Wednesday, November 11, 2015

लगे रौशनी की झड़ी झूम ऐसी

कल कानपुर के लिए चित्रकूट पकड़ने स्टेशन पहुंचे। स्लीपर में आधी बर्थ पक्की थी। आधी बर्थ मतलब RAC । कोई निरस्त कराये तो पूरी हो जाए। RAC बर्थ के अलावा तत्काल प्रीमियम में शाम तक बर्थ उपलब्ध थीं पर उनमें स्लीपर 3 गुना एसी 3 टियर 8 गुना और एसी 2 टियर 9 गुना महंगा था। हमने सोचा -300 में आधी बर्थ में जाएंगे। दीवाली के लिये पैसा बचाएंगे।

चार्ट में देखा कुल 6 लोग थे RAC वाले। हमारी बर्थ की साझीदार कोई महिला थीं F- 29. हम सोचे बर्थ कन्फर्म हुई तो अच्छा न हुई तो और अच्छा। कन्फर्म हुई तो सोते हुई, न हुई तो बतियाते हुए जाएंगे।

एक खाकी वर्दी वाले सज्जन फोन पर किसी को बता रहे थे--बुआ के लड़के ने फांसी लगा ली है। तुरन्त निकलना पड़ रहा है। सुनकर मन खराब हुआ। क्यों लोग खूबसूरत जिंदगी का अंत कर लेते हैं।

ट्रेन में सामने की बर्थ पर दो नौजवान बतिया रहे थे। एक ने दूसरे से पूछा- कुछ जुगाड़ हुआ कि नहीं। दूसरे ने कहा-नहीं हुआ यार। बस बियर से काम चलाएंगे। दूसरे ने कहा-'अरे मुझे बताया होता बे। हम दिला देते। मेरे डीएससी में बहुत जान पहचान के दोस्त हैं।' पता चला कि वे दारू की बात कर रहे थे। डीएससी में आर्मी से ही आये लोग होते हैं। आर्मी के लोगों को सस्ती शराब की सुविधा होती है। सेना से जुड़े लोगों कई मित्र उनको मिलने वाली इस सुविधा का लाभ उठाते हैं।

ट्रेन चल दी। F-29 नहीं आई। टीटी ने बर्थ हमारे नाम कर दी। हम खुश कि आराम से फैलकर जाने की सुविधा मिली। लेकिन ख़ुशी कुछ ही देर रही। कुछ देर बाद एक आदमी आया और बोला कि आधी बर्थ उसकी है। हमने कहा यह तो किन्ही महिला के नाम है। पता चला कि वो उनकी पत्नी हैं। रिजर्वेशन ने दोनों को अलग अलग कर दिया। आधी सीट यहां दी आधी वहां। हमने कहा-'आओ। बैठकर और फिर लेटकर चलेंगे।'

इसके बाद चले टीटी की शरण में कि कोई बर्थ बची हो तो मिल जाये। टीटी 'भला टीटी' टाइप था। 4/6 बर्थ गिना दिया कि चित्रकूट तक वहां लेट लो, मानिकपुर तक वहां, कर्बी में सवारी वहां से आएगी।हम लौटकर आये खाना खाने लगे। तब तक कुछ सवारियां आई और उन बर्थ पर पसर गयीं पिंडारियों की तरह जिनके नंबर हमको बताये थे टीटी ने। हमने पूछा तो उन्होंने कहा कि टीटी ने कहा है चित्रकूट/मानिकपुर/कर्बी तक बैठ जाओ उसमें। हमने टीटी के आगे से 'भला' हटाया। वह सिर्फ एक टीटी ही था।

खाना खाने के बाद हम अहा जिंदगी पढ़ने लगे। ऊपर की बर्थ वाले न ऊपर से ट्यूब लाइट घुमाकर बंद कर दिया। उसको सोना था। हमने कहा- 'बताते तो यहीं नीचे से बंद कर देते। अब तो यहाँ से खुलेगी भी नहीं।' पर वह कुछ बोला नहीं सो गया। ट्यूबलाइट घुमाकर भी बन्द की जा सकती है यह हुनर उसको आता था। उसी का उपयोग उसने किया और फिर सो गया।

हमारी बर्थ का साझीदार आया नहीं। हम चादर बिछाकर लेट गए। फिर सुबह तक नहीं आया वह यात्री। वहां बर्थ मिला गयी होगी। शायद पत्नी के साथ ही एडजस्ट हो गया।लगा सम्बन्ध मधुर हैं उनके। साथ रहने की इच्छा बनी हुई है।

