Tuesday, August 18, 2015

चढ़ावे की सुगन्ध नाले की दुर्गन्ध खतम कर देती है

सुबह पानी बहुत हल्का बरस रहा था।रिमझिम से भी हल्की बौछार।मेस में बच्चे से पालिथीन माँगा।उसने जेब से निकालकर दे दिया। उसमें मोबाईल लपेटकर निकल लिए।

लोग छाते लेकर टहल रहे थे। हम रामफल के घर की तरफ निकले। हनुमान मन्दिर के बाहर चार महिलाएं उनको सर नवा कर पूजा कर रही थीं। सामने नाले में भयंकर बदबू करता पानी बह रहा था। हल्का झाग और हरा सा रंग। वहीं सड़क पर दो हमउम्र सूअर के बच्चे टहलते दिखे। पता नहीं भाई थे या दोस्त लेकिन शक्ल मिल रही थी।

हनुमान जी सबसे पॉपुलर देवता हैं। लेकिन देखकर बड़ा खराब लगा कि जो देवता दिन रात अपने सामने बहती दुर्गन्ध रोकने का इंतजाम नहीं कर सकता वह भक्तों के कष्ट क्या दूर करेगा। यह भी
हो सकता है कि उनको दुर्गन्ध अखरती न हो। चढ़ावे की सुगन्ध नाले की दुर्गन्ध खतम कर देती है।

इसी क्रम में कमाई के सम्बन्ध में यह डायलाग याद आ गया-यहां कमाई बहुत है। बस पैसा नाली में पड़ा है और मुंह से उठाना है। यह भी लगा कि ये जो तमाम घपले-घोटाले होते हैं उनके करगुजरिये नाली का पैसा मुंह से उठाने में सिद्ध होते हैं।

रामफल की पत्नी घर के बाहर बैठी थी। सांस, शुगर और बीपी की तकलीफ से हलकान। उनका लड़का सन्तोष फैक्ट्री में काम करता है। प्राइवेट लैबरी। रोज काम नहीं मिलता। फैक्ट्री में जितनी संख्या में लेबर मांगे जाते हैं उससे कम होने पर भारी पेनाल्टी है।इस चक्कर में ठेकेदार ज्यादा लोगों को रोल में रखता है ताकि कभी कमी न हो जाये लेबरों की। बदल-बदलकर काम पर भेजता है।


यह जो ठेकेदारी की प्रथा है इसने एक ही काम करते आदमी को दो तबकों में बाँट दिया है।प्राइवेट काम करने वाले को समान काम के लिए फैक्ट्री के कामगार का दसवां हिस्सा के बराबर पैसा मिलता है।मतलब काम और वेतन के मामले में सब आदमी बराबर होते हैं लेकिन कुछ ज्यादा बराबर होते हैं।

गुड्डू के बारे में पता । फल का ठेला लगा रहे हैं लेकिन रामफल जैसा अनुभव और लगन नहीं है। उनको पता नहीं कि कब कौन सा फल लाना है। कैसे खराब होने से पहले उसको निकालना है। यह सन्तोष ने बताया जो कि गुड्डू के भाई हैं। गुड्डू 7 बजे सोकर उठते हैं।

आगे कुछ लोग सड़क पर गाते बजाते पेड़ के नीचे जा खड़े हुए। कन्हैया के भजन गा रहे थे। जिस पेड़ के नीचे खड़े थे वह खेरे माई का मन्दिर है। ये लोग रोज इसी तरह टहलते हुए भजन गाते हुए सुबह की सैर करते हैं।

विरसा मुंडा चौराहे पर चाय की दुकान पर चाय पी।राजू की पत्नी की चोट अब ठीक है। एक ऑटो के अंदर बच्चे के साथ बैठी एक महिला चाय पी रही थी। ऑटो वाले ने मसाले की पुड़िया फाड़कर उसको मसाला भी खिलाया। टोकने पर बोला-आदत पड़ गयी है।पता चला कि महिला ऑटो ड्राइवर की भाभी हैं। साथ में बच्चे को लेकर रोज सुबह घुमाते हैं।वीआईपी सवारी हैं।

बरसात रिमझिम होने लगी।एक अख़बार वाला हॉकर अख़बारों को सहलाते हुए पालीथीन न लेकर आने का अफ़सोस किया। बच्चा बीएससी में पढ़ता है।वीरेंद्र नाम है। स्कूल कभी कभी जाता है।साथ के बच्चे ने उसके बारे में बताते हुए कहा-ये भविष्य के अब्दुल कलाम हैं। उसने कहा-हम उनके जैसे कहां।अब्दुल कलाम जैसी शिद्दत से मेहनत करने वाले लोग कितने होते हैं।


साथ का बच्चा भी अख़बार बेचता है। शिवम नाम है। हाईस्कूल में एक साल ड्राप किया तो एक साल पिछड़ गया। दोनों ने एक-दूसरे के लिए अपनापे का इजहार करते हुए एक-दूसरे की तारीफ की। वीरेंद्र ने शिवम को छोटा भाई सरीखा बताते हुए उसकी फोटो देखकर कहा-एकदम हीरो लग रहा है तू तो।

आगे एक कोचिंग में बच्चे अपनी बारी का इंतजार कर रहे थे। कुछ बच्चियां शायद ट्यूशन पढ़कर निकल रहीं थीं साईकिल पर। पता चला बच्चे 11 वीं में पढ़ते हैं। ट्यूशन किसी कम्पटीशन के लिए नहीं 11 वीं के लिए आये हैं। मुझे लगा जिस समाज में 11वीं ने पास होने के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ना पड़े उससे वाहियात शिक्षा व्यवस्था और क्या हो सकती है। फिर अनायास श्रीलाल शुक्ल याद आ गए।उन्होंने लिखा है-'हमारे देश की शिक्षा नीति रास्ते में पड़ी कुतिया है जिसे देखो इसे लात लगा देता है।'

एक जगह साइकिल में हवा भरवाये। मुन्ना सिंह राठौर 1970 में नरसिंहपुर से जबलपुर आये। कुछ साल दूध का काम किये। फिर साइकिल का काम।दो बेटे प्राइवेट काम करते हैं। बच्ची की शादी कर दी। दामाद भी प्राइवेट काम करता है।150 से 200 रोज कमा लेते हैं साइकिल की दुकान से मुन्ना।


दूकान पर एक स्टूल दिखा। 'रोमर' के गियर को वेल्डकरके बनाया गया स्टूल।मुझे तक पता भी नहीं था कि कोई रोमर साइकिल भी आती है। सुबह से 11 बजे तक दुकान के बाद घर जाते हैं मुन्ना। फिर शाम को 5 बजे दुबारा आते हैं दूकान पर।

पुल के नीचे दीपा मिली। पाउडर मन्जन करते हुई।सर के बाल उलझे हुए। बोली-आपने जो फोटो लगाई मेरी वो मुझे भैया ने दिखाई थी। पता लगा कि हमारे यहां के एक सप्लायर ने उसकी साल भर की फ़ीस जमा करके और उसके लिए ड्रेस खरीद कर दी है। सुरक्षा के लिहाज से पापा के आने तक अपने कम्पाउंड से बाहर न जाने की हिदायत के साथ।उन्होंने ही दीपा को फेसबुक पर उसको फोटो दिखाई । मैंने दीपा से कहा -तुम्हारी सारी फोटो तुमको हम बनवा कर देंगे।

मेरे देखते-देखते दीपा ने बाल्टी के पानी से नहाया। बाकी बचे पानी में कपड़ा भिगोकर निचोड़ा।वहीं फैलाया।फिर फोटो देखते हुए कविता सुनाई:
"धम्मक धम्मक करते आया हाथी"
उसका स्कूल है आठ बजे से। वह तैयार होने चली गयी। हम भी चले आगे।

रेलवे क्रासिंग पर स्कूल ड्रेस में तीन बच्चियां एक मोबाईल पर कुछ देखती हुई बात कर रहीं थीं।

आगे सड़क किनारे एक बुजुर्ग एक हाथ में छाता पकड़े दूसरे हाथ की सहायता से गीली धरती को और गीला कर रहे थे। धार देखकर अनायास 35 साल पहले गणित में पढ़ाई के दौरान पढ़ा गया पैराबोला का सूत्र याद आ गया- y2=4 ax .बुजुर्गवार की धार आधा पैराबोला बना रही थी। हृदयेश जी के उपन्यास की याद भी आई जिसमें चार बुजुर्गों की जिंदगी की दास्तान है। उनमें से एक अपनी पैंट गीली हो जाने से अक्सर परेशान रहता है।
पुलिया पर फैक्ट्री की दोनों महिलायें आ चुकी थी। हूटर बजने का इंतजार करते हुए बैठी थीं।

लौटकर पालीथीन हमने मेस में कमलेश को लौटा दिया।उसके पास भी तो मोबाइल है।उसकी भी सुरक्षा जरूरी हैं।

दिन शुरू हो गया। आपको मुबारक हो।

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