Tuesday, December 09, 2014

ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा

लो आ गयी उनकी याद
पर वो नहीं आये।

गाना धीमे बज रहा है। पूछा तो चाय वाले ने बताया-'मौसम की गड़बड़ी है।रेडियो स्टेशन से ही धीमे बज रहा है।'

आसमान में सूरज भाई ऐसे दिख रहे हैं मानो अपने चारो तरफ रुई लपेटे अधलेटे हैं।लगता है उनके यहाँ कोई दर्जी नहीं है।होता तो रुई समेट के ठीक ठाक रजाई सिल देता।

सूरज भाई बादलों की रुई के बाहर मुंह निकाले किरणों को ड्यूटी बजाने का निर्देश दे रहे थे।किरणों ने जब देखा कि सूरज खुद अलसाये हुए हैं तो वे भी आराम-आराम से अपना काम अंजाम दे रही हैं। कोहरा, जो कल किरणों को देखते ही फूट लिया था, आज बेशर्मीं से टिका हुआ था।कहीं कहीं तो किरणों को छेड़ भी दे रहा था। किरणें भी बचबच कर टहल रहीं थीं। झाड़ी, घने पेड़ के नीचे जाने की बजाय खुल्ले में कई किरणों के साथ सावधानी से टहल रहीं थीं।

धरती के कुछ हिस्से सूरज की इस किरण और ऊष्मा सप्लाई से नाराज होकर सूरज की तरफ मुट्ठी उठाकर शेर पढ़ रहे थे:

वो माये काबा से जाकर कर दो
कि अपनी किरणों को चुन के रख लें
मैं अपने पहलू के जर्रे जरे को
खुद चमकना सिखा रहा हूँ।

सूरज भाई इस शेर को सुनकर बमक गए और बादलों का सुरक्षा कवच तोड़ कर बाहर निकल आये।चेहरा तमतमाया हुआ था।इधर उधर माइक की तलाश की लेकिन शुक्र है कि मिला नहीं होगा वर्ना चमकना छोडकर भाइयों बहनों करने लगते। सूरज अरबों बरसों से अपना काम करता आ रहा है इसका एक कारण यह भी हो सकता है कि वहाँ लफ़्फ़ाजी के लिए माइक और रेडियो नहीं है।

गाना बजने लगा:

'तुमने क्या समझा हमने क्या गाया
जिंदगी धूप तुम घना साया।'

जाड़े के मौसम में यह गाना बेमेल है।जाड़े में घूप की जरुरत होती है साये की नहीं।लेकिन जैसा हो रहा है वैसा की गाना भी बजेगा। चोरों से निजात दिलाने के लिए गुंडे सर्मथन मांग रहे हैं।

तू न मिली हम जोगी बन जायेंगे
तू न मिली तो।

गाना लगता है किसी बूढ़े राजनेता का बयान है।वह सत्ता से कह रहा है अगर मुलाक़ात नहीं हुई तो समझ लो। जोगी ही बनकर बदला लेंगे। तुझे अपने इशारे पर नचाएंगे।सत्ता हलकान है-'इधर सठियाया राजनेता उधर ढोंगी जोगी।वह जाए तो जाए कहाँ।'

'ये लाल रंग कब मुझे छोड़ेगा
तेरा गम कब तलक मुझे तोड़ेगा।'

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