Wednesday, April 09, 2014

बयानों के दूसरे पहलू

आज की राजनीति में बयानों का बहुत महत्व है। बल्कि बयानों का ही महत्व है। बिना राजनीति के बयानबाजी तो हो सकती है लेकिन बिना बयानबाजी के राजनीति करना बिना काले धन के चुनाव जीतना जैसा असम्भव सा काम है। बयानों के महत्व के चलते ही राजनीतिक पार्टियों ने अपने को सिर्फ़ बयानबाजी तक सीमित कर लिया है।
जैसे सच के होते हैं वैसे बयानों के भी कई पहलू होते हैं। बयान देने वाले के लिये बयान का एक मतलब हो सकता है। सुनने वाले के लिये दूसरा। न सुनने वाले के लिये तीसरा। समझने वाले के लिये चौथा। न समझने वाले के लिये पांचवा। प्रतिक्रिया करने वाले के लिये छठा। ’नो कमेंटस’ वाले के सातवां। अमल में लाने वाले के लिये आठवां। इसके अलावा न जाने किस-किस के लिये कौन सा ’वां’। इनमें मीडिया, समाज, विपक्षी दल जुड़ जाने पर बयान बहुआयामी हो जाता है। जिस बयान से जितने अधिक पहलू जुड़ जाते हैं वह बयान उतना ही अधिक उत्पादक माना जाता है।
इधर एक पूर्व मुख्यमंत्री जी का बयान चर्चा में है। उन्होंने कहा- "कुर्सी ही तो छोड़ी है कोई लड़की थोड़ी भगाई है।"
बयान के साथ कुर्सी और लड़की जुड़ते ही बयान के अनगिनत पहलू पैदा हो गये। यह मानकर बयानवीर की निंदा होने लगी कि उसके मन में लड़कियों के प्रति गलत भाव हैं। इस चक्कर में बयान के दूसरे पहलू अनदेखे रह गये। बयान के कुछ पहलू इस प्रकार हो सकते थे:
   1. लड़की भगाना कुर्सी छोड़ने से बडा अपराध है।
   2.एक लड़की के मुकाबले आम जनता को बेवकूफ़ बनाना आसान है।
   3.लड़की को भगाने के लिये लड़की विश्वास हासिल करना होता है और कुर्सी पाने के लिये जनता का। बयान देने वाले की नजरों में आम एक लड़की का विश्वास हासिल करने में लगने वाला समय कुर्सी हासिल करने से ज्यादा समय और मेहनत मांगता है। 

पूजा 'कनुप्रिया' · · Barkattullah university · 1,336 followers
बात का बतंगड़ बन गया |
Rajeev Singh · · Top Commenter · Director at Vaishali Computech Pvt Ltd
हर बयान के अनगिनत पहलू होते हैं। इन पहलुओं में दूसरा पहलू पहले पहलू के मुकाबले ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। लेकिन चुनाव के समय सबसे महत्वपूर्ण पहलू वह होता है जिससे चुनाव आयोग बयान को देखता है।
Reply · Unlike · 1 · Follow Post · April 9 at 10:23a
बयान के और भी पहलू निकल ही रहे थे कि खबर आई कि बयान देने वाले को किसी ने पीट दिया। पीटने वाला जरूर राष्ट्र के अतीत पर गर्व करने वाला कोई वीर बांका रहा होगा जिसको यह लगा होगा कि इस बयान के माध्यम से पृथ्वीराज चौहान द्वारा संयोगिता हरण की अप्रत्यक्ष निंदा की गयी है। कोई सच्चा राष्ट्र भक्त भला अपने वीर पूर्वजों का अपमान कैसे बर्दाश्त कर सकता है।
बहरहाल पिटने की खबर आने के बाद लड़की और कुर्सी वाला बयान भी पिट गया जैसे नये और बड़े घपले सामने आने पर पुराने और चिल्लर घोटाले नेपथ्य में चले जाते हैं। पिटने वाली घटना पर बयानबाजी शुरु हो गयी।
एक और बयान इस बीच आया जिसमें बदले की बात कही गयी थी। जब बयान दिया गया तो यही लगा कि बयान देने वाला वैज्ञानिक चेतना सम्पन्न व्यक्ति है और चुनाव प्रचार करते समय लोगों को में वैज्ञानिक चेतना का प्रसार भी करता चलता है। इसी कड़ी में वह यह बताना चाहता कि आचार्य न्यूटन का क्रिया-प्रतिक्रिया वाला तीसरा नियम सत्य है।
लेकिन चुनाव का मौसम होने के चलते इस सहज सामानिक बयान के दूसरे पहलू भी खुल गये। कुछ लोगों को लगा कि वैज्ञानिक चेतना की जगह इसमें सामाजिक हिंसा का आह्वान है। जब लोगों ने हिंसा वाला पहलू खोला तो बयान देने वाले ने अहिंसा की गोलाबारी शुरू कर दी और विनम्रता पूर्वक अकड़ते हुये बताया बयान में अहिंसक तरीके से बदले की बात कही गयी थी। गरदन काटने की धमकी नहीं बटन दबाने की बात अनुरोध था। बदले की नहीं बदलाव की बात कही गयी थी।
बदले नहीं बदलाव की बात से लगा कि हिदी भी बरास्ते हिंगलिश अब अंग्रेजी की तरह एकदम आधुनिक हो रही है। इसमें भी अक्षर ’साइलेंट’ होने लगे। ’बदलाव’ में ’व’ ’साइलेंट’ था। अज्ञानी लोग ’बदलाव’ को बदला समझ बैठे और हल्ला मचाने लगे। सरकार बनने पर सबको भाषा सिखानी पड़ेगी। बौद्दिक करना पडेगा।
कहने का मतलब यह कि हर बयान के अनगिनत पहलू होते हैं। इन पहलुओं में दूसरा पहलू पहले पहलू के मुकाबले ज्यादा महत्वपूर्ण होता है। लेकिन चुनाव के समय सबसे महत्वपूर्ण पहलू वह होता है जिससे चुनाव आयोग बयान को देखता है।
बहुत हुई बयान बाजी। देखते हैं कोई नया बयान आया हो तो उसके कुछ पहलू देखे जायें।



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