Monday, January 05, 2015

पीके पर प्राइम टाइम बहस

 पिछले दिनों पीके फ़िल्म को लेकर काफ़ी हल्ला-गुल्ला हुआ।  जल्दी ही यह 300 करोड़ की कमाई करने वाली फ़िल्म बनने वाली है। कमाई तो खैर जो है सो है लेकिन हल्ला-गुल्ला वाली पर बहस करने के लिये एक टीवी चैनल ने अपने यहां प्राइम टाइम बहस आयोजित की। सुनिये उस बहस के कुछ अंश:

एंकर: जैसा कि आपको पता ही है कि हम यहां पीके फ़िल्म के बारे में बात करने के लिये इकट्ठा हुये हैं। पीके को लेकर समाज में तमाम तरह की बातें हो रही हैं। देश के नामचीन लोगों ने  इस पर अपने-अपने विचार व्यक्त किये हैं। हम यहां इसी मुद्दे पर बात करेंगे। हमारे स्टूडियो में अपने-अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ मौजूद हैं। हम जानेंगे उनके विचार। शुरुआत करते हैं विशेषज्ञ नं 1 से। हां आप बताइये आपकी नजर में यह फ़िल्म कैसी है?

विशेषज्ञ 1: फ़िल्म अच्छी है। 300 करोड़ कमाई कर ली है। समाज की बुराइयों पर चोट करती है। जबरदस्त हलचल मचा दी है समाज में। एक फ़िल्म की सफ़लता के लिये इससे अच्छा और क्या चाहिये?

विशेषज्ञ 2: घंटा अच्छी है फ़िल्म। फ़िल्म नकारात्मक संदेश देती है। विकास विरोधी है। हमारे धर्म की खिल्ली उड़ाती है। ऐसी फ़िल्म को आप अच्छा कैसे कह सकते हैं?

विशेषज्ञ 1: देखिये आप असंसदीय भाषा प्रयोग कर रहे हैं। ’घंटा’ की जगह कोई और शब्द प्रयोग करिये।

विशेषज्ञ 2: अरे भाई ’घंटा’ शब्द असंसदीय कैसे हो गया?  ’घंटा’ स्कूलों में बजता है। आप तो फ़िर स्कूलों में  ’घंटा’ बंद करा देंगे। सारे स्कूल बंद हो जायेंगे तो फ़िर बच्चे पढेंगे कहां? इसके अलावा हमारी पार्टी का मत है कि इसका विरोध करते हुये  ’घंटा’  शब्द पर जोर दिया जाये। हम इसके अलावा और कुछ नहीं बोल सकते हैं।

विशेषज्ञ 3: आप ’खाक’ शब्द का प्रयोग कर सकते हैं  ’घंटा’ की जगह।

विशेषज्ञ 2: अरे भाई कैसे कर सकते हैं। हमारे इलाके में मुस्लिम वोटर तो हैं नहीं जो ’खाक’ बोलने से कुछ फ़ायदा हो। इसलिये हम जो बोल दिये सो बोल दिये।

एंकर: देखिये समय कम है। हम बेकार की बहस में न पड़ें तो अच्छा। चलिये एक कमर्शियल ब्रेक लेकर फ़िर तय करेंगे कि यह फ़िल्म विकास विरोधी है या सांप्रदायिक? हल्ला-गुल्ला वाली है या सामाजिक संदेश देने वाली।

ब्रेक के बाद बहस शुरु हुयी तो फ़िल्म को विकास विरोधी बताने वाले विशेषज्ञ ने बात आगे बढाई:

विशेषज्ञ 2: फ़िल्म विकास विरोधी है क्योंकि यह फ़िल्म के हीरो को बिना कपड़े के दिखाती है। देश में सब लोग हीरो-हीरोइनों की नकल करने में पगलाये घूमते हैं। जवान लोग कपड़ा पहनना बंद कर देंगे। सब कपड़े की मिलें बंद हो जायेंगी। इसके अलावा देखिये फ़िल्म में हीरो-हीरोइन को साइकिल पर प्यार करते दिखाया गया है। इससे आटो मोबाइल सेक्टर को कितना बड़ा झटका लग सकता है इसकी कल्पना की है आपने। लोग मोटर साइकिल और कार छोड़कर साइकिल पर इश्क फ़रमाना शुरु कर देंगे। हुलिया बिगड़ जायेगा आटो सेक्टर का।

विशेषज्ञ 4: लेकिन इससे देश की एयरलाइंस कम्पनियों को तो बढावा मिलेगा। लोग हवाई जहाज पर बैठकर विदेश जायेंगे इश्क करने। एयरपोर्ट तक तो आटो सेक्टर के ही सहारे रहेंगे न!