रात में ट्रेन में यात्रियों का भभ्भड़ मचा। डब्बे का गलियारा फुटपाथ बन गया। कई लोग बर्थ के बीच की जगहों पर अखबार या चादर या खुद को ही बिछाकर लेट गए। दुष्यंत कुमार की तर्ज पर कहा जा सकता है:
'न मिली बर्थ तो बीच में लेट लेंगे
बहुत मुनासिब हैं लोग इस सफर के लिए'


पता चला चित्रकूट में 'दीपदान' मेला लगता है। वहां जाने के लिए ही इस रास्ते की ट्रेनों में भीड़ है। दीपदान मेले के बारे में बताते हुए एक आदमी कहा-'मंदाकिनी नदी के किनारे लगता है दीपदान का मेला। मंदाकिनी के आगे गंगा तक फ़ैल है। पिछले साल डेढ़ करोड़ लोग आये थे मेला में। इस बार मंहगाई के कारण चौथाई लोग भी नहीं जुटे मेले में।

मेले की बात चली तो कोई और बोला-' पहले तो हर गाँव में मेला लगता था। लोग ख़रीदारी मेले में ही करते थे। अब खरीददारी के लिए साल भर बाजार खुला रहता है। मेले कम हो गए। जहां लगते हैं वहां वहां भी खतम हो रहे हैं।

चित्रकूट स्टेशन पर कुछ सवारियां चढ़ी। कुछ बर्थ पर लेटी सवारियों को उठने को कहकर वे उनसे बहस करने लगीं। पहले से लेटी सवारियां भी उनसे उलझ गयीं कि उनको टीटी ने बोला है। पैसे दिए हैं बर्थ के उन्होंने। दोनों बर्थ पर कब्जे के लिए उसी तरह लड़ने लगे जैसे किसी पार्टी में कब्जे के लिए पार्टी के सक्रिय सदस्य पार्टी के मार्गदर्शक सदस्यों से लड़ते हैं।

बहस के दौरान पता चला कि पुरानी सवारियों को चित्रकूट ही उतरना था। यह पता चलते ही सवारियां बहस करना छोड़कर पुरानी सवारियों को उतारने का उपाय सोचने लगीं। नई-पुरानी सवारियों का महागठबंधन टाइप बन गया। कोई बोला -चेन खींच दो, कोई बोला-गाडी धीमी है उतर लो। बहुमत इस बात का था कि अगली स्टेशन पर उतरकर वापस आ जाएँ। लेकिन सबसे तेज आवाज चेन खींचने वाले की गूँज रही थी। इससे मुझे एक बार फिर एहसास हुआ कि जरूरी नहीं कि सबसे तेज और चिल्लाती आवाज जरूरी नहीं कि बहुमत का प्रतिनिधित्व करती हो।

गोविंदपुरी स्टेशन पहुंचे दो घण्टे लेट। हमारे ऑटो वाले 10 मिनट की दूरी पर थे। बाहर 'बाबा टी स्टाल' पर उनका इंतजार किया। टी स्टाल पर चाय थी नहीं। दूध खत्म हो गया था। ब्लैक टी पीने का मन हुआ नहीं सो इंतजार ही किया महेश का। जब वो आये तब हम घर पहुंचे।

घर के बाहर ही कुछ देर बैठे रहे बरामदे में। सुव्यवस्थित घर में अव्यवस्था फैलाने का मन नहीं हुआ कुछ देर। बरामदे में ही मेज पर ये खिलौने रखे हुए थे। काले चिंपैंजी की गोद में गुड़िया लेते देख लगा कि मानो 15 सेक्टरों में एफडीआई सीमा बढ़ने की खबर सुनते ही अपनी अर्थव्यवस्था निश्चिन्त होकर विश्वबाजार की गोद में निश्चिन्त होकर लेट गयी हो। भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए विश्वपूंजी के चेहरे का वात्सल्य देखकर मन अश् अश् करने का हुआ लेकिन तब तक चाय आ गयी और हम उसको इज्जत देने में जुट गए।
आप सभी को दीपावली की मंगलकामनाएं। आपके जीवन में:
लगे रौशनी की झड़ी झूम ऐसी
निशा की गली में तिमिर राह भूले।

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