Tuesday, October 06, 2015

हरेक बहाने तुमको याद करते रहते हैं

 
 

अख़बार पढ़ते अमरनाथ पाण्डेय
सुबह अलसाये पड़े काफी देर तक उन महिलाओं के बारे में सोचते रहे जो अपने बच्चों की सलामती के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। कइयों की तबियत भी गड़बड़ा गई होगी। अधिकाँश इस बात से सहमत होने के बावजूद व्रत रहती हैं कि इससे कुछ होता नहीं पर बच्चे की सलामती के लिए कुछ रह न जाए इसलिए करती हैं व्रत। हमारी श्रीमती जी कई सालों से शुक्रवार को व्रत रखती हैं। बच्चे की सलामती के लिए। अक्सर तबियत खराब होती है शुक्रवार को लेकिन व्रत नहीँ छूटता। कहती हैं छोड़ देंगे पर छोड़ नहीँ पाती। माँ की ममता महान। शानदार, जबरदस्त, जिंदाबाद।

सुबह जब हो ही गयी तो हम भी निकल लिए साइकिल स्टार्ट करके। सूरज भाई निकल आये थे। फूल चार्ज में चमक रहे थे। हमने मुस्कराकर नमस्ते किया तो काम के बहाने इधर-उधर देखते हुये हमको अनदेखा किया। जब किरणों ने चिल्लाकर हमको गुडमार्निंग किया तो सूरज भाई ने भी हेल्लो हल्ला बोला और पूछा-'जग गये?
हमरा मन तो किया कहें -'नहीं सोते में साइकिल चला रहे हैं'। पर कहा नहीं। यही कहा -'बड़े स्मार्ट लग रहे हो भाई जी आज'। इस पर सूरज भाई ने सुबह की बची हुई लालिमा अपने चेहरे पर धारण करके थोडा लजाते हुए धन्यवाद बोला। सूरज भाई को 'लाज लाल' होते देख हम उनको 'हाउ क्यूट' भी बोल दिए। फिर तो बेचारे इत्ते लजा गए कि बादलों की आड़ में जा छिपे।

हम यही सोचते हुए आगे बढ़ लिए कि तारीफ़ इंसान को कितना नरम और मुलायम कर देती है। खूबसूरत लगने लगता है आदमी तारीफ सुनकर।आप आजमा कर देख लीजिये। शुरुआत खुद से करिये। आईने में खुद को निहारिये। तारीफ़ कीजिये और देखिये अपनी बढ़ी हुई ख़ूबसूरती :)

एक लड़की स्कूल का बस्ता लादे सड़क पर चली जा रही थी। चलते-चलते वह किसी प्रश्न बैंक से पढ़ाई करती जा रही थी। हमारे जमाने में गैस पेपर का चलन फाइनल इम्तहान के समय था। अब सारी पढाई ही प्रश्न बैंक के चँगुल में आ गयी है।हमको अपने मित्र राजेश की कविता पंक्ति याद आई:

हमने, अपने प्रश्‍नों के उत्तर,
बस,राम-शलाका में ढूँढे।


 

क्या पता कल को किसी भी समस्या का हल खोजने के लिए रामशलाका प्रश्नावली को कानूनी मान्यता प्रदान हो जाये।

एक आदमी सड़क की बायीं तरफ खड़ा सूरज की तरफ पीठ किये बीड़ी सुलगा रहा था। शायद उसको डर होगा कि सुबह-सुबह बीड़ी पीते हुए सूरज भाई गुस्साने न लगें। पर यह तो मेरा सोचना है। क्या पता वह इसलिए सूरज की तरफ पीठ किये सुलगा रहा हो कि कहीं सूरज भाई मांग न लें-हमको भी लाओ यार एक ।

आगे एक बच्ची बच्चा साइकिल लिए सड़क किनारे खड़ी थी।हमने पूछा क्या पंचर हो गयी साइकिल तो वह उचक कर साइकिल चलाते हुये आगे बढ गयी। पैर मुश्किल से पहुंच रहे थे पर चला ले रही थी आराम से साइकिल। उसके चेहरे पर साइकिल चला लेने का आत्मविश्वास भी पसरा हुआ था।

जिस मैदान में शाखा लगती थी वहां आज एक आदमी मुंह में ब्रश घुसाये खरामा-खरामा दौड़ रहा था। उसकी गति टहलने से भी कम लग रही थी। पर चूँकि वह चलते हुए थोडा उचक भी रहा था तो इसे दौड़ना ही कहा जाएगा।


 
चाय की दुकान पर ड्राइवर पुड़िया में गांजा रगड़ रहा था। बोला अभी सुबह की खुराक लेंगे। फिर दोपहर फिर शाम और फिर रात। दिन में सिर्फ 4 बार लेते हैं। 10 रूपये का एक बार। मूड फ्रेश हो जाता है। हमने पूछा नुकसान भी तो करता होगा । बोला-हाँ,सांस फूलने लगती है। पर क्या करें-आदत पड़ गयी है। छुटती नहीं। हमने कहा-गांजा गुलाम हो गए तुम तो।

