Wednesday, July 29, 2015

एक गंजेडी से मुलाकात

आज सुबह साइकिल से निकले तो साइकिल एकदम हल्की चल रही थी।शायद दो दिन के आराम से चकाचक चुस्त,चैतन्य हो गयी थी।

मेस के गेट की तरफ़ बढ़ते देखा कि धूप सड़क की बायीं तरफ पसर चुकी थी। साईकिल से मुझे आता देखकर धूप ने हल्ला मचाते हुए और किरणों को बुलाया। पंक्षियों ने भी टी-टी, चीं-चीं करते हुये किरणों को आवाज दी। फूल, पत्तियों पर बिखरी किरणें उनसे विदा लेकर चलने को हुईं लेकिन पत्तियों, फूलों ने उनको जाने नहीं दिया। सूरज भाई ने यह देखकर सड़क के लिये दूसरी किरणों को भेज दिया। सड़क के किनारे के पेड़ से नीचे गिरे फूल उनकी अगवानी में बिछे हुए थे।

एक पुलिया की बगल से गुजरे तो वहां बैठी महिलाओं की बातें सुनाई दीं। एक बता रहीं थीं कि उनके घर के पास शाम को 4 बजे किसी ने घर में घुसकर एक महिला से सोने की चेन उतरवा ली। आजकल जमाना बड़ा खराब है। पता नहीं कब, कौन लूट ले।

महिलाओं से मजे लेते हुये मैंने कहा-आप सब लोग अपनी बहुओं की तारीफ, बुराई करती होगी यहां बैठकर। सुनकर सब हंसने लगीं।एक बोलीं -’अरे का बुराई/तारीफ़। आयके बतिया लेती हैं।’


सुबह 5 बजे आती हैं। 7 बजे तक बतियाती हैं। सुख दुःख। फिर घर चली जाती हैं। कोई और आ गया तो फिर देर तक भी बैठ जाती हैं। सुबह पहले जल्दी आती थीं लेकिन उजाला देर से होने के चलते आजकल थोड़ा लेट आती हैं। उजाला होने पर ही निकलती हैं घर से।

फोटो लेने के लिए पूछा तो सबसे दायीं तरफ वाली माता जी ने पल्लू सर पर रखा। फोटो दिखाई तो बोली-ये तो बढ़िया फोटो आई। एक जन बोलीं - एक जन पहले भी खींच ले गए थे फोटो। सबके अपने-अपने शौक हैं।हमने बताया वह भी हम ही थे। तब भी माता जी ने फोटो खींचते समय ऐसे ही पल्लू सर पर रखा था। देखिये वह पोस्ट यहां http://fursatiya.blogspot.in/2015/04/blog-post_10.html

चलते हुए सुना कि वे आपस में बतिया रहीं थीं कि साईकिल चलाने से आदमी बीमार कम पड़ता है। पेट भी नहीं निकलता है।

चाय की दूकान पर चाय अभी बनी नहीं थी। बोला -आज देर हो गयी। वहीं सीमेंट की बेंच पर बैठ गए। एक आदमी हाथ में कुछ लिए रगड़ रहा था। मैंने पूछा- तम्बाकू रगड़ रहे हो? बोला -नहीं अंकल जी, गांजा है। हमने पूछा-सुबह-सुबह गांजा पीते हो? वो बोला -हाँ। ले लेते हैं। दोपहर तक असर रहता है।

हमने आदतन पूछा- क्यों करते हो? नुकसान करता है। वो बड़े आराम से बोला-16 साल की उम्र से कर रहे हैं। अब आदत हो गयी। ट्रक चलाते हैं। दारु नहीं पीते। दारू महंगा नशा है। चढ़ जाती है तो मारपीट होती है। गांजा सस्ता है। चुपचाप पी लो। आराम से रहो। बताते हुए गांजे की कली जो कि लौंग के आकार की थी को मसलते हुए जेब से बीड़ी निकालकर उसकी तम्बाकू को गांजे के साथ मिलाकर रगड़ते हुए तैयार करता रहा।

पुलिस पकड़ती नहीं ? पूछने पर बोला- पुलिस जानती है कि कोई गलत काम,लड़ाई-झगड़ा नहीँ करता तो नहीँ पकड़ती। कभी पकड़ा भी तो छोड़ देती है।कोई मारपीट थोड़ी करते हैं दारू पीने वालों की तरह।

करीब 40 साल की उम्र के देवेन ने बताया कि 3 बच्चे हैं। लड़के 9 वीं, 8 वीं और बिटिया 5 वीं में पढ़ती है। 3 बच्चे होने के बाद पत्नी का आपरेशन करवा दिया। खुद का क्यों नहीं करवाया वह तो आसान होता है पूछने पर मुस्काते हुए बताया-अरे अंकल जी कौन हमको पैसा चाहिए। पत्नी का करा दिया।

