Friday, June 26, 2015

अनाड़ी अदालत

बाजार तो बहुत हैं कानपुर में लेकिन नवीन मार्केट जैसा कोई नहीं। कानपुर का हार्ट है नवीन मार्केट। बहुत पुराना मार्केट है। 50 साल तो हमको हो गए दूकान लगाते हुए। कन्नौज तक से कस्टमर आते हैं।-राजा मैचिंग सेंटर के मालिक ने अपनी दुकान पर खड़े-खड़े बताया।

आर्मापुर से श्रीमती जी कपड़ों का कुछ मैचिंग का काम करवाने के लिए आये हैं। कल देने की बात हुई थी। मिला नहीं। मुस्लिम कारीगर रोजे से हैं। काम हो नहीं पाया। अब इन्तजार है कारीगर का। 50 रूपये का करवाने के 300 रूपये का पेट्रोल फूंक चुके होंगे। अब इंतजार का समय तो अमूल्य है।

नवीन मार्केट में जहां दुकाने हैं वहां गाड़ियां खड़ी होने की समस्या होती है। 3 स्वयंसेवक गाड़ियां व्यवस्थित कराने के काम में लगे हैं। इधर करिये, आगे बढ़ा लीजिये, दायें काटिये, हाँ आगे करिये। व्यवस्था बनाने में सहयोग करते बड़े भले लगते हैं लोग।

दुकानदार सब मिलकर उनको 800 रूपये प्रति आदमी देते हैं। बाकी जो 5 रूपये/10 रूपये गाड़ी वाला दे दे। इसी तरह करते हैं ये काम। -नुक्कड़ पर खड़े भेलपुरी वाले ने स्वयंसेवकों का आर्थिक हिसाब बताया।

भेलपुरी वाले मतलब बांके लाल साहू से बात शुरू हुई तो फिर होती ही रही। बोले- 24 साल बगल की गली में ठेला लगाया, फिर 8 साल बम्बई रहे। इसके बाद 3 साल से यहां इस नुक्कड़ पर लगा रहा हैं। गली वाली जगह पर भांजे को खड़ा कर दिया। खानदानी पेशा है भेलपुरी का।

बम्बई के किस्से सुनाते हुए बांके लाल ने बताया- बम्बई में पैसा बहुत है। जितनी जगह में यहां दुकान है उतनी जगह बम्बई में हो तो 50 हजार रोज के तो कहीं गए नहीं। वहां जिसके पास जमीन है वो राजा है। आदमी के पास कहो बोरन नोट होय लेकिन सोने के लिए जमीन ही नसीब है। हमारे एक रिश्तेदार ने 5 लाख की जमीन 3 साल बाद 50 लाख की बेचीं। थोड़ा सबर करते तो और बढ़िया पैसा मिलता।

बम्बई में पैसा बहुत है लेकिन सुकून नहीं। फुटपाथ पर हफ्ता और मुनिसपैलिटी का बहुत लफड़ा है। हम 9 लोगों को 50 रुपया के हिसाब से हफ्ता देते थे। हफ्ता देने पर इन्स्पेक्टर कुछ नहीं बोलता लेकिन कभी मुनिसपैलिटी वाले पकड़ लेते थे। फिर अदालत में जुर्माना होता था।

अदालत को वहां 'अनाड़ी अदालत' कहते हैं। जज पूछेगा क्या काम करते हो? फिर उसका जो मन आया ,जैसा मूड हुआ जुर्माना लगाएगा और पूछेगा-तुम्हारे ऊपर 500 रूपये जुरमाना लगाया जाता है। बोलो मंजूर है। अगर आप मना करोगे तो वह जुर्माना 1000 रुपया कर देगा और पूछेगा -बोलो मंजूर है? फिर मना करोगे तो और बढ़ा देगा जुर्माना और बढ़ाता जाएगा।

अपने जुर्माने के किस्से बताये बांके लाल ने। 3 बार पकड़े गए। दो बार 3 सौ 3 सौ जुर्माना हुआ और एक बार 8 सौ। हमने फौरन मान लिया। फैसले के पहले 2500/- जमा कराते हैं कोर्ट में। 300 रुपया जुर्माना हुआ तो 300 काटकर 2200 रूपये लौटा दिए।

देखा जाये तो 'अनाड़ी अदालत' का कामकाज का अंदाज बड़ा प्रभावी है। खासकर बड़े लोगों के अपराध के मामले में।फटाफट न्याय की उत्तम व्यवस्था।

आजमगढ़ के रहने वाले बांकेलाल के तीन बच्चे हैं। तीनों अभी पढ़ रहे हैं। पढ़ाई पूरी करवाकर ही उनकी शादी करवाएंगे।

पानी बरसने लगा तो ठेलिया पर पालीथीन ढांक दी बांके लाल ने।

इस बीच हमारा सामान आ गया। लेकर हम चले आये। गाडी निकालते हुए स्वयंसेवक ने बताया की दुकानवाले 1500 रूपये देते हैं महीने का उनको। बाकी कुछ कारवाले दे देते हैं।9 घण्टा खटते हैं। बांकेलाल को 800 रुपया महीना की जानकारी है। मतलब 700 रूपये का लफड़ा। एक ही घटना ,स्थिति के बारे में जानकारी के आधार पर कितना अंतर हो जाता है।

लौटते हुए बाँके लाल की कही बात याद आ रही थी। बम्बई में पैसा बहुत है लेकिन सुकून नहीं है। सुकून की समस्या तो हर एक जगह है। अब यह हम पर है की हम कैसे निपटते हैं उससे। है कि नहीं?

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