Tuesday, June 17, 2014

बजरंगबली मेरी नाव चली

रिक्शे पर बंधी यह बल्ली देखकर बजरंगबली की शान में गाया जाने वाला भजन याद आ गया-

बजरंगबली मेरी नाव चली,
जरा बल्ली दया की लगा देना।

पुलिया पर बैठे बीड़ी पीते रिक्शे वाले भाईजी ने बताया की बल्ली 400/-की पड़ी। 450/- मांग रहा था और ये 350/- दे रहे थे। आखिर में बात चार सौ पर टूटी। घर के लिए ले जा रहे हैं। नाम केशरी है। बता रहे थे कि फैक्ट्री में भी काम किया है छह सात साल ठेकेदार के साथ। पास में ही रहते हैं।

पुलिया से मेस आते हुए सोच रहा था कि हमें तो पता ही नहीं था कि बल्ली कितने की आती है। बहुतों को नहीं पता होता। सबको सब कुछ पता होना जरूरी भी तो नहीं।

क्या पता अच्छे दिन का भी मामला ऐसा ही हो। बहुतों को पता ही न हो कि किधर से आये किधर फूट लिए।


अनूप शुक्ल

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