Friday, August 14, 2015

जहां सोच वहां शौचालय

आज मेस से निकलते ही ये भाई जी मिले। नाम किशोरी लाल रजक। रहवैया जिला पन्ना।

साईकिल पर बेचने निकले सामान को कोई बुढ़िया के बाल कहता है कोई कुछ और। बुढ़िया के बाल तो सफेद होते हैं लेकिन यहाँ तो गुलाबी हैं।

साईकिल में 100 पैकेट बुढ़िया के बाल हैं। एक की कीमत 5 रुपया। शक्कर का आइटम। रंग मिलाकर बनता है। एक बेचने पर 2 रुपया कमा लेते हैं किशोरी लाल।

दो बच्चे हैं किशोरी लाल के। बड़ा ड्राइवरी कर रहा। छोटा हाईस्कूल में पढ़ रहा। पत्नी घर में। मढ़ई में रहते हैं।
साइकिल कित्ती पुरानी है पूछने पर पच्चीस साल पुरानी है। बोले– शादी में मिली थी। शादी की साईकिल अभी तक चल रही है। उम्र पूछने पर बोले–चालीस पैंतालीस साल। कुछ पक्का नहीं। क्या जरूरत भी पता करने की। कौन इनको मुकदमा लड़ना है किसी अदालत में। किसी बड़े पद पर होते तो साल भर के अंतर के लिए मथ देते कचहरी अपनी उम्र ठीक कराने के लिए।

पन्ना से जबलपुर आने कारण बताये कि पत्नी का एक पैर खराब है। विकलांग है। घुटने से नीचे खराब। गांव में लेट्रिन की समस्या होती थी इसलिए पत्नी को जबलपुर लाये। गांव में संयुक्त परिवार और लेट्रिन की समस्या के चलते पत्नी को समस्या होती थी।

मतलब 'जहां सोच वहां शौचालय' के नारे के बहुत पहले से लोग शौचालय की जरूरत महसूस कर रहे हैं। यह अलग बात कि उसके लिए आदमी को पन्ना से जबलपुर आना पड़ा। हो सकता है रोजगार भी कारण रहा हो लेकिन किशोरी लाल ने जबलपुर आने का कारण पत्नी का पैर खराब होना और पन्ना में शौचलय न होना ही बताया।



'जो पत्नी/बच्चों से करे प्यार /वो घर में शौचालय से कैसे करे इंकार' नारा सोच/शौचालय वाले नारे से बेहतर नारा हो सकता है न।

अभी बुढ़िया के बाल बेचते किशोरी गर्मी में कुल्फी बेचते हैं। इसके पहले कभी ठेकेदारी भी करते थे।
हमने भी एक पैकेट बुढ़िया के बाल लिए। एक पैकेट में दो गोले। अभी तक खाया नहीं। आपके साथ खाएंगे। एक आप लो एक हम। बताइये भी कैसा लगा?

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