Monday, October 05, 2015

कटनी स्टेशन पर यात्री
सबेरा हुआ। 5 बज गए। अलार्म बजा। घर फोन किया। घरैतिन को जगाना है। घण्टी पूरी बजी। उठा नहीं फोन। लगता है वह पहले से ही जग गयी है। घर में थे तब कहती भी थीं-'इस समय तक हम नहा धोकर पूजा कर लेते हैं। आज तुम्हारे चक्कर में अभी तक उठे ही नहीं।'

ट्रेन में अभी लोग सोये हुए हैं। कम्बल ओढ़े हुए। सबको सोते देख लगता है मानो सब सोने के लिए ही आते हैं ट्रेन में। रात भर सोये, सुबह उतर लिए।

नेट चालू है मोबाईल पर। जगहर हो गयी है सोशल साइट्स पर। व्हाट्सएप पर नियमित वाले शुभकामना सन्देश आने लगे हैं। ग्रुप वाले व्हाट्सएप पर कोई हांक लगाता है-अब जग भी जाओ सब लोग। सबेरा हो गया।
फेसबुक का एक बच्चा दोस्त जो रात को कहाँ तक पहुँचे कहने के बाद गुडनाइट अंकल कहकर सो गया था अब गुडमार्निंग कहते हुए पूछ रहा है-कहाँ तक पहुँचे। हम सोचते हैं अभी जबाब देंगे। वह शायद मेरे जबाब का इन्तजार कर रहा हो। हमारा 'हेल्लो सन्देश' सहेली द्वारा रात 8 बजे देखा बता रहा है। पर उसका कोई जबाब नहीं आया है। हाय कितना ख़राब बात है। कोई हमारे सन्देश के इंतजार में है। हमें किसी और के जबाब का इन्तजार है।

हमारे कालेज में हमारे एक जूनियर मित्र था। उनके पापा कालेज में ही काम करते थे। कालोनी में ही रहते थे।हम हॉस्टल में रहते थे। हमसे काफी लगाव था उनको। भावुक टाइप थे। हम समझ नहीँ पाये इस बात को। 19/20 साल के बच्चे ही तो थे । एक दिन तिलक और पटेल हॉस्टल की सड़क पीछे की सड़क पर क्रासिंग की तरफ साथ जाते हुए इस बात की शिकायत की उसने हमसे कि हम उनके साथ उतना नहीं रहते जितना और दोस्तों के साथ रहते थे।

मुझे अचानक की गई अधिकार पूर्वक शिकायत का कोई जबाब नहीँ सूझा। हम ऐसे ही अपने सभी जूनियर-सीनियर मित्रों से घुलते-मिलते रहते थे। लेकिन किसी को इस बात की शिकायत कि मैं उसके साथ उतना नहीँ बात करता/रहता हूँ यह मेरे लिए पहला अनुभव था। मैंने जो जबाब दिया उस समय उसका भाव कुछ यों था--ऐसा होता है। जब हम किसी के साथ रहना चाहते हैं तब शायद वह किसी और के साथ रहने की सोच रहा होता है। अक्सर एक दूसरे को पता भी नहीँ चलता कि ऐसा कुछ है। तुमने बताया यह अच्छा किया। हम कोशिश करेंगे कि तुम्हारी शिकायत कम कर सकें।


आज वह मित्र कहाँ है मुझे पता भी नहीं। पर आज पता करूँगा। पूछूँगा कि क्या उसको मेरी याद भी है जिससे उसको कभी यह शिकायत थी कि मैं उसके साथ समय नहीँ बिताता।

ट्रेन पटरी पर भागती चली जा रही है। लगता है तेज भागती है फिर ठिठक जाती है। जैसे कोई पतंग उड़ाता हुए ढील देता है पतंग आगे भागती जाती है। फिर कम ढील देता है तो पतंग डोर कुछ कड़ी हो जाती है कुछ उसी तरह चल रही है ट्रेन।

कटनी स्टेशन पर रुकी गाड़ी। नीचे उतरे चाय पीने। प्लेटफार्म पर लोग तमाम लोग चद्दर ओढ़े सोये थे। मानो रेलवे प्लेटफार्म बहुत बड़ा कमरा है जहाँ कोई सोया है। कोई बैठा है। कोई कुछ कर रहा है। कोई कुछ। एक बाबा जी शायद अपनी भक्तिन महिला के साथ इधर-उधर निहार रहे थे। महिला की आँख में काला चश्मा था। ट्रेन चल दी वर्ना पूछते -आँख का आपरेशन कराया है क्या?