ड्राइवरी के लिए घर से बाहर जाते हैं तो बच्ची ,जिसको सबसे ज्यादा प्यार करते हैं देवेन, रोकती है कि पापा मत जाया करो। लेकिन बोले- उनके लिए ही तो जाते हैं।सबको प्राइवेट स्कूल में पढ़ाते हैं। गांजा पीने के बारे में बच्चे जानते हैं लेकिन क्या करें आदत पड़ गयी है। पहले बस चलाते रहे तो गुटका खाते थे। अब कम कर दिया।
ट्रक खाली होने पर सवारी या सामान लादने के सवाल पर वो बोला- मिल जाता है तो लाद लेते हैं। न करें तो खर्च कैसे निकलेगा? मालिक लोग पैसा ही नहीं देते खर्चे का पूरा।

गांजे और शराब के नशे का तुलनात्मक अध्ययन सा करते हुए बोले- शराब में लोग सूंघ के जान जाते हैं। मंहगा नशा है। मारपीट करता है आदमी। नकली शराब से लोग मरते हैं ।जबकि गांजा सस्ता नशा है। हल्ला नहीं मचाता गंजेड़ी। नकली गांजा पीने से लोग मरते नहीं। उसके तर्क सुनकर लगा कि शराब पीने से मरने वालों की संख्या कम करने के लिए शराब की जगह गांजे के नशे को तरजीह देने के लिये लोग तर्क न गढ़ने लगें।

लौटते हुए देखा तो सूरज भाई निकल आये थे। आसमान में चमक रहे थे। मतलब दैदीप्यमान थे। हमसे मजे लेने के लिए हमारी साईकिल की परछाई हमसे कई गुना बड़ी करके दिखाने लगे। हमने कहा- क्या भाई आप भी हमको ऐसे दिखा रहे हो जैसे प्रभावशाली लोगों को उनके 'जे बिनु काज दाहिने बाएं' रहने वाले चम्पू-चेले, रंगरूट उनके बारे उनकी औकात से कई गुना बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं। मेरी बात सुनकर सूरज भाई सामने आकर हंसने लगे। परछाई हवा हो गई।

पुलिया पर बैठी महिलाएं घर चली गयी थीं। अब वहां दो पुरुष और एक कुत्ता बैठे थे।

खरामा-खरामा साइकिल चलाते हुए मेस आए। चाय मंगाई। पीते हुए पोस्ट टाइप की। अब इसको पोस्ट करने के बाद दफ्तर के लिए निकलेंगे।

आप भी काम से लगिए। सबका दिन शुभ हो।।मंगलमय हो।

Tuesday, July 28, 2015

तोहफे स्वीकार करना अच्छी आदत नहीं होती

कल शाम कलाम साहब के निधन की खबर सुनकर उनको श्रद्धांजलि देते हुए पोस्ट लिखी थी। अभी देखा तो उसकी सेटिंग 'व्यक्तिगत' थी। मतलब यह केवल मुझको दिखने के लिए थी।

कलाम अपनी किताब 'टर्निंग प्वाइंट्स' में 'जो दूसरों से सीखा' अध्याय में अपने पिता से मिली सीख का जिक्र करते हुए लिखा है:

"तोहफे स्वीकार करना अच्छी आदत नहीं होती। तोहफे हमेशा किसी खास मकसद के साथ दिए जाते हैं इसलिए उन्हें लेना खतरनाक है। उनका यह पाठ मेरे दिमाग में आज भी ताजा है, जबकि मैं आज अस्सी बरस से ज्यादा उम्र का हो चुका हूँ। यह घटना मेरे दिमाग में गहराई से घर कर गई है,और उसने मेरा मूल्यबोध रचा है। अब भी, जब कोई व्यक्ति मेरे सामने कोई उपहार लेकर आता है, मेरा दिल दिमाग काँप उठता है।"
यह बात उनके पिताजी ने उनसे तब कही जब कलाम साहब के पिताजी रामेश्वरम द्वीप में पंचायत चुनाव में ग्राम सभा के अध्यक्ष चुने गए थे। पिता की अनुपस्थिति में उनके यहां कोई व्यक्ति तोहफे में कुछ कीमती कपड़े, चांदी के प्याले और कुछ मिठाई दे गया था। कलाम साहब सबसे छोटे बच्चे थे। उन्होंने उस व्यक्ति के लाये तोहफे घर में रखने को कहा। लौटने पर पिताजी, जो कि उनको बहुत प्यार करते थे, से उन्होंने पहली बार मार खाई। वे रोने लगे। उसके बाद उनके पिताजी ने अपनी नाराजगी की वजह बताई और समझाया कि बिना उनकी इजाजत के कभी कोई तोहफा न स्वीकार करें। एक हदीथ सुनाते हुए समझाया कि,' जब खुदा किसी इंसान को किसी ओहदे पर बैठाता है तो वह उसकी जरूरतों का भी बन्दोबस्त करता है। अगर कोई शख्स इससे ज्यादा कुछ लेता है तो वह गैरवाजिब होता है।'

