Tuesday, October 28, 2014

उठ जाग मुसाफिर भोर भई

सबेरे का समय है। जल्दी उठ गये तो सोचा देखा जाए कि सूरज भाई किधर हैं। दिखे नहीं अभी तक। पूरब दिशा बस हल्की सी लाल सी है। यह जताने के लिए कि इधर से ही निकलेगी सवारी भगवान भाष्कर की।

पेड़ पौधे सब शांत,सावधान मुद्रा में खड़े हैं। पत्तियाँ तक हिल-डुल नहीं रही हैं। शायद हवा का इन्तजार है इनको भी।

पेड़ों पर  इक्का-दुक्का पक्षी बैठे चहचहा रहे हैं। अलग-अलग आवाज में। अलग-अलग पेड़ों पर बैठे,अलग-अलग-अलग सुर में बोलते  पक्षी किसी चैनेल की प्राइम टाइम बहस में शामिल अलग-अलग पार्टियों के प्रवक्ताओं सरीखे लग रहे हैं। सबको सिर्फ बोलने से मतलब है। सुनने का काम जनता का है।

एक टुइयाँ सा पक्षी अचानक एक पेड़ से उडा और दूसरे पेड़ की तरफ चल दिया। बीच रस्ते में उसने पूरी कुलाटी मारी। हमें लगा कि बच्चा गया काम से। आत्महत्या करने के मूड में है क्या! हेलमेट भी नहीं लगाये है कोई पेड़ बीच चालान कर दे तो। लेकिन देखते-देखते वह दूसरे पेड़ पर पहुंचकर टें टें टें करने लगा। फिर  ट्विट ट्विट भी किया उसने कुछ देर। सबको संतुष्ट करने की कोशिश। ये पक्षी भी तुष्टिकरण की राजनीति सीख गए।

सूरज भाई पेड़ के पीछे से सरमाये से नमूदार हो रहे हैं। शरमाते से। सामने आने में हिचक से रहे हों जैसे। उनको लग रहा है कि वे शायद आज लेट हो गए।कुछ ऐसे ही कि रोज सबसे पहले दफ्तर आने वाला किसी को अपने से पहले दफ्तर में आया देखता है तो सोचता है कि वह देरी से आया आज।

सूरज भाई साथ में चाय पीते हुए किरणों,रोशनियों, उजालों, ऊष्मा को चारों दिशाओं में फ़ैल जाने का निर्देश देते रहे। ऊषा को वापस जाने को बोल दिया यह कहते हुए -"जाओ अब तुम्हारी ड्उटी पूरी। आराम करो जाकर।पहुंचते ही फोन कर देना।"

सड़क पर वाहन गुजरते दिखने लगे हैं। बच्चे स्कूल जा रहे हैं। लोग आफिस । कुछ लोग मार्निंग वाक करते हुए इतनी तेज भाग रहे हैं मानो अब वापस लौटकर न आयेंगे। 

बगल मंदिर का घंटा बजता जा रहा है।टन्न, टन्न,टन्न। आज तो मंगलवार है। बजरंगबली के दरबार की रौनक और बढ़ी दिखेगी।

सामने पेड़ की फुनगी पर चमकती किरण मुस्कराते हुए गुड मार्निंग सरीखा करते हुए उलाहना सा दे रही कि हम मोबाइल में डूबे हुए हैं इत्ती देर से और उसको देख ही नहीं रहे है।

हम मुस्कराते हुए उसको और उसकी संगी सहेलियों,दोस्तों और सबको गुडमार्निंग करने लगे। सूरज भाई का सारा कुनबा खिलखिलाते हुए शुभप्रभात करने लगा। सूरज भाई चाय पीते हुए मंद स्मित से सब देखते जा रहे हैं। फिर वे वंशीधर शुक्ल की कविता गुनगुनाने लगे:

उठ जाग मुसाफिर भोर भई,
अब रैन कहाँ जो सोवत है।

अब तो पक्का सुबह हो गयी। है न ! :)सबेरे का समय है। जल्दी उठ गये तो सोचा देखा जाए कि सूरज भाई किधर हैं। दिखे नहीं अभी तक। पूरब दिशा बस हल्की सी लाल सी है। यह जताने के लिए कि इधर से ही निकलेगी सवारी भगवान भाष्कर की।

पेड़ पौधे सब शांत,सावधान मुद्रा में खड़े हैं। पत्तियाँ तक हिल-डुल नहीं रही हैं। शायद हवा का इन्तजार है इनको भी।

पेड़ों पर इक्का-दुक्का पक्षी बैठे चहचहा रहे हैं। अलग-अलग आवाज में। अलग-अलग पेड़ों पर बैठे,अलग-अलग-अलग सुर में बोलते पक्षी किसी चैनेल की प्राइम टाइम बहस में शामिल अलग-अलग पार्टियों के प्रवक्ताओं सरीखे लग रहे हैं। सबको सिर्फ बोलने से मतलब है। सुनने का काम जनता का है।

एक टुइयाँ सा पक्षी अचानक एक पेड़ से उडा और दूसरे पेड़ की तरफ चल दिया। बीच रस्ते में उसने पूरी कुलाटी मारी। हमें लगा कि बच्चा गया काम से। आत्महत्या करने के मूड में है क्या! हेलमेट भी नहीं लगाये है कोई पेड़ बीच चालान कर दे तो। लेकिन देखते-देखते वह दूसरे पेड़ पर पहुंचकर टें टें टें करने लगा। फिर ट्विट ट्विट भी किया उसने कुछ देर। सबको संतुष्ट करने की कोशिश। ये पक्षी भी तुष्टिकरण की राजनीति सीख गए।

सूरज भाई पेड़ के पीछे से सरमाये से नमूदार हो रहे हैं। शरमाते से। सामने आने में हिचक से रहे हों जैसे। उनको लग रहा है कि वे शायद आज लेट हो गए।कुछ ऐसे ही कि रोज सबसे पहले दफ्तर आने वाला किसी को अपने से पहले दफ्तर में आया देखता है तो सोचता है कि वह देरी से आया आज।

सूरज भाई साथ में चाय पीते हुए किरणों,रोशनियों, उजालों, ऊष्मा को चारों दिशाओं में फ़ैल जाने का निर्देश देते रहे। ऊषा को वापस जाने को बोल दिया यह कहते हुए -"जाओ अब तुम्हारी ड्उटी पूरी। आराम करो जाकर।पहुंचते ही फोन कर देना।"

सड़क पर वाहन गुजरते दिखने लगे हैं। बच्चे स्कूल जा रहे हैं। लोग आफिस । कुछ लोग मार्निंग वाक करते हुए इतनी तेज भाग रहे हैं मानो अब वापस लौटकर न आयेंगे।

बगल मंदिर का घंटा बजता जा रहा है।टन्न, टन्न,टन्न। आज तो मंगलवार है। बजरंगबली के दरबार की रौनक और बढ़ी दिखेगी।

सामने पेड़ की फुनगी पर चमकती किरण मुस्कराते हुए गुड मार्निंग सरीखा करते हुए उलाहना सा दे रही कि हम मोबाइल में डूबे हुए हैं इत्ती देर से और उसको देख ही नहीं रहे है।

हम मुस्कराते हुए उसको और उसकी संगी सहेलियों,दोस्तों और सबको गुडमार्निंग करने लगे। सूरज भाई का सारा कुनबा खिलखिलाते हुए शुभप्रभात करने लगा। सूरज भाई चाय पीते हुए मंद स्मित से सब देखते जा रहे हैं। फिर वे वंशीधर शुक्ल की कविता गुनगुनाने लगे:
उठ जाग मुसाफिर भोर भई,
अब रैन कहाँ जो सोवत है।

अब तो पक्का सुबह हो गयी। है न !

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