Tuesday, September 22, 2015

भाई तुम्हारा लोटा किधर गया?

दिल्ली अभी ऊंघ ही रही थी जब हम उसको बाय कहकर निकल लिए। जब आँख मलते हुए उठेगी दिल्ली तब हम जमीन से हजारों मीटर ऊपर सूरज भाई से बात कर रहे होंगे। राजधानी से संस्कारधानी का सफर शुरू।

स्पाइसजेट का बोर्डिग पास बनवाने के लिए लाइन में लगने को हुए तो स्टाफ ने पूछा -प्रियारिटी चेकइन करवाना है ? मतलब पहले बोर्डिंग पास। फीस 1000 रूपये। टिकट 6000 की। बोर्डिंग पास पहले बनवाने के 1000 रूपये। 5 मिनट लगे साधारण चेकइन के। पांच मिनट का इन्तजार कम करवाने के 1000 रूपये।

के। क्या पता जबलपुर पहुँचने तक जहाज से निकलने के 1000 रूपये धराने लगे यह कहते हुए कि अभी लागू हुई योजना।
आगे 500 रूपये ख़ास सीट

बैठने के जगह नहीं। लोग सीढ़ियों में बैठे हैं प्लेन के इन्तजार में। लोग जमीन पर भी बैठे हैं। एक यात्री निपटान मुद्रा में ऐसे बैठा है कि पूछने का मन हुआ -भाई तुम्हारा लोटा किधर गया?

सेवायें हर तरह से आम आदमी के हिसाब से सस्ती होती जा रही हैं।

जहाज में चढ़ते हुए देखा सूरज भाई मुस्कराते हुये गुड मार्निंग कर रहे हैं। कह रहे हैं साथ चलेंगे। हम भी गुडमार्निंग कह रहे हैं। साथ में यह भी:
मुस्कराओ
खिले रहो हमेशा
जैसे खिलते हैं घाटियों में फूल
बगीचे में फूलों पर इतराती हैं तितलियाँ
और मुस्कराती है कायनात सूरज की किरणों के साथ।

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