Wednesday, June 03, 2015

टुकनियां में ब्रह्माण्ड लादे दो आकाशगंगायें

सुबह निकलते ही एक आदमी घड़े बेचने के लिए ले जाते दिखा। इसके पहले केवल महिलाएं दिखती रहीं घड़े बेचने के लिए जाती हुई। महिला-पुरुष के अंतर के अलावा एक अंतर यह भी था कि आदमी घड़े ठेले पर ले जा रहा था। जबकि महिलाएं हमेशा सर पर ले जाती हैं घड़े। महिलाओं द्वारा घड़े बेचना ज्यादा मेहनत का काम है।

पहाड़ के पास लोग कम दिखे आज। कल रात हल्की बारिश हुई थी। तमाम लोगों के लिए मौसम सुहाना हो गया। कुछ के लिए आशिकाना हुआ होगा।लेकिन यहाँ रहते लोगों के लिए तो मौसम 'गोल ठिकाना'हो गया।पानी बरसते ही भागे होंगे इधर-उधर रात को।पालीथीन , मोमिया वाले डटे रहे होंगे। आसमान ही जिनकी छत है वे भागे होंगे ओवरब्रिज के नीचे।

ओवरब्रिज से ट्रैफिक संचालन में कितना सुविधा हुई नहीं पता लेकिन तमाम लोगों को सर छिपाने की जगह मिल जाती है। कुछ लोगों की कमाई का सहारा भी बनते हैं ये ठिकाने। ओवरब्रिज खूब बनने चाहिए ताकि जिनके घर न हों वे इनके नीचे शरण ले सकें।


चाय की दूकान पर लोग खूब जमा थे। दूध वाला आया तो चाय पीते हुए रमेश ने चाय वाले से दूध का भगौना लेकर उसका दूध लिया। दूध का कनस्तर 40 लीटर का होता है। 4000 रूपये का आता है। ISI मार्क वाले कनस्तर में ही दूध ले जाने की अनुमति है।

चाय की दूकान पर साइकिल को लेकर बात चलती है। एक महिला कहती है -साइकिल चलाने से फेफड़े की बिमारी नहीं होती। दूध वाला कहता है साईकिल चलाने से आदमी हमेशा 18 साल का बना रहता है। उसके डायलॉग दादा कोंडके घराने के हैं। मुझे नया ज्ञानोदय में कुछ साल पहले छपी उस समय के चर्चित युवा लेखक की कहानी याद आई जिसमें गाँव में पनपे विभिन्न उम्र के अवैध सम्बन्ध का चित्रात्मक वर्णन साइकिल के चलाने के माध्यम से किया गया था। कहानी और लेखक की खूब चर्चा हुई थी। बहुत दिनों से उस चर्चित लेखक की चर्चा नहीं सुनी। उनकी साइकिल की हवा के क्या हाल हैं पता नहीं।

रमेश ने बताया कि उन्होंने अपना दांत निकलवा दिया। हमने कहा -'बीड़ी छोड़ दो। आराम रहेगा।' उसने कहा-'जिंदगी के मजे लेने दो। और कोई नशा तो करते नहीं।' हमने फिर समझाया-'ये जो तुम रटे-रटाये तर्क देते हो बीड़ी पीने के लिए वो तुम भी जानते हो सब फालतू हैं। तो काहे जान देने पर तुले हो।' उसने बताया-'कम कर दी। 3 से 2 बण्डल पर आ गए। ये देखो इनकी तो वारण्टी ख़त्म हो गयी लेकिन बीड़ी फूंकते रहते हैं।आप जल्दी आया करो तब और बात होगी।' हमने कहा-' अच्छा हमारे सामने बीड़ी न पिया करो जल्दी आने लगें।' उसने बोला-'ऐसे ही प्रवचन देते रहे तो टीवी पर आने लगोगे।'

चाय वाले की दूकान पर एक पान मसाले का पैकेट था। 25 साल से विश्व का नम्बर 1 पान मसाला लिखा था। फोटो में एक फ़िल्मी हीरो था। जो खुद मसाला नहीं खाता होगा। पैकेट पर लिखा था-'दाने-दाने में केसर का ।' मुझे लगा कि विज्ञापन में 'केसर' की जगह 'कैंसर' लिखा होना चाहिए।

आगे सड़क पर एक महिला पड़ी सी थी। कराह रही थी। उसके पति ने उसे पीटा था। चेहरे पर खून भी था। उसकी बेटी उसको सहारा देकर घर ले गई। एक महिला भी साथ में थी। पति-पत्नी का आपसी मामला मानते हुए लोग अपने रस्ते चले गए।

चौराहे पर चाय-नाश्ते की दुकानें खुली थीं। स्पेशल चाय। स्पेशल चाट। समय सुबह 3 बजे से रात 9 बजे तक। 18 घण्टे चलती इन दुकानों पर कई हॉकर अपनी साइकिल पर अखबार लादे चाय पी रहे थे।

अखबार में एक खबर में बताया गया था कि रेलवे के दो अधिकारियों में कहा-सुनी के चलते 100 रेलें ट्रैक पर खड़ी रहीं। डीआरएम और एओएम के बीच की कहा सुनी ने हजारों यात्रियों को खड़ा कर दिया। इससे आप भारतीय नौकरशाही की ताकत का अंदाज लगा सकते हैं।

व्हीकल मोड़ पर सब्जी वाला अपनी दूकान के सामने सफाई कर रहा था। सड़क किनारे का कूड़ा बीच सड़क पर सरका रहा था। कुछ ऐसे ही जैसे मीडिया के प्राइम टाइम एंकर किसी राजनेता के चिरकुट अकेले में दिए गए किसी चिरकुट बयान को राष्ट्र की मुख्यधारा में लाने का काम करते हैं।

एक पुलिया पर एक बुजुर्ग सूरज की तरफ पीठ किये बैठे थे। शायद पीठ सेंक रहे हों या फिर वे सूरज को भाव नहीं देना चाहते होंगे।

क्रासिंग पर दो महिलायें सर पर घड़े ले जाती दिखीं।।मुझे फिर से ठेलिया पर घड़े ले जाता आदमी याद आया। घड़े ले जाती महिलाएं देखकर लगा कि ये अपनी टुकनियां में ब्रह्माण्ड लादे दो आकाशगंगायें चली जा रही हैं। एक-एक के सर पर पांच-पांच घड़े सितारों की तरह दुबके पड़े थे। क्या मजाल जो कोई चूं बोल जाए।

मढई में कुम्हारों के घर के आगे जो ईंटें सूखी नहीं थी वे पालीथीन से ढंकी थीं। एक लड़का काई भरे तालाब से बाल्टी में पानी भरकर ईंटों के लिए ला रहा था। तालाब में पानी कम था लेकिन फिर भी था तो सही। मुझे अनुपम मिश्र जी की लिखी किताब 'आज भी खरे हैं तालाब' याद आई। पानी के मामले में कितना गैरजिम्मेदार हैं हम यह इस किताब को पढ़ने से अंदाज होता है। हम पहले समस्या पैदा करते हैं। जब समस्या विकराल हो जाती है तब फिर उसके समाधान के लिए हल्ला मचाते हैं। हाय-तोबा करते हैं। बकौल मेराज फैजाबादी:
'पहले पागल भीड़ में शोला बयानी बेचना
फिर जलते हुए शहरों में पानी बेचना।'


ओह कहां से चले थे। किधर पहुंच गए।

आपकी सुबह खुशनुमा हो। दिन मुबारक हो। शुभ हो।

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