कलाम साहब की स्मृति को नमन। विनम्र श्रद्धांजलि।

राजू से मुलाकात

सुबह पुलिया पर ये भाई जी मिले। नाम राजू बताया। उम्र करीब 40 साल। समदड़िया के किसी होटल में रात की ड्यूटी करके लौट रहे थे। पुलिया देखी तो आरामफर्मा हो गए।

लिवर की समस्या बताई तो हमने पूछा क्या दारू ज्यादा पीते हो? बोले -नहीं। बिल्कुल नहीं पीते। हाँ कभी-कभी गुटका जरूर खा लेते हैं।

खाने बनाने का काम करने के सात हजार करीब मिलते हैं राजू को। परिवार के बारे में पूछने पर बताया कि पत्नी दो बच्चियों के साथ पिछले 5 / 6 साल से मायके चली गयी। वहीं रहती है। उसके जीजा ने कुछ जादू करा दिया तो वहीं मायके में ही रह गयी। अब उसके जीजा भी नहीं रहे फिर भी पत्नी लौटकर नहीं आई। लोग कहते हैं पत्नी को छोड़कर दूसरी शादी कर लो।

दूसरी शादी की बात बताते हुए भाईजी ने एक बार तो यह कहा कि ऐसे ही आराम से हैं। फिर यह भी बोले कि नहीं आएगी तो दूसरी शादी कर लेंगे। हमने कहा-बच्चियां और पत्नी को लाने की कोशिश तो करो तो बोले हाँ करेंगे। पहले उससे पूछेंगे। अगर आएगी तो ठीक वरना कुछ और सोचेंगे।

हमने यह भी पूछा कि कहीं तुम्हारा ही तो कोई और चक्कर नहीं जिसके चक्कर में परिवार छोड़ दिया। इस पर वो थोड़ा शरमाते हुए बोले -नहीं ऐसी कोई बात नहीं।

घर में माँ के साथ रहते हैं राजू।

हां शुरुआत की बात तो रह ही गयी। बात शुरू करते हुए हमने साइकिल में लटकी चेन देखते हुए उसके बारे में पूछा तो बोले ताला लगाकर रखना पड़ता है। हमने कहा बहुत पुरानी साईकिल है। बोले हाँ- सन 47 की साइकिल है। पिताजी लाये थे। जब इंदिरा गांधी की मौत हुई थी उस साल। हमने बताया कि इंदिरा जी तो 1984 में नहीं रहीं। फिर साईकिल 1947 की कैसे हुई। लेकिन वो अपनी साइकिल को सन 47 से आगे लाने को राजी नहीं हुए।
राजू को उनकी साईकिल से आराम करने के लिए पुलिया पर छोड़कर मैं दफ्तर चला गया।

Monday, July 27, 2015

मल्टीफ्लेक्स में पिच्चर


कल सुबह मन किया पिच्चर देखने चला जाए। हाल में रिलीज हुई 'मसान' देखने का मन था। पता किया तो लगी ही नहीं है यहां। कुल जमा दो मल्टीफ्लेक्स हैं। दोनों में बड़ी बजट वाली पिक्चरों का कब्जा है।'बाहुबली' और 'बजरंगी भाई जान' और एक और कोई अंग्रेजी फ़िल्म।

आये दिन पिक्चरों के रिकॉर्डतोड़ कमाई के आंकड़े आते हैं। 'बाहुबली' के बनाने में 250 करोड़ खर्च हुए उसने 400 करोड़ की कमाई कर ली। यही कहानी 'बजरंगी भाई जान' की है। लेकिन अगर 'मसान' और 'मिस टनकपुर हाजिर हो' लगी होती यहां तो हम उनको देखने जाते-इन बाहुबली पिक्चरों के बजाय।

तकनीक की उबलब्धता ने सस्ते सिनेमा बनाना भी सम्भव किया है लेकिन बाजार के तिकड़म के चलते थियेटर तक पहुंचने की राह कठिन ही है। पहले शहर में पचासों सिनेमा हाल होते थे। हर तरह की पिक्चर को आशियाना मिल जाता था। अब मल्टीप्लेक्स के बोलबाले के चलते वो सिनेमा हाल बन्द हो गए या फिर और जरूरत के हिसाब से बदल गए हैं। पिक्चरों के लिए बस मल्टीप्लेक्स के सिनेमा हाल ही ठिकाने रह गए। जब हर थियेटर में एक ही पिक्चर चलेगी तो कमाई तो होगी ही। लेकिन क्या रिकार्ड कमाई वाली इन पिक्चरों को कोई दुबारा भी देखना चाहेगा।


भारत में शॉपिंग माल्स (वाल मार्ट आदि) आने का हल्ला चलता रहता है। बुलौआ दिया जाता है। तर्क यह दिया जाता है कि शॉपिंग माल्स आ जाने पर चीजों की बर्बादी कम होगी और सेवायें बेहतर होंगी। सस्ती भी। लेकिन जिस तरह मल्टीप्लेक्स सिनेमा हाल में छोटे बजट वाली फिल्मों को घुसने की अनुमति नहीं मिलती उसे देखकर यही लगता है कि वाल मार्ट आ जाने पर जब छुटपुट दुकाने बन्द हो जाएंगी (जिस तरह मल्टीप्लेक्स थियेटर आने पर छोटे सिनेमा घर बन्द हुए) तो तमाम चुटुर-पुटुर चीजें जो छोटी दुकानों पर मिल जाती हैं, मिलना बन्द हो जाएंगी।

