Wednesday, August 12, 2015

’सूजन’ में दर्द का होना जरूरी है

हम जब बीएचयू में उच्च शिक्षा रत थे तो साथी थे बलिया जिले के यादव जी। कविताओं से सहज लगाव होने के चलते हम अक्सर कविता गाते/ गुनगुनाते रहते थे। एक दिन यादव जी ने हमसे कहा -तुम मुझे कुछ अपनी पसंदीदा कवितायें सुनाओ। लिखाओ। हम भी याद करेंगे।

हमने उनको नन्दन जी की यह कविता उनको सुनाई:
अजब सी छटपटाहट
घुटन, कसकन
है असह पीड़ा।
समझ लो साधना की अवधि पूरी है।

अरे ,
घबरा न मन
चुपचाप सहता जा
सृजन में दर्द का होना जरूरी है।
यादव जी ने याद करके कविता कुछ दिन बाद हमको इस तरह सुनाई:

अजब सी छटपटाहट
घुटन, कसकन
है असह पीड़ा।
समझ लो साधना की अवधि पूरी है।
अरे ,
घबरा न मन
चुपचाप सहता जा
’सूजन’ में दर्द का होना जरूरी है।
मुझे लगा कि आम आदमी के पास पहुंचकर कविता कितनी सहजऔर सटीक हो गयी। ’सृजन’ में दर्द हो या न हो कहा नहीं सकता लेकिन’ ’सूजन’ में दर्द से कोई माई का लाल इंकार नहीं कर सकता।

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