Wednesday, June 10, 2015

परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता

सुबह निकले तो थोड़ी दूर बाद पता लगा कि बटुआ 'तमले पल ही थूत दया' है। पहले सोचा कि चलें आज चाय उधारी पर पी लेंगे। लेकिन फिर सोचा चाय वाला मना कर दिहिस तब का करेंगे। सोचा कि देखें मना करेगा कि पिलाएगा। लेकिन फिर बशीर बद्र साहब शेर सुना दिहिंन:
परखना मत परखने में कोई अपना नहीं रहता,
किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता।
फिर सोचे नहीं पिएंगे चाय आज। लेकिन दो पैडल बाद नन्दन जी की गजल का शेर सामने खड़ा हो गया आगे:
लाख उसको अमल में न लाऊँ कभी
शानों-शौकत का सामाँ मगर चाहिए।

मतलब चाय पियें भले न लेकिन जेब में बटुआ होना चाहिये। दो बुजुर्गों की बात मानकर वापस लौटे। और जैसा कि हमेशा होता बुजुर्गों की बात मानने का फायदा भी हुआ।

पहला तो यह कि मुड़ते ही उस बच्ची से मुलाकात हो गयी जो टहलते हुए रोज दिखती थी लेकिन सड़क के अलग-अलग किनारों पर होने के चलते बात नहीं हुई कभी। आज संयोग कि लौटते ही वो सामने से आते दिखी। हमने साइकिल रोककर बात की। पता लगा बच्ची अर्थ साइंस में पी एच डी कर रही है।रोज गेट नंबर 1 तक टहलने जाती है। पास ही रहती है। रोज के सुबह मुलाकाती से अपरिचय कम हुआ।अच्छा लगा।

दूसरा फायदा कमरे से पर्स लेने के बाद हुआ।हुआ यह की मैंने ईंट भट्टे वाले की खींची कई फोटुओं मे से एक प्रिंट करवाई थी। कई दिन से लिए टहलते रहे लेकिन वो मिले नहीं। आज जब पर्स लिया तो फोटो फिर रख ली और आज रास्ते का क्रम उलट कर पहले भट्टे पहुंचे। वो वहां पर काम कर रहे थे। फोटो दिखाई तो खुश हुये। दी तो महिला बोली-आप रख लो। हमने उनको बताया कि उनके लिए ही बनवाई है तो उन्होंने ली।

और तमाम कुम्हारों के घर वहां हैं। काम शुरू हो गया था। ईंट वाले ईंट थापने में लगे थे। घड़े बनाने वाले और अंदर रहते हैं शायद। सोचा एक दिन उनका घड़े बनाते हुए वीडियो बनाएंगे।


रेलवे फाटक पर एक ट्रैक्टर भूसा लादे हुए आता दिखा। वजन और सड़क पर गड्ढों के गठबन्धन के चलते ट्रैक्टर ऐसे आता दिखा मनो उसने पी रखी हो और लड़खड़ाते हुए गाना गा रहा हो:
थोड़ी सी जो पी ली है
चोरी तो नहीं की है।
क्रासिंग पार कृषि विश्वविद्यालय में एक ट्रैक्टर खेत जोत रहा था। उसके आसपास तमाम बगुले ट्रैक्टर को खेत जोतते देख रहे थे। ऐसा लगा जैसे किसी सरकारी कारखाने में एक काम करते हुए कामगार का दस अफसर मुआयना करने
के लिए तैनात हों। कहीं कामगार कामचोरी न कर जाए।

सरकारी काम में देरी का एक कारण यह भी होता है -करने वाला एक मुआयने के लिए पचास। मुआयना करने वालों में से कुछ लोग अगर करने वालों में बदल जाएँ तो काम धक्काडे से होने लगे।

मोड़ पर रामकुमार होटल में चाय पी। साफ़ सुथरी दूकान। चाय, पोहा-जलेबी अन्य नाश्ते। एक लड़का हरी सब्जी काट रहा था। कुछ बासी और सूखी थी। तब तक एक दूसरा आदमी मोपेड पर ताज़ी सब्जी लाया। देखकर उसने सूखी सब्जी फिंकवा दी।

पता चला ये मुन्ना हैं। 40 साल से यह दुकान चल रही है। दूकान का नाम बेटे के नाम पर है जिसकी उम्र 35 साल है। दूकान का नाम बेटे के पैदा होने के बाद रखा।दूकान नगर निगम की जमीन पर है। कभी 'अतिक्रमण हटाओ अभियान' में दो चार दिन को हट जाती है। कुछ दिन बाद फिर लग जाती है। जिंदगी ऐसे ही कट रही है।

दूकान की सफाई की तारीफ की तो खुश होकर बोले-'सब आप लोगों की मेहरबानी है। जिंदगी एक बार मिलती है। अच्छे से जीनी चाहिए। प्रेम से रहना चाहिए।'

आगे सड़क पर कबाड़ के ढेर के पास एक बुढ़िया बैठी थी। पीछे सड़क किनारे बनी एक पालीथीन और कबाड़ की मिली जुली झोपडी के सामने जमीन पर लेटी एक महिला अपने बच्चे के साथ मोबाइल पर उँगलियाँ चला रही थी। शायद कोई खेल रही थी। क्या पता फेसबुक पर स्टेट्स अपडेट कर रही हो।

मोटरसाइकिल लुढ़काते ले जाते एक भाई जी दिखे। पेट्रोल खत्म हो गया था उनका। पास ही है पेट्रोल पम्प। फिर से यह सीख याद आई कि घर से निकलो तो राशन पानी लेकर निकलो।

आगे एक भाई जी सड़क किनारे मोटरसाइकिल खडी करके और किनारे निपट रहे थे। उकड़ू बैठे भाई जी पास धरी पानी की बोतल से अंदाज लगा कि वो निपटने का इरादा घर से बनाकर निकले होंगे। 'जहां सोच वहां शौचालय' के झांसे में आने देश का बहुत बड़ा हिस्सा बचा हुआ है।

कृषि विश्वविद्यालय के सामने 'साहू साइकिलिंग रिपेयरिंग' पर हवा भरवाई। 59 साल के साहू जी कृषि विश्वविद्यालय में चपरासी हैं। 10 बजे आफिस खुलने के पहले हाथ-पाँव चलाने के लिए साइकिल की दूकान पर बैठते हैं। उसके बाद लड़का बैठता है। बाकी दो बेटों में एक ऑटो चलाता है। दूसरा परचून की दुकान पर।
साइकिल देखकर पूछे- कित्ते में कसवाई? हमने बताया -4800 में। बोले- मंहगी पड़ी। हम बोले-रैले की है। सरदार साइकिल मार्ट रांझी से ली। बोले-चूतिया बनाते हैं सब। 3500 से ज्यादा की नहीँ होगी। ये सब रैले-फैले के स्टिकर लगाये हैं। सब साइकिल यहीं बनती हैं।

फिर बोले साईकिल मन्जन करने वाले ब्रश से साफ़ करते रहा करो। चकाचक बनी रहेगी।

तमाम लोग जिनमें से ज्यादातर महिलाएं थी सड़क किनारे नलों पर पानी भर्ती और सुख-दुःख कहती-सुनती दिखीं।

लौटते में मोपेड दिखी। गोद में गन्ना लादे । पंचर हो गयी थी। सड़क किनारे पंचर बन रहा था।

आज की घुमाई इतनी ही। बाकी की फिर कभी।

आपका दिन मंगलमय हो।

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