खैर, गए तो सुबह समदड़िया सिनेमा हाल में सुबह के सवा नौ के शो के सब टिकट बिक गए थे। हमारी तो खैर अलग बात अकेले रहते हैं। लेकिन ये फेमिली वाले लोग सुबह-सुबह सनीमा के लिए लाइन लगाये खड़े हैं यह अचरज की बात लगी।


जो भाई लोग कहेंगे कि आन लाइन बुक करके जाना चाहिए हम ऐसे जाते हैं उनकी जानकारी के लिए बता दें की भाई ऑनलाइन बुकिंग में फिर टिकट मिलने न मिलने की अनिश्चितता ख़त्म हो जाती है। आजकल सहज मायूसी भी दुर्लभ हो गयी है। पिक्चर का टिकट मिलने पर ख़ुशी होती। न मिलने पर उदासी। सो मायूसी मिली लेकिन ज्यादा नहीं क्योंकि दूसरे मल्टीप्लेक्स में साढ़े दस बजे का शो था।

दूसरे जगह गए तो वहां भी भीड़ थी लेकिन इतनी नहीं कि कन्धे छिलें। सुकून की बात यह भी कि जिससे पूछो वही बजरंगी भाई जान देखने आया था।बताते चले कि हम 'बजरंगी भाईजान' क्यों नहीं देखने गए इसके लिए न सलमान खान का ट्वीट था न उसको मिली सजा लेकिन बस ऐसे ही नहीं गए।


देखा कि स्कूली ड्रेस में तमाम बच्चे लाइन से सिनेमा देखने के लिए अंदर जा रहे हैं -'बजरंगी भाई जान'। पिक्चर देखना तो ठीक लेकिन ड्रेस में देखकर लगा कि ये बेचारे स्कूल ही आये हैं क्या।

यहां भी टिकट की मारामारी थी। पौन घण्टा पहले लगने के बावजूद टिकट सबसे आगे का मिला। गर्दन गर्व से तानकर पिक्चर देखने का मौका। सनीमा शुरू होने में देर थी तो बाहर जाकर चाय पी। बढ़िया चाय 10 रूपये में ,जो हाल में 40 की मिलती, पीते हुए एक भाई जी से फोटो फ्री में खिंचाये।

पिक्चर देखी। बढ़िया फोटो-शोटो,साऊंड-फाउंड, इफेक्ट-सिफेक्ट सब 250 करोड़ के माफिक। लेकिन पूरी पिक्चर में थोक के भाव जो लड़ाई दिखाई गई है उससे लगा कि कहानी कुछ है नहीं इसलिए फू-फां ठूंसा गया। लड़ाई के इत्ते सीन देखकर हमको तो ऐसा लगा जैसे जनता की भलाई का बढ़ाने की बजाय हल्ला-गुल्ला करके संसद ठप्प करने का सीन चल रहा हो।

झटके से फ़िल्म खत्म हुई। उसके बाद कड़प्पा पर चुटकुले चल रहे हैं। क्या पता पिक्चर वालों ने लड़ाई-झगड़ा फिल्माने में इतना समय बर्बाद कर दिया फिर देखा कि समय कम बचा तो झटके से निपटा दी पिक्चर। आगे का ठेका सोशल मीडिया को दे दिया कि अब तुम बताओ पिक्चर के बारे में।

सिनेमा हाल से निकलकर ग्वारी घाट गए।बरसात के पानी के चलते नर्मदा का पानी मटमैला हो गया था। मन्दिर आधा डूब गया था।

ग्वारी घाट से आगे जमतरा घाट भी गए। वहां भी पानी मटमैला था। घाट के पास ही झोपड़िया में एक बाबाजी सो रहे थे। एक महिला एक मूर्ती सजाये बैठी थी। उसने बताया कि उसके बच्चे नहीं थे। आदमी खत्म होने के बाद 6 साल पहले उसने सन्यास ले लिया।

'नर्मदे हर' का जबाब 'नर्मदे हर' देते हुए ही हम लौट आये।

आज नए हफ्ते की शुरुआत है। आपके लिए हफ्ता शुभ हो। मंगलमय हो। जय हो।

Saturday, July 25, 2015

हम चेन ढीली रखते हैं

अनूप शुक्ल की फ़ोटो.चाय की दुकान पर तीन लोग सीमेंट की बेंच पर बैठे थे। एक लड़का सामने मोटरसाइकिल की सीट पर बैठा भाषण टाइप कुछ दे रहा था। हर वाक्य के शुरू और अंत में गालियों की गिरह लगाता जा रहा है। तीनों लोग मग लगाकर भाषण सुन रहे थे।

