सूरज भाई
(164)
हास्य/व्यंग्य
(396)
Wednesday, February 12, 2014
समूची प्रकृति टेलीविजन के चैनलों की मानिन्द चहक रही है
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment