Friday, December 19, 2014

जीवन क्या जिया

कल रामफल को देखने गए उनके ठीहे पर। सुनने की मशीन तहा के जेब में धरे थे। बोले-"अब्भी रखा है।लंच का टाइम हो गया।झूठ नहीं बोलेंगे आपसे।"

हमारे सामने मशीन लगाकर हमारे साथी सरफराज से बोले-"आप पूछिये सेव क्या भाव है।"
सरफराज ने पूछा-"अनार क्या भाव है।"

रामफल ने अनार के भाव बताये।फिर सेव के भी।मशीन की मदद से उनको साफ़ सुनाई देने लगा है। अभी आदत न होने के कारण अटपटा लगता है। लेकिन लगता है आदत हो जायेगी कुछ दिन में।

परसों रात हो गयी थी। रामफल के साथ उनके घर तक गए थे। रामफल ने चाय पीने को कहा।लेकिन देर हो जाने के चलते हमने फिर आने की बात कहकर चाय नहीं पी।चले आये।

कल रामफल कह रहे थे-"कल आपने हमारे यहाँ चाय नहीं पी।हम शुद्ध यादव हैं। बिना नहाये ठेले को हाथ नहीं लगाते। झूठ नहीं बोलते। कोई नशा नहीं करते।"

रामफल को शायद लगा हो कि छुआछूत और ज़ात बिरादरी के चलते उनके यहां चाय नहीं पी।जबकि उनको मेरा नाम भी नहीं पता। मैंने कहा-"आएंगे। जल्द ही चाय पीने।"

जितना हाई ब्लड प्रेशर था/रहता है रामफल के उतने में सामर्थ्य वान लोग अस्पताल में भर्ती हो जाएँ। 220/110 लेकिन वो रोजी कमा रहे हैं।सिर्फ यह मानते हुए कि साँस की तकलीफ है बस।चयवसनप्रास से ठीक हो जायेगी। लेकिन जब कान दिखाने ले गए तो कई बार साँस के बारे में बताया। डॉक्टर ने बीपी की समस्या बताते हुए कुछ दवाएं दीं।

कल जब पूछा तो बताया कि दवा से आराम है। फिर धीरे से कहा -दवाई खाने से आराम हो गया।

मैंने उनको दस दिन की दवाई दी तो बड़े ध्यान से उसको लेने का तरीका समझा।75 पार रामफल में ठीक होने की जबरदस्त इच्छा है। हमारी अम्मा की तरह। अम्मा भी डेरिफाइलिन और बीपी की दवाएं लेतीं थी। रामफल भी उन्हीं से ठीक बने रहेंगे।

बातचीत में रामफल बार बार नेहरूजी का जिक्र करने लगते-"दो बैलों की जोड़ी चलती थी। वो आये थे। हमने उनको देखा है। उन जैसा कोई प्रधानमन्त्री नहीं हुआ।"

कल हमारे कुछ मित्रों ने हमारे काम को नेक बताते हुए तारीफ़ की। ज्ञानजी Gyan Dutt Pandeyने शाम को फोन करके कहा-"हम तो आपको ऐसा ही समझते थे।आप तो बढ़िया आदमी निकले।" हमने कहा- "कभी धोखा हो जाता है समझने में( हैं तो अपन ऐसे ही)।"

पचास साल के हुए थे तो हमारे मित्र Arup Banerjee ने ऐसे ही कहा था-पचास के बाद हमको समाज सेवा करना चाहिये। हम सोच रहे हैं क्या किया जाये। हम लोग मन से बहुत अच्छे काम करना चाहते हैं। लेकिन कहीँ भलाई बेकार न चली जाए इसलिये संकोच कर जाते हैं। आलस कर जाते हैं। नेकी कर कुएं में डाल इसीलिये कहा गया होगा ताकि चुपचाप भलाई का काम करें । लोगों को पता चलेगा तो लोग शायद बेवकूफ समझें।

रामफल को सुनने की मशीन लगवाने के 2000/-लगे। उनके सुकून को देखते हुए इतना खर्च कुछ मायने नहीं रखता। अम्मा को हर महीने 2000/- पहली तारीख को उनके खाते में भेजकर हम बताते थे-"तुम्हारे पैसे भेज दिए हैं।"वो खुश होकर कहतीं थीं- "ये बढ़िया किया।"उनका एटीएम हमारे पास रहता था।कभी उन्होंने पैसे अपने ऊपर खर्च नहीं किये। हम लोगों को ही अपने खाते से उधार देती थी। तकादा करती थीं।

रामफल की सुनने की मशीन के पैसे हमने यह समझे की अम्मा के खाते में भेज दिए। फिर खर्च भी खुद कर दिए।सुनेंगीं तो कहेंगी अम्मा- "ये बढ़िया किया।"

बचपन से लेकर आखिरी पढ़ाई होने तक हम लगातार वजीफा पाते रहे। बहुत कम पैसे में इंजीनियर बन गए। इस सब में समाज और सरकार का पैसा लगा। हम इस समाज के कर्जदार हैं।इसमें रामफल जैसे लोगों के पैसे भी किसी न किसी बहाने लगे होंगे।तो अगर कुछ उधार इसी बहाने चुक जाये तो सुकून की बात है।

यह सब ऐसे ही सोचते हुए कि जितना कुछ मिलता है उतना वापस नहीं करते हम समाज को। किसी न किसी बहाने दबाये रहते हैं।इस चक्कर में समाज दीवालिया होता जाता है।

अपडेट:
मुक्तिबोध की कविता की पंक्तियां:
"अब तक क्या किया
जीवन क्या जिया
लिया बहुत बहुत ज्यादा
दिया बहुत बहुत कम
मर गया देश
और जीवित रह गए तुम!!"

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