हम चाय लेकर तीन लोगों के बीच की खाली जगह में धँस गए। बैठने के दौरान हुए व्यवधान के चलते लड़के का भाषण कुछ रुका। लेकिन कुछ देर में ही फिर शुरू हो गया। चाय खत्म करके वह निकल अपने एक साथी के साथ लिया। अब बेंच पर हमारे अलावा दो लोग और बचे।

साथ बैठे बुजुर्ग बड़ी तन्मयता से बीड़ी फूंक रहे थे।आँख मूंदकर बीड़ी पीता हुआ आदमी दुनिया का सबसे सन्तुष्ट इंसान लगता है। रेडियो पर गाना बज रहा था- 'ऐसी शक्ति हमें देना दाता।' बुजुर्ग गाने को रेडियो के साथ दोहराने लगे।तन्मयता से गाते हुए देखकर लगा यह गाना उनका फेवरिट गाना है।

गाना पूरा होने के बाद उन्होंने बीड़ी पीने का अधूरा काम फिर पूरा करना शुरू किया। कई दांत गायब होने के चलते मुंह पोपला ही कहा जायेगा। बीड़ी का धुंआ टूटे दांतों के बीच से फरार होकर हवा में विलीन हो जा रहा था। ठीक वैसे ही जैसे किसी सीमा पार करके घुसपैठिये देश की जनता में दूध में पानी की तरह घुलमिल जाएँ या फिर किसी व्यवस्था में कहिलों, कामचोरों और भृष्ट लोगों की तरह एकमेक हो जाएँ।

बुजुर्गवार हाथ में घड़ी पहने थे।ढीली पीली चेन देश की क़ानून व्यवस्था की तरह लग रही थी। इधर-उधर घूमती। हमने ध्यान दिलाया तो बोले-हम चेन ढीली रखते हैं। आराम रहता था। कानून व्यवस्था भी शायद आराम के ही लिए ढीली रखी जाती हो।

क्रासिंग बन्द थी। हमने शरीफ आदमी की तरह क्रासिंग के खुलने का इन्तजार किया। बगल में एक साइकिल वाला खड़ा था। उसका अगला पहिया पंचर था। बताया-पंचर हो गया। पंचर साइकिल चलाते हुए ही ड्यूटी की जगह से यहां तक आ गए। एक जगह रात की चौकीदारी का काम करता है।

हमने कहा-ऐसे तो ट्यूब पूरा खराब हो जायेगा। रिम भी टेढ़ा हो जायेगा। पंचर बनवा लो। आगे दुकान है।

वो बोला-पैसे नहीं हैं पंचर बनवाने के।

हमने कहा-बनवा लो। बाद में दे देना।

वह बोला-अच्छा देखते हैं।शायद मान जाए।

आगे निकलकर साइकिल की दूकान पर उसका इंतजार करते हुए साइकिल वाले से बतियाते रहे कि वह आये तो साइकिल वाले से कहकर उसका पंचर बनवा दें। साइकिल वाले के पास हमारे 8 रूपये बकाया भी हैं। हिसाब बराबर हो जाएगा।

लेकिन काफी इन्तजार के बाद भी वह आया नहीं। शायद किसी गली से निकलकर चला गया।पैदल गया होगा या चलाते हुए कह नहीं सकते।

बस स्टैंड पर एक लड़का पैर स्टैंड की ग्रिल में फंसाये अपने पूरे शरीर को सी सा की तरह घुमाते हुए कसरत कर रहा था।

पुलिया पर एक बच्चा बैठ योग कर रहा था। बगल की पुलिया पर फैक्ट्री में काम करने वाली महिला हूटर बजने का इन्तजार कर रही थी। पति की जगह नौकरी पायी महिलायें रोज समय से पहले आकर पुलिया पर बैठ जाती हैं। समय होने पर अंदर चली जाती हैं। फैक्ट्री में डाक बांटने और दफ्तरों में चाय-पानी पिलाने का काम करते हुए शाम को बाहर हो जाती हैं। इनके लिए जिंदगी का मतलब शायद यही होता हो:
सुबह होती है, शाम होती है
उम्र यूं ही तमाम होती है।
टीवी पर राजस्थान के बच्चों के प्रदर्शन की खबर आ रही है। उनके स्कूल में पढ़ाई के लिए मास्टर नहीं हैं। कोई बयान दे रहा है-हमको ध्वस्त व्यवस्था मिली है।हम इसे ठीक कर रहे हैं। आधी ठीक कर ली है। बाकी जल्दी ही कर लेंगे।

खबर को विज्ञापन ने धकिया कर बाहर कर दिया। इसके बाद 'फिट रहे इण्डिया' शुरू हो गया।

आप फिट रहिये। हम फूटते हैं दफ्तर को। आपका दिन शुभ हो।

Friday, July 24, 2015

फ़ड़फ़ड़ा के सूरज फ़िर से निकल पड़ा,
दिन शुरु हुआ पकड़े हुये एक खड़खड़ा।
किरणें निकल पड़ी हैं खिलखिलाते हुये,
अंधेरा हुआ गोल, रात का तंबू उखड़ा।
भौंरे ने कली को आहिस्ते से चूम सा लिया,
फ़ूल इंतजार कर रहा उसका खिला-खड़ा।

-कट्टा कानपुरी

Thursday, July 23, 2015

कहीं तो मिलेंगे तो पूछेंगे हाल

सुबह निकलते हुए 6 बज गए। सूरज भाई दिखे नहीं। लेकिन उनके बच्चे उजाला और रौशनी पूरी कायनात में फैले हुए थे। हमने इंतजार नहीं किया सूरज भाई का यह सोचते हुए कि कहीं तो मिलेंगे तो पूछेंगे हाल।

शोभापुर रेलवे क्रासिंग खुली थी।हमने उस खम्भे का फ़ोटो लिया जिसमें सीएफएल ट्रेनिंग का पोस्टर चिपका था। प्रतिदिन एक घण्टा मात्र 15 दिन में।घर बैठे रोजगार। अनुश्री वॉच मेन रोड गोकलपुर। मोबाईल 9926870140 । Masijeevi की सूचना के लिए यह जानकारी। अगली बार जब पाठशाला बन्द हो तो जबलपुर आकर ट्रेनिंग लेने का विचार करें।रहने के लिए कमरे और घूमने के लिए साइकिल का इंतजाम हम कर देंगे।

क्रासिंग पार करके पुल के नीचे लोगों के चूल्हे सुलग चुके थे। लोग खाना बना रहे थे। आगे दीपा सड़क किनारे एक अल्युमिनियम के कटोरे में पानी रखे मुंह धो रही थी। उसने पूछा -कितने बज गए? हमने कहा- तुम बताओ।तुमको तो अंदाज रहता है कितने बज गए। उसने बताया- छह बजते होंगे। उस समय 6 बजकर 8 मिनट हुए थे।

बोली सात बजे तक तैयार होकर स्कूल जायेगी। स्कूल आठ बजे का है। मुंह धोकर बचे हुए पानी से उसने कटोरा साफ़ किया और अपनी कुठरिया में चली गयी।


चाय की दूकान पर लोग चाय पीते हुए बहस कर रहे थे। बातचीत को रोचक बनाने के लिए गालियों के तड़के लग रहे थे। बात दूध की कीमत से शुरू हुई। एक ने कहा- दाम एक बार बढ़ गए तो फिर कम नहीं होते। अगले ने सरकार के मुखिया का नाम लेते हुए माँ की गाली से शुरुआत करते हुए कहा- जबसे सरकार आई है तबसे हर चीज में मंहगाई बढ़ी है। बुजुर्ग माँ की गाली की देखभाल करने के लिए दूसरे ने बहन की गाली को भी साथ कर दिया।

चाय की दूकान पर हुई यह बातचीत अगर फेसबुक पर होती तो फेसबुक का माहौल इतना गरम हो जाता कि दस बीच चाय उसी में खौल जातीं।

स्त्री-पुरुष सम्बन्ध ऐसी जगहों के प्रमुख विषय होते हैं। लब्बो-लुआबन यह कि साईकिल चलाने से आदमी हमेशा जवान बना रहता है। हमेशा मजे का मन बना रहता है। खून का दौड़ा ठीक रहता है। मतलब कि हर बीमारी का इलाज साइकिल। एक ने तो साइकिल चलाने से बुढ़ापे तक यौन शक्ति बने रहने की बात इतने कांफिडेंस से बताई कि लगा अगर साइकिल का अविष्कार करने वाले मैकमिलन ययाति के पहले पैदा हुए होते तो ययाति को अपनी अतृप्त इच्छाएं पूरी करने के लिए अपने पुत्र से जवानी उधार न मांगनी पड़ती। साइकिल चलाकर ही उनका काम बन जाता।

चाय की दूकान पर चाय पीती हुई महिला से मजाक करते हुए एक ने कहा- ये दिखने में भले बुढ़िया लगे लेकिन करन्ट बहुत तेज है। महिला ने सुनकर उसको भी नहले पर दहला टाइप कुछ कहा। फिर किसी बात पर बोली-हमको चीटिंग पसन्द नहीं। हम साफ बात करते हैं।


आगे विरसा मुंडा चौक पर राजू टी स्टाल पर उसकी पत्नी भी साथ थी। हमने उसकी चोट के बारे में पूछा।चोट दिखाई उसने।घुटने के पीछे चोट का निशान बना हुआ था। बताया-पानी लेने गए थे। फिसल गए। लोहा लग गया। टांके लगे। अब ठीक है। दर्द कम है।

चौराहे पर कुछ लोग बैठे बतिया रहे थे। एक पण्डितजी टाइप बुजुर्ग लोगों को थैली से निकालकर चुनही तम्बाकू बाँट रहे थे। चैतन्य चूर्ण। पता चला 2008 में जीसीएफ से रिटायर्ड हैं। पंडिताई करते हैं अभी। तम्बाकू खाते हुए वहीं बगल में पिच्च से थूक दिए। हमने टोंका तो बोले-अभी पानी बरसेगा। साफ हो जायेगा।

