Thursday, April 23, 2015

मुझे प्यार न मिले तो मैं मर जावां

"वादा है तेरा हूँ मैं तेरे लिये"

इसके बाद बजाते रहो 90.3 ऍफ़ का हल्ला। दूकान पर भट्टी का धुंआ। मच्छर भगा रहा है दूकान वाला। सड़क पर एक स्कूटी रुकी। सवार उतरा। मुंह का मसाला सड़क पर थूका।दूकान पर खड़े होकर चाय पीने लगा। धूप का चश्मा लगाये जम रहा है।रजनीकांत जैसा।

"मुझे प्यार न मिले तो मैं मर जावां।" के बाद गाना अटक गया। मिले, मिले, मिले। दोहरा रही है गायिका। मर जावां,मर जावां सुनते हुए मन कर रहा है कि रेडियो में घुसकर बचा लें उसको। सोचिये ऐसा सम्भव है क्या? घुसने में कहीं रेडियो फट गया तो हर्जाना देना पड़ेगा। ऊपर से गायिका आरोप लगा दे-ये मुझे छेड़ रहा था।
रेडियो में घुसकर गायिका को बचाने की बात लिखते हुए बहुत पहले पढ़ी उदय प्रकाश की कहानी 'राम सजीवन की प्रेमकथा '  याद आ गयी।इसमें नायक गाँव से शहर आता है। हर चीज को गांव के नजरिये से देखता है।किसी के जूते की कीमत सुनता है तो कहता है-"अरे बाप रे,बीस बोरा गेंहू पाँव में पहने घूम रहा है।"

इसके बाद रामसजीवन जी को हॉस्टल की एक लड़की से एकतरफा प्यार हो जाता है।लड़की की हर गतिविधि को अपने से जोड़ते हैं। लड़की एक दिन खिड़की से कुछ कागज़ चिन्दी करके फेंकती है तो वो रामसजीवन समझते हैं कि नायिका ने उनके लिए प्रेमपत्र फेंका है।रामसजीवन पूरी रात खिड़की के नीचे एक एक चीज को उलटते पलटते रहते हैं। हर चिन्दी में प्रेमपत्र की सम्भवाना तलाशते हैं।

बाद में नायिका रामसजीवन की शिकायत करती है-"ये आदमी पागल लगता है।हर समय मेरा पीछा करता है।" रामसजीवन हास्टल से निकाल दिए जाते हैं।

इस कहानी के लिए उदय प्रकाश की आलोचना हुई यह कहते हुए कि उन्होंने इस कहानी में कवि गोरख पाण्डेय की खिल्ली उड़ाई थी। बाद में गोरख पाण्डेय ने आत्महत्या कर ली। उनकी कविता पंक्तियाँ हैं:
"समाजवाद बबुआ,धीरे-धीरे आई
समाजवाद उनके धीरे-धीरे आई
हाथी से आई
घोड़ा से आई
अगरेजी बाजा बजाई समाजवाद…
नोटवा से आई
वोटवा से आई
बिड़ला के घर में समाई,समाजवाद…"


कल एक आदमी ने जन्तर मन्तर पर पेड़ से लटककर आत्महत्या कर ली। पूरा मिडिया उसकी खबरों से भरा है।कोई कह रहा है कि मरने वाला किसान नहीं था। कोई कुछ और। आशुतोष बोले-"उसको बचाने के लिए क्या पेड़ पर चढ़ जाते मुख्यमंत्री।" हमें लगता है पक्का केजरीवाल ने अकेले में आशुतोष को हड़काया होगा-"मुख्यमंत्री के पहले माननीय क्यों नहीं लगाया।"

आशुतोष का बयान एक संवेदनहीन आदमी का बयान है।उनका भी दोष नहीं। सब संवेदना चुनाव में खर्च हो गयी। अब बेवकूफी,संवेदनहीनता और अकड़ बची है। उससे जैसे बयान निकल सकते हैं वैसे ही तो निकलेंगे।
इस बीच विजय की बुआ दिखी। नमस्ते करके बोली-चाय पिलाओगे? हम बोले- पी लो। वह चाय के साथ पुड़िया भी लाती है। ठसके के साथ दस रूपये मांगती है।हम उससे कहते हैं-"ये पुड़िया क्यों लाई।इसके पैसे हम न देंगे।"
पांच रूपये की बात। लेकिन लगता है कि ये तो जबरदस्ती है। व्यक्तिगत नुकसान अखरता है। लेकिन सामूहिक नुकसान आदमी मजे से सह लेता है।कल दिल्ली के मुख्यमंत्री ने सीधे 50 % वायदों का चूना लगा दिया। इसके पहले 15 लाख की चपत लग ही गयी।अच्छे दिन भी इधर-उधर हो गए लगते हैं।

इस बीच विजय दिखा। बताया 40-50 रूपये के बराबर कूड़ा बिन लिया। उसके माथे पर टेप लगा है। पूछा तो बताया-"कल बजाही में गए थे। नगीना की धुन बजा रहे थे। एक बाराती लहराते हुए गिर गया। नागिन की तरह हाथ ऊपर करके डांस कर रहा था। हाथ के साथ टांग भी लहरा रहा था। उठकर हमको मार दिया। तो तुरही लग गयी माथे पर।फिर हम भी लगाये दो हाथ। सब मिलकर मारे। दारू पीकर नशे में नाच रहा था। "

लगता है अपने देश के जनप्रतिनिधि सत्ता के नशे में आंय वाँय उलटे सीधे मस्ती में नाचते बाराती हैं। अपनी हरकतों से लुढ़कते पुढकते हैं। जनता को बेवकूफ बनाते हैं। चपत लगाते हैं। किसी दिन जनता लगाएगी दो हाथ तब अक्ल ठिकाने आएगी।

परसाईजी ने अपने लेख अकाल उत्सव में इस बारे में विस्तार से लिखा है। अंत में यह भी:

"यह सपना मैं कहौं पुकारी
हुईहै सत्य गए दिन चारी।"

परसाई जी चले गए। सपना सच न हुआ। आगे क्या होगा क्या पता? आपको पता है?

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