Monday, May 04, 2015

जो जागत है सो पावत है

आज पुलिया पर आनंद गुप्ता मिले। ककड़ी बेचते हुए। सुबह पांच बजे उठकर मण्डी जाते हैं। सामान लेकर घर में नाश्ता खाना करके फिर 11 बजे निकलते हैं। घर लौटते लौटते रात के 9 बज जाते हैं। रोज के 200 से 300 रुपया कमा लेते हैं।

ठेला खुद का है। पांच हजार का मिला था। मतलब हमारी साइकिल से 200 रुपया मंहगा। ठेला का रिपेयर बस ट्यूब, पंक्चर, हवा का है। हवा टनाटन भरी है। पहिया दबा के दिखाए।

इंटर पास हैं। कोई तकनीकी पढ़ाई हो नहीं पाई। पिता भी ऐसे ही रोजनदारी का काम करते रहे। नहीं पढ़ पाये। दो बच्चे हैं। केजी में पढ़ते हैं। आधारताल के पास गोहलपुर जहां रहते हैं वहीं के एक स्कूल में।

ककड़ी 30 रूपये किलो हैं। इनके पहले यहीं दूसरा ठेलेवाला 20 किलो बेच रहा था। लेकिन जब ये आ गए तो उसको जाना पड़ा। यह जगह इनकी है। जैसे रेल के जनरल डिब्बे में पहले रुमाल जिसने रख दिया जगह उसकी हुई वैसे ही जो पहले से ठेला लगा रहा था जगह उसकी हुई।

लंच से लौटते समय बादल छाये थे। बोले ककड़ी है। भीगने का डर नहीं। खुद अपने लिए पास के एमईएस दफ्तर की तरफ इशारा करके बताया कि वहां शरण ले लेंगे।

दोपहर तक 40 किलो ककड़ी बची थी। मतलब 1200 रूपये का सामान। अब 9 बजने वाले हैं। आनंद गुप्ता घर पहुंच रहे होंगे। दिन भर के थके हारे।

सुबह फिर उठेंगे शायद यह कहते हुए:
"उठ जाग मुसाफिर भोर भई
अब रैन कहाँ जो सोवत है।
जो सोवत है सो खोवत है
जो जागत है सो पावत है।"

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