चौराहे पर कई युवा हॉकर साइकिल पर अखबार लादे अखबार बांटने के पहले चाय पीने के लिए रुके थे। हरेक के पास 150 से 180 तक अखबार थे।एक अखबार बांटने के 90 पैसे मिलते हैं मतलब 27 रूपये महीना एक घर को अखबार देने से अखबार वाले को मिलते हैं। 150 से 200 अख़बार देकर 4 से 5 हजार मिलते होंगे हॉकर को।
दो तीन घण्टे में बंट जाते हैं अख़बार। जिनको देर से मिलता है वो टोंकते नहीं? एक अख़बार वाले से यह पूछा तो बोला- नहीँ। आदत हो जाती है फिर नहीं टोंकते।

आदत हो जाने पर न टोकने की बात से हमको श्रीलाल शुक्ल जी बात याद आ गयी। एक सवाल के जबाब में उन्होंने कहा था- हम भारतीयों को अभाव और अमानवीय स्थितियों किसी भी तरह जी लेने की जैसी आदत पड़ गयी है सदियों से उसको देखते हुए निकट भविष्य में मुझे कोई बड़े बेहतर बदलाव की उम्मीद नजर नहीं आती ।
आम तौर पर विरसा मुंडा चौक से फिर आगे व्हीकल मोड़ से रिछाई होते हुए लौटते हैं।लेकिन आज विरसा मुंडा चौक से वापस लौट लिए। दीपा मिलेगी यह सोचते हुए छोटा बिस्कुट का पैकेट ले लिया उसके लिए।


बच्ची नहाकर तैयार हो गई थी। पूछा- बताओ क्या बजा होगा अब? उसने - बताया 7 बजे होंगे। संयोग कि सात ही बजे थे। बिस्कुट का पैकेट लेकर थैंक्यू बोला उसने। उसकी फोटो खींची तो कुत्ता भी आ गया साथ में। बोली -इसको भी खिलाएंगे। फोटो देखकर खुश हुई । फिर बोली-पापा की फोटो नहीं आई इसमें।

लौटते हुए हम सोच रहे थे कि जाने-अनजाने बच्ची से लगाव के चलते हम आगे चक्कर मारकर जाने के बदले उससे फिर मिलने के लिए वापस लौट आये। महादेवी वर्मा जी की कविता पंक्तियाँ याद आ गयीं:

बाँध लेंगे क्या तुझे ये मोम के बन्धन सजीले
पन्थ की बाधा बनेंगे, तितलियों के पर रंगीले।
तू न अपनी छांह को अपने लिए कारा बनाना
जाग तुझको दूर जाना।
दूर जाने की बात से याद आ गया कि अपन को तो दफ्तर जाना है। चलते हैं फटाक देना अब। आप भी निकलो। मजे से रहना। मुस्कराते हुए। ठीक ?

Wednesday, July 22, 2015

सबसे बड़ा गुंडा तो ऊपर वाला है

आज मेस से बाहर निकलते ही सूरज भाई दिख गए। हाल में ही शपथ ग्रहण की सरकार के मुखिया की तरह चमक रहे थे। अगल-बगल किरणें उनके गले में बाहें डाले, गोद में ठुनकती बैठी रश्मियों के साथ सूरज भाई ऐसे लग रहे थे मानों बच्चियों के साथ सेल्फी ले रहें हों।

सूरज भाई को देखकर याद आया कि बहुत दिन से इंद्रधनुष नहीं दिखा। हमने पूछा तो बोले-इंद्रधनुष के लिए बादल को बूंदे सप्लाई करनी होती हैं। जब बादल बूंदे बिखरा देता है तो हमारी किरणें उन पर चमकने लगती हैं। जब बूंदों की सप्लाई ही नहीं करेगा बादल तो कहां जाकर चमकने लगें हमारी किरणें।

कुल मिलाकर मामला अलग अलग दलों वाली केन्द्र सरकार और राज्य सरकार की खींचतान सा लगा। फिर भी हमने पूंछा कि आप अपनी किरणों को कह दीजिए वे चमकने लगे। बादल खुद भेजेगा बूंदों को किरणों के पास।
सूरज भाई ऐसे मुस्काये गोया हमने कोई ज्ञान की बात कह दी। फिर बोले-"बादल को आजकल आवारगी सूझती रहती है। कहीं तो इतना जमकर बरसेगा कि उज्जैन बना देगा। कहीं बिल्कुल सप्लाई रोककर गर्मी का माहौल बना देगा। बादल मनचला है।उसका क्या ठिकाना कब कहां बरसेगा।ऐसे में कहां भेज दें बच्चियों को अकेले भटकने के लिए। आजकल जमाना भी ठीक नहीं।" कहते हुए सूरज भाई बादलों की ओट में चले गए।

