Saturday, June 27, 2015

प्रदूषण मुक्त वाहन प्रमाणपत्

दो दिन पहले कानपुर में कार के कागज देखे। कागज तभी देखे जाते हैं जब शहर से बाहर जाना हो। रजिस्ट्रेशन और बीमा के कागज तो ठीक थे, हमेशा की तरह, लेकिन प्रदूषण वाला कागज अपनी उमर पूरी कर चुका था। दो महीने घर नहीं आये। कार का रेडियेटर का पंखा खराब था सो कार खड़ी रही। बाहर नहीं निकली तो कागज भी नहीं बने। दो दिन पहले कानपुर आये। कार बनवाई तो देखा उसके प्रदूषण प्रमाणपत्र पिछले माह खल्लास हो चुका था।

अब जब पता चला तब तक शाम के 6 बज गए थे। लेकिन अगले सुबह दिन बाहर निकलना था सो प्रदूषण प्रमाणपत्र बनवाना जरूरी था। सड़क की जिस पट्टी पर 'यहां प्रदूषण प्रमाण पत्र बनता है' हम उसकी दूसरी पट्टी पर जाम में फंसे थे। जाम क्या एक तरह से समझिये झाम में फंसे थे। लग रहा था कि ऐसा न हो कि जबतक जाम खत्म हो तब तक दूकान बन्द हो जाए।

प्रदूषण प्रमाणपत्र की दूकान बन्द होने के एहसास मात्र से हम इतना घबरा गए जितना की आजकल लोग यह सोचकर हो रहे होंगे की ललित मोदी कहीं उनका नाम न ले ले। हमने गाड़ी उसी तरफ लगाई और जाम की नदी पार करके डिवाइडर को फांदकर दूकान पर पहुंच ही गए। पुराना प्रदूषण प्रमाणपत्र दिखाया। उसने दो मिनट में अगले 6 माह के लिए सड़क की दूसरी पट्टी पर खड़ी हमारी गाड़ी के प्रदूषण जांच में पास होने का प्रमाण पत्र बना दिया। मात्र 50 रूपये में।

अपना काम होने के बाद जैसे लोगों का जी रिश्तेदारों का काम कराने के लिए हुड़कता है वैसे ही हमें घर में खड़ी अपनी मोटर साइकिल भी याद आई। घर में फोन करके उसका नम्बर पूछा और उसका भी प्रदूषण प्रमाणपत्र बनवाया। 40 रूपये में।

अपना काम निकलने के बाद हम पर सामाजिकता ने हल्ला बोला। गाड़ी हमारी 16 साल पुरानी और मोटरसाइकिल 11 साल पुरानी। दोनों में से किसी का भी इमिशन टेस्ट नहीं हुआ। कोई जांच नहीं हुई कि इनके निकले हुए धुंए में कार्बन मोनोआक्साइड कितनी है और सल्फर साइआक्साइड कितनी। सच तो यह भी कि उस दुकान पर कोई औजार या सुविधा भी नहीं थी जिससे इमिशन टेस्ट होता हो। बस गाड़ी का नम्बर बताओ, प्रदूषण प्रमाणपत्र ले जाओ।

दो प्रमाण पत्र जो मिले और जो अगले 6 महीने काम आएंगे, दोनों फर्जी हैं लेकिन हमे सुकून है कि हमारी पास अपनी गाड़ियों के प्रदूषण मुक्त होने का प्रमाणपत्र है।

जिन लोगों को प्रदूषण मुक्त वाहन प्रमाणपत्र देने का ठेका मिलता है वो लम्बी (और चौड़ी भी ) रकम देने के बाद मिलता है। लेकिन वे किसी प्रमाणपत्र देते समय कोई जांच किये बिना प्रमाणपत्र दे देते हैं। लोग भी बनवाते हैं । न बनवाएं तो जुमाना ठुकता है।

यह बात मैंने अपने शहर के बारे में लिखी। वह भी एक अनुभव के आधार पर। आपके शहर में शायद गाड़ी की सही में जांच करके प्रमाणपत्र बनता हो। गाड़ी में प्रदूषण की मात्रा ज्यादा होने पर प्रमाणपत्र न बनाया जाता हो और गाड़ी 'सड़क बदर' हो जाती हो।

वैसे आजकल कुछ भी गलत जैसा होते दिखने में अनहोनी जैसा कुछ नहीं लगता। फर्जी डिग्री वाले लोग मंत्री बन जाते हैं। फर्जी काम करने वाले अपराधी जैसे आदमी को मंत्री, सन्तरी, पत्रकार, जज, वकील भागने में सहायता देते हों ऐसे में एक कार और एक मोटर साइकिल ने कौन किसी की भैंस खोली है जो उनको फर्जी प्रमाणपत्र न मिल सके।

क्या पता जब लोग फर्जी डिग्री और अन्य घपलों से ऊब जाएँ या फिर ध्यान बंटाने के लिए ' प्रदूषण प्रमाणपत्र घोटाले' पर चिल्लाते हुए बहस करें और किसी ट्रांसपोर्ट मंत्री का इस्तीफ़ा मांगने के लिए गला फाड़ते हुए हल्ला मचाएं। बाद में सरकार को मामले में कड़ा कदम उठाते हुए किसी चिल्लर परिवहन अधिकारी को लाइन हाजिर करके मामले को रफा-दफा करना पड़े।

नीचे की फोटो जबलपुर की आफिसर्स मेस की छत की चाहरदीवारी पर इकट्ठा पानी में पड़ते सूरज के बिम्ब की। खैंचवार हैं Sagwal Pradeep अपने आई फोन से।

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1 comment:

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन ब्लॉग बुलेटिन - राष्ट्रीय झण्डा अंगीकरण दिवस और जन्म दिवस मुकेश में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।

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