हंसते हुए बोला-क्या करें। सब्जी बेंची। दुकान लगाई तब नहीं पिया। लेकिन ड्राइवरी में आये तो उस्ताद बोले-बनाओ बेट्टा। तो हम भी पीने लगे। अब आदत पड़ गयी।

जब नहीं लेते तब क्या करते हो? इसका जबाब देते हुए बोला-'क्वार्टर लगा लेते हैं। सब ड्राइवर ऐसा ही करते हैं। लाइन ही ऐसी है यह ड्राइवरी की।' फिर सड़क पर जाते एक ऑटो ड्राइवर की तरफ इशारा करते हुए बोला-वो देखो वो जा रहा है क्योलारी में।कच्ची पीने।

पास खड़े होने से कुछ धुंआ मेरे पास आया तो हमने कहा -तुम तो हमको भी पिला दे रहे बीड़ी। इस पर उसने आधी पी हुयी बीड़ी फेंक दी।

चाय की दुकान के पास ही एक आदमी अख़बार पढ़ रहा था। पता चला कि वो सीओडी में काम करता है।नाम अमरनाथ पाण्डेय। उम्र 35 साल। पिता नहीं रहे 1993 में। उनकी जगह 2000 में नौकरी लगी। लेबर के पद पर। समझ लीजिये 7 साल लग जाते हैं अनुकम्पा के आधार पर नौकरी लगने में। इनके मामले में शायद कम उम्र भी एक कारण रही हो देरी से नौकरी लगने में।

रोज करीब 200 अख़बार बेंच लेते हैं अमरनाथ। सुबह 4 बजे से शुरू करके सब अखबार बाँट लेते हैं। एक बच्चा है जो कि 7 वीं में पढ़ता है।

अमरनाथ के पिता प्रतापगढ़ के रहने वाले थे। इलाहाबाद से 50 किमी दूर। 1983 में जब हम साइकिल टूर पर गए थे तो अभ्यास के लिए प्रतापगढ़ गए थे। पहली सबसे लंबी यात्रा साइकिल से 100 किमी की।
लौटते में एक अनजान नंबर से फोन आया। किनारे खड़े होकर बात की तो पता चला कि गुंजन का फोन था। गुंजन हमारे वही दोस्त हैं जिनका जिक्र किया था कल हमने कि उनको हमसे शिकायत थी कि हम उनके साथ ज्यादा नहीँ रहते। गुंजन को Amit ने बताया तब उन्होंने फोन किया।

हमने बताया कि कल हमने बिना नाम लिए उनका जिक्र किया था। फिर यह भी पूछा कि अब कभी याद करते हो कि नहीं? इस पर गुंजन ने बताया-याद करते रहते हैं। मेरे फेसबुक मित्र भी हैं वो। श्रीप्रकाश श्रीवास्तव नाम से। हमने कहा हमें तुम्हारा नाम गुंजन के अलावा और कुछ याद नहीं रहता। न रहेगा। फिर कालेज की याद करते हुए गुंजन ने बताया कि हम उनको चाय की दुकान पर कविता सुनाते थे। चाय पिलाते थे।

गुंजन अभी बिहार सरकार में अधिकारी हैं।आजकल कैमूर में पोस्टेड हैं। दो बच्चे हैं। एक बच्चा आर्मी में है। अरुणाचलम प्रदेश में पोस्टेड है। दूसरा गाजियाबाद में पढ़ रहा है। इंजियनियरिंग कालेज में। 30 साल बाद बात हुई। क्या बात है गुंजन। अमित। जय हो।

लौटे तो पुलिया पर एक बुजुर्ग बैठे थे। नाम जगदीश प्रसाद। उम्र 78 साल।यहां शोभापुर में रहते हैं।बेटा-बहू प्रोफेसर हैं।बेटा हितकारिणी में पढ़ाता है।बहू बरगी में।दो बेटे सिहोरा में गाँव में खेती करते हैं। बोले-जिसका जैसा भाग्य वो वैसा निकल गया।

78 की उम्र में अच्छे स्वास्थ्य की तारीफ की तो बोले-सुविधाएं हैं हर तरह की इसीलिये ऐसा है।
हम चले आये वापस। नेट की सुविधा का उपयोग करते हुए आज का यह रोजनामचा आपको पढ़वा रहे हैं।
शाहिद रज़ा का यह शेर दोहराते हुए:

हरेक बहाने तुमको याद करते रहते हैं
हमारे दम से तुम्हारी दास्तान बाकी है।

आपका दिन चकाचक बीते। खुशनुमा रहे।

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