मेरे आगे घुटन्ना पहने टहलते आदमी का मोजा क़ानून व्यवस्था की तरह ढीला होकर जूते से सट गया था। सामने से एक आदमी ऐसे चला आ रहा था मानो सड़क के रैंप पर कैट वाक कर रहा हो। बस कमी इतनी ही थी कि बीच-बीच में रुकते हुए लापरवाही से मुस्कान नहीं फेंक रहा था।

एक भाई जी एक हाथ में कुत्ते की जंजीर थामे चले जा रहे थे। सामने से आते दूसरे साथी को देखकर बायें हाथ में थामी लकड़ी को झंडे की तरह उठाते हुए इंकलाबी मुद्रा में नमस्ते किये। दायां हाथ जंजीर थामे रहा या कहें की दायें हाथ में जंजीर थी इसलिए वह वैसे ही बना रहा।इससे यह लगा कि झंडे और जंजीर हाथों को अपने हिसाब से ढाल लेते हैं।

रांझी सड़क पर गिरि जी का बच्चा मिला। सुबह दौड़ का अभ्यास करके आया था। कोहिमा में बीएसएफ का इम्तहान है।5 दिन लगेंगे। देश के मध्य भाग से पूरी सिरे तक पहुंचने में 5 दिन लगते हैं। इससे देश की विशालता और गाड़ियों की गति का अंदाजा लगाया जा सकता है।

चाय आज रांझी थाने के पास मिश्रा जी के यहां पी। रीवां जाने वाले हैं अगले हफ्ते मिश्रा जी।

एक पुलिस वाले भाई जी फटफटिया पर आये। उनका मध्यप्रदेश व्यापमं की तरह विस्तृत था।चाय पीते हुए बात हुई तो पता चला कि रात की ड्यूटी बजा के आये हैं। थाने से एक सिपाही को भी बुला लिया प्रेम से -आओ चाय पी लो कहते हुए। उस सिपाही से बात करते हुए बताया-साला टी आई सनकी है।तीनों गस्ती सिपाहियों को बुलाकर बार-बार मुस्तैद रहने को बोलता है।

एक और गस्ती पुलिस वाला भी किसी के लिए माँ की गाली देते वार्तालाप में शामिल हो गया। आँखों में नींद की लाली धारण किये हुए सिपाही ने बताया कि रात 16 जुआरी पकड़े गए। सबकी कपड़े उतारकर तलाशी हुई। फिर पहले से 8 लोगों के साथ कुल 24 को एक कमरे में बन्द कर दिया। गर्मी और डर के मारे पसीने पसीने हो गए ....के।

युवा सिपाही ने मेरा ज्ञान बढ़ाते हुए बताया -अदालत और पुलिस में जमकर पैसा खर्च होगा जुआरियों का। कुछ अपराध ऐसे होते हैं जिनमें पुलिस केस दर्ज करके छोड़ देती है।कुछ में जमानत लेनी पड़ती है।

चाय पीकर पुलिस वाले ने चाय के पैसे दिए और फटफटिया स्टार्ट करके चला गया। हम भी साईकिल पर पैडल किक मारकर लौट लिए।

लौटते में देखा एक आदमी सड़क पर सीधे लेटा था। दूध वाले महेश ने बताया- पागल है। गरीब। लोग बताते हैं सालों पहले बहुत बड़ा गुंडा था। रांझी के दुकानदारों से वसूली करता था। लेकिन सबसे बड़ा गुंडा तो ऊपर वाला है। उसके आगे किसी की गुंडई नहीं चलती। जैसा करेगा कोई वैसा ही फल देर सबेर मिलता है उसको। आज हाल यह है कि कोई दे देता है कुछ तो खा लेता है। ऐसे ही इधर-उधर पड़ा रहता है। आठेक साल से तो हम देख रहे।
सड़क किनारे कूड़े के ढेर में छोटे सुअर गन्दगी में मुंह मारते घूम रहे थे।कल बड़े सूअर कूड़े फैला रहे थे।आज उनके बच्चों का कब्जा था गन्दगी के ढेर पर। राजनीति की तरह यहां भी परिवारवाद छाया हुआ था। एक छोटा सूअर तेजी से दो आगे जाते हुए सूअरों को पीछे छोड़ता हुआ आगे निकल गया। ऐसा लगा कि..... अब छोड़िये आप खुद समझ लीजिये कैसा लगा होगा।

अख़बार में खबर आई है कि स्मार्ट सिटी के चुनाव में भोपाल और इंदौर के बाद जबलपुर तीसरे नम्बर पर रहा है। हम यही सोच रहे हैं कि जबलपुर जब स्मार्ट सिटी बनेगा तो गन्दगी के आंगन में किलकते घूमते इन अबोध सूअरों का क्या होगा? ये साथ रहेंगे रहेंगे स्मार्ट जबलपुर में या फिर कुछ दिन के लिए इधर-उधर हो लेंगे।
खैर जबलपुर तो जब स्मार्ट होगा तब होगा। अभी तो अपन को तैयार होना है दफ्तर के लिए।आप भी मजे करिये।

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