गाड़ी में अब जगहर हो गयी है। एक सज्जन के मोबाइल में गाना बज रहा है:

मुरली वाले मुरली बजा।


कुछ देर बाद अगला गाना बजने लगा:

पी के घर आज प्यारी दुल्हनिया चली
रोएँ माता पिता कि आज उनकी बिटिया चली।



इस बीच घरैतिन की मिस्ड काल आई (बताओ मिसेज भी मिस काल मारती हैं ) फोन किया तो लगा नहीं। कवरेज एरिया के बाहर। उनके ऑटो वाले को फोन किया तो बात कराई उसने। बोली -हाँ, स्कूल जा रहे हैं।
इस बीच अगला गाना बजने लगा:
अपलम-चपलम..........


गाना आगे बढे इसके पहले उनका फोन आ गया। उन्होंने जबाब दिया-गाड़ी सीहोरा क्रास कर गयी। हमारे ड्राइवर का भी फोन आया हमने भी यही कहा। उसने बताया कि वह एक नंबर की तरफ खड़ा है।

बगल की बर्थ की युवा लड़की ने अपने बाल ठीक किये। जीनस टॉप सहेजा और उतरने के लिए तैयार हो गयी। फोन आया तो बोला-अरे मम्मी एक ही तो डिब्बा है थर्ड एसी।

गाड़ी आधारताल पर खड़ी है। शायद प्लेटफार्म खाली न हुआ हो अब तक।

बगल में बैठी महिलाएं आपस में किसी सत्संग में जाने और वहां अच्छा लगने की बात कर रही हैं। फिर बात कपड़ों की तरफ मुड़ गयी। एक ने कहा-'उस दुकान पर 1100 / 1200 में अच्छे सूट मिल जाते हैं।' एक ने अपनी बच्चियों को दी समझाइश का जिक्र किया- हमने बच्ची से कहा-' इकट्ठे नहीं लेना चाहिए कपडे। फैशन बदल जाता है।' कहने का मन हुआ कि कपड़े-लत्ते की बातें ही महिलाओं का सच्चा सत्संग है। पर कहा नहीं। क्या पता यह सच न हो।

इस बीच बगल की लड़की ने मोबाइल निकालकर एक पाँव तेजी से हिलाते हुए कुछ सर्फिंग शुरू की। फिर दोनों पैर हिलाते हुए टाइप करने लगी। कुछ देर बाद एक पैर के ऊपर दूसरा रखकर थोडा पीछे झुककर लोगों के स्टेटस देखने लगीं। कुछ देर बाद मोबाइल बंद करके रख लिया बैग में। बंद करते समय चट्ट की आवाज हुई। बन्द करते हुए दो पार्ट गर्म जोशी से मिले होंगे। भींचकर आलिंगन किया होगा। 'टाइट हग' नुमा कुछ। मन खुश हो गया होगा मिलकर उनका। क्या पता बांछे भी खिल गयीं हों।

दो दोस्तों के सन्देशों से शुरू हुई बात कहाँ तक खिंच गयी। इस चक्कर में तीसरे का जिक्र तो छूट ही गया। एक विदेशी महिला ने फेसबुक पर सन्देश देकर पूछा है- कैन वी बि फ्रेण्ड्स? इसके बाद उसने अपने हॉटमेल या याहू का आई डी नहीँ दिया है। अब बताओ हम क्या बताएं? अभी तो नेट भी नहीँ आ रहा।

जबलपुर आ गया है। गाड़ी आउटर पर खड़ी है।बाहर सूरज भाई का जलवा फैला हुआ है। कटनी में सूरज भाई की शुरू हुई सरकार ने जबलपुर आते-आते पूरे अन्धकार का संहार कर दिया। हर तरफ उजाला फैला दिया। सबेरा हो गया है।

नया हफ्ता शुरू हो गया। नया दिन। नया सबेरा। आपको नया दिन , नई सुबह मुबारक। दिन शुभ हो। मंगलमय हो।

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