विशेषज्ञ 2: इस फ़िल्म में जो धर्म की खिल्ली उडाई गयी है उससे तो खैर कोई फ़र्क नहीं पड़ता। धार्मिक कर्मकांड को खिल्ली से कोई खतरा नहीं। वो तो कबीर के जमाने से उड़ रही है। लेकिन ये जो हाथ पकड़कर भाषा डाउनलोड करने वाला सीन है वो खतरनाक है अपने समाज के लिये। इसको देखकर कोई भी लड़का किसी भी लड़की का हाथ पकड़ेगा और कहेगा- भाषा डाउनलोड कर रहे हैं। इस पर मुझे एतराज है।

विशेषज्ञ 4: अरे भाई जब आप खुले आम लड़कों-लड़कियों को हाथ पकड़ने में रोक लगाओगे तो वे बहाने खोजेगे ही। हाथ होता ही है पकड़ने के लिये है। केदारनाथ सिंह जिनको इस बार ज्ञानपीठ इनाम मिला है वो तक कहे हैं:

"उसका हाथ
अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
दुनिया को
हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए"

केदारनाथ सिंह की भाषा भी भोजपुरी है। इस फ़िल्म में भी भोजपुरी डाउनलोड हुयी है। लेकिन क्रेडिट नहीं मिला केदारनाथ जी को। फ़िल्म वाले सब ऐसे ही गड़बड़ करते हैं।

एंकर: आप लोग अच्छे से बहस कर रहे हैं। लेकिन  समय कम ।  कार्यक्रम खत्म करने से पहले हम आपसे जानना  चाहेंगे कि फ़िल्म में नंगे आदमी के हाथ में रेडियो दिखाने का क्या मतलब है। एक एक वाक्य में अपनी बात कहें:

विशेषज 1: इससे यही पता चलता है कि आज देश की सरकारें आदमी को नंगा करने पर लगी हुई हैं और बहलाने के लिये उसको तरह-तरह के खिलौने थमा रही हैं।

विशेषज्ञ 2: मेरा तो मानना है कि एलियन जिस भी ग्रह से आया होगा वहां तक हमारे प्रधानमंत्री के चर्चे पहुंचे होंगे। वहां के लोगों ने फ़िल्म के नायक को धरती पर इसीलिये भेजा होगा कि वह किसी भी तरह एक ठो रेडियो यहां से ले जाये ताकि वे लोग भी प्रधानमंत्री की ’मन की बात’ सुन सकें और अपने ग्रह का विकास कर सके।

विशेषज्ञ 3: धरती पर बढ़ते प्रदूषण की तरफ़ इशारा है यह। हीरो बताता है कि आधुनिकता की अंधी दौड़ के चक्कर में ग्लोबल वार्मिंग के चलते आने वाले समय में इतनी गर्मी बढेगी कि कपड़े पहनकर रहना मुहाल हो जायेगा।

विशेषज्ञ 4: मुझे तो ऐसा लगता है कि यह एलियन अपने यहां की खाप पंचायत द्वारा भगाया गया कोई नवयुवक है। वहां भी तमाम आधुनिकता के बावजूद प्रेम पर इसी तरह की पाबंदी होगी जैसी अपने यहां हैं। नवयुवक इस गोले पर आया तो नवयुवती किसी और गोले पर गयी होगी। गयी क्या भगायी गयी होगी। फ़िल्म में विदेश में प्यार का सीन का मतलब भी यही है कि अगर मोहब्बत करनी है तो विदेश जाना पड़ेगा या फ़िर दूसरे गोले पर। बहुत भयावह इशारा है यह। हमें सावधान हो जाना चाहिये और दुनिया को इस लायक बनाना चाहिये ताकि हम अपने कवि की इन पंक्तियों को अपने आसपास ही महसूस कर सकें:

उसका हाथ
अपने हाथ में लेते हुए मैंने सोचा
दुनिया को
हाथ की तरह गर्म और सुंदर होना चाहिए

बहस खतम हो गयी। कार्यक्रम के बारे में आप अपनी राय यहीं नीचे के कमेंट बक्से में दे दीजिये।

 

5 comments:

  1. शानदार सर

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  2. Very well written.Every body will agree with you.

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  3. बहुत खूब अनूप जी .

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  4. जितने चैनेल उतने पैनल; लेकिन बात सब एक जैसी।
    आपका चैनेल कुछ अलग लेकर आया।
    शुक्रिया।

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