Saturday, September 06, 2014

रेले साइकिल की बात ही और थी

आज सबेरे फ़िर अजय तिवारी जी से मुलाकात हुई। सर्वहारा पुलिया की बजाय बुर्जुआ पुलिया पर आसन जमाये। हमने पूछा आज इधर कैसे उस पुलिया के बजाय तो बोले -उधर कीड़े आते हैं! तबियत के बारे में पूछा तो बताये कि तबियत अब ठीक है। कल चले जायेंगे बिलासपुर। वहीं हाईकोर्ट में काम करते हैं तिवारी जी।
तिवारी जी से साइकिल के बारे में बात होने लगी। हर्क्युलिस साइकिल है उनके पास। कुछ दिन पहले खरीदी 3300 में। इसके पहले रेले साइकिल थी। चालीस साल तक उसको चलाया। कुछ दिन पहले चोरी चली गयी रेले साइकिल तो ये हर्क्युलिस खरीदी। 

रेले और हर्क्युलिस में कौन अच्छी लगती है साइकिल? यह पूछना नहीं पड़ा। खुदै बताये तिवारी जी। रेले साइकिल की बात ही और थी। उसमें लोहा भारी था। ये हल्की है इसे चलाने में वो मजा नहीं आता। रेले चलाने में मजा आता था।

साइकिल की बात से याद आया कि अपन जब सन 1983 में साइकिल से भारत दर्शन के लिये जा रहे थे ’जिज्ञासु यायावर’ बनकर तो हमने हीरो की साइकिल खरीदी थी। उस समय 275/- की पड़ी थी। अब बहुत दिन से फ़िर सोच रहे हैं साइकिल खरीदने की। चलाने के लिये। लेकिन टलता जा रहा है मामला।

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